शिंज़ो अबे को श्रद्धांजलि
Prerna Gandhi, Associate Fellow, VIF

प्रेरणा गांधी, एसोसियेट फ़ेलो, VIF

“एक राजनीतिक के रूप में मैंने विफलताएँ देखी हैं और केवल इस वजह से मैं जापान के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ।
शिंज़ो अबे (यह उन्होंने 2012 में लिखा था।)

एक दशक बाद, शिंज़ो अबे अपना सब कुछ जापान को देने के लिए तैयार थे। जापान के इस पूर्व प्रधानमंत्री को 8 जुलाई 2022 को नारा में एक चुनावी भाषण के दौरान गोली मार देने के समाचार ने पूरे भारत को सन्न कर दिया। यह अविश्वसनीय खबर थी और कुछ ही घंटों के भीतर इस बारे में अनहोनी की पुष्टि हो गयी। भारत के लिए यह एक बहुत ही निजी क्षति थी। शिंज़ो अबे भारत के सबसे बड़े ख़ैरख़्वाहों में थे और भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय विश्व नेताओं में वे शामिल थे। उनका उत्साह, आदर और भारत के लिए समर्थन के भाव के बारे में सभी भारतीय परिचित थे और वह खबरों में बने रहने के लिए होनेवाली राजनय और ऐसी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध अन्य वर्तमान नेताओं से अलग थे। उनकी सुघड़ता और अनुराग भारतीय बौद्धिकों, व्यवसायियों और उद्यमियों के साथ उनकी बातचीत में स्पष्ट झलकता था। प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री अबे के बीच जो संबंध थे वह अब एक किंवदंति बन चुका है। हालाँकि, दोनों की मुलाक़ात 2014 से पहले भी हो चुकी थी, पर प्रधानमंत्री मोदी के कार्यभार संभालने के बाद भारत और जापान के अधिकारी दोनों नेताओं के बीच आत्मीय संबंधों से चकित रहते थे और कई तो इसे आध्यात्मिक तक कहते थे।

अंतरराष्ट्रीय मामलों में हिंद-प्रशांत और क्वाड के माध्यम से भारत को अपनी दीर्घकालीन रणनीतिक जड़ता त्यागने और अपेक्षाकृत बड़ी भूमिका के लिए जगह बनाने वाले प्रधानमंत्री अबे का भारत हमेशा ऋणी रहेगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र आज न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को परिभाषित करता है बल्कि जापान, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों का महत्वपूर्ण घटक बन गया है।

वर्ष 2007 में किसी को यह कल्पना नहीं थी कि भारतीय संसद में प्रधानमंत्री अबे का भाषण “दो महासागरों का मिलन” आनेवाले दशकों में रणनीतिक सुनामी को जन्म देगा।

वर्ष 2007 जापान के लिए भी दशकों की रणनीतिक शिथिलता को त्यागने का समय और नयी वास्तविकताओं से दो-चार होने का था जब उत्तरी कोरिया ने अक्टूबर 2006 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। वर्ष 2007 में जापान की सुरक्षा एजेंसी को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार (लगभग 53 साल बाद) पूर्णकालिक मंत्रालय का दर्जा दे दिया गया। इसे भाग्य का खेल ही कहना चाहिए कि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के रास्ते में जापान की योग्यता में जो बड़ी ख़ामी थी उसको दुरुस्त करने के लिए अबे को ही चुना गया। दिसंबर 2012 में वे जापान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे और अगस्त 2020 में (स्वास्थ्य आधार पर) अपने इस्तीफ़े तक वे इस पद पर लगातार बने रहे। इस दौरान उन्होंने जापान को सुरक्षित करने के लिए कई कदम उठाए। अबे के प्रधानमंत्रित्व काल में पहली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की रूपरेखा तैयार की गयी जिसमें जापान का ‘शांति में सक्रिय योगदान’ पर विशेष जोर दिया गया और यहाँ तक कि रक्षा पर अपने जीडीपी का एक प्रतिशत खर्च करने की पवित्र समझी जानेवाली सीमा को भी तोड़ दिया। अबे ने जापान की सुरक्षा नीति में सर्वाधिक व्यापक क़ानून बनाने की पहल की जो राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के रूप में सामने आया जिसके तहत स्वरक्षा बलों को विदेश में सामूहिक स्व-रक्षा में शामिल होने की अनुमति दी गयी। उन्होंने हथियारों के निर्यात पर लगे पूर्ण प्रतिबंध को हटा लिया और राज्य गोपनीयता क़ानून पास किया जिसे मित्र देशों के क़ब्ज़े के दौरान (ऐलायड ऑक्युपेशन की अवधि में) समाप्त कर दिया गया था। जापान के सशस्त्र बलों को संवैधानिक मान्यता दिलाने की ज़िम्मेदारी का भार उठाने वाले अबे जापानी संविधान के आर्टिकल 9 को संशोधित करने को लेकर चली बहस के प्रतीक बन गए।

