प्रधानमंत्री मोदी का लेह दौरा: आगे क्या?
Arvind Gupta, Director, VIF

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 3 जुलाई को भारत-चीन सीमा के निकट लेह के करीब एक सैन्य ठिकाने का औचक दौरा भारत-चीन सैन्य टकराव में बड़ा मोड़ लेकर आया। नौ हफ्तों से जारी टकराव सैन्य कमांडर स्तर एवं अधिकारी स्तर की राजनीतिक वार्ताओं के कई दौरा होने के बाद भी अनसुलझा है। प्रधानमंत्री के दौरे में अहम बात यह रही कि उनके साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ एवं सेनाध्यक्ष भी गए थे।

इस दौरे ने सैन्य झड़प को एक ही झटके में भारत और चीन के बीच बड़ी सामरिक स्पर्द्धा में बदल दिया, जिसकी अभी तक चर्चा नहीं की जा रही थी। हालांकि मोदी ने अपने संबोधन में चीन का नाम नहीं लिया मगर यह स्पष्ट हो गया कि सरकार चीन की ओर से मिल रही चुनौती से पूरी तरह वाकिफ है।

मोदी का संबोधन जवानों को एकजुट करने, सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाने, राष्ट्र को भारत की रक्षा क्षमताओं का भरोसा दिलाने और दूसरे देशों को यह संदेश देने के लिए था कि भारत चीन के दबाव और जबरदस्ती का मुकाबला करेगा।

मोदी ने जवानों को संबोधित करने और उनकी वीरता को सलाम करने के लिए जो कुछ कहा, उसमें चार खास बातें थीं। पहली, भारत विकास में भरोसा करता है; दूसरी, वह विस्तारवाद (अर्थात चीन) का विरोध करेगा; तीसरी, भारतीय सशस्त्र बल सीमा पर किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं; चौथी, भारत शांति का पक्षधर है मगर इसे उसकी कमजोरी समझने की भूल न की जाए। ये बिंदु ही दुनिया के सामने भारत के संदेश की बुनियाद बनेंगे।

संबोधन ने मीडिया में इस बात पर चल रहे बेजा विवाद को भी खत्म कर दिया कि चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ की है या नहीं।

मगर सवाल यह है कि आगे क्या होगा?

चिंता में पड़े चीनी विदेश मंत्रालय ने मोदी के दौरे पर फौरन प्रतिक्रिया की। चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने क्योदो संवाद समिति के एक सवाल पर कहा, “चीन और भारत सैन्य तथा राजनयिक माध्यमों से एक-दूसरे के साथ संवाद कर रहे हैं। किसी भी पक्ष को ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, जिससे सीमा पर स्थिति पेचीदा हो जाए।” चीनी मोबाइल एप्स पर भारत द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के मसले पर पीटीआई के सवाल का जवाब देते हुए प्रवक्ता ने कहा कि भारत को “रणनीतिक भूल” नहीं करनी चाहिए और दोनों पक्षों को दोनों नेताओं के बीच बनी “सहमति” के अनुसार काम करना चाहिए। चीन का संदेश आने वाले दिनों और हफ्तों में और भी स्पष्ट हो सकता है।

मोदी के भाषण ने चीन के लिए मामला थोड़ा मुश्किल कर दिया है। भारत लगातार कह रहा है कि चीन को दोनों पक्षों के बीच हुई झड़प से पहले मई वाली यथास्थिति में लौट जाना चाहिए। चीन ने पिछले कुछ हफ्तों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य जमावड़ा बढ़ाया है। भारत ने भी जैसे को तैसा किया है। भविष्य की वार्ताओं में भारत इस बात पर अड़ सकता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का सीमांकन किया जाए और सीमा विवाद सुलझाया जाए। लेकिन इस मामले में दिल्ली अभी दूर है।

मोदी का दौरा एकदम सही वक्त पर हुआ। चीन पर हर ओर से कूटनीतिक दबाव पड़ रहा है। ऑस्ट्रेलिया के 2020 डिफेंस स्ट्रैटेजिक अपडेट तथा असोसिएटेड फोर्स स्ट्रक्चर प्लान में चीन को खतरा बताया गया है। भारत-चीन टकराव में जापानी भी भारत के पक्ष में आ गए हैं। जापान यथास्थिति को बदलने के इकतरफा प्रयास का विरोधी है। अमेरिका और चीन के बीच जबानी जंग शुरू हो गई है। आसियान भी उठ खड़ा हुआ है और चीन से कहा है कि उसे दक्षिण चीन सागर में अनक्लोस के समझौते का पालन करना होगा। कई देशों ने हॉन्गकॉन्ग के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और उसके तहत की गई गिरफ्तारियों के लिए चीन की तीखी आलोचना की है। यह कानून एक देश दो व्यवस्था के उस समझौते का उल्लंघन करता है, जिस पर चीन राजी हुआ था। ब्रिटेन ने ऐलान कर दिया है कि वह हॉन्गकॉन्ग के 25 लाख निवासियों को ब्रिटिश नागरिक का दर्जा दे देगा।

