चतुष्टय (क्वाड) को लेकर ट्रंप से लेकर बाइडेन तक बदलता अमेरिकी परिप्रेक्ष्य
Prerna Gandhi, Associate Fellow, VIF

“जो समुद्र पर प्रभुत्व रखता है, वह कारोबार पर दखल रखता है; जिसका दुनिया के व्यवसाय पर नियंत्रण रहता है, समूचे विश्व की सम्पदाएं उसके अधीन रहती हैं और तदनंतर, वह पूरी दुनिया पर राज करता है।”
-सर वाल्टर रैले, 17वीं शताब्दी

अमेरिकी विदेश नीति के बारे में कोई भी निश्चित वक्तव्य जारी करना बाइडेन प्रशासन के लिए अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन चतुष्टय (क्वाड) की दो बैठकें-तीसरी चतुष्टय मंत्रिस्तरीय बैठक (18 फरवरी) और चतुष्टय के नेताओं का आभासी (वर्चुअल) शिखर सम्मेलन (12 मार्च) अमेरिका में ताजा-ताजा कायम हुए प्रशासन के अप्रत्याशित रूप से बड़े राजनयिक कदम कहे जा सकते हैं। चूंकि डोनाल्ड ट्रंप से जोए बाइडेन तक सत्ता का हस्तांतरण अपरम्परागत रूप से विवादित रहा है, ऐसे में नई सरकार के अधिकारियों द्वारा पूर्ववर्ती कलह-क्लेश करने वाले प्रशासन से खुद को सकारात्मक रूप से अलग एवं विशिष्ट दिखाने के सचेत प्रयास किये जा रहे हैं। हालांकि सियासत एक सिलसिले की मांग करती है और यही बात विदेश नीति के बारे में भी है। ऐसे में बाइडेन प्रशासन के लिए उन आशंकाओं को दूर करना लाजिमी हो गया था कि हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्रों और चतुष्टय के मसले पर ट्रंप प्रशासन की तरफ से निभाई गई अग्रणी भूमिका विघटित नहीं हो गई हैं, बल्कि वे जारी हैं। एशिया-प्रशांत से लेकर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी मुख्यधारा के गतिशील सामरिक विमर्श से चीन के अभ्युदय को छूट देने की बात एक दिखावा कही जाएगी। हालांकि इसे लेकर ट्रंप-बाइडेन दोनों प्रशासनों में एक स्पष्ट अंतर है। ट्रंप प्रशासन ने चीन की तरफ एक अंतिम खड़े व्यक्ति के रूप में कदम बढ़ाया था, जबकि बाइडेन प्रशासन अपने दृष्टिकोण में अधिक संयमित है, जो आगे बढ़ने से पहले यह निश्चित कर लेना चाहता है कि अमेरिका एकतरफा चीन को कितना प्रभावित कर सकता है।

इन दोनों के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पहले कार्यकाल में सबप्राइम मोरगेज संकट, और अफगानिस्तान एवं इराक में लंबी अवधि के युद्धों तथा महत्त्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम को लेकर चीन से सहयोग की मांग की थी। हालांकि ओबामा के दूसरे कार्यकाल के दौरान अमेरिका और चीन में तनाव बढ़ता चला गया था। चीन ने कई मसलों पर अपना दम ठोकना शुरू कर दिया था-मसलन, फिलीपींस को लेकर स्कारबोरो शोअल गतिरोध (2012),पूर्वी चीन सागर में चीन की वायु रक्षा पहचान क्षेत्र (ADIZ) की घोषणा (2013), दक्षिण चीन सागर में सात चट्टान (सेवेन रीफ) के आसपास कृत्रिम प्रायद्वीप बनाने के लिए व्यापक तलकर्षण (ड्रेजिंग) अभियान छेड़ने (2014), फिलीपींस के साथ दक्षिण चीन सागर विवाद पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) प्राधिकरण के फैसले को धता बताने, जिसने “नाइन डैश लाइन” के भीतर चीन के अधिकार के ऐतिहासिक दावे का कोई कानूनी आधार न मानते हुए उसे खारिज कर दिया था (2016), चुनावों को लेकर चीन-ताइवान तनाव (2016) इत्यादि मसलों के जरिये चीन ने ताल ठोकने लगा था। अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने 2014 में चीन के 5 सैन्य सदस्यों के विरुद्ध अमेरिका के सर्वोच्च विनिर्माताओं को 2006 से लेकर 2014 की शुरुआत तक अपना निशाना बनाने के लिए अभियुक्त ठहराया था। हालांकि ओबामा ने एशिया के असंतुलित होने को काफी प्रचारित किया और उनका ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के मसले पर कोई धरातलीय बदलाव करने में विफल साबित हुआ।

