भारत-जापान शिखर सम्मेलन: यूक्रेन युद्ध के साए में दोहराई गई प्रतिबद्धता
Prerna Gandhi, Associate Fellow, VIF

अगर समय सामान्य होता तो भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय संबंधों की 70वीं वर्षगांठ बहुत धूमधाम से मनाई गई होती। फिर भी नई दिल्ली में14वें वार्षिक सम्मेलन को उसी रूप में चिह्नित किया गया जैसा कि इसके पहले अक्टूबर 2018 में टोक्यो में मनाया गया था। इसके बाद, तो तात्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे की 2019 में भारत की प्रस्तावित यात्रा दोनों देशों की अप्रत्याशित घरेलू स्थितियों के कारण स्थगित कर दी गई थी। इसके बाद, कोविड-19 महामारी के बाद तो 2020 एवं 2021 के वार्षिक राजनयिक शिखर सम्मेलन या अन्य प्रमुख बैठकें ऑनलाइन ही होने लगी थीं। किशिदा पहले जापानी प्रधानमंत्री हैं, जो लगभग साढ़े चार वर्षों बाद भारत दौरे पर आए हैं। उनके दौरे के साथ ही भारत में अगले पांच वर्षों के लिए 5 ट्रिलियन येन (42 अरब अमेरिकी डॉलर) के नए निवेश लक्ष्य के साथ घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों की पुनर्पुष्टि हुई है। यह करार 2019 में भारत-जापान औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता साझेदारी (IJICP) के नजरिये महत्त्वपूर्ण है, जबकि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने, रसद की लागत को कम करने और सरकारी प्रक्रियाओं को सुचारु एवं सुविधाजनक बनाने के लिए औद्योगिक क्षेत्रों के विकास और उपयोग जैसे क्षेत्रों में चर्चा के माध्यम से भारत की औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की दिशा में काम करेगा।[1]

भारत और जापान दोनों ही देश कोरोना महामारी के कारण आई मंदी के बाद अपनी घरेलू अर्थव्यवस्थाओं को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। जापानी प्रधानमंत्री किशिदा ने “पूंजीवाद के एक नए रूप” की बात की है, जो विकास को संभव करे और उसके वितरण को संतुलित करे। यह नया फॉर्म डिजिटलीकरण, हरित प्रौद्योगिकी और मानव पूंजी में निवेश से प्रेरित है। वहीं, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत या आत्मक्षम भारत का एक दृष्टिकोण पेश किया है, जो अधिक उत्पादन में योगदान के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी निर्भरता को संतुलित कर सकता है। इस संबंध में, दोनों देशों ने उत्पादन के ऑनशोरिंग के लिए बड़ी सब्सिडी सहित प्रमुख आर्थिक पहल शुरू की है। पिछले साल COP26 के दौरान, जापान और भारत दोनों ने क्रमशः 2050 और 2070 तक कार्बन तटस्थता हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धताएं दोहराई थीं। इसी भावना के साथ इस शिखर सम्मेलन में भारत-जापान ऊर्जा संवाद (जिसकी स्थापना2007 में की गई थी) को भारत-जापान स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी में प्रोन्नत कर दिया गया है। साथ ही, ऊर्जा संवाद के मौजूदा 5 कार्य-समूहों (WG) को 4 कार्य-समूहों में विलय कर दिया गया है: बिजली और ऊर्जा संरक्षण, नई और नवीकरणीय ऊर्जा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और कोयला।[2] प्रधानमंत्री किशिदा ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे (सीडीआरआई) के लिए गठबंधन जैसी भारत की पहलों की सराहना की और कहा कि जापान भारी उद्योग ट्रांसमिशन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय-स्वीडिश जलवायु पहल लीडआईटी में शामिल होगा।[3]

