उत्तरी क्षेत्र और जापान-रूस मेलमिलाप के प्रयास
Prerna Gandhi, Associate Fellow, VIF


"石の上にも三年"

हिंदी में अर्थ: “चट्टान पर तीन वर्ष” (“पहले धैर्य के साथ लंबे समय तक डटे रहने के लिए तैयार हो जाएं, उसके बाद परिणाम की अपेक्षा करें।“)

ऊपर लिखी हुई जापानी कहावत व्लादीमिर पुतिन और रूस के साथ मेलमिलाप करने के शिंजो अबे के उन प्रयासों पर एकदम खरी बैठती है, जो उन्होंने दिसंबर 2012 में अपना दूसरा कार्यकाल आरंभ होने के बाद से किए हैं। 2013 में अबे पिछले एक दशक में रूस की आधिकारिक यात्रा करने वाले पहले जापानी नेता बने और जापानी प्रधानमंत्री के रूप में अपने दो कार्यकालों में अभी तक वह पुतिन के साथ 16 जापान-रूस शिखर बैठक आयोजित कर चुके हैं।1 सबसे हालिया अबे-पुतिन शिखर वार्ता 15-16 दिसंबर को नगातो, यामागुची प्रांत और टोक्यो में संपन्न हुई। चार द्वीपों - इतोरोफू, कुनाशिरी, हाबोमाई और शिकोतान (जिन्हें जापान उत्तरी क्षेत्र और रूस दक्षिणी कुरील द्वीपसमूह कहता है) - पर जारी क्षेत्रीय विवाद के कारण जापान और रूस द्वितीय विश्वयुद्ध के सात दशक बाद भी शांति संधि नहीं कर पाए हैं। अबे ने असाधारण धैर्य दिखाया है क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की तुलना में पुतिन के साथ अधिक (लगभग दोगुनी) वार्ता की हैं। हालांकि शांति संधि पर द्विविधा समाप्त करने में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है, लेकिन रूस के साथ बात करने की जापान की अदम्य इच्छा उसके भू-सामरिक रुख तथा सोच में बहुत अधिक बदलाव आने का संकेत देती है। यह बात ऐसे समय में और भी अहम हो जाती है, जब अमेरिकी नेतृत्व की अगुआई में पश्चिम ने यूक्रेन संकट के बाद बढ़ते तनाव के बीच रूस के साथ निपटने में अपने सभी साझेदारियों की “निरंतर एकता2” पर जोर दिया है।

जापान और रूस ने 1855 की शिमोदा संधि (जिस पर तोकुगावा शोगुनाते ने हस्ताक्षर किए थे) के साथ अपने आधुनिक रिश्ते आरंभ किए, जिसमें सखालिन तथा कुरील द्वीपों पर संप्रभु अधिकार समेत उनके सीमा विवाद को निपटाने का भी प्रयास किया गया था। इतोरोफू द्वीप स्पष्ट रूप से जापान को सौंप दिया गया किंतु कुनाशिरी, शिकोतान तथा हाबोमाई द्वीपों का संधि में अस्पष्ट जिक्र किया गया और उस समय उन्हें जापान का अंग माना गया। रूस को कुरील के बाकी द्वीप दे दिए गए। सखालिन द्वीप का क्षेत्रीय अधिकार निर्धारित नहीं किया गया था। 1875 की सेंट पीटर्सबर्ग संधि में सभी कुरील द्वीप जापान के अधिकार में आ गए और रूस को सखालिन मिल गया। 1904-05 के रूस-जापान युद्ध और उसके उपरांत 1905 की पोर्ट्समाउथ संधि के बाद मुआवजे के रूप में सखालिन का दक्षिणी भाग जापान को सौंप दिया गया। उसके बाद से शत्रुता घटती-बढ़ती रही और 1945 में जापान के बिना शर्त समर्पण (और पॉट्सडैम घोषणा) के साथ ही सोवियत संघ ने याल्टा सम्मेलन की शर्तों के तहत चारों द्वीपों तथा पूरे सखालिन समेत समूचे कुरील द्वीपों पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण कर लिया।3