हालांकि अमेरिकी मीडिया और खुफिया ब्यूरो आज इससे पल्ला झाड़ लेता है और ट्रंप प्रशासन को अमेरिकी इतिहास एक अंधेरे कोने के रूप में देखता है, किंतु ट्रंप प्रशासन सौदा करने की अपनी कार्यनीति तथा अस्त-व्यस्त कूटनीति के बावजूद एशिया में अमेरिकी नीति की विश्वसनीयता लाने में एक उल्लेखनीय काम किया था। उनके चार साल के कार्यकाल के दौरान की गईं अनेकनेक आधिकारिक घोषणाओं और कार्रवाइयों को देखते हुए यह क्षेत्र मुतमईन हो गया था कि चीन को लेकर अमेरिकी अवधारणा एकदम बदल गई है और यह लंबे समय के लिए बदल गई है। विडंबना तो देखिये कि ट्रंप की इस एकतरफा लंठई ने उनके प्रति इस क्षेत्र का विश्वास पुख्ता कर दिया अमेरिका अकेले ही चीन से निबट लेगा। इसकी शुरुआत 1917 में नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी से हुई, फिर 1918 में BUILD एक्ट (जिसने अमेरिकी इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन की आधारशिला रखी) बना, इसके बाद 2019 में एशिया एश्योरेंस इनिशिएटिव एक्ट और पेंटागन इंडो-पेसिफिक स्ट्रेटजिक रिपोर्ट बनाई गई। इसमें ताइवान, तिब्बत, हांगकांग आदि के साथ बहुत अन्य अधिनियमयों को शामिल किया गया था। इसी के साथ आंतरिक स्तर पर भी अमेरिका ने कई उपक्रम किये, जैसे अमेरिका में चीन की दबी-छिपी गतिविधियों को छिन्न-भिन्न करने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस चाइना इनीशिएटिव लाया गया। यहां तक की अमेरिकी पैसिफिक कमांड का नाम बदलकर यूएस इंडो-पैसिफिक कमांड किया गया।

इसे तथ्य को खारिज नहीं किया जा सकता कि ट्रंप की तरफ से कर लगाने की उनकी व्यक्तिगत पहल के साथ ही अमेरिका और चीन के विमर्श में व्यापार घाटा और कर-युद्ध का मुद्दा प्रभावी हो गया था। जबकि पहले चरण की डील सघन बाध्यकारी उपबंधों के साथ एक विशिष्ट विजय के रूप में सामने आई थी, अमेरिका के चीन से जुड़े आर्थिक संबंधों के अनेक मसले बाद में हल के लिए टाल दिये गये। बाइडेन प्रशासन व्यापार घाटे के इस मसले को अपनी चीन नीति में केंद्रीय स्थान नहीं दिया है-कम से कम अभी तक। इसके बजाय उन्होंने मानवाधिकार के मसलों और जलवायु परिवर्तन के विचार को आगे बढ़ाया है, जिन्हें ट्रंप प्रशासन ने नजरअंदाज कर दिया था। जैसा कि अंतरिम राष्ट्रीय सुरक्षा सामरिक निर्देशिका (इंटरिम इंटरनेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी गाइडेंस) में दिखा है कि बाइडेन प्रशासन चीन से सहयोग को लेकर संकोची नहीं है। इसमें कहा गया है “हम पेइचिंग के साथ व्यावहारिक और परिणामदायक आचरण करेंगे और गलत धारणा तथा गलत आकलनों के जोखिम को कम करने के प्रयास करेंगे।”1 पहले प्रशासन द्वारा तकनीक पर बेतरतीब फोकस किया गया था, जिसमें चीनी कंपनियों के खिलाफ एकतरफा प्रतिबंध लगाये गये थे, अब उन्हें सहकारी बहुआयामी/क्षेत्रीय ढांचे में उसे सुगम बनाया जा रहा है।

ट्रंप और बाइडेन प्रशासनों के बीच सर्वाधिक रेखांकित किये जाने वाला अंतर अभिसरण की मात्रा का है, जिनकी अपेक्षा वे अपने सहयोगियों-भागीदारों से करते हैं। हालांकि ट्रंप के अफसरों ने अपने देश में चीन प्रति देश में बने निर्विरोध जनमत का प्रबंधन भली-भांति कर लिया था, वे चीन से अन्य देशों को मिलने वाली चुनौतियों से निबटने की प्रक्रिया बनाने पर अपने को केंद्रित नहीं कर सके थे। ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के साथ, वे व्यापार-व्यवसाय या रक्षा सहयोग बढ़ाने के मामले में अपने सहयोगी देशों के प्रति जबर्दस्ती करने में रूखे राजनय से पेश आते थे। वहीं दूसरी तरफ, बाइडेन प्रशासन ने चीन पर एकतरफा अमेरिकी आपत्ति को चीन के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय आपत्ति के रूप में सम्मिलित करने की मांग की है।

