इस वर्ष जुलाई में दक्षिण चीन सागर पर हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का फैसला आने के बाद हुए घटनाक्रम आसियान के रहस्यमय ढंग के कारण विरोधाभासी रहे हैं। क्षेत्रीय संगठन के रूप में दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) ने अनौपचारिकता, न्यूनतम संगठन, समावेश का प्रयोग करने और सर्वसम्मति विकसित करने के लिए गहन चर्चा करने तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रयास करने पर जोर दिया है।1 किसी सुरक्षा समुदाय के समान कठोर संस्थागत जामा पहनने से परहेज करने वाले आसियान ने अपने सुरक्षा ढांचे के लिए क्षेत्र में अमेरिकी सेना की मौजूदगी पर बहुत विश्वास किया है। किंतु चीन के उदय और एशिया-प्रशांत में अमेरिका के सुरक्षा आश्वासनों पर बढ़ती अस्पष्टता ने अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न कर दी है। आसियान के ढांचे में वर्गीकरण अथवा विशेष अनुक्रम का जो अभाव (हेटरार्की) है, उसके और कई देशों की इच्छाओं पर उठते संशय के कारण एकसमान दिशा में चलने वाले रणनीतिक समूह के लाभ ही स्पष्ट नहीं रहे हैं।
हेटरार्की शब्द का अर्थ है अलग-अलग पैमानों पर आधारित विभिन्न पदक्रम या वर्गीकरण। एशिया में बढ़ती बहुध्रुवीय स्थिति के कारण नेतृत्व और आधिपत्य को अलग-अलग क्षेत्रों में अथवा अलग-अलग मसलों के संदर्भ में अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया जा सकता है। किसी एक देश द्वारा दूसरे देश की पसंद को पूरी तरह माना जाना आवश्यक नहीं है; अंतरराष्ट्रीय मामलों के केवल एक आयाम को भी सम्मान दिया जा सकता है, जैसे विदेश नीति, हथियारों की खरीद, सांस्कृतिक मामले अथवा आर्थिक गतिविधि। साथ ही आसियान में बढ़ते आर्थिक संबंधों ने क्षेत्र में हथियारों की बढ़ती होड़ को कम नहीं किया है। इस प्रकार सुरक्षा के संबंध में बढ़ती अनिश्चितता से निपटने के लिए आसियान देशों ने विरोधाभासी नीतियां अपनानी आरंभ कर दी हैं ताकि किसी विशेष नीति के जोखिमों से बचा जा सके और तटस्थ दृष्टिकोण दिखाया जा सके। उन्होंने सैन्य शक्ति पर संकीर्ण दृष्टिकोण त्याग दिया है और सुरक्षा संबंधों को क्षेत्र के लिए अधिक लचीले ढांचे के इर्दगिर्द ढालने का प्रयास किया है।
1990 के दशक के बाद से आसियान का विस्तार
1994 में आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) की स्थापना ने विचार विमर्श एवं अनौपचारिक बातचीत के जरिये अधिक संस्थागत वार्ताओं का रास्ता साफ किया। पश्चिमी क्षेत्रीय संगठन जिस तरह एकदम नियमों पर काम करते हैं, उसके उलट आसियान ने क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बिना नियमों का ढांचा तैयार किया है। इसका उद्देश्य द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग में सदस्यों द्वारा (नियम आधारित नहीं बल्कि) स्वैच्छिक प्रतिभागिता को बढ़ावा देना है। इसलिए क्रियान्वयन की प्रणाली नहीं होने के बावजूद सदस्य दूसरे सदस्यों के आचरण के जरिये अथवा आपसी सहमति से तय किए गए नियमों का उल्लंघन होने पर एक दूसरे की मंशा समझ जाते हैं। एआरएफ की स्थापना से आसियान तथा अन्य राष्ट्रों के मध्य अधिक सहयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1997 के एशियाई वित्तीय संकट ने क्षेत्रीय चिंताओं के समाधान के लिए अधिक औपचारिक ढांचों की जरूरत पर जोर दिया। 1997 में प्रस्तावित चियांग माइ कार्यक्रम (जो पहले एशियाई मुद्रा कोष था) शुरू होने में एक दशक से अधिक समय लग गया, लेकिन उसी वर्ष आसियान विजन 2020 को अपनाए जाने से यह सुनिश्चित हुआ कि नई सहस्राब्दी में क्षेत्रीय सहयोग की ओर तेजी से कदम बढ़ें।
