‘प्रवासी’ शब्द का मतलब अक्सर ऐसा व्यक्ति मान लिया जाता है, जो अनचाहा बोझ होता है और देश की अर्थव्यवस्था में जिनका आर्थिक योगदान मुश्किल से ही मापा जाता है। प्रवास और विदेश से देश में आने वाले धन यानी रीमिटंस के बीच संबंध को एक श्रृंखला के तौर पर समझा जा सकता है। यह व्यक्तियों से परिवारों, समुदायों और अंत में देशों तक पहुंचता है। उदाहरण के लिए विदेश से आया धन परिवार को नए घर में निवेश करने का मौका देता है, जो परोक्ष रूप से देश के निर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन में योगदान देगा। विदेश से आया धन परिवारों की आय भी बढ़ाता है और गरीबी का स्तर कम करता है, जिससे अंत में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि ही तेज होती है। कुछ प्रवासियों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सेवाएं भी मिलती हैं, जिनसे उन्हें शिशु एवं मातृ मृत्यु दर कम करने में मदद मिलती है।
उज्बेकिस्तान, किर्गिजिस्तान और ताजिकिस्तान से रूस और कजाकस्तान पहुंचने पर प्रवासी कामगारों के साथ उन देशों को भी राजनीतिक एवं सामाजिक-आर्थिक मौके मिले हैं। रूस और कजाकस्तान ने मध्य एशिया के लाखों प्रवासी कामगारों को काम के ऐसे मौके दिए हैं, जो उन्हें अपने देशों में नहीं मिल सकते। इनमें से अधिकतर प्रवासियों के पास कम वेतन वाले काम हैं, जिन्हें करने से स्थानीय लोग इनकार कर चुके हैं।1 नए कोरोनावायरस के फैलने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद करना अनिवार्य हो गया ताकि इसका प्रसार कम हो। मध्य एशियाई देशों ने एक-दूसरे से लगने वाली अपनी सीमाएं बंद कर दीं और रूस से लगी आम तौर पर खुली सीमाएं भी बंद हो गईं। यूरेशियाई क्षेत्र में कोरोनावायरस के मामलों की संख्या बढ़ने के साथ ही सरकारों ने लॉकडाउन लागू कर दिया और यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही विभिन्न आर्थिक गतिविधियों से जुड़े लाखों प्रवासियों की रोजी भी छिन गई है। हालत और भी बुरी हो गई है क्योंकि यात्रा पर रोक की वजह से वे अपने घर भी नहीं पहुंच सकते थे।
पिछले दिनों रूस और कजाकस्तान में तेल के उत्पादन तथा कीमतों में गिरावट के कारण इन कामगारों पर बहुत बुरा असर हुआ है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रूस की मुद्रा की कीमत घटने से प्रवासी श्रमिकों के लिए रूस में काम करना पहले जितना आकर्षक नहीं रहा है। कजाकस्तान और रूस में काम कर रहे मध्य एशियाई प्रवासी श्रमिकों का अच्छा खासा हिस्सा फरवरी और मार्च के बीच अपने घर लौट आया।22 कोविड-19 के खिलाफ जंग में रूस ने ऐसे कई आर्थिक उद्यम बंद कर दिए हैं, जिनमें मध्य एशियाई देशों के प्रवासी श्रमिकों को अच्छा-खासा काम मिला हुआ था। क्वारंटीन और लॉकडाउन के कारण केवल आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं का ही कारोबार हो रहा है, लेकिन कूरियर सेवाओं की मांग भी बढ़ रही है। आतिथ्य, रियल एस्टेट और दूसरी सेवाओं में भी बहुत कमी आई है। पहले कई प्रवासी कामगार हर महीने 500 डॉलर तक कमा लेते थे। लेकिन अब वेतन बहुत कम हो गए हैं और प्रवासियों के अपने खर्चे भी पूरे नहीं हो रहे हैं। इसलिए वे अपने घर बहुत कम रकम भेज पा रहे हैं।33
रूसी प्रशासन प्रवासी कामगारों की दिक्कतों से वाकिफ है। उनके पास न तो धन है और न ही कोरोनावायरस महामारी के बीच किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा है। कई प्रवासी कामगार अपने घर लौटना चाहते थे मगर सीमाएं बंद होने के कारण उन्हें वहीं रहना पड़ रहा है। दूसरों को अब भी रूस में धन कमाने और अपने देश में परिवार का पालन-पोषण करने की उम्मीद है। प्रवासी मजदूर ज्यादा समझौता करने वाले होते हैं झट से एक पेशा छोड़कर दूसरे में चले जाते हैं। अब रूसी प्रशासन को फिक्र है कि काम और धन नहीं होने पर प्रवासी मजदूर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं।
