3 मई, 2020 तक लॉकडाउन बढ़ाने के प्रधानमंत्री की घोषणा के साथ ही भारत में कोरोना वायरस महामारी की गहनता और इसकी व्यापकता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। प्रधानमंत्री ने यह कहते हुए इसे स्पष्ट किया कि लॉकडाउन सख्त होगा और इसके हॉटस्पॉटों की सावधानीपूर्वक निगरानी की जाएगी। इस दौरान आर्थिक गतिविधियों के क्रमिक रूप से शुरू होने की उम्मीद की जा सकती है। सरकार ने पहले ही 20 अप्रैल से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को धीरे-धीरे खोलने के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं। इस कदम का बहुत ही जरूरी रूप से सकारात्मक कदम के रूप में स्वागत किया गया।
लॉकडाउन 1.0 के तीन हफ्तों के दौरान मामलों की संख्या 500 से बढ़कर 10,000 से अधिक हो गई, जो 20 गुना वृद्धि को प्रदर्शित करता है। लेकिन, सरकार का यह मानना था कि स्थिति बहुत खराब हो सकती थी, अगर लॉकडाउन लागू नहीं होता। मामलों की संख्या दोगुनी होने की अवधि 4 दिन से बढ़कर 7 दिन हो गई, जिससे यह संकेत मिलता है कि लॉकडाउन वायरस के प्रसार को धीमा करने में कामयाब रहा। हर सात दिनों बाद मामलों के दोगुना होने की वर्तमान दर के साथ हम 3 मई तक लगभग 50,000 मामलों तक जा सकते हैं।
जाहिर है, स्थिति अभी भी गंभीर है। नए हॉटस्पॉट उभर रहे हैं। उदाहरण के लिए बांद्रा, जहाँ कई हज़ार प्रवासी मज़दूर थे, जो अफवाहों के कारण भ्रमित होकर, सोशल डिस्टेसिंग के मानदंडों का उल्लंघन करते हुए इस उम्मीद में एक जगह पर इकट्ठे हुए थे कि वे विशेष ट्रेनों से अपने घर वापस जा सकेंगे। इस प्रकरण ने इस चिंता को रेखांकित किया है कि प्रवासी मजदूर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यह भावना और अधिक गति पकड़ सकती है अगर उनकी आजीविका को लेकर संकट जारी रहा।
फिर भी, लॉकडाउन 1.0 की प्रमुख बातें यह थीं कि लॉकडाउन के निर्देशों का पालन करने में लोग आमतौर पर अनुशासित रहे थे; केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने कार्यों में समन्वय स्थापित किया, सरकार ने समाज के सबसे गरीब वर्ग के लिए राहत पैकेज की घोषणा की, स्वास्थ्य प्रणाली संकट का जवाब देने में सक्रिय हो गई। नए मामलों से निपटने के लिहाज से अस्पतालों में अभी तक पर्याप्त क्षमता है।
सरकार ने कार्य आरंभ किया और घरेलू उपकरणों का निर्माण शुरू हो गया, हालांकि इसे अभी इसे और गति की आवश्यकता है। उपकरण (PPE) की खरीद के बड़े आर्डर दे दिए गए जिसमें चीन भी शामिल था। आवश्यक उपकरणों के निर्माण के लिए लगभग 30 स्वदेशी निर्माताओं की पहचान की गई है। 1.7 करोड़ पीपीई और 49,000 वेंटिलेटर के ऑर्डर दिए जा चुके हैं। कुछ की डिलीवरी भी आरंभ हो गई है। स्वदेशी रूप से उत्पादित दो लालच वेंटिलेटर अस्पतालों में वितरित किए जा चुके हैं।
यह आश्चर्यजनक है कि स्वदेशी विनिर्माण के प्रयासों के बावजूद चिकित्सा उपकरणों के लिए चीन पर भारत की निर्भरता जारी है। चीन ने भारत को 1.7 लाख व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) दिए हैं। देश में लगभग 16, 00,095 मास्क उपलब्ध हैं और इन्हें 2 अन्य लाख मास्क भी बनाए गए हैं। उत्तर रेलवे ने DRDO के अतिरिक्त, PPE विकसित किए हैं।
विशेषज्ञ, विशेष रूप से भारत के बाहर के, ने महसूस किया कि भारत पर्याप्त परीक्षण नहीं कर रहा है। इसके बिना, यह उचित रणनीति बनाने में सक्षम नहीं हो सकता है। सरकार की परीक्षण रणनीति की समीक्षा की गई और अब अधिक परीक्षण किया जा रहा है। सरकार ने अधिक परीक्षण करना शुरू कर दिया है और 1 लाख से अधिक परीक्षण किए जा चुके हैं। वायरस के प्रकोप के हॉटस्पॉट की पहचान की गई और उन्हें सील कर दिया गया है।