रक्षा एजेंसी को मंत्रालय का दर्जा दिए जाने के अवसर पर टोक्यो में 9 जनवरी 2007 को आयोजित समारोह के दौरान सैनिक टुकड़ी का निरीक्षण करते हुए प्रधानमंत्री अबे

अबे ने अपने सुरक्षा प्रतिमान के पूरक के रूप में जापानी राजनय का उसी स्तर पर विस्तार किया। इसमें भारत उनका पसंदीदा साझीदार बना। वर्ष 2014 में स्पेशल स्ट्रटीजिक एंड ग्लोबल पार्ट्नर्शिप के विस्तार की शुरुआत के साथ ही उनके नेतृत्व में जापान-भारत संबंधों में अप्रत्याशित तेज़ी आयी। वर्ष 2015 में दोनों देशों ने पहली बार एक संयुक्त बयान जारी किया जिसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साथ मिलकर काम करने की घोषणा की गयी। उसी साल, जापान मालाबार सैनिक अभ्यास का स्थायी सदस्य बना। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री अबे ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ मिलकर बनारस में सर्वाधिक पुरानी हिंदू परंपरा, गंगा आरती में भाग लिया। यह संसार, जीवन की निरंतरता, का एक अद्भुत क्षण था जिसमें नदियों में देवत्व की अनुभूति को लेकर भारत और जापान की सांस्कृतिक समानता परिलक्षित हुई। अगले साल 2016 में अबे के आशीर्वाद से बातचीत के कठिन दौर के बाद ऐतिहासिक भारत-जापान असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हुआ। शिखर वार्ता के लिए हुए दौरे के दौरान जापान के शींकनसेन से कोबे की यात्रा ने अगले साल भारत के लिए पहले उच्च-गति के रेल के ऐतिहासिक समझौते का मार्ग प्रसस्त किया। वर्ष 2017 में ऐक्ट ईस्ट फ़ोरम की स्थापना की गयी थी और इसने भारत के उत्तरपूर्व में जापान को विकास का नया साझीदार बना दिया। वर्ष 2018 में रक्षा सहयोग में दोनों देश और क़रीब आए और दोनों देशों के सभी तीनों रक्षा बलों ने संयुक्त अभ्यास में भाग लिया। वर्ष 2019 में जापान अमरीका के बाद दूसरा देश बना जिसने भारत के साथ 2+2 मंत्रालयीय बातचीत की शुरुआत की। हालाँकि अबे 2020 में अपने पद से हट गए, पर 2022 में उन्होंने जापान-भारत संघ के अध्यक्ष का पद संभाला जिस पर वह अपने मृत्यपर्यंत बने रहे।