प्रवासी कामगारों की दिक्कतें कम करने के लिए राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने 18 अप्रैल को एक आदेश पर दस्तखत किए, जिससे विदेशी नागरिकों के वर्क परमिट, पंजीकरण, खत्म हुए वीजा और श्रमिकों से जुड़े दूसरे दस्तावेजों की अवधि 15 मार्च से 15 जून तक बढ़ा दी गई। आदेश में नियोक्ताओं को खत्म हो चुके लाइसेंस वाले या लाइसेंस के बगैर आने वाले लोगों को नौकरी पर रखने की इजाजत भी दे दी गई। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे विदेशी नागरिकों के खिलाफ किसी भी तरह की प्रशासनिक कार्रवाई से रोक दिया गया है। रूस में रहने वाले विदेशी नागरिकों के अस्थायी आवास परमिट की वैधता खत्म हो गई हो तो उसी अवधि अपने आप बढ़ जाएगी।
जब रूस सरकार ने क्वारंटीन लागू किया तो प्रवासी कामगारों ने प्रशासन से पेटेंट हासिल करने के लिए भुगतान नहीं लेने का आग्रह किया। रूसी संघ के अनुमान के मुताबिक इन पेटेंट के बदले प्रवासी श्रमिकों से रूस को हर साल करीब 60 अरब रूबल हासिल होते हैं। 2019 में मॉस्को शहर में ही विदेशी नागरिकों को 463.7 हजार श्रम पेटेंट जारी किए गए थे, जिनसे शहर के राजस्व में 18 अरब रूबल की बढ़ोतरी हुई थी।4 इनमें से अधिकतर पेटेंट उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के नागरिकों को जारी किए गए। कजाकस्तान और किर्गिजिस्तान यूरेशियाई आर्थिक संघ (ईईयू) के सदस्य हैं, इसीलिए वहां के कामगारों को श्रम पेटेंट के लिए रकम नहीं देनी पड़ती। ईईयू के सदस्य देशों के नागरिकों को ‘कामगार’ का दर्जा हासिल है, प्रवासी श्रमिकों का नहीं, जिस कारण उन्हें रहने और काम करने के लिए प्रवासी श्रमिकों के मुकाबले ज्यादा आसान प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
किर्गिजिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के लिए नियमित उड़ानें रोक दी गईं तो मध्य एशिया से आए प्रवासी श्रमिक रूस के तीन हवाई अड्डों पर अटक गए। इतना ही नहीं सैकड़ों कामगार रूस और मध्य एशिया के बीच सीमाओं पर फंस गए। ऑरेनबर्ग शहर में किर्गिजिस्तान के 150 से ज्यादा कामगार तीन दिन तक सीमा पर फसे रहे। कई दिन से हवाई अड्डों अटके ये कामगार जमीन पर सो रहे थे और गंदी सार्वजनिक सुविधाएं इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे उन्हें वायरस का संक्रमण होने का खतरा पैदा हो गया।5
रूस के कई शहरों में किर्गिजिस्तान और ताजिकिस्तान के हजारों प्रवासी श्रमिकों के पास न काम था और न रोजी-रोटी। उनमें से कुछ घर वापसी के लिए हवाई टिकट की रकम जुटाने के लिए शहरों में रुके हुए थे। समाज कल्याण संगठनों ने इनमें से कुछ की खाने और जरूरी वस्तुओं से मदद की। इन संगठनों ने मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रपतियों से मॉस्को और दूसरे शहरों में फंसे अपने नागरिकों की मदद करने की अपील भी की। नौकरी और भुगतान नहीं होने की वजह से ये कामगार अपने घरों तक धन भी नहीं भेज पाए, जिससे महामारी के इस दौर में उनके परिवारों को बहुत मुश्किलें उठानी पड़ीं।
मध्य एशिया के प्रवासी श्रमिक मुख्य तौर पर रूस और कजाकस्तान में व्यापार, सेवा तथा निर्माण क्षेत्रों से जुड़े हैं। इनमें से ज्यादाततर धंधे बंद हैं, जिससे प्रवासी श्रमिकों में अपने घर लौटने की हड़बड़ी मच गई है।
ताजिकिस्तान और किर्गिजिस्तान में गरीबी और बेरोजगारी बहुत अधिक है, जिस कारण वहां से लोग दूसरे देशों में मजदूरी करने जाते हैं। अच्छी नौकरियों की किल्लत और कम वेतन भी मध्य एशिया से दूसरे देशों में पलायन की बड़ी वजहें हैं। विदेश से घर भेजी गई रकम पर बड़ी आबादी ही नहीं, पूरे देश की अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक निर्भर है। कोविड-19 महामारी की वजह से काफी प्रवासी श्रमिक किर्गिजिस्तान लौट आए और उन्होंने यह मुश्किल वक्त अपने परिवारों के साथ बिताना ही सही समझा क्योंकि उनके पास दूसरा चारा ही नहीं है। माना जा रहा है कि इससे बेरोजगारी की दर बहुत बढ़ेगी और इस क्षेत्र का आर्थिक बंटाधार हो जाएगा।
