रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव: अनपेक्षित नतीजे
Prerna Gandhi, Associate Fellow, VIF

युद्ध का कोहरा न केवल यूक्रेन युद्ध के सैन्य पहलुओं को प्रभावित कर रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली जो कि पहले से समस्याग्रस्त है, उसको मूल रूप से बदलने की तरफ अग्रसर हो रहा है। इस संदर्भ में, रूस पर लगाए गए पश्चिमी आर्थिक प्रतिबंध सिर्फ रूस पर ही प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाल रहे हैं, बल्कि उनका पूरे विश्व पर खराब असर हो रहा है और हमें इनके नकारात्मक नतीजे बहुत जल्द ही देखने को मिल सकते हैं। कोविड महामारी ने पहले उन रुझानों में तेजी लाई थी जो एक धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था से उठे थे, जब अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था अपने मानदंडों की पुन: पुष्टि की मांग कर रहा था, और अमेरिका एवं चीन के बीच एक शक्ति प्रतियोगिता लहक रही थी। लेकिन यूक्रेन युद्ध ने वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को एक आकलन पर मजबूर कर दिया है, जो पिछले कुछ समय से अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को अलग-अलग कर देख रहा था। यह बात अमेरिका-चीन के कारोबारी संबंध में सबसे ज्यादा स्पष्ट दिखती है, जो परिमाण में दुनिया में सबसे बड़ा है,बावजूद इसके कि दोनों ही देश औपचारिक रूप से यह मानते हैं कि उनके बीच एक कारोबारी प्रतिद्वंद्विता है। हालांकि शीत युद्ध 2.0 की बयानबाजी ने इसे गति दी है, फिर भी वर्तमान स्थिति द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के शीत युद्ध से बिल्कुल अलग है। वैश्विक आर्थिक निर्भरता और बड़ी शक्तियों के बीच आधुनिक दौर के ऐसे-ऐसे बेजोड़ हथियार हैं, जो किसी भी युद्ध को अनिर्णायक बनाते हैं, और अन्य सभी देशों के लिए एक खतरनाक स्पिलओवर बनाते हैं।

इसके चलते इस युद्ध में सभी प्रतिभागी पूरी ईमानदारी से यह उम्मीद करते हैं कि मौजूदा विवाद के समाधान में कूटनीति के लिए जगह अब भी बची हुई है क्योंकि यह युद्ध जितना अधिक लंबा खींचेगा, इसके दुष्प्रभाव उतने ही लंबे समय तक रहेंगे और वे व्यापक होंगे। वे केवल यूक्रेन के निर्दोष नागरिकों तक ही सीमित नहीं रहेंगे। आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से रूस को वैश्विक अर्थव्यवस्था से अलग-थलग करना रूसी नेतृत्व और रूसी नागरिकों दोनों के लिए नेविगेट करने के लिहाज से पीड़ादायक और कठिन होने जा रहा है, खासकर उस एक पीढ़ी के जीवन स्तर में वास्तविक संवृद्धि पर विचार करते हुए जिसने सोवियत के पतन के बाद से पूरी तरह से अराजकता ही देखी है। और विडंबना यह है कि आर्थिक पुनर्निर्माण और युद्ध करने का निर्णय दोनों ही व्लादमिर पुतिन के कार्यकाल के तहत हुआ। लेकिन आर्थिक प्रतिबंधों का इतिहास प्रतिबंधों की अस्पष्ट प्रभावकारिता और वास्तव में लाए गए भू-राजनीतिक प्रभावों के उदाहरणों से भरा हुआ है। हालांकि उनकी सीमित उपयोगिता के बावजूद इसका उपयोग बारबार किया गया है, उसमें कोई कमी नहीं आई है। इस तथ्य के विपरीत: 1990 और 2000 के दशक में प्रतिबंधों का उपयोग 1950 से 1985 की अवधि की तुलना में दोगुना किया गया; और 2010 के दशक तक यह फिर से दोगुना हो गया था। फिर भी, 1985 से 1995 की अवधि में, जो कि बड़ी पश्चिमी ताकतों का दौर था, ऐसे प्रतिबंधों की सफलता की संभावना 35-40 प्रतिशत के आसपास थी। 2016 तक तो इसके कारगर हो सकने की संभावना 20 प्रतिशत से भी कम रह गई थी।[1] इस संदर्भ में, यह मानना कि आर्थिक प्रतिबंध रूस के व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं, खुद ही कई सवाल उठाता है।