बाइडेन के अधिकारी-वृंद ने अपने सभी प्रारंभिक राजनयिक चश्मे को दुरुस्त कर लिया है,जैसे चीनी नेता शि जिनपिंग से औपचारिक बातचीत के पहले चतुष्टय के नेताओं के साथ बातचीत कराना। पहले, अपने सहयोगियों से बैठकें कर लें फिर चीनी अधिकारियों से संवाद करें। अपने सहयोगियों के साथ भी उच्च श्रेणी की यह अभिसरणशीलता संभव है क्योंकि अमेरिका के प्रति उनका समर्थन बढ़ा है। नवम्बर 2017 में चतुष्टय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ प्रारंभिक बैठक के बाद, 2018 में हुए वुहान शिखर सम्मेलन और शांगरी ला में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण, जिसमें समावेशिता पर जोर दिया गया था, ने अपेक्षाओं को थोड़ा नरम कर दिया है। यहां से आगे अमेरिका ने आसियान का स्थान और केंद्रिकता सिपुर्द कर दिया और इस प्रकार चतुष्टय (क्वाड) की बैठकों के बाद अमेरिका के व्यक्तिगत बयानों की मार्ग प्रशस्त हो गया है।

2020 में कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी का प्रकोप चीन से शुरू हुआ तथा चतुष्टय (क्वाड) के प्रत्येक देश के साथ चीन की तकरारें असामान्य रूप से बढ़ने लगीं-सेन्काउ प्रायद्वीपो के आसपास चीनी अतिक्रमण, आस्ट्रेलिया तथा चीन में विध्वंसकारी व्यापार युद्ध तथा भारत के साथ लगी सीमा पर घातक गतिरोध आदि ने मिल कर चतुष्टय (क्वाड) की वैधता का पुनर्नवीकरण कर दिया। इसके अलावा, यूरोप फ्रांस और जर्मनी के सहयोग से (और अब ब्रिटेन) हिंद-प्रशांत की अपनी सामरिक नीतियों की आधिकारिक परिकल्पना कर रहे हैं, जो संयुक्त रूप से चीन को जवाबदेह ठहराने की त्वरा को मजबूती प्रदान कर रही है। पैसिफिक डिटरेंस को दिसम्बर-2020 में पारित किया गया, जिसने पेंटागन को इस परिदृश्य के पार जा कर अमेरिकी तथा उसके क्षेत्रीय देशों की क्षमता के अभिवर्द्धन में पर्याप्त प्रयास करने के लिए अपनी हरी झंडी दे दी। लेकिन ट्रंप औऱ बाइडेन दोनों प्रशासनों ने कहा कि वे चतुष्टय (क्वाड) को सिर्फ चीन विरोधी गठबंधन ही नहीं बनाना चाहते हैं। इस क्षेत्र की भौगोलिक दूरी, राजनीतिक शत्रुता, आर्थिक आवश्यकताएं और सांस्कृतिक भूलभुलैया यहां नाटो की तरह की विरोधी केंद्रित सैन्य समूहों की अनुमति नहीं देता। उसके विस्तृत कार्यक्रमों जैसे समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी अभियान से लेकर प्रौद्योगिकी, उसमें गुणवत्तापूर्ण ढांचागत निवेश, मानवीय सहायता तथा आपदा राहत इत्यादि में एक निरंतरता है।

जबकि एशिया में चीन के नेतृत्व वाली व्यवस्था के लिए समर्थन बहुत थोड़ा है, वहीं क्षेत्रीय देशों में अमेरिका के प्रपंचों तथा संकीर्णताओं के प्रति भी रुचि घटी है। चतुष्टय (क्वाड) नेताओं के आभासी शिखर सम्मेलन ने टीककरण, खास तथा उभरती प्रौद्योगिकी, और जलवायु परिवर्तन को लेकर तीन कार्यकारी समूहों का गठन किया है। हालांकि एक अधिक से अधिक विस्तृत भू-आर्थिक दृष्टिकोण को ले कर अब भी एक फांक बनी हुई है, जो क्षेत्रीय आर्थिक, वित्त और व्यवसाय संबंध को लेकर नये नियम बनाना संभव करता है। चतुष्टय (क्वाड) एक संपूर्ण रूप से पश्चिमी उदारवादी अनुक्रम में एक जीवन-रक्षक जैकेट है लेकिन एक व्यापक क्षेत्रीय सर्वानुमति बनाने के लिए प्रयास करना होगा। ट्रंप के शासन के अधीन रूस को फुसला कर चीन को साधने के लिए हथियार नियंत्रण समझौते से किनारा करने का एक जोखिमपूर्ण जुआ खेला गया था। यह दांव सफल नहीं हुआ था। वास्तव में, रूस का समर्थन इच्छा या अनिच्छा से रूस का समर्थन हिंद-प्रशांत की क्षेत्रीय व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होगा। ईरान, अफगानिस्तान, और मध्यपूर्व एवं अफ्रीका में अन्य अस्थिरकारी क्षेत्रीय कारक जबकि आज के चतुष्टय (क्वाड) के मुख्यधारा के एजेंडे में नहीं हैं, पर उनके साथ भी किसी न किसी रोज तालमेल करना होगा।

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)


Image Source: https://c.ndtvimg.com/2021-03/eg58q1bg_quad-meet-march-2021-quad-leaders-summit-quad-summit_625x300_20_March_21.jpg

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
13 + 4 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us