नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली ने कार्यालय ग्रहण करने के उपरांत (19 फरवरी से 24 फरवरी 2016) अपनी प्रथम भारत की यात्रा आरम्भ की। प्रधानमंत्री ओली की यह पहली विदेश यात्रा थी। अपना पद भार संभालने के उपरांत और नेपाल के प्रधानमंत्री के पांच वर्ष के अंतराल के पश्चात् भारत का किया जाने वाला यह विशेष दौरा था ।
पिछला दौरा तत्कालीन प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराय ने 2011 में किया था और यह दौरा इस लिये भी महत्वपूर्ण था क्योंकि नेपाल के प्रधानमंत्री ने अपने देश में नया संविधान सितम्बर 2015 में लागू होने के बाद किया था। भारत पहुंचने पर उनका राष्ट्रपति भवन में परम्परागत स्वागत सत्कार किया गया जहां पर उन्हें गार्ड आफ ऑनर भी दिया गया। इसके पश्चात उन्होनें भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने उनसे मुलाकात की। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ओली ने अनेक भेंट वार्ताएं की जिनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मुलाकात प्रमुख थी। इन सबमें आवश्यक था भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से द्विपक्षीय मुद्दों पर गहरी बातचीत। प्रधानमंत्री ओली के साथ मंत्रियों, नौकरशाहों और व्यापारियों का एक बड़ा समूह था । इस दौरे का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच आयी गलतफहमियों को दूर करना तथा रिश्तों को मजबूत करने का प्रयास था। यह यात्रा दोनों देशों के बीच चली आ रही गलतफहमियों, तनावों तथा राजनीतिक एवं कूटनीतिक आरोपों एवं, प्रत्यारोपों के चलते तथा नेपाल में सितम्बर 2015 में नया संविधान लागू होने के बाद हुई। नेपाल के साथ चले आ रहे इस प्रकार के तनाव एवं गलतफहमियों को दूर करने का श्रेय भारत के प्रधानमंत्री मोदीजी को जाता है जिन्होंने 2016 के नववर्ष के उपलक्ष्य पर नेपाल के प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए भारत आने का निमंत्रण दिया था। नेपाली प्रधानमंत्री के दौरे के विषय में मीडिया में चर्चा थी कि संभवतः वे चीन का दौरा भारत के दौरे से पहले करेंगे जैसा कि पूर्व पीवीसीएन (एम) के नेता पुष्पकमल बहल ने किया था।
इस यात्रा के दौरान बहुत से जनसंवादों में श्री ओली ने कहा कि वे दोनों देशों के बीच आयी गलतफहमियों को दूर करने एवं रिश्तों को पुनः दोस्ताना एवं मधुर बनाने के लिए आये हैं। 24 फरवरी को वापस लौटने पर ओली ने नेपाल के त्रिभुवन हवाई अड्डे पर मीडिया को सूचित किया कि उनकी भारत यात्रा ने रिश्तों के बीच जमीबर्फ पिघला दी है और दोबारा से दोनों देशों के बीच दोस्ताना तथा मधुर संबंध स्थापित हो गये हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसा नहीं होने दिया जायेगा जिससे आपसी सम्बन्धों में कड़वाहट आये। अपने दौरे के समय उन्होंने नेपाली दूतावास में 21 फरवरी को नेपाली एवं भारतीय मीडिया को सम्बोधित करते हुए दावा किया कि उन्होंने अपने दौरे के उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूर्ण किया है और वे इससे अति संतुष्ट हैं। 22 फरवरी को नई दिल्ली में एक वार्तालाप के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को नेपाल के नये संविधान को मान्यता देने और इसे नेपाली जनता की बड़ी उपलब्धि करार देने के लिए हार्दिक धन्यवाद दिया। उनके द्वारा प्रधानमंत्री मोदी ने इसे नेपाली जनता के संघर्ष की जीत बताया था।