चीन तथा आसियान देशों के मध्य चल रहे दक्षिण चीन सागर विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए 2002 में दक्षिण चीन सागर में पक्षों की आचार संहिता की घोषणा (डीओसी) को स्वीकार किया गया। 2003 में आसियान कॉनकार्ड 2 के साथ आसियान के नेताओं ने संकल्प लिया कि तीन स्तंभों - आसियान राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय, आसियान आर्थिक समुदाय तथा आसियान सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय - पर खड़ा आसियान समुदाय 2015 में स्थापित किया जाएगा। उसके साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूर्वी एशिया के आर्थिक प्रभुत्व ने विस्तृत क्षेत्रीय समूह की जरूरत को तेज किया और 2005 में पहला पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन हुआ, जिसमें आसियान के साथ छह देशों चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी हिस्सा लिया। इंडोनेशिया में 2011 में हुए छठे पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिका और रूस को भी इसकी सदस्यता मिल गई। 2007 में स्वीकृत आसियान घोषणापत्र ने आसियान को कानूनी मान्यता भी प्रदान की और संस्थागत ढांचा भी दे दिया। इसमें आसियान के नियम, कायदे और मूल्य संहिताबद्ध किए गए; आसियान के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए; और जवाबदेही तथा अनुपालन की बात की गई।2 आसियान के रक्षा मंत्रियों की बैठक (एडीडीएम) के साथ 2006 में आसियान के छाते तले क्षेत्रीय सहयोग में और वृद्धि हुई। इससे विश्वास बहाली के उपायों, संयुक्त अभ्यासों तथा निरोधपूर्ण कूटनीति के जरिये रक्षा नीति का समन्वय आरंभ हो गया। एडीडीएम को बाद में एडीडीएम+ बना दिया गया, जिसमें आसियान और उसके 8 वार्ता साझेदार थे और इसकी पहली बैठक 2010 में हुई।
सैन्य विस्तार एवं आर्थिक सहयोग
आसियान ने (निश्चित शत्रु नहीं होते हुए भी) विस्तारवादी सैन्य सुदृढ़ीकरण तथा अधिक गहन सहयोग पर जोर दिया। क्षेत्रीय सुरक्षा के असैन्य आयामों की तलाश में जुटे रहने वाले क्षेत्र आसियान में 2010 से ही प्रतिवर्ष रक्षा बजटों में शुद्ध वृद्धि होती रही है। चिरस्थायी सुरक्षा असमंजस के बीच लंबे समय से आसियान देशों के मध्य अनकही प्रतिस्पर्द्धा और अव्यक्त टकराव चलता रहा है। दक्षिण चीन सागर के मसले पर चीन के साथ बढ़ा तनाव 2015 में इंडोनेशिया द्वारा सैन्य व्यय में 16 प्रतिशत, फिलीपींस द्वारा 25 प्रतिशत और वियतनाम द्वारा 7.6 प्रतिशत वृद्धि में भी झलकता है। भूमि पर कब्जे के कार्यक्रमों और इस भय के कारण कि चीन दक्षिण चीन सागर के ऊपर वायु रक्षा पहचान क्षेत्र घोषित कर सकता है, आसियान में बढ़े हुए रक्षा बजट का अधिकतर हिस्सा वायुसेना एवं नौसेना की क्षमता बढ़ाने में खर्च किया जा रहा है। यद्यपि 2014 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में आसियान में औसत सैन्य व्यय 2.2 प्रतिशत रहा। यह आंकड़ा इंडोनेशिया में 0.8 प्रतिशत से लेकर म्यांमार में 4.3 प्रतिशत तक रहा है। आसियान में रक्षा पर सबसे अधिक खर्च सिंगापुर करता है, जिसके बाद इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम आते हैं। वियतनाम ने क्षेत्र में सैन्य व्यय में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की है। 2005 से 2014 के बीच दस वर्ष में उसका सैन्य व्यय 314 प्रतिशत तक बढ़ा है।3 आसियान में कई देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने के लिए स्वदेशी रक्षा उद्योग स्थापित करने पर जोर दे रहे हैं।
