चीन का जिवानी कार्यक्रम
हाल ही में, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह संभावना जताई जा रही है कि पाकिस्तान के जिवानी इलाके में नौसेना के अड्डे का निर्माण पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (प्लान) द्वारा किया जा सकता है। पाकिस्तान के पास छह बंदरगाह है: कराची, मोहम्मद बिन कासिम, ओरमारा, ग्वादर, पासनी और जिवानी। जिवानी बंदरगाह ग्वादर खाड़ी के आख़िरी छोर पर ग्वादर से 59 किमी दूर और ईरानी सीमा से 34 किमी दूर स्थित है। 5500-फीट रनवे वाले हवाईअड्डे के साथ ही यहाँ एक छोटा नौसेना का अड्डा स्थित है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसे शाही वायुसेना (आरएएफ) जिवानी कहा जाता था और इसके माध्यम से चौकियों को पानी दिया जाता था। साथ ही, संयुक्त अरब एमिरात स्थित शारजाह हवाईअड्डे की उड़ानों के लिए यह छोटा हवाईअड्डा स्टॉप-ओवर का कार्य करता था। हालाँकि वर्तमान में यह हवाईअड्डा उपयोग में नहीं है।
यूँ तो ग्वादर बंदरगाह पहले से ही कार्यरत है, मगर अपनी युद्ध सामग्री के लिए चीन को एक अन्य बंदरगाह की आवश्यकता है। साउथ-चाइना मॉर्निंग पोस्ट नामक अख़बार के अनुसार, “क्योंकी ग्वादर बंदरगाह एक सामान्य बंदरगाह बन चुका है इसलिए चीन को युद्ध हेतु एक नये बंदरगाह की आवश्यकता है”। इसी तरह वाशिंगटन टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “ 18 दिसम्बर को 16 पीएलए अधिकारीयों ने जिवानी में 10 पाकिस्तानी सेना के अधिकारीयों से मुलाकात की, जहाँ इस अड्डे से जुड़े हुई योजनाओं के बारे में बातचीत की गयी”। हालाँकि चीन ने इस सूचना से साफ़ इंकार किया है। 9 जनवरी 2018 को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने इस सन्दर्भ में कहा कि उन्हें इस बात की कोई सूचना नही है।
विशेष सूत्रों के अनुसार, अपनी भौगौलिक स्थिति के कारण, ऊँची पहाड़ियों के बीच जिवानी, मिसाइल बैटरीज और सर्विलांस राडार स्थापित करने के लिए बेहतरीन जगह है। पाकिस्तानी नौसेना की जहाज-विरोधी मिसाइलों को यहाँ से अच्छी रेंज मिल सकती है और ग्वादर की तुलना में ओमान की खाड़ी में इस स्थिति में इसे अधिक फायदा मिल सकता है। वर्तमान में जिवानी में युद्ध सामग्री की मरम्मत और भण्डारण की उचित व्यवस्था नही की जा सकती। हालाँकि यह सुविधा भी बहुत जल्द उपलब्ध करवाई जा सकती है। अगर प्लान जिवानी तट का प्रयोग करता है तो हवाईअड्डे का भी सैन्य इस्तेमाल हो सकता है।
इससे अलग जिवानी की अपनी सुरक्षा-संबधी समस्याएं हो सकतीं है। ईरान-पाकिस्तान की समुद्री सीमा भी जिवानी तट से होकर गुज़रती है। इस कारण यहाँ एक बंदरगाह स्थापित करना ज्यादा उचित नही है। साथ ही, ग्वादर और जिवानी काफ़ी नजदीक है जिससे जिवानी को अड्डे के रूप में विकसित करना बाधा हो सकता है। यह भी संभव है की चीन अन्य बंदरगाहों को अपने नौसेना अड्डे के लिए बेहतर समझे। विकल्प के रूप में पिश्कुन भी हो सकता है जो कि ग्वादर के पूर्वी छोर पर स्थित है, जहाँ कार्य प्रारंभ होने की प्रबल संभानाएं है। अन्य विकल्प के रूप में ओरमारा बंदरगाह हो सकता है जो जिवानी से 353 किमी पूर्व स्थित है और यहाँ पाकिस्तानी नौसेना का जिन्ना नौसैन्य अड्डा और छोटे वायुयानों के उतरने के लिए एक छोटा हवाईअड्डा भी मौजूद है।
