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नात्मप्रियं प्रियं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥ (अर्थशास्त्र 1/19) (अर्थात्- राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है।) एक श्रेष्ठ राजा वही होता है, जो अपनी प्रजा के अंतिम व्यक्ति को भी खुशियां देने का हर संभव...
August 21 , 2021