आर्थिक पहलू की बात करें तो आसियान देशों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा कुल व्यापार का अनुपात (2015 के आंकड़े) बहुत अधिक हैः सिंगापुर (227.1 प्रतिशत), वियतनाम (169.5 प्रतिशत), मलेशिया (127.7 प्रतिशत), कंबोडिया (106.6 प्रतिशत), थाईलैंड (105.4 प्रतिशत) और ब्रुनेई (72.8 प्रतिशत)। जीडीपी और व्यापार का सबसे कम अनुपात इंडोनेशिया (34.2 प्रतिशत) का है और वैश्विक आंकड़ों को देखते हुए वह भी बहुत अधिक है।4 आसियान देशों के बीच व्यापार, जो 23.9 प्रतिशत है, के बाद चीन ही आसियान के साथ सबसे अधिक व्यापार करने वाला देश तथा सबसे बड़ा क्षेत्रीय साझेदार देश है। आसियान देशों में चीनी समुदाय अथवा ‘बैंबू नेटवर्क’ आसियान को चीन के साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। व्यापार के मामले में अत्यधिक निर्भरता के कारण चीन का महत्व बहुत अधिक हो जाता है क्योंकि आसियान के कुल व्यापार में उसकी 15.2 प्रतिशत हिस्सेदारी है तथा 4 प्रतिशत हिस्सेदारी हॉन्गकॉन्ग की है।5इसके अलावा लगभग सभी आसियान देशों के लिए अग्रणी आयातक भी है और उसके शुद्ध व्यापार संतुलन का लाभ आसियान को मिलता है क्योंकि आसियान के कुल आयात में उसकी 19.4 प्रतिशत (निर्यात में 11.3 प्रतिशत) हिस्सेदारी है।6
चीन की आर्थिक बढ़त और नकदी की कूटनीति
चीन से सही समय पर मिलने वाली सहायता तथा प्रोत्साहन ने 1997 के एशियाई वित्तीय संकट तथा 2008 की वैश्विक मंदी के दौरान आसियान अर्थव्यवस्था के लिए चीन के महत्व को और भी बढ़ा दिया। कई आसियान देशों - ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड7 - के जीडीपी में तेजी से कमी आ रही है, इसीलिए विनिर्माण एवं सेवा में आर्थिक गतिविधि के नए रास्ते खोलने की जरूरत और भी अपरिहार्य हो गई है। इसीलिए अधिकतर आसियान देशों को अपना बुनियादी ढांचा विकसित करने की तीव्र आवश्यकता है, जहां उनके राष्ट्रीय एजेंडा में चीन का महत्व और भी बढ़ जाता है। एशियाई बुनियादी ढांचा निवेश बैंक (एआईआईबी), वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर), मैरिटाइम सिल्क रोड जैसे कार्यक्रमों के जरिये चीन की नकदी वाली कूटनीति ने उसे जबरदस्त आर्थिक बढ़त दी है, जिसका इस्तेमाल क्षेत्र में उसके हितों की पूर्ति के लिए किया जा सकता है। इसलिए संतुलन साधने अथवा अमेरिका और चीन के पीछे चलने के बजाय आसियान ने दृढ़तापूर्वक एक दूसरे के साथ और चीन के साथ व्यापक आर्थिक तथा कूटनीतिक संबंध चलाए हैं एवं अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया है।
आसियान के सामने चीन के उभार से निपटने की चुनौती
आसियान के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्षेत्र में चीन के उभार से निपटने के लिए सर्वांगीण नीति बनाना है। दक्षिण चीन सागर में क्षेत्र विवाद पर चीन के सामने संगठित मोर्चा खड़ा करने में नाकामी आसियान की कमजोरी रही है। हस्तक्षेप नहीं करने तथा टकराव के बगैर बातचीत करने के आसियान के सिद्धांत एवं राजनीतिक तथा सुरक्षा मसलों पर कमजोर नेतृत्व ने आसियान को चीन से निपटने के लिए सर्वसम्मति विकसित करने से रोक लिया है। 2002 का डीओसी दावा करने वाले देशों द्वारा सेना का सहारा लिए जाने पर केवल नैतिक रोक ही लगा सका है। दूसरी ओर चीन ने आसियान सदस्यों के बीच फूट का फायदा उठाने में कोताही नहीं बरती है और औपचारिक एवं बाध्यकारी आचार संहिता (सीओसी) के निर्माण में रोड़े अटकाए हैं। 2005 में सीओसी पर पहले कार्य समूह के समय से ही चीन ने जोर देकर कहा है कि विवाद बहुपक्षीय नहीं बल्कि द्विपक्षीय आधार पर निपटाए जाने चाहिए और उसमें बाहरी पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। उसने यह भी दोहराया है कि स्पार्टली द्वीपसमूह पर विवाद आसियान और चीन के बीच का मसला नहीं है और उसका चीन तथा आसियान के संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