भारत सहित दुनियाभर में, COVID-19 के खिलाफ वैक्सीन का आविष्कार करने के कार्यों में तेजी है। फिर भी, अधिकांश विशेषज्ञों ने यह महसूस किया कि वैक्सीन कम से कम 12 महीने दूर है। भारत की प्रमुख प्रयोगशालाओं यानी सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR लैब्स) और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB labs), हैदराबाद और इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB), नई दिल्ली ने नोवल कोरोना वायरस जीनोम की प्रकृति को समझना शुरू कर दिया है। इससे वायरस की वैक्सीन और इलाज के संबंध में मदद मिलेगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव की मीडिया में भी लंबी चर्चा हुई। आईएमएफ ने 2021 के लिए भारत के विकास अनुमानों को कम करके 1.9% कर दिया है, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके 7.4% होने का अनुमान है।
बहस इस बात पर भी केंद्रित है कि राहत और प्रोत्साहन पैकेज की कितनी घोषणा की जानी चाहिए। गैर-सरकारी विशेषज्ञों को लगता है कि सरकार द्वारा घोषित 1.7 ट्रिलियन का समर्थन पैकेज पर्याप्त नहीं है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.8% है, जबकि अधिकांश देशों में यह आंकड़ा बहुत अधिक है। इस संबंध में सरकार को और कदम उठाने चाहिए।
अधिक आवश्यकता है लेकिन कितनी? जीडीपी के 3-5% से लेकर 8-10% तक के विभिन्न अनुमानों का उल्लेख किया गया है। सवाल यह था कि ऐसे विशाल संसाधनों को कैसे जुटाया जाए? फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (FRBM) एक्ट जो कि राजकोषीय घाटे पर कैप लगाता है, को स्थगित करते हुए घाटे के वित्तपोषण के उच्च स्तर का सहारा लेने के सुझाव दिए गए; भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसा लेना और अगर आवश्यकता पड़े, तो पैसे की प्रिंटिंग प्रिंट भी इसमें शामिल है। विशेषज्ञ भी सरकार को कर, ऋण राहत और प्रोत्साहन पैकेज के माध्यम से छोटे उद्योगों के साथ-साथ अन्य लोगों के हाथों में पैसा पहुंचाने की सलाह दे रहे हैं। सरकार, जो पहले से ही संसाधन की कमी से जूझ रही है, उसका अभी इन सुझावों पर फैसला करना बाकी है।
गेहूं और सरसों की रबी फसल, खाद्य सुरक्षा के लिहाज से दो महत्वपूर्ण फसलें हैं, यह कटाई के लिए तैयार हैं। लॉकडाउन के दौरान उद्योग की क्षमता किसी भी आर्थिक गतिविधि के बिना जारी रखना उन पर दबाव बना रहा है। दैनिक वेतन भोगी इसमें सबसे अधिक पीड़ित हैं क्योंकि उनकी आजीविका गायब है। इन चिंताओं पर लंबी बहस की गई, हालांकि इसपर कोई भी सटीक समाधान अभी दिखाई नहीं पड़ता है।
विभिन्न कदमों और सरकार द्वारा आश्वासन के बावजूद, लॉकडाउन 2.0 को लेकर चिंता और आशंका की भावना बनी हुई है। यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि कब केस अपने चरम पर पहुंच जाएंगे, हालांकि मामलों की बढ़ोतरी की दर में मामूली गिरावट के संकेत जरूर हैं।
लोगों ने कोरोना के बाद भारत के पुनर्निर्माण पर भी बहस शुरू कर दी है, वो एक ऐसी दुनिया होगी जिसके कोरोना वायरस के प्रकोप से पहले की दुनिया से अलग होने की उम्मीद है। एक दृष्टिकोण यह बन रहा था कि भारत को महत्वपूर्ण आपूर्ति के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए और इसके बजाय फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरणों और अन्य क्षेत्रों में स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण करना चाहिए। आत्मनिर्भरता और स्वदेशी पर वापस आने का भी सुझाव दिया गया था।
छात्र, शिक्षक और संपूर्ण शिक्षा प्रणाली वर्तमान में निलंबित है। छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। विश्वविद्यालय में प्रवेश और प्रवेश परीक्षाएं अनिश्चित हो गए हैं। जबकि कुछ ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू हो गए हैं, इस संबंध में एड हॉक वाले दृष्टिकोण की बजाय एक व्यवस्थित तंत्र की आवश्यकता है। शिक्षा प्रणाली की संरचना भविष्य में बड़े बदलावों के दौर से गुजर सकती है। नई शिक्षा नीति, जो अभी भी सरकार द्वारा विचाराधीन है, को शिक्षा के प्रभावी तरीके के रूप में ऑनलाइन शिक्षण को प्राथमिकता देने की ओर विचार करना होगा।