द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत हुई संधियों के प्रावधानों में मौजूद अस्पष्टता और असहमतियां क्षेत्रीय विवाद के केंद्र में रही हैं। 1943 की काहिर घोषणा में कुरील द्वीपों का स्पष्ट उल्लेख नहीं था, लेकिन इसमें कहा गया कि जापान ने ‘हिंसा तथा लोभ’ से जिन क्षेत्रों पर अधिकार किया है, उन सभी से उसे निकाल दिया जाएगा। सोवियत संघ को जापान के खिलाफ मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से फरवरी 1945 में जो याल्टा संधि हुई थी, उसमें एक बार फिर यही कहा गया कि सखालिन का दक्षिणी भाग और जापान के अधीन कुरील द्वीप सोवियत संघ को लौटा दिए जाएंगे। अगस्त 1945 की पॉट्सडैम घोषणा में स्पष्ट किया गया कि जापान की संप्रभुता केवल होन्शू, होक्काइदो, क्युशू, शिकोकू और छोटे द्वीपों तक ही सीमित रहेगी। लेकिन समस्या तब हुई, जब मित्र राष्ट्रों और जापान के बीच शांति के लिए 1951 की सैन फ्रांसिस्को संधि तैयार करते समय सोवियत संघ ने आपत्ति जताई। चीन में साम्यवादी विजय के बाद शीत युद्ध और कोरियाई प्रायद्वीप पर संघर्ष आरंभ होने के बाद जो स्थितियां उत्पन्न हुईं, उनके कारण अमेरिका जापान के संदर्भ में बहुत उदार हो गया और उसने याल्टा तथा पॉट्सडैम संधियों पर अपना रुख बदल लिया।4

सैन फ्रांसिस्को संधि पर हस्ताक्षर के साथ ही जापान ने अनुच्छेद 2(सी) के अनुरूप सखालिन और कुरील द्वीपों पर दावा करना बंद कर दिया, लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग ने बाद में स्पष्ट किया कि उत्तरी क्षेत्र कुरील श्रृंखला के भाग नहीं हैं और चूंकि सोवियत संघ ने संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया, इसलिए क्षेत्र पर उसके अधिकार तथा संप्रभुता को मान्यता नहीं दी जा सकती। अमेरिका ने कहा कि “और ऐसे छोटे द्वीप, जिन्हें हम निर्धारित करेंगे” वाली पंक्ति के हिसाब से उत्तरी क्षेत्र जापान को सौंपा जा सकता है। जापान तथा सोवियत संघ के बीच 1956 की शांति वार्ता के दौरान सोवियत पक्ष ने प्रस्ताव रखा कि शांति संधि संपन्न होने पर शिकोतान और हाबोमाई द्वीप जापान को लौटा दिए जाएंगे। हालांकि इतोरोफू और कुनाशिरी की वापसी पर विवाद रहा, लेकिन आरंभ में जापान ने सोवियत संघ के प्रस्ताव पर सहमति जता दी। किंतु अमेरिकी सरकार बीच में आ गई और इस संधि को रोक दिया। अमेरिका ने जापान को चेतावनी दी कि इतोरोफू और कुनाशिरी पर जापानी दावा खत्म किया गया तो इसका मतलब होगा कि अमेरिका भी ओकीनावा को अपने अधीन रख सकता है। इस पर जापान ने सोवियत की शर्तें नकार दीं। इस तरह कुरील द्वीपसमूह पर नियंत्रण के बारे में विवाद अनसुलझा ही रहा और उसे जापान तथा सोवियत संघ के बीच स्थायी शांति संधि संपन्न होने तक टाल दिया गया।