चीन और भारत का टकराव आने वाले हफ्तों में बढ़ने की आशंका है क्योंकि गतिरोध बना हुआ है और दोनों पक्ष सीमा पर अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे हैं। मीडिया ने पहले ही इसमें सैन्य झड़प से लेकर सीमित युद्ध और पूर्ण युद्ध तक की संभावनाएं टटोलना शुरू कर दिया है। भारत को दो मोर्चे खुलने की संभावना का भी ध्यान रखना चाहिए, जिसमें चीन की मदद करने के लिए पाकिस्तान भी नियंत्रण रेखा पर गतिविधियां बढ़ा सकता है।

भारत के पास व्यावहारिक विकल्प तो यही है कि वह दृढ़ बना रहे, अपने पक्ष में अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाए, रक्षा तैयारी में मौजूद खामियां दूर करे और सैन्य टकराव के लिए तैयार रहते हुए बातचीत के दरवाजे भी खुले रखे। चीन की मंशा और क्षमताओं का सही-सही आकलन करना भी जरूरी है। समुचित खुफिया एवं सामरिक आकलन करना होगा।

चीनियों की बात करें तो किसी भी तरह की सैन्य झड़प उनके लिए नुकसानदेह होगी। इस बात की आशंका बहुत कम है कि गलवान, पेंगोंग सो और दूसरे इलाकों में हुए घटनाक्रम के बाद वे किसी और इलाके में घुसपैठ कर पाएंगे क्योंकि भारतीय सेना पूरी तरह सतर्क है। गलवान की घटना में उन्हें भी तगड़ा नुकसान हुआ, जिसका ब्योरा अब तक उन्होंने दिया ही नहीं है। उनके सामने सभी हथियारों से सजी जंग लड़ने में माहिर भारतीय फौज है और उनके जवानों के पास युद्ध का हालिया अनुभव ही नहीं है।

चीन से निपटने के लिए कई मोर्चों पर एक साथ काम करना होगा। भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर ऐसा संदेश देकर चीन को अलग-थलग करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसमें वह नैतिक रूप से सही माना जाए और चीन के विस्तारवादी मंसूबे सबके सामने आएं। तिब्बत, हॉन्गकॉन्ग, शिनच्यांग में चीन का मानवाधिकार का रिकॉर्ड भी सामने लाना चाहिए। भारत ताइवान के साथ अपने रिश्ते बेहतर कर सकता है और दलाई लामा के साथ ज्यादा खुलकर काम कर सकता है।

चीन पर दबाव डालने के लिए भारत को उन सामरिक साझेदाररियों का भी फायदा उठाना चाहिए, जो उसने पिछले कुछ वर्षों में बनाई हैं। मिसाल के लिए उसे थल और समुद्री मोर्चों पर अपने साझेदारों से अहम खुफिया जानकारी मिल सकती है।

चीन को क्वाड पर और अमेरिका तथा जापान के साथ भारत के रिश्तों पर बहुत संदेह है। भारत को क्वाड के बारे में अपनी हिचक छोड़नी होगी। उसे चीन के विस्तारवाद पर चर्चा के लिए विदेश मंत्रियों की बैठक बुलानी चाहिए। संयुक्त बयान जारी होना चाहिए। अमेरिका द्वारा बुलाई जा रही जी-10 या जी-11 की बैठक का इस्तेमाल भी आधुनिक काल में विस्तारवाद पर चर्चा के लिए किया जा सकता है।

भारत की बात को दूसरे देशों तथा मीडिया में व्यापक रूप से साझा किया जाना चाहिए। चीन ने जिन पड़ोसी देशों में गहरी पैठ बना ली है, उन्हें भी साथ लिया जाना चाहिए।

रूस पर खास ध्यान देना होगा क्योंकि चीन-भारत विवाद में वह तटस्थ रह सकता है। लेकिन भारत को हथियार और गोला-बारूद देने में उसे कोई एतराज नहीं है। रूस से 31 जेट विमान खरीदने का भारत का फैसला सकारात्मक है। यदि रूस भारत के साथ जुड़ा रहा तो चीन को दिक्कत हो सकती है।

बेल्ट एंड रोड तथा ऐसे ही अन्य कार्यक्रमों के जरिये चीन दुनिया के बाकी देशों तक पहुंच चुका है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि चीन के साथ अपने रिश्तों की वजह से हरेक देश भारत का खुला समर्थन नहीं करे। मगर वे देश तटस्थ रहे तो भी भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत होगी।

अंत में, भारत को चीन से खुद ही निपटना होगा। लेकिन उसे अधिक से अधिक राजनयिक एवं कूटनीतिक समर्थन हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए।

यह भी जरूरी है कि देश एकजुट रहे। राजनीतिक दलों और मीडिया की बड़ी जिम्मेदारी है। यह पूरे देश को एकजुट करने का समय है, सियासी फायदा उठाने का नहीं। इस समय सरकार और सशस्त्र बलों को पूरा समर्थन दिया जाना चाहिए; सवाल बाद में भी पूछे जा सकते हैं।

अगर चीनी हमलावर दिखते हैं तो पूरी जनता सरकार के साथ होगी। चीनियों की मंशा और मकसद समझने चाहिए और उन्हें सबके सामने लाना चाहिए। सरकार को भी जहां तक संभव हो, जनता को भरोसे में लेना चाहिए। समय पर उचित जानकारी देते रहना जरूरी है।


Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)Image Source: https://www.pmindia.gov.in/en/image-gallery/

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
8 + 2 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us