इससे पहले 2016 में, चाइना शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री कारपोरेशन ने पाकिस्तान को 8 आक्रमण पनडुब्बियों के आयत की बात पुख्ता रूप से कही थी। 13 नवम्बर 2016 को ग्वादर बंदरगाह के उद्घाटन समारोह के दौरान नवाज़ शरीफ़ ने इसे, “नये दौर की शुरुआत’ कहा और साथ ही यह भी कहा कि, “ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सिपीईसी) पूरे देश को बदलने के लिए है और इससे न केवल पाकिस्तान के लिए अवसर पैदा होंगे बल्कि मध्य-एशियाई और अन्य एशियाई देशों के लिए भी संभावनाओं का विस्तार होगा।” सामान्य रूपसे सिपीईसी के लिए ग्वादर एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
हिन्द महासागर क्षेत्र में बढती चीन की पैठ
जाहिर है कि चीन हिन्द महासगर के क्षेत्र पर अपनी पैठ को विस्तार देने में लगा हुआ है। 14 मार्च 2017 को, चीन ने समुद्री क्षेत्र में अपनी टुकड़ियों में जवानों की संख्या 20 हजार से बढ़ाकर एक लाख जवानों की नियुक्ति करने के संकेत दिए है जिससे वह अपनी समुद्री गतिविधियों और विदेशी हितों को संरक्षित कर सके। ग्वादर और द्जीबौती पर अपनी मौजूदगी बनाने के भी संकेत दिए। प्लान की संख्या में भी संभवतः वृद्धि की जाएगी।
1 अगस्त 2017 को चीन ने द्जीबौती में पहले सैन्य अड्डे की स्थापना की थी। इसका प्रयोग इंधन प्रदान करने और पायरेसी रोकने की योजनाओं के लिए किया जायेगा। दिसम्बर 2017 में, श्रीलंका ने हमबनटोटा बंदरगाह 99 वर्षों के लिए चीन को पट्टे पर सौंप दिया था। इससे पहले जुलाई में चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी ने हमबनटोटा बंदरगाह के लिए श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण से बंदरगाह के 70 प्रतिशत अधिकारों का नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। श्रीलंकाई संसद ने भी इस परियोजना को कर में रियायत देने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया है। इस रियायत में 32 वर्षों तक आयकर से छूट आदि शामिल है। इसके अलावा चीन ने हिन्द महासागर से होकर गुजरने वाले तथाकथित समुद्री रेशम मार्ग में अपने हितों की रक्षा के लिए जल के भीतर कार्य करने वाला एक निगरानी तंत्र तैयार किया है जिससे इसकी पनडुब्बियों को अपने लक्ष्य की बेहतर पकड मिल सके।
अगर जिवानी में या उसके आसपास कोई नौसैन्य-अड्डा स्थापित किया जाता है तो यह चीन और पाकिस्तान के रिश्ते को और मजबूती प्रदान करेगा। जिवानी बंदरगाह की चाबहार बंदरगाह से नजदीकी का असर भारत के लिए भी हो सकता है। चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके रास्ते हीभारत बिना पाकिस्तान से गुज़रे अफ़ग़ानिस्तान में समुद्री मार्ग से वस्तुओं का परिवहन करता है।
(लेखक पूर्व रक्षा सचिव हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)
सन्दर्भ:
1. Minnie Chan, ‘First Djibouti ... now Pakistan port earmarked for a Chinese overseas naval base, sources say’ accessed at http://www.scmp.com/news/china/diplomacy-defence/article/2127040/first-d...
2. Bill Betz, China building military base in Pakistan accessed at https://www.washingtontimes.com/news/2018/jan/3/china-plans-pakistan-mil...
Post new comment