दोनों नेताओं की सांझा प्रेस की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने रिश्तों में आयी कड़वाहट तथा दोनों देशों के सड़क मार्ग अवरूद्ध होने की कोई चर्चा नहीं की परन्तु नेपाली प्रधानमंत्री ने इस पर कहा कि दोनों के बीच आये मुद्दों के कारण ऐसा नहीं होना चाहिए था जिसके कारण जनता की रोजमर्रा की जिन्दगी बुरी तरह से प्रभावित हो। वे वह इसके द्वारा मधेसियों द्वारा भारत नेपाल के बीच सड़क मार्ग को रोके जाने की तरफ इशारा कर रहे थे जिसके कारण नेपाल में रोजाना की खाने पीने की सामग्री की गम्भीर समस्या हो गयी थी। नेपाल ने इसका दोष भारत को दिया था। उन्होंने भारत को विश्वास दिलाते हुए संकेत दिया कि वे अपने देश की भूमि को भारत के विरूद्ध किसी प्रकार की हिंसक व आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देंगे। इसके साथ साथ उन्होंने कहा कि नेपाल अपने पड़ोस में विश्व की तेजी से उभरती अर्थ व्यवस्थाओं का लाभ भी उठाना चाहते हैं परन्तु इसके लिए वे चीन या भारत कार्ड का इस्तेमाल नहीं करेंगे जैसाकि सुनने में आता है कि नेपाल अपने फायदों के लिए एक देश का इस्तेमाल दूसरे देश के साथ करता है। इस विचार का कोई आधार नहीं है तथा भविष्य में ऐसा कभी नहीं होने दिया जायेगा।
अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ओली ने 21 फरवरी को उत्तराखंड के टेहरी हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया तथा 23 फरवरी को गुजरात के भुज नगर भी गये। वे भुज में भूकंप के बाद किये गये पुर्नवास एवं पुर्ननिर्माण को देखकर बहुत प्रभावित हुए। इसको देखकर उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष भूकंप के कारण नेपाल में हुए विनाश को वे उसी प्रकार ठीक कर सकेंगे जैसे कि भुज में हुआ है। वहां पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि भुज का पुर्ननिर्माण, भुज की जनता की एकता एवं मजबूत इच्छाशक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। तत्पश्चात् वे अपनी पत्नी श्रीमती राधिका साक्य, मंत्रीमंडल के सहयोगियों एवं भारत में नेपाल के राजदूत तथा नेपाली उद्यमियों के साथ मुम्बई के लिए रवाना हुए। मुम्बई में उनके दल ने हिन्दुस्तान लीवर के मुख्यालय में उसके उत्पाद एवं ग्लोबल मार्केटिंग के बारे में जानकारी ली। हिन्दुस्तान लीवर के कर्मचारियों को विश्वास दिलाते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार की नीतियां देश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देंगी और नेपाल यूनीलीवर इसका बहुत बढि़या उदाहरण है कि किस प्रकार नेपाल में यूनीलीवर का विकास हुआ तथा इसके साथ वहां पर घरेलू क्षमता का भी विकास हुआ। इसके साथ इसके द्वारा सीधे और परोक्ष रोजगार के अवसर नेपाल के युवाओं को प्राप्त हुए। यूनीलीवर नेपाल में 1992 में स्थापित हुई, यह नेपाल में सफलतापूर्वक अपना कामकाज कर रही है।