पश्चिमी मीडिया के जारी इस नैरेटिव के बावजूद कि यूक्रेन में युद्ध के जवाब में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते झुकाव के साथ ट्रान्साटलांटिक गठबंधन के पुराने दिनों के सुनहरे दिनों की वापसी की याद आती है, तो इसके बारे में यही कहा जा सकता है कि आज की दुनिया उस दौर से मौलिक रूप से अलग है। एक उग्र मुद्रास्फीति, आपूर्ति श्रृंखला में उथल-पुथल और वैश्विक मंदी की बढ़ती संभावनाओं के बीच, दुनिया की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के विरुद्ध प्रतिबंधों की बिना उसकी विपरीत प्रतिक्रिया अंदाजा लगाए मंजूरी देना सचमुच बड़ा कठिन काम है। राज्य के एक उपकरण के रूप में आर्थिक प्रतिबंधों में पश्चिम का अति आत्मविश्वास हो सकता है क्योंकि इसके पहले कभी भी एक प्रमुख एकीकृत वैश्विक अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से इस पैमाने पर आर्थिक प्रतिबंध लागू नहीं किए गए थे। इसके पीछे यह भी संभावना हो सकती है सैन्य हस्तक्षेप में वृद्धि की आशंका या किसी अन्य युद्ध में उलझने से बचने की इच्छा से आर्थिक प्रतिबंधों का उपयोग पर दोहराया गया है। फिर भी भावनाओं के उफनते ज्वारों और बढ़ते दुष्प्रचारों के साथ, रूस पर पश्चिम की तरफ से थोपे गए आर्थिक युद्ध के दूसरे और तीसरे क्रम के प्रभावों को समझने की चिंता बहुत सीमित मालूम पड़ती है। चूंकि यह स्पष्ष्ट नहीं है कि यूक्रेन युद्ध कब तक चलेगा या खत्म होगा, इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि हर आने वाले दिन के साथ कगार पर धकेले जा रहे यूक्रेन में शांति समझौता कौन सा आकार लेगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि अगर रूस के पास युद्ध की कष्टदायी आर्थिक लागत से बचने के सीमित अवसर हैं, तो पश्चिम के पास अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की गुंजाइश सीमित है।

वैश्विक कूटनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था का वास्तविक उत्थान हो रहा है, जिसमें वे मानदंड भी शामिल हैं, जो उन्हें धारण करते हैं। कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, गेहूं, तांबा, निकल, एल्यूमीनियम, उर्वरक और सोने की ऊर्जा और वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। चूंकि युद्ध के चलते यूक्रेनी बंदरगाह पूरी तरह बंद हो गए हैं और अंतरराष्ट्रीय फर्म रूस से होने वाले निर्यात को रोक दे रहे हैं, तो विश्व की अर्थव्यवस्था में अनाज और धातु की बड़ी कमी हो गई है।[2]यहां तक कि अगर रूस ऑटोमोबाइल के लिए सेमिकंडक्टर चिप्स के लिए प्रौद्योगिकी प्रतिबंध का सामना करता है, तो मास्को भी पैलेडियम और निकल के प्रमुख उत्पादक होने की स्थिति में इसकी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने की एक तरह से इजाजत देती है। इसके अलावा, मार्च की शुरुआत में रूस की तरफ से बदले की कार्रवाइयों के तहत अपने कुछ उत्पादों और कच्चे माल के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे उनकी और कमी हो गई है। चूंकि युद्ध ने रूस और यूक्रेन दोनों की कृषि गतिविधियों को ठप कर दिया है, जो दुनिया में प्रमुख कृषि उत्पादों का प्रमुख निर्यातक हैं, इसलिए पहले से ही अंतरराष्ट्रीय खाद्य और इनपुट की बड़ी कीमतों के बीच खाद्य असुरक्षा ने नई कमजोरियों को जन्म दिया है, जबकि यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों जल्दी खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाले हैं और वे देख रहे हैं कि उर्वरक की कीमतों में भारी बढ़ोतरी होने वाली है। इसका मध्य पूर्व, अफ्रीका और एशिया में गरीब देशों के लिए खराब असर पड़ रहा है क्योंकि कोविड महामारी से उन्होंने अभी-अभी उबरना शुरू ही किया था। इस प्रकार यह कोई महज संयोग नहीं है कि अफ्रीका में, विशेष रूप से हॉर्न ऑफ अफ्रीका में, तख्तापलट का मौसम कई दशकों में सबसे खराब सूखे के साथ आता है। रूस से प्रेषण पर अत्यधिक निर्भर मध्य एशिया आर्थिक और रणनीतिक चौराहे पर खड़ा है, क्योंकि आर्थिक प्रतिबंध उनकी चिंताओं को दूर करने में विफल हुए हैं।