उसके बाद शीत युद्ध काल के कारण जापान-रूस मेलजोल की जरूरत ही महसूस नहीं हुई क्योंकि जापाना अपने सहयोगी और सुरक्षा की गारंटी देने वाले अमेरिका के खेमे में पूरी तरह चला गया था। सोवियत संघ के विखंडन के बाद 1991 में गोर्बाचेव ने जापान की यात्रा की और क्षेत्रीय विवाद को स्वीकार करने वाले एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।5 बाद में येल्तसिन प्रशासन ने भी 1993 की अपनी टोक्यो घोषणा में कहा कि रूस और जापान के बीच किसी भी संवाद में 1956 की घोषणा को नजीर माना जाएगा। येल्तसिन ने विश्व युद्ध के बाद जापानी बंदियों के साथ सोवियत द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और जापान ने बदले में रूस के बाजारोन्मुखी आर्थिक सुधारों में वित्तीय सहयोग किया। 2001 में पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद जापान और रूस ने निश्चित किया कि द्वीपों की संप्रभुता का विवाद सुलझाने के लिए बातचीत 1956 की घोषणा से ही आरंभ होगी। स्थिति 2005 में उस समय पेचीदा हो गई, जब यूरोपीय संसद ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए रूस से कहा कि उसे उत्तरी क्षेत्र जापान को लौटा देने चाहिए। अगले वर्ष एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया, जब रूसी समुद्री गश्ती दल ने विवादित द्वीप के नजदीक एक जापानी मछुआरे को मार दिया और केकड़े पकड़ने वाली एक नाव अपने कब्जे में कर ली।

नई सहस्राब्दी के पहले दशक के उत्तरार्द्ध में कुरील द्वीप विवाद पर दोनों ही देशों में राष्ट्रवादी भावनाएं चरम पर पहुंच गईं। 2008 में पाठ्यपुस्तक विवाद खड़ा हो गया, जब जापान में छपी पाठ्यपुस्तकों में कुरील द्वीपसमूह पर उसका संप्रभु अधिकार होने का दावा कर दिया गया। हालांकि रूसी प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव और जापानी प्रधानमंत्री तारो असो के बीच 2009 में समझौते के प्रयास हुए, लेकिन अगले ही वर्ष टकराव पैदा हो गया, जब मेदवेदेव ने रूस का अधिकार जताने के लिए कुनाशिरी की यात्रा की। 2011 में मेदवेदेव ने कुरील द्वीपसमूह पर आधुनिक विमानभेदी प्रक्षेपास्त्र प्रणाली तैनात कर और वहां तैनात तोपखाने को वाहन युक्त आधुनिक पैदल सेना में तब्दील कर रूसी रक्षा को और भी मजबूत करने का आदेश दिया। अबे और पुतिन को 2013 में एक बार फिर देश की कमान मिलने के बाद जापान ने नवंबर 2013 में रूस के साथ अपनी पहली कूटनीतिक वार्ता की, जो सोवियत संघ के साथ 1973 में हुई वार्ता के बाद ऐसी पहली बातचीत थी। 2014 में सोची में शीतकालीन ओलंपिक संपन्न होने के बाद दोनों के रिश्ते एक बार फिर तल्ख हो गए क्योंकि रूस ने जब क्रीमियाई प्रायद्वीप पर अधिकार किया तो उस पर प्रतिबंध लगाने में जापान ने अमेरिका और यूरोपीय संघ का साथ दिया।

2016 में अबे ने पुतिन से चार बार मुलाकात कर रूस के साथ गतिरोध समाप्त करने के प्रयास नए सिरे से किए। पुतिन ने भी इसके जवाब में दिसंबर में जापान की यात्रा की और पिछले 11 वर्ष में जापान जाने वाले पहले रूसी राष्ट्रपति बने। 15-16 दिसंबर की शिखर बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में पुतिन ने कहा कि जापान और रूस के बीच शांति संधि नहीं होना अतीत की बुरी विरासत है, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि वह क्षेत्रीय विवाद निपटाने के लिए 1956 में की गई जापान-सोवियत संघ संयुक्त घोषणा पर अमल करेंगे। हालांकि विवादित क्षेत्र का 93 प्रतिशत से अधिक हिस्सा इतोरोफू और कुनाशिरी द्वीपों में पड़ता है, लेकिन केवल हाबोमाई और शिकोतान की वापसी भी महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इससे जापान को 38 प्रतिशत समुद्र पर अधिकार मिल जाएगा और क्षेत्र में समृद्ध मछलीपालन पर उसका नियंत्रण हो जाएगा।6 लेकिन जापान ने दोहराया कि वह पहले चार द्वीपों की वापसी का मसला सुलझाएगा और उसके बाद शांति संधि पूरी करेगा। हालांकि अमेरिका के निवर्तमान प्रशासन के साथ जापान के अलगाव को देखते हुए रूस उसके प्रति मधुरता दिखा रहा है, लेकिन क्षेत्रीय विवाद का समाधान दूर की कौड़ी ही लग रहा है। इतोरोफू और कुनाशिरी द्वीपों में प्राकृतिक संसाधनों के प्राचुर्य और उनकी सामरिक स्थिति के कारण रूस के लिए दोनों का ही आर्थिक और सैन्य महत्व है। ये द्वीप ओखोत्स्क सागर में विदेशी नौकाओं के प्रवेश पर नियंत्रण करने की रूस की क्षमता को बढ़ाते हैं। रूस ने दिसंबर की बहुचर्चित शिखर बैठक से ऐन पहले नवंबर में इतोरोफू द्वीप पर ‘बैस्चन प्रक्षेपास्त्र प्रणाली’ और कुनाशिरी द्वीप पर ‘बाल प्रक्षेपास्त्र प्रणाली’ तैनात कर दी।7

