8 सितंबर 2022 को पूर्वी लद्दाख के चुशुल-मोल्दो में चीन-भारत कोर कमांडर स्तर की 16वें दौर की बैठक के 50 दिन बाद जियान ला (डाबन) और PP15 क्षेत्र से चीन और भारतीय सैनिकों के पीछे हटने पर सहमति बनी। चूँकि PP15 रिज लाइन और कुरंग नाला के समीप एक महत्वपूर्ण बिंदु था, क्योंकि चीनी सेना ने देपसांग बुलगे से जियान ला तक एक सड़क का निर्माण किया हुआ है। भारतीय सेना द्वारा इस क्षेत्र में पेट्रोलिंग, पीएलए को अस्वीकार्य था। PP15 क्षेत्र में दोनों सेनाओं की 'आम सहमति' और स्थिति स्पष्ट नहीं है। पहले से चली आ रही विघटन प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए भारतीय पेट्रोलिंग दल के लिए कुरांग नाला के समीप पेट्रोलिंग की निश्चित दूरी है। इस जोन का PP15 या जियान ला से संबंध अबतक स्पष्ट नहीं है।
PP15 के लिए बनी सहमति से पूर्वी लद्दाख LAC के तीन मुद्दे स्पष्ट हुए। पहला, एलएसी का बदला हुआ स्वरूप। दौलत बेग ओल्डी (चिप चाप नदी) से लेकर राकी नाला (bottleneck), गलवान नदी (PP14), कुरांग नाला (PP15), गोगरा (PP17A), पैंगोंग सो नार्थ (फिंगर्स 3-8), पैंगोंग सो साउथ और कैलाश रेंज (रेजांग ला और रेचिन ला), इन प्रत्येक स्थानों के लिए एक अलग निश्चित दूरी (बफर-लैंड) में पेट्रोलिंग पर रोक के संबंध में सहमति बनी हुई है। यह व्यवस्था अक्साई चिन में एलएसी की स्थिति को स्पष्ट करती है। यह व्यवस्था पीएलए के लिए उपयुक्त है क्योंकि यह पेट्रोलिंग के दौरान संघर्षों और गतिरोध से बचाती है, जो पिछले एक दशक से अधिक समय से उनके लिए एक नियमित समस्या बन गई थी। जाहिर है चीनियों ने संपूर्ण पूर्वी लद्दाख सीमा के लिए एक रणनीतिक योजना बनाई थी, न कि दक्षिण चीन सागर की तरह कुछ साधारण बिंदुओं को हासिल करने के लिए! पूर्वी लद्दाख और अक्साई चिन को इस निश्चित बफर लैंड और व्यवस्था के तहत अलग रखा जायेगा और अततः पीएलए और भारतीय सेना को इसके माध्यम से संघर्ष से दूर रखा जाएगा।
दूसरा, चारडिंगला नाला (या डेमचोक नाला) में गतिरोध को हल करने में कुछ समय लग सकता है। चीनियों के पास दक्षिण से चारडिंग ला (5828 मीटर ऊंचा दर्रा) तक जाने के लिए एक कच्ची सड़क है। यह दर्रा एलएसी पर है और इसलिए भारतीय सेना द्वारा चारडिंगला नाला क्षेत्र (जिसे डेमचोक नाला भी कहा जाता है) से पेट्रोलिंग हुई। चारडिंगला नाला या सीएनएन जंक्शन (चार्डिंग ला-निलुंग नाला जंक्शन) में गतिरोध नियमित है और इसलिए यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस मामले का मुख्य बिंदु भारतीय पेट्रोलिंग दल द्वारा चारडिंगला में पेट्रोलिंग से इनकार करना है, जैसा कि PP15 / जियान ला की स्थिति में देखा गया था। बफर जोन के लिए आम सहमति पर पहुंचना आसान नहीं होने वाला है और इसलिए चारडिंगला नाला में गतिरोध को हल करने में कुछ और प्रयास के साथ-साथ समय भी लग सकता है।
तीसरा यथास्थिति हासिल करने का मुद्दा है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने 09 सितंबर 2022 को PP15 सर्वसम्मति को 'सकारात्मक विकास' बताते हुए स्पष्ट रूप से दोहराया कि वह चीन की ओर से उल्लंघन से पूर्व यथास्थिति बहाल करने की भारत की मांग को स्वीकार नहीं करेगा। उसने कहा कि, "हम भारत द्वारा एलएसी के अवैध क्रॉसिंग द्वारा बनाई गई तथाकथित यथास्थिति को स्वीकार नहीं करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सीमा पर शांति को महत्व नहीं देते हैं… ..चीन और भारत सीमा के मुद्दों पर अलग-अलग रुख रखते हैं।” चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पहले स्पष्ट रूप से इस स्थिति का संकेत दिया था कि "भारत और चीन को द्विपक्षीय संबंधों को ध्यान में रखते हुए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने, आपातकालीन प्रबंधन से सामान्य सीमा प्रबंधन और सीमा संबंधी घटनाओं को अनावश्यक व्यवधान पैदा करने से रोकने की आवश्यकता है।" यह बयान पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन के नजरिए को दर्शाता है। चीन द्वारा डब्लूएमसीसी के माध्यम से "सीमा क्षेत्र में स्थिति को सामान्य कर आपातकालीन स्थिति को बदलने की आवश्यकता बताई"। निष्कर्ष यह है कि आज की स्थिति में जहां सेनाएं मौजूद हैं, उन्हें सामान्य स्थिति को बनाने पर काम करना चाहिए।