हाल के वर्षों में, भारत-जापान आर्थिक साझेदारी लगातार बढ़ी है। जापान 36 अरब डॉलर के एफडीआई स्टॉक और भारत में काम करने वाली 1455 जापानी कंपनियों के साथ भारत में पांचवां सबसे बड़ा निवेशक है। पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत-जापान सहयोग ऑटोमोबाइल, खाद्य प्रसंस्करण, शहरी नियोजन और बड़ी डिजिटल प्रौद्योगिकियों को विभिन्न क्षेत्रों में शामिल करने से और विस्तारित हुआ है। दिसम्बर 2015 में, प्रधानमंत्री शिंजो आबे के भारत दौरे के क्रम में भारत की पहली उच्च गति की रेल विकसित करने पर सहयोग पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह रेल विस्तार जापान के शिकनसेन पर आधारित है। नॉस्कॉम-एनआरआई की रिपोर्ट “भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में जापानी निवेश” के अनुसार, 100 से अधिक सक्रिय जापानी निवेशकों ने वर्ष 2000 और मई 2021 के बीच 360 तरह के 240 से अधिक भारतीय स्टार्ट-अप में धन लगाया है।[4] भारत ने अपनी ओर से व्यावसायिक उद्देश्यों को लेकर भारत आने वालों के साथ सभी जापानी यात्रियों को वीजा दी है। जापान भी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुछ सक्रिय विदेशी निवेशकों में से एक रहा है। वहीं, 2017 में स्थापित एक्ट ईस्ट फोरम कृषि, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, कौशल प्रशिक्षण आदि में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण रहा है। शिखर सम्मेलन ने भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए भारत-जापान सतत विकास पहल के शुभारंभ के साथ एक समेकन देखा गया है, जिसमें पूर्वोत्तर में बांस मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने की पहल भी शामिल है। 75 अरब डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते का नवीनीकरण भी किया गया, जिसके अंतर्गत दोनों देश अमेरिकी डॉलर के बदले अपनी स्थानीय मुद्राओं में विनिमय कर सकते हैं।

भारत और जापान के बीच बढ़ते सुरक्षा सहयोग का द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसको लेकर पहली 2+2 मंत्रिस्तरीय बैठक नवम्बर 2019 में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी; उम्मीद है कि इस वर्ष (2022 में) टोक्यो में दूसरी बैठक होगी। रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग में, भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और जापान के एटीएलए ने जुलाई 2018 में यूजीवी/रोबोटिक्स के लिए विजुअल एसएलएएम आधारित जीएनएसएस ऑगमेंटेशन टेक्नोलॉजी पर सहकारी अनुसंधान से संबंधित एक परियोजना पर हस्ताक्षर किए हैं। एक प्रमुख सैन्य रसद समझौते, जापान की स्व-रक्षा बलों और भारतीय सशस्त्र बलों (जिसे"अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट" या एसीएसए कहा जाता है) के बीच आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान से संबंधित समझौते पर सितम्बर 2020 में हस्ताक्षर किए गए थे। मार्च 2021में, भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में बैटरी स्टोरेज सिस्टम की स्थापना के लिए जापान ने अपनी पहली आधिकारिक विकास सहायता दी थी। दोनों देशों के बीच धर्म गार्जियन से लेकर मालाबार तक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों तरह के सैन्य अभ्यासों के दायरे को बढ़ाया है। भारत-जापानी सुरक्षा संबंधों ने मई 2018 में साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने और आईटी पेशेवरों का आदान-प्रदान करने और जनवरी 2021 में 5जी प्रौद्योगिकी सहित आईसीटी में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर सहमति देकर एक और कदम आगे बढ़ाया है।

भारत और जापान दोनों ही भारत-प्रशांत क्षेत्र में न्यूनतम और बहुपक्षीय प्रारूपों में बढ़ते सहयोग के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा संरचनाओं पर परस्पर समान धारणाएं रखते हैं। दोनों देश एक-दूसरे की सुरक्षा चिंताओं के समर्थन में सहज हैं, चाहे वह उत्तर कोरिया के अस्थिर बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण का मसला हो या पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी नेटवर्क का मुद्दा हो। जापान परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का भी प्रबल समर्थन करता रहा है। हाल में गठित अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच चतुष्कोणीय सुरक्षा वार्ता क्वाड जैसा नवजात उपक्रम विदेश मंत्रियों की नियमित बैठकों और शिखर स्तर के संवाद तक बढ़ गया है। क्वाड ने न केवल क्षेत्र में नियम-आधारित आदेश को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है, बल्कि नई प्रौद्योगिकियों और आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्गठन में अंतर-सहयोग को मजबूत करते हुए टीके और बुनियादी ढांचे जैसे सामान्य सामान प्रदान करने पर भी ध्यान केंद्रित किया है। भारत और जापान के संयुक्त बयान में चीन पर ध्यान केंद्रित करने से नहीं बचा जा सकता था क्योंकि भारत और जापान दोनों ने अपनी-अपनी जमीन और समुद्री सीमाओं पर लगातार, अकारण चीनी आक्रामकता का सामना करते रहे हैं। इस बार संयुक्त बयान में आर्थिक मजबूती को एक नई चुनौती के रूप में भी उजागर किया गया है और विविध, लचीला, पारदर्शी, खुले, सुरक्षित और अनुमानित वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की आवश्यकताओं का भी उल्लेख किया गया है, जो आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती हैं। भारत और जापान ने भी इसी तरह की क्षेत्रीय स्थिति पर आवाज उठाई है, चाहे वह आसियान केंद्रीयता पर हो, म्यांमार को आसियान की सर्वसम्मति से बने पांच सूत्रों को लागू करने और मानवीय चिंताओं का निराकरण करने और अफगानिस्तान में एक समावेशी राजनीतिक प्रणाली बनाने की बात कही गई है।