हर वर्ष मार्च के अंत से अप्रैल के अंत तक किर्गिजिस्तान और ताजिकिस्तान से भारी संख्या में प्रवासी रूस पहुंचते हैं। उनमें से कुछ हवाई सफर करते हैं और ज्यादातर ट्रेन या बस जैसा सस्ता साधन अपनाते हैं। लेकिन ट्रेन और बस से बहुत अधिक समय लग जाता है क्योंकि उज्बेकिस्तान और कजाकस्तान से गुजरने में ही कई दिन लगते हैं। कोरोनावायरस महामारी के कारण कजाकस्तान और उज्बेकिस्तान ने अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं, जिससे रूस जाने का इंतजार कर रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए अनिश्चितता पैदा हो गई है।6
कोविड-19 फैलने से किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है क्योंकि ये देश विदेश से आई रकम यानी रीमिटंस पर ही निर्भर हैं। 2019 में मध्य एशियाई देशों के प्रवासी कामगारों ने अपने-अपने देशों में तकरीबन 8 अरब डॉलर भेजे थे। पिछले वर्ष जब रूस की संघीय सुरक्षा सेवा की सीमा सेवा ने रोजगार के लिए आने वाले विदेशियों की संख्या पर नजर रखना शुरू किया तो पता चला कि उनमें से ज्यादातर मध्य एशिया के थे। रूस में करीब 10 लाख प्रवासी उज्बेकिस्तान से हैं, 5 लाख के करीब ताजकिस्तान से, 2.65 लाख किर्गिजिस्तान और करीब 1 लाख कजाकस्तान से हैं।7
इन देशों में पलायन या प्रवास को समझने के लिए आबादी और प्रवासी कामगारों के बीच अनुपात देखना होगा। ताजिकिस्तान की आबादी 95 लाख, किर्गिजिस्तान की 65 लाख और उज्बेकिस्तान की 3.3 करोड़ है। इसीलिए इन देशों की अर्थव्यवस्था पर रीमिटंस का प्रभाव भी अलग-अलग होता है। प्रवासियों से देश तक आने वाली रकम ताजिकिस्तान और किर्गिजिस्तान के सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को काफी मदद देती है क्योंकि सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र में ये दोनों ही सबसे गरीब देश हैं।8
ताजिकिस्तान और किर्गिजिस्तान की रूस से आने वाले रीमिटंस पर निर्भरता तब समझ में आ जाती है, जब इसके आंकड़ों की तुलना देशों की कुल अर्थव्यवस्था से की जाती है। 2019 में किर्गिजिस्तान के जीडीपी में रीमिटंस का योगदान 29.6 प्रतिशत था और ताजिकिस्तान के जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 29.7 प्रतिशत थी। रूस में 2014 में आए आर्थिक संकट से पहले ये आंकड़े और भी अधिक थे।9 संकट के समय प्रतिबंधों की वजह से तेल और गैस का निर्यात कम हो रहा था।
अपने देश में आर्थिक मौके कम होने के कारण मध्य एशियाई देशों के लोग रूस आते हैं। ये प्रवासी कामगार ही अपने देशों में आर्थिक बदलाव लाते हैं। इन कामगारों की सामाजिक-आर्थिक लाचारी इस महामारी के दौरान नजर आती है। प्रवासियों की दिक्कत के आर्थिक नतीजों के साथ ही इस समय उनकी सामाजिक सुरक्षा और मानसिक सेहत भी खतरे में है। लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं। खाने और दूसरे जरूरी सामान की किल्लत ने पहले से ही परेशान मध्य एशियाई परिवारों की दिक्कतें और भी बढ़ा दी हैं। अपने घरों में फंसे लोगों के पास धन नहीं है और वे अपने परिवारों की रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। इसीलिए वे नौकरी की तलाश में स्थानीय बाजारों में निकल रहे हैं और कोरोनावायरस संक्रमण का खतरा उन पर मंडरा रहा है। उनके देश की सरकारों को इस आपात स्थिति से निपटने और प्रवासियों के परिवारों की सुरक्षा एवं कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ठोस हल निकालने चाहिए। इसमें भी महामारी के बीच मध्य एशियाई क्षेत्र की सबसे बड़ी प्राथमिकता खाद्य सुरक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा प्रणाली होनी चाहिए। उनकी हालत काफी हद तक भारत में चल रहे प्रवासी श्रमिक संकट सरीखी ही है और दोनों स्थितियों से सबक सीखे जा सकते हैं।
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