कंबोडिया और लाओस ने चीन के रुख का समर्थन किया है और ब्रुनेई तथा मलेशिया ने चुप्पी साध ली है, लेकिन वियतनाम और फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख पर मुखरता के साथ असंतोष जताते रहे हैं। इंडोनेशिया का न तो चीन के साथ कोई मूल संघर्ष है, न ही वह अमेरिका का पूर्व सहयोगी है और न ही वह आर्थिक रूप से चीन पर अधिक निर्भर है, इसलिए वह दक्षिण चीन सागर में ईमानदारी के साथ मध्यस्थता करने की इच्छा और नातूना द्वीपसमूह पर अपना दावा बरकरार रखने के बीच झूलता रहा है। लाओस में हुए 28वें तथा 29वें आसियान शिखर सम्मेलनों के दौरान आसियान के 49 वर्ष के इतिहास में दूसरी बार ऐसा मौका आया, जब वह सम्मेलन के बाद बयान जारी करने में असमर्थ हो सकता था। पहली बार 2012 में ऐसा हुआ था और उसका कारण दक्षिण चीन सागर के विषय में भाषा पर कंबोडिया का प्रतिरोध ही था।8 हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के ऐतिहासिक फैसले पर आसियान की मंद प्रतिक्रिया और उसके संयुक्त बयान में उसका कोई भी जिक्र नहीं होना दुनिया भर में सुर्खियों में आ गया और इससे आसियान की विश्वसनीयता तथा एकता पर सवाल खड़े हो गए।
आसियान के राष्ट्र प्रमुखों को चीन सरकार का न्योता
इसे संयोग कहें या न कहें, हेग निर्णय के बाद से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से इीक पहले तक म्यांमार, वियतनाम, फिलीपींस और मलेशिया द्वारा एक के बाद एक चीन के राजनयिक दौरे किए गए। म्यांमार में इस वर्ष मार्च में नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी (एनएलडी) सरकार के सत्ता में आने के बाद पहली बार अगस्त में वहां की राष्ट्रीय सलाहकार आंग सान सू ची की चीन यात्रा से यह सिलसिला शुरू हुआ और तभी से चीन आसियान देशों से बात करने और उन्हें रिझाने में लगा है। फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे ने 18 से 21 अक्टूबर की अपनी चीन यात्रा के दौरान अपने देश के सामरिक रुझान को अमेरिका के बजाय चीन के पक्ष में कर लिया, जो दक्षिण चीन सागर के मसले पर फिलीपींस के पक्ष में हेग अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले के बाद उत्पन्न हुए शत्रुता भरे माहौल में चीन के लिए बड़ी सफलता रही। इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर मनोनीत डॉनल्ड ट्रंप के इस संकल्प पर संशय किया गया है कि एशिया में अमेरिका की धुरी बनी रहेगी, लेकिन चीन ने आसियान देशों के प्रमुखों को न्योता दिया है और क्षेत्र में अपनी आर्थिक बढ़त का इस्तेमाल करने के लिए कहा है।
म्यांमार की राष्ट्रीय सलाहकार आंग सान सू ची ने प्रधानमंत्री ली केच्यांग के आमंत्रण पर 17 से 21 अगस्त के बीच चीन की यात्रा की। सू ची के प्रभाव को और म्यांमार में हो रहे राजनीतिक परिवर्तन के स्तर को कमतर मानने के बाद चीन सरकार ने सू ची के प्रति अपना रुख ठीक किया। सू ची को आमंत्रित कर चीन सरकार ने नेपीडॉ में पूर्ववर्ती सेना समर्थित सरकार के समय में बिगड़ गए चीन-म्यांमार संबंधों को सुधारने की कोशिश की है। दूसरी ओर सू ची जानती हैं कि अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे जातीय अल्पसंख्यक समुदायों के साथ 70 वर्ष से जारी गृह युद्ध समाप्त करने के लिए चीन का समर्थन आवश्यक है। म्यांमार के समृद्ध खनिज भंडारों और हिंद महासागर से उसकी निकटता ने उसमें चीन की भारी दिलचस्पी जगा दी है, जो उसे पश्चिमी एशिया से तेल एवं गैस आयात के लिए छोटा रास्ता लग रहा है, जिससे मलक्का में उसकी परेशानी भी कम हो जाएगी। चीन ने हाल ही में म्यांमार के तट से दक्षिणी चीन के भीतर तक तेल एवं गैस पाइपलाइन बना ली हैं और बंगाल की खाड़ी पर क्यॉकप्यू बंदरगाह बनाने का ठेका भी हासिल किया है।