लेकिन यूक्रेन संघर्ष के साए में हुआ यह शिखर सम्मेलन में एक बिंदु पर शायद मतभेद है। जापानी मीडिया इस बात को देखने पर जोर दिया था कि किशिदा किस तरह भारत से इस संघर्ष पर स्पष्ट रुख अपनाने के लिए कहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में, जापानी प्रधानमंत्री किशिदा ने कहा कि “यूक्रेन पर रूसी आक्रमण एक गंभीर घटना है, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की चूलें हिलाकर रख दी हैं।[5] हमें दृढ़ता और मजबूत तरीके से इसका जवाब देना चाहिए।” हालांकि, पीएम मोदी ने अपनी टिप्पणी में केवल इतना कहा कि “भूराजनीतिक घटनाएं नई चुनौतियां पेश कर रही हैं”। बाद में संयुक्त बयान में कहा गया, “यूक्रेन में चल रहे संघर्ष और मानवीय संकट के बारे में गंभीर चिंता जताई गई और इसके व्यापक प्रभाव का, विशेषकर भारत-प्रशांत क्षेत्र का, आकलन किया गया।” भारत के विपरीत, जापान रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों लगाने को लेकर पश्चिम देशों के साथ है लेकिन रूस के सुदूर पूर्व में किए गए रणनीतिक ऊर्जा निवेश पर पीछे हटना उसके लिए एक चुनौती बना हुआ है। इसके अलावा, रूस के साथ शांति संधि और कुरील द्वीप समूह के विवाद के समाधान के लिए प्रधानमंत्री आबे द्वारा पहले किए गए प्रयास विफल हो गए हैं। भारत के लिए, रूस के साथ अपने रक्षा सहयोग की वास्तविकताओं के साथ-साथ महामारी के बाद के आर्थिक सुधार पर प्रगति ने एक अलग स्थिति की तरफ उन्मुख किया है। फिर भी, कोई यह कह सकता है कि भारत-जापान संबंधों को मजबूत करने में यूक्रेन संघर्ष बाधक नहीं बनेगा या बाधा उत्पन्न नहीं करेगा।

पाद टिप्पणियां :

[1]प्रेस विज्ञप्ति: लांच ऑफ “इंडिया-जापान इंडस्ट्रियल कम्पीटिटिव्नेस पार्टनरशिप”, https://www.meti.go.jp/press/2019/12/20191210003/20191210003-3.pdf
[2]इंडिया-जापान क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप,https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/34992/IndiaJapan+Clean+Energy+Partnership
[3]इंडिया-जापान समिट ज्वाइंट पार्टनरशिप फॉर ए पीसफुल,स्टेबल एंड प्रास्पेरस पोस्ट कोविड वर्ल्ड,https://www.mea.gov.in/bilateral-documents.htm?dtl/34991/IndiaJapan+Summit+Joint+Statement+Partnership+for+a+Peaceful+Stable+and+Prosperous+PostCOVID+World
[4]जापान इंवेस्टेड 9.2 अरब अमेरिकी डॉलर इन इंडियन स्टार्ट अप टिल मे: कॉउंसिल जनरल,https://www.newindianexpress.com/business/2021/nov/13/japan-invested-usd-92-billion-in-indian-start-ups-till-mayconsul-general-2383044.html
[5]जापान पुशेज इंडिया टू डिनाउंस रसिया, https://www.rt.com/news/552318-japan-india-russia-ukraine/


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://twitter.com/narendramodi/status/1505226458301886467/photo/1

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