उत्तर कोरिया में प्योंगचांग शीतकालीन ओलिंपिक खेलों से पहले लगभग साढ़े तीन महीने की उच्चस्तरीय कूटनीति के बाद अमेरिका और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेताओं के बीच पहली बैठक 12 जून 2018 को सिंगापुर में संपन्न हुई। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बैठक को ‘ऐतिहासिक’ करार दिया, लेकिन इस बात की पड़ताल होनी चाहिए कि जिस उद्देश्य से बैठक हुई थी, वह उद्देश्य पूरा हुआ या नहीं?
डॉनल्ड ट्रंप और किम ने अमेरिका-उत्तर कोरिया संबंधों में नए युग के सूत्रपात की बात कहते हुए समग्र संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए।1 संयुक्त बयान में कोरियाई उपमहाद्वीप के “संपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण” को साझा लक्ष्य बताया गया। लेकिन अमेरिका को अब भी इसे प्राप्त करने की समयसीमा और प्रक्रिया के बारे में कोई आश्वासन अथवा स्पष्ट रूपरेखा नहीं मिल पाई है। परमाणु निरस्त्रीकरण की परिभाषा दोनों देशों के लिए स्पष्ट नहीं है, जिससे पता चलता है कि इसके अर्थ और दायरे के बारे में दोनों एकमत नहीं हैं। “संपूर्ण सत्यापन योग्य, अपरिवर्तनीय परमाणु निरस्त्रीकरण (सीवीआईडी)” का प्रावधान संपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया में बाद में जोड़ा गया है। बैठक के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने यह घोषणा भी की थी कि अमेरिका अपने दक्षिण कोरियाई सहयोगी के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास रोक देगा।2 दक्षिण कोरिया में हाल ही में नियुक्त अमेरिकी राजदूत एडमिरल हैरी हैरिस ने भी सैन्य अभ्यास रोकने का समर्थन किया और कहा कि “हमें (अमेरिका) बड़ा सैन्य अभ्यास यह देखने के लिए रोक देना चाहिए कि किम जोंग उन वार्ता में अपनी कही बात पर गंभीर हैं या नहीं”3। इस तरह यदि उत्तर कोरिया शांति के अपने वायदे से हटता है तो अमेरिका अभ्यास फिर शुरू कर देगा। इस बात पर भी सहमति जताई गई कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ और उनके समान उच्च स्तरीय उत्तर कोरियाई अधिकारी आगे की बातचीत करेंगे। इसके अलावा जासूसी के आरोप में उत्तर कोरिया में बंद तीन अमेरिकियों को भी बैठक के दौरान सद्भावना दिखाते हुए छोड़ दिया गया।4
ट्रंप और किम एक दूसरे का ‘घोर अपमान’ करने के बाद बातचीत के लिए राजी क्यों हुए, इस पर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि उत्तर कोरिया कई संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और अमेरिका ने बातचीत के लिए बिना शर्त इच्छा जताई थी। चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने भी उत्तर कोरिया को बातचीत के लिए तैयार करने में बड़ी भूमिका अदा की। दूसरी ओर ट्रंप को लगता है कि इस तरह की बातचीत बहुत पहले हो जानी चाहिए थीं और वे कोरियाई उपमहाद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण पर बातचीत करने के लिए उत्सुक रहे हैं।5
हालांकि सिंगापुर में हुई ट्रंप-किम वार्ता में चीन मौजूद नहीं था, लेकिन उसकी मौजूदगी साफ महसूस हो रही थी। किम ने सिंगापुर जाने के लिए एयर चाइना के विमान का इस्तेमाल किया, इससे ही पता चल जाता है कि चीन में उन्हें कितना भरोसा है। ट्रंप के साथ बैठक की तैयारी करने के लिए किम ने दो बार चीन की यात्रा भी की थी और वार्ता के बाद शी चिनफिंग को ‘उसकी जानकारी देने’ के लिए वह फिर पेइचिंग गए। 19 जून 2018 को किम की पिछली पेइचिंग यात्रा के दौरान शी ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्थितियां कितनी भी बदल जाएं, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोरिया (डीपीआरके) या उत्तर कोरिया के साथ डटे रहने और रिश्ते बेहतर बनाने का कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) और चीन सरकार का रुख नहीं बदलेगा। उत्तर कोरिया के लोगों के साथ चीन के लोगों की दोस्ती नहीं बदलेगी और समाजवादी उत्तर कोरिया के प्रति चीन का समर्थन खत्म नहीं होगा।”6 साथ ही चीन ने कोरियाई उपमहाद्वीप के परमाणु निरस्त्रीकरण के तरीके पर चर्चा करने के लिए 2018 के अंत तक जापान और दक्षिण कोरिया के साथ त्रिपक्षीय वार्ता का विचार भी पेश कर दिया है।7