9 प्रतिद्वंद्वी जातीय समूहों तथा सरकार के बीच शांति वार्ता में सक्रिय भूमिका निभाकर चीन 3.6 अरब डॉलर की माइत्सोन बांध परियोजना को फिर शुरू करने की उम्मीद भी कर रहा है, जो परियोजना 2011 में ठप हो गई थी और दोनों देशों के बीच टकराव का प्रमुख कारण है।
वियतनाम के प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक ने भी चीन के प्रधानमंत्री ली केक्यांग के आमंत्रण पर 10 से 15 सितंबर तक चीन की यात्रा की। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर के आरंभ में हनोई गए थे, इसलिए प्रधानमंत्री फुक को मिले चीनी न्योते का महत्व और भी बढ़ जाता है। मोदी की वियतनाम यात्रा 15 वर्षों में भारत के किसी प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी और उसमें रक्षा खरीद के लिए भारत की ओर से 50 करोड़ डॉलर के ऋण की घोषणा की गई थी।10 वियतनाम ने दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक व्यापक क्षमताएं विकसित कर ली हैं, जिनमें आधुनिक किलो श्रेणी की पनडुब्बियों समेत सबसे बड़ी नौसेना और क्षेत्र में बेहद परिष्कृत प्रक्षेपास्त्र क्षमता शामिल है।11 दक्षिण चीन जानता है कि चीन सागर पर सबसे अधिक मुखरता के साथ दावा करने वाले आसियान सदस्य वियतनाम को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यात्रा के दौरान चीन और वियतनाम ने विश्वास बहाली के कई प्रयास आरंभ किए और बाद में संयुक्त बयान जारी किया तथा कई महत्वपूर्ण सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री फुक ने अपनी यात्रा के दौरान गुआंग्शी प्रांत के नानचिंग शहर में 13वीं चीन-आसियान एक्सपो तथा चीन-आसियान व्यापार एवं निवेश सम्मेलन में भी हिस्सा लिया।12
फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे ने राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बुलावे पर 18 से 21 अक्टूबर तक चीन की यात्रा की। हेग निर्णय के कारण चीन-फिलीपींस के रिश्तों में खटास के बावजूद चीन ने डुटर्टे को न्योता एकदम सटीक समय पर दिया। डुटर्टे का राष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल विवादों से घिरा रहा और अमेरिका ने नशे के खिलाफ उनकी लड़ाई की कड़ी आलोचना की, जिसमें कथित तौर पर नशे का सेवन करने वाले और उसे बेचने वाले 3,100 से अधिक लोग पुलिस तथा निगरानी दलों के द्वारा न्यायिक प्रक्रिया के बगैर ही मारे गए हैं।13अमेरिका-फिलीपींस सुरक्षा संधि तथा अमेरिका को फिलीपींस के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल करने की अनुमति देने वाले एवं संयुक्त अभियान का मौका देने वाले परिष्कृत रक्षा सहयोग समझौते एशिया में अमेरिका की उपस्थिति के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में अमेरिका पर उकसाऊ टिप्पणियां करने के बाद डुटर्टे ने पेइचिंग में अपने भाषण में अमेरिका के साथ सैन्य और आर्थिक “अलगाव” की घोषणा कर दी।14 डुटर्टे का रवैया पिछले राष्ट्रपति से एकदम उलट रहा है, जो अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर थे और चीन के खिलाफ मामले को मध्यस्थता तक ले गए थे। बाद में मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अपनी यात्रा के दौरान डुटर्टे ने चीन के साथ 13 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए और 24 अरब डॉलर के निवेश पक्के किए।15 उनकी यात्रा के बाद चीन सरकार ने फिलीपींस के मछुआरों को दक्षिण चीन सागर में विवादित स्कारबोरो के जल में लौटने की इजाजत भी दे दी।16
