नेपाल की वाम सरकार पर चीन का दबाव
Dr Rishi Gupta
चीनी दबाव

नेपाल में हाल ही में वाम गठबंधन की सरकार के बनते ही पड़ोसी मुल्क चीन ने नेपाल में अपनी सरगर्मियां तेज़ कर दी हैं। सरकार बनने के कुछ ही घंटों में काठमांडू स्थित चीनी दूतावास ने बधाई सन्देश जारी किया और उसके दुसरे दिन माओ निंग, चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने प्रधामंत्री प्रचंड को बधाई देते हुए, चीन और नेपाल के बीच सांस्कृतिक संबंधों की बात कही। इन सभी शिष्टाचार संदेशों के बीच चीन ने नेपाल को पिछले पांच सालों से अटके 'बेल्ट और रोड इनिशिएटिव' की भी याद दिलाई जिस पर नेपाल ने चीन के साथ 2017 में करार किया था। हालाँकि पिछली सरकार ने चीन को यह साफ़ कर दिया था की नेपाल चीन से अनुदान की अपेक्षा रखता है न कि भारी ब्याज वाले अंतराष्ट्रीय कर्ज की।

पिछले पांच वर्षों में चीन ने नेपाल में हर तरह कि राजनीतिक समीकरणों को बिठाने कि कोशिश कि है ताकि 'बेल्ट और रोड इनिशिएटिव' कुछ आगे बढ़ सके जिसमें वह पूरी तरह विफल रहा है। नेपाल के लिए श्री लंका एक उदाहरण रहा है जहाँ पर चीन ने बेल्ट और रोड इनिशिएटिव के तहत बनाये गए हम्बनटोटा बंदरगाह को पूरी तरह से 99 वर्षों कि लिए कब्जे में कर लिया है। ज्ञात है कि 2017 में समझौते के समय नेपाल में नेपाली कांग्रेस और माओवादी गठबंधन वाली सरकार थी जिसमें नेपाली कांग्रेस के विरोध के बावजूद माओवादी पार्टी के प्रमुख और मौजूदा प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने सरकार को बेल्ट और रोड इनिशिएटिव समझौते की स्वीकारोत्ति के लिए सरकार को मजबूर किया था। ऐसे में जब वाम गठबंधन फिर से सरकार बनाने में सफल रहा है, चीन हर तरह से नेपाल को प्रभावित करने का प्रयास करेगा फिर चाहे नेपाल की विदेश नीति का मामला हो या घरेलु समीकरणों का। चूंकि, वाम गंठबंधन हमेशा से चीन का निकटतम माना गया है, वह पिछले वर्षों में हुए कई समझौते को मजबूत करने के राजनयिक प्रयासों में लग गया है।

चीन की पहलें

नेपाल में वाम गठबंधन सरकार के बनते ही चीन ने अपने नए राजदूत चन सांग को भी नेपाल भेज दिया है। ज्ञात है, चीन की पिछली राजदूत, हो यांकी को उनकी समयावधि पूरी होने के एक महीने पहले ही चीन ने वापस बुला लिया था। इस पर कयास यह लगाए जा रहे थे की देउबा सरकार की चीन को लगातार दी जाने वाली हिदायत, हो यांकी की राजनयिक कमजोरी का कारण बन चुका था। ऐसे में चन सांग के नेपाल आते ही चीन ने तीन बातों पर ख़ास ध्यान दिया है।

पहला, चीन चाहता है की राष्ट्रपति सी जिनपिंग की 2019 में हुई नेपाल यात्रा के दौरान "विकास और समृद्धि के लिए सदा-स्थायी मित्रता की विशेषता वाले सहयोग की रणनीतिक साझेदारी" को आगे बढ़ाया जा सके। यह समझौता पिछले समझौते "चीन-नेपाल सहयोग की व्यापक साझेदारी जिसमें चिरस्थायी मित्रता है" का एक नया रूप था जिसमें सी जिनपिंग के 2019 दौरे के दौरान "स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप" जोड़कर नया स्वरुप दिया गया था। नेपाल के साथ स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप के अंतर्गत चीन सैन्य स्तर पर साझेदारी को महत्व देगा जिसकी शुरुआत 2017 और 2018 में हुए दो "सागरमाथा संयुक्त सेना अभ्यासों" से हो चुकी है। हालंकि पिछली देउबा सरकार ने चीन के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यासों को आगे नहीं बढ़ाया था।