हालांकि संयुक्त संप्रभुता का प्रस्ताव केवल रखा गया है, लेकिन जापान और रूस अबे द्वारा प्रस्तावित आठ बिंदुओं वाली सहयोग योजना के तहत संयुक्त आर्थिक संबंध बढ़ाने को राजी हो गए। यह योजना लगभग 300 अरब येन की है और इसमें ऊर्जा, पर्यटन, अत्याधुनिक जापानी प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण से लेकर मानवशक्ति के अधिक आदान प्रदान और रूस के सुदूर पूर्व के औद्योगीकरण समेत विभिन्न क्षेत्रों की 60 से अधिक परियोजनाएं8 शामिल हैं। 2015 में जापान और रूस के बीच लगभग 21 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।9 जापान की सरकारी कंपनियों ने रूसी ऊर्जा दिग्गज रॉसनेफ्ट की 19.5 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव तक दे डाला। यह हिस्सेदारी रूस के बढ़ते हुए कर्ज को कम करने के बेची जा रही थी (जो अंत में ग्लेनकोर और कतर के फंड को मिल गई)।10 वृहत्तर आर्थिक सहयोग की संभावनाओं के बीच बढ़ी सकारात्मकता के बावजूद द्वीपों पर अधिकार के मामले में बरकरार भ्रम के कारण अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि रूस का दावा है कि गतिविधियां रूस के कानून के मुताबिक होनी चाहिए क्योंकि द्वीप उसी का अंग हैं। रूस की ही तरह जापान भी कुरील द्वीप विवाद को राष्ट्रवादी चश्मे से देखता है और अड़ा हुआ है कि रूस उसके स्वामित्व को मान्यता दे अलबत्ता उसने यह नहीं कहा है कि द्वीप उसे कब तक सौंप दिए जाने चाहिए।

क्षेत्र में जारी शक्ति परिवर्तन को देखते हुए चीन के बढ़ते राजनीतिक एवं सैन्य वर्चस्व का प्रतिकार करने और उत्तर कोरियाई खतरे का सामना करने के लिए रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना जापान के लिए अपरिहार्य है। जापान ने क्षेत्र में अमेरिका के निरोधी कदमों को बढ़ाने तथा मजबूत करने के अलावा भी विदेश नीति के कई विकल्प अपनाने का प्रयास किया है। संबंध सामान्य बनाने के अपने क्रमिक कदमों के अंतर्गत जापान अब कूटनीति के नए अध्याय खोलने का प्रयास कर रहा है, जो उसकी ऐतिहासिक विरासत से हटकर हैं। इतिहास को बदलने की पूर्ववर्ती कोशिशों के बावजूद दक्षिण कोरिया के साथ कंफर्ट विमेन (शाही जापानी सेना द्वारा यौन दासी बनाई गई लड़कियां एवं महिलाएं) का मुद्दा तेजी से सुलझाने के हालिया प्रयास इसी का संकेत देते हैं। हालांकि रूस के साथ केवल प्रगति केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित है, लेकिन अबे रूस के सुदूर पूर्व क्षेत्र - जहां चीन की की सरकार और निजी क्षेत्र की मौजूदगी तेजी से बढ़ रही है - को विकसित करने में जापान से सहयोग दिला सकते हैं और रूस तथा चीन के बढ़ते संबंधों को टक्कर दे सकते हैं। ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने और रूस के साथ उनकी निकटता बढ़ने की अटकलों के बीच अबे को अपनी रूसी नीति में और भी कूटनीतिक गुंजाइश मिल गई है। जापान और रूस अगले वर्ष से रक्षा एवं विदेशी मंत्रियों की द्विपक्षीय बातचीत बहाल करेंगे।