मलेशिया के प्रधानमंत्री दातुक सेरी नजीब रजाक ने राष्ट्रपति शी चिनफिंग के न्योते पर 31 अक्टूबर से 6 नवंबर तक चीन की यात्रा की। नजीब मलेशियाई अर्थव्यवस्था में और भी विकास चाहते हैं ताकि उनका प्रदर्शन उनके द्वारा देश के संचालन को वैधता प्रदान करे और 2018 में उनके दोबारा सत्ता में लौटने के अवसर बढ़ सकें। इसके लिए चीनी व्यापार एवं निवेश बहुत महत्वपूर्ण है। सरकारी विकास कोष 1 मलेशिया डेवलपमेंट बरहाद से धोखे से करोड़ों डॉलर निकाल लिए जाने के बाद उनकी छवि पर कलंक लगने और देश-विदेश से उनके इस्तीफे की मांग उठने के बाद यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार छह दिन की यात्रा में मलेशिया और चीन के बीच 34 अरब डॉलर के 14 समझौते हुए। मलेशिया ने तटवर्ती अभियान के लिए चीन से चार पोत केवल 10-10 करोड़ डॉलर में खरीदने के अपने पहले बड़े रक्षा सौदे को भी अंतिम रूप दिया। सामरिक घटनाओं के साथ ही 13 प्रतिशत कटौती के साथ केवल 3.6 अरब डॉलर का मलेशिया का रक्षा बजट भी चीन से खरीद का कारण हो सकता है।17 इसके अलावा कुआलालंपुर और सिंगापुर को जोड़ने वाली तीव्र गति की बहुचर्चित रेल परियोजना भी चीनियों को सौंपे जाने की संभावना जताई जा रही है, जिसकी लागत 15 अरब डॉलर है।18
निष्कर्ष
हाल के घटनाक्रम चीन के लिए जीत या अमेरिका के लिए नुकसान हों या न हों, वे महत्वपूर्ण तो हैं ही क्योंकि दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तार पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की झिड़की के कुछ महीनों के भीतर ही यह सब हुआ है। पश्चिम के उलट चीन सरकार मानवाधिकारों तथा लोकतंत्र पर आधारित सार्वभौमिक राजनीतिक आदर्शों और मूल्यों को खारिज कर चुकी है। आसियान की ही तरह इसने हस्तक्षेप नहीं किए जाने की बात कही है और व्यापार तथा निवेश से होने वाले लाभों पर केंद्रित राजनीतिक सर्वसम्मति को प्रोत्साहन दिया है।19 अपने हाल के संपर्क प्रयासों के जरिये चीन अमेरिका का सैन्य लाभ खत्म करने में और क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने में सफल रहा है। किंतु अमेरिका और चीन के साथ रिश्तों में एक साथ और समान दूरी वाला सुधार करने का आसियान का निर्णय चीन के उभार अथवा अमेरिका की शक्ति के बारे में अनिश्चितता के परिणाम से कुछ अधिक ही है। शीत युद्ध के काल के गठबंधन अभी तक चल रहे हैं, लेकिन आसियान नए गठबंधन बनाने के एकदम खिलाफ रहा है।20
क्षेत्रीय व्यापार प्रवाह तथा कूटनीतिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ ही आसियान सरकारों को अतीत की तुलना में एक दूसरे के साथ अधिक संवेदनशीलता विकसित करनी पड़ी है क्योंकि उनकी जनता के बीच अधिक आईटी संपर्क स्थापित हो गया है। इसके साथ पड़ोस में भारत तथा जापान जैसी एशियाई शक्तियों का प्रभाव बढ़ने के कारण आसियान चीन के साथ कठोरता से संतुलन साधने या उसका पिछलग्गू बनने से बच गया है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति और जापान के गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए विस्तृत साझेदारी एवं मुक्त भारत-प्रशांत रणनीति जैसे कदमों ने मूल्यवान साझेदारियां प्रदान कर चीन के संबंध में आसियान की समुद्री एवं निवेश चिंताएं दूर करने का प्रयास किया है और इस प्रकार यह सुनिश्चित हुआ है कि निकट भविष्य में भी आसियान देश खतरे से सर्वांगीण बचाव को विदेश नीति का अंग बनाए रखेंगे।
संदर्भ
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