दूसरा, चीन "ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव" में नेपाल की हिस्सेदारी को सामरिक दृस्टि से देख रहा है। वर्ष 2022 में राष्ट्रपति जिनपिंग ने बोआओ फोरम एशिया की वार्षिक बैठक में इस इनिशिएटिव की मुख्य छः प्रतिबद्धताओं पर ध्यान दिया था जिनमें "सामान्य, व्यापक, सहकारी और सतत सुरक्षा की दृष्टि के प्रति प्रतिबद्ध रहना" और "सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध रहना" शामिल था। ऐसे में नेपाल का इस पहल में शामिल होने का मतलब है कि चीन, नेपाल-भारत की बीच चल रहे सीमा विवाद में अपनी बात चलाना चाहेगा। यह बात चीनी राजदूत की 08 जनवरी की प्रेस विज्ञप्ति में साफ़ दिखती है जहाँ चीन ने "नेपाल की संप्रभुता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा करने में नेपाल का दृढ़ता से समर्थन" की बात कही है।

तीसरा, चीन "ट्रांस-हिमालयन कनेक्टिविटी कॉरिडोर" को गंभीरता से ले रहा है। इस पहल का समझौता 2017 में "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव" के तहत हो चुका है जिसमें चीन तिब्बत को काठमांडू से रेलवे और सड़क के माध्यम से सीधे जोड़ने की बात कह रहा है। यह कॉरिडोर विश्व के सबसे ऊँची हिमालयन पहाड़ियों को पार करके बनेगा जो अभियांत्रिकी की दृष्टि से कठिन और लागत में ज्यादा है। नेपाल के पास सबसे बड़ा सवाल यह है की इस पहल का खर्च कौन व्यय करेगा? लेकिन जिस हिसाब से चीन इस पहल पर अड़ा है, आने वाले वर्षों में वह नेपाल की वाम गठबंधन सरकार को चीनी लोन लेने के लिए मजबूर करने का भरसक प्रयास करेगा। सामरिक और व्यापार की दृष्टि से यह कॉरिडोर चीन के एक मजबूत कड़ी साबित होगा। मौजूदा समय में नेपाल-चीन व्यापार भूमि मार्ग से दो रास्तों से होता है जो 2015 में आये भूकंप और कोविड के कारण बंद थे। हालांकि वाम सरकार के बनते ही चीन ने रसुआगढ़ी मार्ग को सीमित व्यापार के लिए जनवरी 2023 में खोल दिया है।

भारत के खिलाफ झूठी बयानबाजी

काठमांडू पोस्ट के अनुसार सत्तारूढ़ गठबंधन ने 10 जनवरी को विश्वास मत के एक दिन पहले पहले एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम जारी किया जिसमें कथित "भारत द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों को वापस लाने के लिए एक प्रभावी भूमिका निभाने का वादा किया है"। पिछली वाम सरकार ने पहले ही सीमा विवाद को एक ज्वलंत मुद्दा बनाया हुआ था जिसके चलते भारत-नेपाल संबंधों में ख़ास असर हुआ था। ऐसे में चीन के साथ दोस्ती और सीमा विवाद, वाम गठबंधन वाली सरकार के इरादों को साफ़ तौर से झलकाता है। नेपाल का एक अभिजात वर्ग भारत के खिलाफ पहले से ही सोशल मीडिया और प्रदर्शनों में भारत विरोधी नारे लगाता रहा है।

निष्कर्ष

चीन की ये बयानबाजियां भारत-नेपाल के सौहार्द को बिगाड़ने के लिए है जिसका नुक्सान भारत पहले भी देख चूका है। ऐसे में भारत को चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के आलावा भारत-नेपाल विकास संबंधों पर ध्यान देना होगा जिनमें निर्माण, पनबिजली, कनेक्टिविटी, शिक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं। भारत-नेपाल संबंधों में सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत एक मजबूत कड़ी है जिसकी बराबरी चीन आने वाले दशकों में भी नहीं कर पायेगा, जिन्हें भारत को और मजबूत करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।

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