चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) पिछले 18 महीनों से अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध को लेकर बढ़ते दबाव में रहे हैं। इसलिए भी कि वाशिंगटन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) को बतौर सबूत के रूप में पेश करते हुए चीन के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय वातावरण बनाने का प्रयास कर रहा है। बीआरआइ शी की निजी पहल पर शुरू की गई एक महत्त्वकांक्षी परियोजना है। इसके साथ ही, चीन के हुआवे की तरफ से यूरोप और दुनिया के देशों में 5जी नेटवर्क फैलाने के प्रयास में भी अड़ंगा लगा रहा है। इसके अलावा, हांगकांग में परेशान करने वाले घटनाक्रम भी हैं। चीन के आधिकारिक मीडिया का आरोप है कि यह दुश्मन विदेशी ताकतों का किया-धरा है।
घरेलू मोर्चे पर लोगों का जीवन-यापन महंगा होता जा रहा है और चीनी अर्थव्यवस्था की धीमी गति से बेरोजगारी में बढ़ोतरी हुई है और इससे श्रमिकों में असंतोष बढ़ा है। तो अकादमिकों और छात्रों में भी असंतोष कोई कम नहीं है, जो मार्च, 2019 में आयोजित नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के समय से ही निजी खतरे उठा कर भी शी जिनपिंग की नीतियों के विरुद्ध खुलकर बोल रहे हैं। इसी तरह से, पार्टी के पूर्व सीनियर कार्यकर्ताओं, चाइना पीपुल्स पॉलिटिकल कन्जर्वेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीपीसीसी) के सदस्य और कुछ थोड़े से ‘छोटे राजा’ में असामान्य असंतोष यह दिखा रहा है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की टोली में सामंजस्य भुरभुरा गया है। इन सबके बावजूद, शी जिनपिंग ने अपनी आंतरिक नीतियों को मजबूत करने या अपनी हठधर्मिता जाहिर करने और कभी-कभार आक्रमणकारी विदेश नीति से बाज नहीं आ रहे।
हालिया घटनाक्रम तो यही बताते हैं कि चीन अपनी मौजूदा हठधर्मी नीतियां जारी ही रखेगा। दक्षिण चीन सागर, जिसके 3 मिलियन वर्ग किलोमीटर पर चीन अपना दावा ठोकता है, उसके तमाम प्रयासों का केंद्र बना हुआ है। शी के पदभार ग्रहण करने के समय से ही चीन इस द्वीप और दक्षिण चीन सागर, जिस पर 6 देशों का दावा है, का सैन्यीकरण करने में लगा हुआ है और उस पर अपना हक जताता है। इस अभियान के तहत, चीन ने उनमें से 7 पर अपनी सेना और मिसाइलें तैनात कर दी हैं। यद्यपि शी जिनपिंग ने 2015 में इनका सैन्यीकरण नहीं करने का वचन दिया था, लेकिन वह अपने आचरणों में इसे लगातार दोहराता रहा है। इस बारे में, चीन के हालिया दो प्रकाशनों में भी इसका खुलासा किया गया है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक अग्रणी सैद्धांतिक पाक्षिक जर्नल किउ शि ने 16 अप्रैल के अंक में एक आलेख छापा था। इसे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) के वाइस एडमिरल लियू शिजॉन्ग और PLAN के पॉलिटिकल कमिसार वाइस एडमिरल किन शेंगकोइ ने संयुक्त रूप से प्लान की 70वीं वषर्गांठ के अवसर पर लिखा था। इस आलेख में विगत सालों में PLAN की उपलब्धियों की समीक्षा करते हुए यह खुलासा किया गया था कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग दक्षिणी चीन सागर द्वीप के कुछ खास हिस्सों और भित्तियों में ‘दृढ़ इच्छा शक्ति’ के साथ कुछ निर्माण परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिसने समुद्र में सैन्य संघर्ष की रणनीतिक स्थिति को एकदम से बदल दिया है और चीन की सम्प्रभुता के दायरे में आने वाले भूभाग और जल के एक-एक इंच पर लड़ने की मजबूत प्रतिबद्धताओं से लैस कर दिया है।’ इसका अवलोकन करते हुए चीन ने 23 अप्रैल, 2018 को योंगशु रिफ, नांशा द्वीप में संरचनागत दायरे को रेखांकित करते हुए एक स्मारक का अनावरण भी किया था। आलेख में कहा गया है कि इस अवसर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जिबूती में चीन का पहला समुद्री सैन्य अड़्डा स्थापित करने के अपने निर्णय की घोषणा की थी।
इसी तरह, चीन और वियतनाम के बीच मौजूदा गतिरोध यह जाहिर करता है कि दबाव में होने के बावजूद चीन दक्षिण चीन सागर में अपने प्रभुत्व को स्थापित करने की महत्त्वाकांक्षा से बाज आने के लिए तैयार नहीं है। यह तब है, जबकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता इस द्वीप के दौरे पर आते रहे हैं और भाईचारे की बात भी करते रहे हैं, जहां चीन वियतनाम के दावे पर सवाल उठाता रहा है। इसकी पुख्ता रिपोर्ट है कि चीन का सर्वेक्षक जहाज ‘हयंग दीझी 8’ ने 12 जुलाई से शुरू कर अगले 10 दिनों तक वियतनाम के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का भूकम्पीय सर्वेक्षण किया था। इसके साथ चीन के तीन रक्षक जहाज तैनात थे, जिनमें हेलीकॉप्टर से लैस 12,000 टन का कॉस्ट गार्ड कटर (छोटा जहाज) और 2,200 टन का तटरक्षक जहाज भी शामिल था। हालांकि किसी भी देश ने आधिकारिक रूप से चीन-वियतनाम के बीच गतिरोध की पुष्टि नहीं की, लेकिन वियतनाम के सोशल मीडिया ने अपनी सरकार के चीन के आगे घुटने टेक देने के लिए जमकर लताड़ लगाई थी।
इसके अलावा, चीन ने जापान के साथ भी भूभाग के दावे पर जोर देना नहीं छोड़ा है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एअर फोर्स (PLAAF) के विमानों ने जापान के मियाको जलडमरूमध्य और बाशी चैनल की वायु सीमा का बारहां उल्लंघन, अतिक्रमण किया है। हाल ही में, 23 जुलाई को लम्बी दूरी तक मार करने वाले चीन के दो PLAAF शियान एच-6 के वमवर्षक विमान और रूसी वायु सेना के दो टुपोलेव टीयू 95 एमएस युद्धक वमवर्षक विमानों ने पहली बार एक साथ दक्षिण कोरिया के एअर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (एडीआइजेड) डोकडो टापू का उल्लंघन किया था। इसमें दिलचस्प बात यह है कि डोकडो को जापान ताकेशिमा कहता है और रूस उस पर दावा ठोकता है।
ठीक इसी समय चीन ने ताइवान पर ‘1992 की सहमति’ को मानने के लिए राजनयिक, राजनीति और सैन्य दबाव लगातार बढ़ा दिया है। PLAAF के विमान ताइवान के आकाश और जलडमरूमध्य पर उड़ान भरे हैं तो चीन के विमान वाहक जलपोत समेत PLAN युद्धक जलयान अपनी ताकत दिखाने के लिए, ताइवान के जलडमरूमध्य में तैरते रहे हैं। चीन ने, दक्षिण चीन सागर के विवादित पैरासेल एवं स्प्राटली द्वीप समूहों के 22,000 वर्ग किलोमीटर जलक्षेत्र में 29 जून से लेकर 3 जुलाई के बीच, जहाज-ध्वंसक, मध्य दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों डीएफ-21 की श्रृंखला का परीक्षण किया है। इसे देखते हुए मालूम होता है कि ताइवान की मदद में अमेरिका के आगे आने की स्थिति में चीन अपनी जवाबी सैन्य क्षमता की थाह लेना चाहता है। यह आकलन अमेरिकी नौ सेना के जलपोतों के विरुद्ध PLAN द्वारा पहले से गंभीर स्थिति को और विध्वंसक बनाने के उदाहरणों की तरफ ले जाता है।