वर्क फ्रॉम होम के एक मानक के रूप में स्थापित होने की संभावना है। लेकिन यह आसान विकल्प नहीं होगा। इसे हकीकत बनाने के लिए बुनियादी ढाँचे, नियम मानदंड, दिशानिर्देश विकसित करने होंगे। इसके अलावा अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र सुदूर रूप से कार्य करने हेतु उत्तरदायी नहीं हैं।
विश्व स्तर पर महामारी 2 मिलियन से अधिक मामलों और 100,000 मौतों के साथ फैल रही है। अमेरिका ने मामलों और मौतों की संख्या के लिहाज से किसी भी अन्य दूसरे देश को पीछे छोड़ दिया है। यहां पर 20,000 से अधिक मौतों और आधे मिलियन से अधिक कोरोना के मामले दर्ज हुए हैं। हालांकि, इसे परिप्रेक्ष्य में अगर देखें तो, 2018-19 के दौरान इन्फ्लूएंजा वायरस के संपर्क में आने वाले 35 मिलियन लोगों में 35,000 लोगों की मौत अमेरिका में हुई थी।
अमेरिका ने लोगों की नजरों में अपनी प्रतिष्ठा को खो दिया है। चीन भी बदनाम है। कोरोना वायरस के बाद की दुनिया में अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के तेज होने की संभावना है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रभावित हो सकता है और राष्ट्रवाद, यहां तक कि अति-राष्ट्रवाद भी प्रभावी हो सकता है। चीन अपने पक्ष में केंद्रित दुनिया बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ेगा, हालांकि वह ऐसा करने में सफल शायद नहीं हो पाए, क्योंकि उसकी छवि को एक गंभीर झटका लगा है।
वैश्विक अनिश्चितता का लाभ उठाते हुए और स्वयं पर ध्यान केंद्रित कराने के उद्देश्य से उत्तर कोरिया ने कम दूरी वाली मिसाइल परीक्षणों की एक श्रृंखला की भी शुरूआत कर दी है। वैश्विक लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन गतिविधि बढ़ने से साइबर अपराध की घटनाओं में कई गुना वृद्धि हुई है।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक पर चीनियों को लेकर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया है। उन्होंने डब्ल्यूएचओ को दिए जाने वाले अमेरिकी फंडिंग को निलंबित करने की घोषणा की है। इस घटना ने एक ऐसे संस्थान को लेकर विवाद शुरू कर दिया है, जिसका काम चीन कारक के कारण संदेह के घेरे में आ गया है। यह स्पष्ट है कि अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की तरह, डब्ल्यूएचओ को भी सुधारों की आवश्यकता है। लेकिन, जब दुनियाभर में महामारी फैली हुई है, तो संगठन को कमजोर करने और जब बड़ी संख्या में विकासशील देश मदद और सहायता के लिए इस पर निर्भर हैं, तो इससे बचा जाना चाहिए।
कोरोना वायरस बहुत अनिश्चितताओं को लेकर आया है। भारत ने अपनी आबादी के पैमाने के लिहाज से संकट से निपटने के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल एक मॉडल का पालन किया है। इसका अब तक मिलाजुला परिणाम रहा है। बुरा दौर अभी तक खत्म नहीं हुआ है। अर्थव्यवस्था लंबे समय तक निलंबित नहीं रह सकती है। लॉकडाउन के कारण यह मंद जरूर हो सकता है, लेकिन हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि वायरस अभी आगे मौजूद रहने वाला है।
ऐसी अनिश्चित दुनिया में, भारत के पास अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने का एक मौका है। शुरुआत करने के लिहाज से अपनी विनिर्माण क्षमताओं को पुनः प्राप्त करना होगा जो चीन के कारण पिछड़ गया था। कच्चे माल, मध्यवर्ती और पूंजीगत वस्तुओं के आयात के लिए चीन पर निर्भरता, सक्रिय फार्मास्यूटिकल्स पर निर्भरता को कम किया जाना चाहिए। घरेलू विनिर्माण फिर से शुरू किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे क्षेत्रों का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर, भारत को वैश्विक रूप से दक्षिण की ओर ध्यान देना चाहिए, जहां सामाजिक पूंजी को मजबूत करने की आवश्यकता है। भारत की ताकत यहीं पर निहित है। यह स्थानीय स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला और क्षेत्रीय एकीकरण के पुनर्निर्माण को भी बल देगा।
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