यहां यह भी याद करना आवश्यक है कि तिब्बती और शिनजियांग के सामरिक भूगोल में भी बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। नई रणनीतिक गतिविधियों में एलएसी (जी695) के निकट सड़क निर्माण/उन्नयन, भूमिगत साइलो, हवाई क्षेत्रों में ब्लास्ट पेन, मिसाइल साइट, पीएलएएएफ विमानों की स्थिति, नई सड़क-रेल संरचनाएं और सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसांख्यिकी को बदलना शामिल हैं। 14वीं कार्य योजना में चेंगदू-चोंगकिंग विश्व स्तरीय एअरपोर्ट क्लस्टर और 30 नागरिक परिवहन हवाईअड्डे दिखाई देंगे। वर्तमान में तिब्बत और दक्षिण शिनजियांग में 12 हवाईअड्डे संचालित/निर्माणाधीन हैं। गोलमुंड से ल्हासा तक 739 किमी लंबी ऑइल पाइपलाइन में 1076 किमी लंबी समानांतर स्नो माउंटेन ऑयल ड्रैगन पाइपलाइन होगी, जिससे तिब्बत में ऑइल डिपो की संख्या बढ़कर दस हो जाएगी। चीन पहले ही तिब्बत के सभी 66 काउंटी और आठ जिलों में सेंट्रल पावर ग्रिड कनेक्शन स्थापित कर चुका है। इस तेजी से और सैन्य रूप से केंद्रित बुनियादी ढांचे के निर्माण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
यह महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करता है कि अब आगे क्या? स्पष्ट निहितार्थ यह है कि चीन ने एक सौम्य और अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण सीमा से समझौता किया है। उसने नए सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, और पीएलए सैन्य संरचनाएं जो झिंजियांग से अलग हो गई थीं, अब नए अर्ध-स्थायी आवास / सैन्य स्टेशनों में परिवर्तित हो गई हैं। इसलिए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि डी-एस्केलेशन या डी-इंडक्शन की अभी कोई योजना नहीं है।
प्रासंगिक रूप से यह भी कहा जाना चाहिए कि बहुत अधिक तैनाती के बावजूद युद्ध बहुत ही उलझा हुआ मसला है, जिसका कोई निश्चित अंत नहीं है। यहां तक कि एक विषम रूप से सुविधा संपन्न राष्ट्र भी इससे भीषण संकट में पड़ सकता है। अपने सशस्त्र बलों (पीएलए) और राजनीतिक प्रक्रियाओं (सीपीसी) की अजेयता दिखाने के इच्छुक एक सत्तावादी शासन के लिए उलटफेर की आशंका हारा-किरी करने के समान होगी! चीन में व्यापक भू-राजनीतिक वातावरण भारत के खिलाफ युद्ध का संकेत नहीं देती है। हालाँकि, विश्वास के अभाव के कारण चीन के इरादों की गारंटी नहीं दी जा सकती है। उसकी विशाल क्षमता और भू-रणनीतिक सभी महत्वपूर्ण स्थान तक पहुँचने के भारतीय प्रयासों को चीन के खतरे की डैमोकल्स की तलवार को हमेशा के लिए बनाए रखकर जाँचा जा सकता है! इसलिए इसके एक परिणाम के रूप में चीन की भारत के साथ सीमा स्थिति सामान्य करने की कोई योजना या इरादा नहीं है। सीमाओं पर भू-रणनीतिक दबाव बनाए रखने और भारत पर दबाव बनाने की यथास्थिति चीन को उपयुक्त लगती है।
यह भी सराहना योग्य है कि चीन दूसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र और निर्यातक देश है। कुछ आर्थिक तंगी और चुनौतियों के बावजूद चीन का मौजूदा वैश्विक व्यापार और एफडीआई आंकड़े सकारात्मकता का संकेत देते हैं। भारत का चीन के साथ एक बढ़ता हुआ व्यापार है, जिसमें भारतीय छात्रों को चीनी विश्वविद्यालयों में वापस भेजने की प्रतिबद्धता तथा कई वैश्विक और क्षेत्रीय संगठनों के माध्यम से दोनों देश राजनीतिक/राजनयिक रूप से जुड़े हुए हैं। ये चीन और भारत के बीच निश्चित संबंध हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता!