जैसा कि पुतिन ने कहा कि "अब हर कोई जानता है कि वित्तीय भंडार को आसानी से चुराया जा सकता है", इस पर उन देशों में एक पुनर्विचार हो रहा है, जहां मुद्राओं को उनके कोषागार में रखा जाता है। इस बार, रूसी बैंकों को हटाने के बाद, सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशंस (स्विफ्ट) प्रणाली के जरिए बैंकों के बीच वित्तीय संदेशों के आदान-प्रदान से पश्चिम को मिले विषम लाभों को ध्यान में रखते हुए एक स्वतंत्र भुगतान प्रणाली की खोज की गई है। चीन ने स्विफ्ट के विकल्प के रूप में क्रॉस-बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम विकसित किया है, उसको अपनाने की बात चल रही है। चीन के सरकारी स्वामित्व वाले बैंक ऑफ कुनलुन चाइना नेशनल पेट्रोलियम, जिसे 2012 में ईरान के भुगतान के लिए अमेरिका द्वारा अनुमोदित किया गया था, उसने चीन की मुद्रा का उपयोग करके ईरानी कंपनियों के साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाना जारी रखा है। इसी तरह के छोटे बैंक जिनके पास अंतरराष्ट्रीय व्यापार का कोई जोखिम नहीं है, वे रूस और सेवा भुगतान का वित्तपोषण कर सकते हैं।[3] वीजा और मास्टरकार्ड के बाहर हो जाने के बावजूद, नेशनल पेमेंट कार्ड सिस्टम, जिसे एनएसपीके के रूप में जाना जाता है, वित्तीय प्रवाह को जारी रखता है, जो रूस में प्रतिबंधों के पहले से जारी कार्ड सिस्टम को मजबूत आधार देती है, यहां तक कि वीज़ा और मास्टरकार्ड लोगो वाले कार्ड के लिए भी। क्रेमलिन ने आक्रामक रूप से रूस की अपनी कार्ड कंपनी मीर को बढ़ावा दिया है, जिसे एनएसपीके के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बनाया गया है।[4] कई रूसी बैंक भी चीन के यूनियन पे में शिफ्ट हो गए हैं, जो अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों सहित 180 देशों में स्वीकार किए जाते हैं।