इससे अलग और अभी हाल ही में, अमेरिका के साथ गतिरोध के बीच 24 जुलाई, 2019 के बीच चीन के रक्षा मंत्रालय ने ‘नये युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा’ शीषर्क से एक श्वेत पत्र जारी किया था, जिसमें भविष्य के इरादों को स्पष्टता से समाहित किया गया था। इसमें अपने आपको ‘‘एकमात्र ऐसा बड़ा देश जिसे अभी पूरी तरह से पुन: एकीकृत होने वाला और जटिल परिधीय सुरक्षा वातावरण वाले देशों में एक’’ बताया है। इसमें कहा गया है,‘‘चीन की राष्ट्रीय सम्प्रभुता की सुरक्षा, भूभागीय अखंडता, समुद्रीय अधिकारों और हितों पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।’’ यह आकलन कि चीन ‘‘एकमात्र ऐसा देश है, जिसे सम्पूर्णता में फिर से एकीकृत होना है’’, स्पष्टत: ‘चीनी स्वप्न’ का संकेत देता है। यह चीन की दीर्घावधि की भविष्य-योजनाओं तथा सीमा एवं भू भाग के बाकी विवादों के समाधान की नीति को भी जाहिर करता है। यह सीधे तौर पर भारत के लिए प्रासंगिक है, जिसके साथ चीन के अन्य पड़ोसी देशों जैसे ताइवान, जापान और वियतनाम की तरह ही भूभागीय विवाद है।
इसी पृष्ठभूमि में चीन की सेनाओं का भारत-चीन के बीच वास्तविक सीमा रेखा (एलएसी) के पार घुसपैठ को देखने की आवश्यकता है। और जैसा कि श्वेत पत्र में स्पष्टता से कहा गया कि यह चीन की ‘सम्पूर्णता’ में देश को एकीकृत करने की महत्त्वाकांक्षा का हिस्सा है। इस रक्षा श्वेत पत्र में डोकलाम में लम्बे समय तक चले विवाद के बारे में इस असमाप्त काम बताया गया है। अभी-अभी, दलाई लामा के जन्मदिवस पर लद्दाख के डमचक में चीनी सेना का ‘प्रदर्शन’ के बारे में यही कहा जा सकता है। इस मौके पर दलाई लामा के मसले से सीमा विवाद को पहली बार जोड़ते हुए भारत-चीन सीमा पर चीनी कार्रवाई बीजिंग की नीति में बदलाव का संकेत देती है। यह आने वाले दिनों में दलाई लामा और केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के मसले को लेकर भारत पर पुरजोर दबाव बढ़ाने का पूर्व संकेत है। यह काम निश्चित रूप से तब होगा, जब 15वें दलाई लामा परिदृश्य में नहीं रहेंगे।
चीन की ये कार्रवाइयां और अमेरिका प्रस्तावित संधि के मसौदे को चीन के उप प्रधानमंत्री लियू हे द्वारा मई के मध्य में खारिज कर दिया जाना, यह दिखाता है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और सीसीपी केंद्रीय कमेटी अमेरिका के साथ वैसी संधि नहीं करना चाहते हैं, जिससे उनके मुताबिक राष्ट्रीय हितों पर चोट पड़ती है। इसके अलावा, शी ने प्रकारान्तर से यह तय कर लिया है कि वह चीन के ‘पुन:एकीकरण’ की अपनी महत्त्वाकांक्षा पर आगे भी जोर देते रहेंगे, खास कर जबकि बीजिंग को यह प्रतीत हो रहा है कि जिन देशों को चीन से दिक्कत है, वे अमेरिका के खास बने हुए हैं। शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने स्पष्टत: ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल को खत्म होने तक इंतजार करना तय किया है-हालांकि ट्रंप दूसरे कार्यकाल के लिए भी आ सकते हैं।
(लेखक भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय में एडिशनल सेक्रेटरी रहे हैं और सम्प्रति वह सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रेटेजी के प्रेसिडेंट हैं)
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