दक्षिण कोरिया के साथ सैन्य अभ्यास रोकने और संभवतः वहां मौजूद सैनिकों को वापस बुलाने का ट्रंप का वायद चीन के लिए बहुत फायदे की बात रही। यह ‘रोकने के बदले रोकने’ के उस चीनी प्रस्ताव को स्वीकार करने जैसा है, जिस पर चीन सरकार पिछले कुछ वर्षों से जोर दे रही है।8 किम और ट्रंप को आमने-सामने बिठाने में चीन की भूमिका होने की बात अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने भी मानी।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने इस बैठक को ऐतिहासिक घटना करार दिया और इसमें चीन की भूमिका बताते हुए उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि किसी को भी इस प्रक्रिया में चीन की अनूठी और अहम भूमिका होने की बात पर संदेह जताना चाहिए।”9 चीन पहला देश है, जिसने वार्ता के बाद उत्तर कोरिया पर लगे संयुक्त प्रतिबंध हटाए जाने पर जोर देना शुरू किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव कहते हैं कि उत्तर कोरिया समझौते को किस तरह लागू करता है, यह देखने के बाद प्रतिबंधों में बदलाव किया जा सकता है, जिसमें उन पर रोक लगाना या उन्हें समाप्त कर देना शामिल है।”10
दक्षिण कोरिया की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। पिछले वर्ष से ही दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून-जए-इन ने कमान अपने हाथ में लेने और कोरिया का भविष्य विधाता बनने का सपना देखा था। कोरियाई उपमहाद्वीप के भविष्य पर अभी जारी कूटनीति में दक्षिण कोरिया ईमानदार साझेदार बनकर उभरा है। दक्षिण कोरिया ने ही मई, 2018 में उत्तर कोरिया के साथ बैठकों के दो दौर किए थे और इस तरह जून में होने वाली ट्रंप-किम शिखर वार्ता के लिए मंच तैयार किया था। मून शिखर वार्ता को “शीत युद्ध की अंतिम निशानियों को खत्म करने का ऐतिहासिक कार्य” बताते हैं और उन्होंने इस साहसिक निर्णय के लिए दोनों की सराहना की।11 इसी तरह उत्तर कोरिया का परमाणु निरस्त्रीकरण और नियम आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था में उसका प्रवेश दक्षिण कोरिया और जापान के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
ट्रंप के साथ इस शिखर वाता के बाद किम ने जापानी प्रधानमंत्री से मिलने की इच्छा भी जताई है। माना जा रहा है कि सितंबर, 2018 में पूर्वी आर्थिक मंच की बैठक के दौरान रूस के व्लादीवोस्तोक शहर में दोनों की मुलाकात होगी। किम राष्ट्रपति पुतिन के न्योते पर उस बैठक में शामिल होंगे।12
अमेरिका-उत्तर कोरिया संबंधों में नए परिवर्तन शांतिपूर्ण कोरियाई उपमहाद्वीप को जन्म दे सकते हैं और इस बीच उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु परीक्षण रुक सकता है। इससे पहले डॉनल्ड ट्रंप के दो एजेंडा थेः पहला, किम जोंग-उन की सरकार का पतन और दूसरा, कोरियाई उपमहाद्वीप का परमाणु निरस्त्रीकरण। शिखर बैठक के बाद पहले एजेंडा का कोई अर्थ नहीं रह गया है बल्कि उसके उलट ट्रंप ने किम जोंग-उन को व्हाइट हाउस आने का न्योता दिया है13, जिससे उनकी सरकार को मान्यता मिल जाती है। किम को जापानी प्रधानमंत्री से मुलाकात का न्योता इस धारणा को और मजबूत करता है कि वह दक्षिण कोरिया के राजनयिक और राजनीतिक वनवास को ‘लगभग खत्म’ करने में कामयाब रहे हैं।
इससे कई संभावनाएं जन्म लेती हैं। हो सकता है कि पूर्वी एशियाई क्षेत्र से अमेरिका का निकलना दीर्घावधि में चीन के लिए सहायक नहीं हो। हो सकता है कि सुरक्षा की बदलती तस्वीर से जापाना और दक्षिण कोरिया को और भी सैन्यीकरण करना पड़े और उसके कारण क्षेत्र में हथियारों की दौड़ तेज हो जाए। अन्य देशों के साथ चल रहे चीन के क्षेत्र संबंधी विवाद भी इस सिलसिले में उत्प्रेरक का काम करेंगे। शिखर वार्ता के बाद चीन ने जापान और दक्षिण कोरिया पर 2018 के अंत तक पेइचिंग में त्रिपक्षीय शिखर वार्ता करने के लिए जोर डालना शुरू कर दिया है, जिसमें उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण तथा इस प्रक्रिया में पूर्वी एशियाई देशों की भूमिका मजबूत करने पर चर्चा की जाएगी।14 इससे इस तर्क को भी बल मिल सकता है कि चीन पूर्वी एशियाई क्षेत्र में सुरक्षा प्रदान करने अथवा उसकी गारंटी देने की भूमिका लेने लायक है या नहीं।
(लेख में संस्था का दृष्टिकोण होना आवश्यक नहीं है। लेखक प्रमाणित करता है कि लेख/पत्र की सामग्री वास्तविक, अप्रकाशित है और इसे प्रकाशन/वेब प्रकाशन के लिए कहीं नहीं दिया गया है और इसमें दिए गए तथ्यों तथा आंकड़ों के आवश्यकतानुसार संदर्भ दिए गए हैं, जो सही प्रतीत होते हैं)
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