दशाश्वमेध घाट का वह दृश्य जिसने सदा के लिए भारतीयों का दिल जीत लिया

जहाँ तक विवेकानंद इंटर्नैशनल फ़ाउंडेशन की बात है, इसके शुरुआती वर्षों से ही, शिंज़ो अबे इसके लिए आदरणीय बड़े बुजुर्ग की तरह थे जिनके जुड़ाव ने इस संगठन को काफ़ी समृद्ध किया। नयी दिल्ली में 2010 और 2011 में जापान इन्स्टिटूट ऑफ़ नैशनल फ़ंडमेंटल्ज़ (JINF) की दो बैठकों के बाद जब VIF के तत्कालीन निदेशक अजित डोवाल के नेतृत्व में एक चार सदस्यीय शिष्टमंडल जून 2012 में जापान के दौरे पर गया तो उन्हें JINF के संरक्षक अबे के साथ बातचीत का मौक़ा मिला। अबे ने JINF और VIF के सदस्यों के साथ टोक्यो में काफ़ी समय बिताया और उन्हें अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराया जो आगे चलकर ज्वाइंट स्टडी ऑन फ़्रेम्वर्क फ़ॉर इंडो-जैपनीज़ स्ट्रटीजिक पार्ट्नर्शिप एंड कोआपरेशन का रूप लिया। इस अध्ययन की शुरुआत एक साल बाद जून 2013 में हुई और भारत-जापान संबंधों की संभावनाओं की दृष्टि से यह अब तक का सर्वाधिक व्यापक दस्तावेज है। VIF को प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री अबे के बीच “संवाद”-ग्लोबल हिंदू-बुद्धिस्ट इनिशटिव ऑन कॉन्फ़्लिक्ट अवॉडन्स एंड इन्वायरॉन्मेंट कंसियसनेस का मंच भी बनने का सौभाग्य प्राप्त है। “संवाद” खुली बातचीत की पूर्वी परंपरा का नाम है जिसमें आपसी बहस मुबाहिसे से अपनी विविधता के साथ सामंजस्य बिठाया जाता है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि राष्ट्रों के बीच शांति तब तक नहीं स्थापित हो सकती जब तक कि उनके धर्मों के बीच शांति पैदा नहीं होती और यह संघर्षों को रोकता है, परिस्थिति का संज्ञान रखते हुए यह मुक्त और स्पष्ट बातचीत के सिद्धांत पर अमल करता है।

VIF और JINF के शिष्टमंडल टोक्यो में जापानी प्रधानमंत्री और JINF के संरक्षक शिंज़ो अबे के साथ (4 जून 2012)

वर्ष 2015 में VIF परिसर में आयोजित संवाद की पहली बैठक को भेजे अबे के रिकार्ड किए गए भाषण को सुनते प्रधानमंत्री मोदी।

VIF के शीर्ष बुद्धिजीवियों के दिल में शिंज़ो अबे की यादें अभी भी ताज़ा हैं। VIF के पूर्व निदेशक, जनरल (अवकाशप्रापत) एनसी विज ने टोक्यो में संवाद की 2016 में हुई दूसरी बैठक के दौरान प्रधानमंत्री अबे के साथ अपनी बातचीत को याद किया और कहा कि वह अबे में नेतृत्व के गुणों, आदर-सत्कार की गर्मजोशी और असाधारण मैत्री-भाव से वह काफ़ी प्रभावित हुए। जनरल विज ने इस बात को विशेष रूप से याद किया कि कैसे अपने रात्रि भोज की मेज़बानी के दौरान उन्होंने हर एक प्रतिभागी को सुना और आगे की बातचीत में सुधार के लिए उनके सुझावों पर ग़ौर किया। VIF के वर्तमान निदेशक डॉक्टर अरविंद गुप्ता जो कि 2018 में हुए संवाद में शामिल VIF शिष्टमंडल का हिस्सा थे, ने एशियाई मूल्यों के प्रति अबे के भरपूर समर्थन को याद किया जो उनके हिसाब से सामाजिक सामंजस्य का मूलाधार है। VIF के अध्यक्ष एस गुरुमूर्ति ने 8 जुलाई को अपने कई ट्वीट्स के ज़रिए स्वर्गीय शिंज़ो अबे को अपनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने उनके साथ हुई एक बैठक का ज़िक्र किया जिसमें प्रधानमंत्री अबे ने उनसे मिलने गए कुछ लोगों के समूह को बताया कि प्रधानमंत्री के आवास की मरम्मत नहीं की गयी है क्योंकि यही वह जगह है जहां जापान ने अमरीका के समक्ष आत्मसमर्पण किया था और जापान के नेताओं की निरंतर याद दिलाने के लिए ही इसे अभी तक छुआ नहीं गया है।

टोक्यो में 2016 में आयोजित संवाद

वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री शिंज़ो अबे के साथ VIF के अध्यक्ष गुरुमूर्ति। गुरुमूर्ति ने उस साल टोक्यो में आयोजित संवाद में VIFशिष्टमंडल का नेतृत्व किया था।

जहां तक भारत की बात है, जापान के साथ पिछले दो दशकों में उसके संबंधों पर शिंज़ो अबे का व्यक्तित्व हावी रहा है। उन्होंने जो विरासत छोड़ी है, अब यह उसका हिस्सा बना रहेगा। शोक संतप्त जापान और मृत अबे के परिवार को हमारी सांत्वना। ॐ शांति!

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)

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