निरंतर भू-रणनीतिक दबाव को देखते हुए भारत को सीमा-प्रबंधन पर योजना बनाने की आवश्यकता है। 2020/21 में भारत ने उत्तरी सीमा पर इंडक्शन को प्राथमिकता दी थी, जो उसके बाद भी जारी रहा। लंबी अवधि में बढ़ी तैनाती की यथास्थिति (स्टेटस को) विपरीत और थकाऊ सिद्ध हो सकती है! शांति-क्षेत्र की रूपरेखा के लिए मार्ग और उत्तरी सीमाओं पर इकाइयों की नियुक्ति, विशेष रूप से पैदल सेना और तोप खानों के विश्लेषण की आवश्यकता है। कुछ सर्वोच्च इकाईयां इसपर दिशा प्रदान कर सकती हैं। क्या जरूरत पड़ने पर हवाई माध्यम से ऊंचाई पर पैदल सेना इकाइयों के सुदृढीकरण के लिए 'भारी हथियारों और उपकरणों' की सुलभता बनाए रखना संभव है? क्या हम ऐसी स्थिति में 'लाइट इन्फैंट्री' की अवधारणा को अपना सकते हैं? एक प्रभावी लॉजिस्टिक योजना पर कार्य करके सुपर-हाई एल्टीट्यूड में बल की एक संतुलित मात्रा को बनाए रखने और आवश्यकता पड़ने पर क्षमता बढ़ाई जा सकती है। क्या सर्विलांस और टारगेट एक्विजिशन (SATA - ISR से निपटने) यूनिट्स को सेक्टोरल प्रोफाइल पर स्थायी रूप से लगाया नहीं जाना चाहिए, जिसके बाद जरुरत पड़ने पर केवल सैन्य दल को ट्रांसफर किया जाना चाहिए जैसे सेवाक्षेत्रों में होता है? इससे आवश्यक क्षेत्रीय आईएसआर विशेषज्ञता और डेटा बेस का निर्माण भी होगा।
क्या लॉजिस्टिक्स प्रबंधन को एक पुल-मॉडल में संशोधित नहीं किया जाना चाहिए जो उपभोग डेटा पर आधारित हो और वर्तमान पुश-मॉडल आधारित न हो, जो बड़े नुकसान की ओर ले जाता है? क्या चंडीगढ़/हिंडन जैसे शांतिपूर्ण स्टेशनों में लॉजिस्टिक्स बेस पर यूनिट-वार आवश्यकताओं को रखना फायदेमंद होगा, ताकि लॉजिस्टिक्स इकाइयों द्वारा ऊंचाई पर बल्क-ब्रेकिंग और वितरण समस्याओं को बचाया जा सके? इससे ऊंचाई से बेस बल्क-ब्रेकिंग डिपो तक बड़े लॉजिस्टिक्स सामग्रियों को हटाने में भी सुविधा होगी! क्या हम पाइपलाइन स्थापित करके बहुत बड़े ईंधन परिवहन पर बचत कर सकते हैं? आर्कटिक पाइपलाइन साइबेरिया सहित पर्माफ्रॉस्ट स्थितियों में भी कारगर होगी और लंबी अवधि के लिए इसपर काम किया जा सकता है।
क्या हम तैयारियों (mobilisation)/प्रवेश (induction) के संबंध में एक प्रामाणिक अध्ययन कर सकते हैं? क्या हमें एलएसी से लगे क्षेत्रों में प्रभावी चिकित्सा के साथ ऑक्सीजन उत्पादन प्रणाली का निर्माण भी करना चाहिए? क्योंकि, समस्याओं का पूरा आकलन नहीं होता है।
संक्षेप में, भारत की उत्तरी सीमाओं पर युद्ध की आशंका के बिना भी पीएलए के बहुत से संकेत मध्य और दीर्घावधि में सावधानी का संकेत देते हैं। सेंट्रल सेक्टर और नॉर्थ-ईस्ट में सावधानी जरूरी है, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि हम बफर जोन बनाने के झंझट में यहाँ भी पड़ जाएं! चीन सीसीपी नीति के रूप में भारत पर सीमा समाधान को लेकर बहुत ही सीमित कार्यवाही की रणनीति के साथ भू-रणनीतिक दबाव बनाए रखेगा। चीन के साथ सीमित पारंपरिक युद्ध विकल्पों के बाद भी 2020 की घटनाओं ने विश्वास की गंभीर कमी को जन्म दिया है। जबकि सड़क-रेल बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ठोस प्रयास किए जा रहे हैं, इसलिए लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए उत्तरी सीमा की रूपरेखा की फिर से जांच करने की आवश्यकता है!
(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>
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