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अलग अलग समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने इन हस्ताक्षरों के समय उपस्थित रहकर इनकी गरिमा बढ़ायी। इन समझौतों के साथ दो औपचारिक पत्रों का भी आदान प्रदान हुआ जिनमें व्यापक स्तर पर द्विपक्षीय मुद्दों जैसे पावर, एक दूसरे के देश में आने जाने की सुविधा, सांस्कृतिक आदान प्रदान, सड़क निर्माण, रेल यातायात और भूकंप के बाद नेपाल में पुर्ननिर्माण का पूरा ब्यौरा था। इसके साथ दोनों देशों के प्रसिद्ध नागरिकों का एक समूह गठित किया गया। ये समझौते नये नहीं थे बल्कि ये पुराने वायदों को पूरा करने के लिए किये गये थे। इस दौरे की मुख्य उपलब्धि थी मुजफ्फरपुर-दालकेवर पावर ट्रांसमीशन लाइन का दोनो प्रधानमंत्रियों के द्वारा सम्मिलित उद्घाटन। इस पावर लाइन के द्वारा नेपाल के देहात में बिजली उपलब्ध करायी जायेगी।
प्रधानमंत्री ओली 24 फरवरी को अपने देश लौटे परन्तु इस मौके पर परम्परा के अनुसार कोई साझा बयान दोनों देशों की तरफ से जारी नहीं हुआ। सम्भवतः हो सकता है कि नये संविधान के कुछ प्रावधानों पर भारत की अलग राय होने के कारण ऐसा नहीं हुआ हो। यह एक बहस का मुद्दा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नये संविधान को नेपाल की जनता की बड़ी उपलब्धि तो बताया परन्तु इसकी सफलता के लिए उन्होंने नेपाल की जनता की आम सहमति के लिए वहां के नेताओं को आह्वान भी किया। उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि मुझे विश्वास है कि आप नेपाली नेता राजनैतिक संवाद और आम सहमति से नेपाल के हर वर्ग को साथ लेकर चलेंगे। साझा बयान जारी ना होने का बचाव करते हुए भारत में नेपाल के राजदूत ने कहा कि भारतीय पक्ष ने उन्हें प्रायः सूचित किया था कि भारत ने ऐसे अवसरों पर साझा बयान जारी करने की परम्परा बंद कर दी है।
संक्षेप में नेपाली प्रधानमंत्री का यह दौरा दोनों देशों के बीच आयी विश्वास की कमी, गलतफहमी जिसके कारण दोनों देशों के सम्बंधों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था को काफी हद तक दूर करने में उपयोगी साबित होगा। इसका सकारात्मक प्रभाव तुरंत दोनों देशों के बीच व्यापार एवं जरूरी सामान की बहाली के रूप में देखने को मिला। हालांकि दोनों देशों के बीच 6 महीने से चली आ रही कड़वाहट तथा नेपाल के ऊंचे पदों पर आसीन नेताओं द्वारा भारत विरोधी बयानों के घावों को भरने में अभी समय लगेगा। इसी प्रकार नेपाल के सामाजिक तानाबाने में आयी दरार को और भी गम्भीर बना दिया है 60 मधेसी प्रदर्शनकारियों की मृत्यु ने। वहां की मधेसी जनता संविधान में किये संशोधनों से इसलिए संतुष्ट नहीं है क्योंकि ये संशोधन उनके सब मुद्दों को हल नहीं कर रहे हैं। मधेसी दोबारा से संघर्ष एवं प्रदर्शन की सोच रहे हैं अगर उनके प्रति होने वाला भेदभाव और उनके मुद्दों का हल नहीं निकलता है तो। इस समय मधेसी जनता को नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर वहां के भूतपूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर दुवऊा के रूप में आशा की किरण नजर आ रही है। यहां पर मधेसियों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी समस्याओं का राजनैतिक तरीके से हल इस प्रकार के असंवैधानिक तरीके को ना अपनाए। इसके साथ नेपाली सरकार को भी देश की जनता के हर वर्ग के प्रति संवेदनशील, तथा सच्चे हृदय से सर्व हित सर्व जन कल्याण की योजनाएं बनानी चाहिए क्योंकि नेपाल की जनता काफी समय से गरीबी एवं भुखमरी से जूझ रही है इसलिए सरकार का ध्यान सुशासन पर होना चाहिए जिससे देश का विकास एवं समृद्धि हो।
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