चूंकि घरेलू विकल्प और रूसी प्रतिक्रियाएं आर्थिक पुनर्गठन के साथ आकार लेती हैं, इसलिए पश्चिमी पक्ष के लिए भी अनजाने नुकसान हुए हैं। जापान, अमेरिका और यूरोप भर में बैंक अपने रूसी परिचालन से संभावित रूप से 150 अरब डॉलर का नुकसान देख रहे हैं।[5] उनकी वापसी कैसे होगी, इस बारे में अनुमान ही लगाया जा सकता है। जबकि कुछ कंपनियों ने रूस में अपने परिचालन से बाहर निकलने या वहां फिर से परिचालन शुरू करने की मांग की है, कई कंपनियों ने अपने सरकारी की इच्छाओं या नैतिक भावनाओं का अनुपालन करने के लिए अपने दैनिक व्यवसाय को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया है (कुछ चुपचाप जारी रखे हुए हैं)। फिर भी पहले की तरह व्यवसाय में वो रवानगी अब संभव नहीं है, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि युद्ध कैसे समाप्त होता है। पश्चिमी कंपनियों वहां लंबे मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ सकता है या राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया झेलने के साथ-साथ वहां बना-बनाया अपना आधार भी गंवाना पड़ सकता है, जिनके देश ने प्रतिबंधों में भाग नहीं लिया है। जबकि चीन ने अपने देश के स्वामित्व वाले उद्यमों को वैश्विक क्रॉसफायर में फंस जाने के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों से सावधान रहने को कहा है, रूस में चीन के राजदूत ने तो बहुत ही उत्साहित होकर मॉस्को में मौजूद चीनी निजी कंपनियों से इस संकट से उत्पन्न व्यावसायिक अवसरों का भरपूर दोहन करने का आग्रह किया है।[6] इसके अलावा, जैसा कि पश्चिमी देश रूस के खिलाफ अपने प्रतिबंधों की डिजाइन में किसी भी संभावित कमजोरी और खामियों को दूर करने के लिए, दुनिया के बाकी हिस्सों से समर्थन पाने की कोशिश करते हैं, ब्रसेल्स द्वारा रत्नों से लेकर जर्मनी द्वारा गैस तक (अमेरिका द्वारा संभावित उर्वरकों के लिए) प्रतिबंधों में स्पष्ट पाखंड है।

पश्चिमी प्रतिबंधों में ऊर्जा सबसे विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। कई यूरोपीय देशों के लिए, यह मामला अधिक गंभीर है क्योंकि वे रूसी तेल और गैस के विकल्प खोजने के लिए तत्काल शर्तों पर संघर्ष करते हैं जबकि यूक्रेन से मानवीय शरणार्थियों का पलायन बेरोकटोक जारी है। ऊर्जा का प्रश्न भी मध्य पूर्व में भू-राजनीति को उथल-पुथल कर रहा है क्योंकि यूक्रेन युद्ध क्षेत्रीय गतिशीलता के दूरगामी पुनर्संयोजन के साथ मेल खाता है क्योंकि जेसीपीओए की वापसी पर ईरान के साथ पी-5 और पश्चिमी देशों की बीच चर्चा की गई है। जैसा कि अमेरिका की अनदेखी कर दी गई है, तो चीन का क्षेत्रीय मध्यस्थ के रूप में अधिक से अधिक स्वागत किया जाना है और इससे सीरियाई राष्ट्रपति के लिए भी रास्ता खुल जाएगा, जो अलग-थलग पड़े हुए हैं। सऊदी अरब ने भी चीन को युआन में अपने तेल के लिए भुगतान करने की इजाजत देकर एक दशकों पुराने समझौते को पूर्ववत करने की बात कही है। जबकि यह डॉलर के आधिपत्य को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, लेकिन वहां दरारें दिखाई दे रही हैं। अमेरिका के लिए, गैस पंप पर आसमान पर ऊंची कीमतों से मुद्रास्फीति ब्याज दर में वृद्धि की एक श्रृंखला शुरू करती है, पर इससे मंदी का परिदृश्य उभरता है। इसके अलावा, इस नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों के कारण घरेलू अस्थिरता एक कमजोर अमेरिकी राष्ट्रपति को दर्शाती है। उनकी यह स्थिति चीन के एकदम विपरीत है, जहां 20वीं पार्टी कांग्रेस के आयोजन के साथ शी जिनपिंग की शक्ति में एक मजबूती दिखेगी, जो उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक बना देगी।