इस प्रकार पुतिन और रूस के साथ संवाद के अबे के प्रयास द्विपक्षीय संबंधों के दायरे से परे जाते हैं और उन्हें व्यापक भू-सामरिक चश्मे से देखा जा सकता है। जापान की 2016 की अधिकृत कूटनीतिक रिपोर्ट (डिप्लोमैटिक ब्लूबुक) कहती है कि रूस के साथ संबंधों का विकास जापान के हितों तथा क्षेत्र की शांति एवं समृद्धि हेतु है।1111” इसलिए कुरील विवाद पर गतिरोध चाहे खत्म न हो, जापान और रूस के मेलजोल की प्रक्रिया परिणाम से भी अधिक महत्वपूर्ण कही जा सकती है।

संदर्भ

  1. द मैनिचीः अबे, पुतिन एग्री ऑन जॉइंट एक्टिविटीज बट रिमेन अपार्ट ओवर आइल्स, 16 दिसंबर, 2016, http://mainichi.jp/english/articles/20161216/p2g/00m/0bu/014000c.
  2. ब्लूमबर्गः हेनरी मेयर एवं स्टीफन क्रावशेंको, अबे ईजेज पुतिन्स आइसोलेशन विद टॉक्स ऑन टेरिटरियल डिसप्यूट, 6 मई, 2016, https://www.bloomberg.com/news/articles/2016-05-05/abe-breaks-putin-s-is....
  3. विकिपीडियाः कुरील द्वीप विवाद, https://en.wikipedia.org/wiki/Kuril_Islands_dispute.
  4. उपरोक्त
  5. जापान टाइम्सः अ क्रोनोलॉजी ऑफ रॉकी रिलेशंस बिटवीन जापान एंड रशिया, 16 दिसंबर, 2016, http://www.japantimes.co.jp/news/2016/12/16/national/history/chronology-....
  6. फाइनेंशियल टाइम्सः रॉबिन हार्डिंग एवं कैथरिन हिल, जापान एंड रशिया ब्रेस्ड फॉर एन आइलैंड चैलेंज, 13 दिसंबर, 2016, https://www.ft.com/content/1b62108a-bc6b-11e6-8b45-b8b81dd5d080.
  7. आईएचएस जेन 360: जूलियन रयाल, गैब्रियल डोमिंगेज एवं नील गिब्सन, रशिया डिप्लॉयज बाल एंड बैस्चन-पी मिसाइल सिस्टम्स टु डिसप्यूटेड कुरील आइलैंड्स, सेज रिपोर्ट, 23 नवंबर, 2016, http://www.janes.com/article/65714/russia-deploys-bal-and-bastion-p-miss....
  8. Nippon.com: निप्पॉन जापानीज इकनॉमिक कोऑपरेशन विद रशिया सीन रीचिंग 300 बिलियन येन, 16 दिसंबर, 2016, http://www.nippon.com/en/genre/politics/l10051/
  9. रशियन एक्सपोर्टरः नेशनल इन्फॉर्मेशन पोर्टलः जापानीज-रशियन बाइलेटरल ट्रेड इन 2015, http://www.rusexporter.com/research/country/detail/4244/
  10. स्पुतनिक इंटरनेशनलः जापानीज इन्वेस्टर्स शोड इंटरेस्ट इन बाइंग 19.5% रॉसनेफ्ट स्टेक - रशियन पीएम, 15 दिसंबर, 2016, https://sputniknews.com/world/201612151048585999-russia-medvedev-japan-i...
  11. द डिप्लोमैटः जेम्स डी जे ब्राउन, जापान्स ‘न्यू अप्रोच’ टु रशिया, 28 जून, 2016, http://thediplomat.com/2016/06/japans-new-approach-to-russia/
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