वर्तमान नियम-आधारित व्यवस्था पर अफगानिस्तान से वापसी की हार के बाद पहले ही अधिक कमजोर हुए अमेरिका अब एक और प्रहार नहीं झेल सकता। फिर, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अमेरिका अपनी प्रमुख भूमिका जोरदार तरीके से नहीं निभा सकता। इस स्तर पर इस क्षेत्र में विचलन कम घातक नहीं होगा। हमने पहले ही देखा है कि चीन यूक्रेन युद्ध का उपयोग अपने पूर्ण सैन्यीकरण के लिए समुद्री नियम पर आधारित एक अंतर्निहित रणनीतिक कवर मिसचिफ, सुबी और फायरी क्रॉस रीफ्स के रूप में काम करता है।[7] जापान जैसे देश, जिसकी अमेरिका के साथ सबसे अधिक व्यापक सुरक्षा संधि है, विगत दशकों में उसकी सुरक्षा दुविधाएं अभूतपूर्व से बढ़ी हैं, जिनके चलते उसने कूटनीति का बड़ा विस्तार किया है। जापान ने ऑस्ट्रेलिया के साथ पारस्परिक पहुंच समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं (और संभावित रूप से भविष्य में फ्रांस और ब्रिटेन के साथ भी ऐसी संधि कर सकता है)। लेकिन चीन-रूस गठबंधन को मजबूत करने के लहरदार प्रभाव जापान के मामले में देखे जा सकते हैं क्योंकि चीन-रूस अपनी जल सीमा में किए गए अभ्यास ने बहुआयामी सैन्य चुनौतियां बढ़ा दी हैं, जब चीन के साथ उसका शांति समझौता विफल हो गया है। हालांकि चीन और ताइवान दोनों ही यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों से सबक लेते हैं, लेकिन इस बात पर संदेह है कि पश्चिम निकट भविष्य में ताइवान के खिलाफ चीन की सीमित आक्रामकता के लिए भी एक गंभीर प्रतिबंध पैकेज लागू करने में सक्षम होगा।[8]

पाद टिप्पणियां

[1]निकोलस मुल्डर। दि इकोनॉमी वेपन (किंडल लोकेशन 6332-6336), येल युनिवर्सिटी प्रेस, किंडल एडिशन
[2]फॉरेन अफेयर्स। दि टोल ऑफ इकोनामिक वार: हाउ सैंक्शन ऑन रसिया विल अपेंड दि ग्लोबल ऑर्डर, https://www.foreignaffairs.com/articles/united-states/2022-03-22/toll-economic-war
[3] एससीएमपी: रूसिया सैंक्शन: चाइनिज स्मॉल बैंक कम्स अंडर स्क्रूटनी अंडर स्क्रूटनी फॉर देयर सपोर्ट ऑफ मास्को एमिड यूएस, ईयू फिनासिएल हर्डल्स, https://www.scmp.com/business/article/3168799/russia-sanction-chinas-small-banks-come-under-scrutiny-their-support
[4]वाल स्ट्रीट जनरल: रसिया बिल्ट पैरलल पेमेंट सिस्टम दैट इस्केप्ड वेस्ट्रन सैंक्शंस, https://www.wsj.com/articles/russia-built-parallel-payments-system-that-escaped-western-sanctions-11648510735
[5]निकी एशियन रिव्यू: जापान, यूएस, एंड यूरोप बैंक्स रिस्क लूजेज फॉर्म $150 बिलियन रसिया एक्सपोजर, https://asia.nikkei.com/Politics/Ukraine-war/Japan-U.S.-and-Europe-banks-risk-losses-from-150bn-Russia-exposure
[6]एससीएमपी: चाइनाज प्राइवेट फर्म्स सी रसिया एज लैंड ऑपर्चुनिटी, अप फॉर ग्रैब्स एमिड वेस्ट्ज एक्सोड्स, https://www.scmp.com/economy/global-economy/article/3172149/chinas-private-firms-see-russia-land-opportunity-grabs-amid
[7]एशिया टाइम्स: चाइना फुली मिलिट्रीजेस की साउथ चाइना सी फीचर्स, https://asiatimes.com/2022/03/china-fully-militarizes-key-south-china-sea-features/
[8]सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन स्टडिज: दि प्वाइजन फ्राग स्ट्रेटेजी, https://www.cnas.org/publications/reports/the-poison-frog-strategy?s=08

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)

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