मध्य एशिया में बसा किर्गिज़स्तान एक छोटा-सा गणराज्य है। यह सोवियत संघ के 1991 में ऐतिहासिक विघटन होने के बाद अपने स्वतंत्र अस्तित्व में आया। तब से ही यह लगातार राजनीतिक झंझावातों से गुजरता रहा है। इन सबके बावजूद किर्गिज़स्तान मध्य एशिया का एकमात्र ऐसा गणराज्य है, जिसकी शासन प्रणाली लोकतांत्रिक है। हालांकि यह देश राजनीतिक रूप से अस्थिर रहा है और यहां हुई दो प्रसिद्ध क्रांतियों के चलते तात्कालीन दो राष्ट्रपतियों को गद्दी तक छोड़नी पड़ी है। यहां अस्थिरता की बनी हुई चुनौती के दो खास कारक हैं। पहला, राजनीतिक अभिजनों और स्थानिक आबादी के बीच परवान चढ़ता जातीय स्तर पर विभाजन। और दूसरा, उत्तरी तथा दक्षिणी किर्गिज़स्तान के दरम्यान क्षेत्रीय विभाजन।
किर्गिज़स्तान के वर्तमान राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव दक्षिण किर्गिज़स्तान के ओश प्रांत से आते हैं जबकि उनके पूववर्ती राष्ट्रपति एटाबायेव उत्तरी किर्गिज़स्तान के चूई जिले से ताल्लुक रखते थे। हालांकि वे 2017 तक राजनीतिक रूप से सहयोगी थे, जब एटाबायेव ने किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति पद के लिए जेनेबकोव का समर्थन किया था। हालांकि सोरोनबाय जेनेबकोव ने सत्ता की बागडोर हाथ में आते ही एटाबायेव का खिलाफत करने लगे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों नेताओं के बीच मतभेद की खाई चौड़ी होती चली गई, जो किर्गीस्तान के हालिया सियासी संकट की असल वजह है।
हाल में, किर्गिज़स्तान गणराज्य में उस समय हिंसक झड़प हुई जब पूर्व राष्ट्रपति आल्माज्बेक एटाबायेव के समर्थक अपने नेता की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे। उनके समर्थकों और किर्गिज़ स्पेशल फोर्स के बीच दो दिनों तक चले खूनी संघर्ष के बाद आखिरकार 8 अगस्त 2019 को एटाबायेव को गिरफ्तार किया जा सका। इस हिंसक झड़प में एक पुलिस अफसर मारा गया और पूर्व राष्ट्रपति के 70 से ज्यादा समर्थक भी जख्मी हो गए।
इन सब की शुरुआत 7 अगस्त 2019 को उस समय हुई जब एटाबायेव बिशकेक के नजदीक स्थित अपने आवास के बाहर अपने समर्थकों का स्वागत कर रहे थे। इसी बीच, सुरक्षा बलों ने पूर्व राष्ट्रपति को गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन उनके समर्थकों ने ऐसा करने से रोक दिया। सुरक्षा बलों और एटाबायेव के समर्थकों की तरफ से गोलियां भी चलीं। गिरफ्तारी से बचने के बाद एटाबायेव ने अपने समर्थकों से आह्वान किया कि वे विशकेक नगर में विरोध प्रदर्शन करें। उन्होंने कहा,‘‘हम प्रदर्शन करेंगे। हम व्हाइट हाउस (किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति भवन) का घेराव करने जा रहे हैं और वहां बेमियादी धरना-प्रदर्शन करेंगे। सरकार को कोई बड़ी खुराफात करने से रोकने के लिए यह सब करने की आवश्यकता है।’’1
यह गौरतलब है कि आल्माज्बेक एटाबायेव 2011 से लेकर 2017 तक किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति रहे थे। उनका कार्यकाल 2017 में समाप्त होने के बाद उनके सहयोगी एवं पूर्व प्रधानमंत्री सोरोनबाय जेनेबकोव को किर्गिज़स्तान का नया राष्ट्रपति चुना गया था। इस वजह से, एटाबायेव को यह लगा कि एक सहयोगी के रूप में नये राष्ट्रपति जेनेबकोव अपनी सरकार के कार्यकाल में भी उन्हें एवं उनके वफादारों को वही सियासी रियायत देंगे, जो उन्हें सत्ता में रहते हासिल थी। लेकिन पूर्व राष्ट्रपति तब अचंभित रह गए जब राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव एक-एक कर उनके वफादारों को उनके पदों से बेदखल करना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई जब किर्गिज संसद ने एटाबायेव को मिले अधिकार को सीमित करने के पक्ष में वोटिंग की। किर्गिज सांसदों ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें एटाबायेव के शासनकाल में सत्ता का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था। इस प्रस्ताव के पारित होते ही पूर्व राष्ट्रपति के करीबी अधिकारियों की गिरफ्तारियां तेज हो गई क्योंकि उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव अपनी सत्ता की मजबूती चाहते हैं।2
इसके तत्काल बाद, किर्गिज के गृहमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति एटाबायेव के खिलाफ तीन सम्मन जारी किये, लेकिन उन्होंने उन सभी को खारिज कर दिया और जरूरी पूछताछ के लिए किर्गिज़ जांच एजेंसियों और सक्षम प्राधिकरण के सामने पेश नहीं हुए। दरअसल, एटाबायेव अपने खिलाफ दर्ज किये गए आपराधिक मामले में आरोपित के बजाय एक गवाह बतौर पेश होना चाहत थे। इसमें सफलता न मिलने पर किर्गिज़स्तानी सुरक्षाबलों की कड़ी निगरानी को धत्ता बताते हुए एटाबायेव अपने निजी विमान से रूसी हवाईअड्डे से उड़ान भर कर मास्को पहुंच गए ताकि वह राष्ट्रपति पुतिन से इस मामले में मदद ले सकें।3 लेकिन पेशी के लिए किर्गिज़ सरकार की तरफ से भेजे गए तीन-तीन सम्मन का ठुकराया जाना आखिरकार एटाबायेव की गिरफ्तारी की वजह बन गई। एटाबायेव ने अपने खिलाफ लगाये गए तमाम इल्जामात से इनकार किया और इन वाकयातों को एक पूर्व राष्ट्रपति को मिली छूटों में कटौती करने की मौजूदा सरकार की कोशिशें को गैरकानूनी करार दिया।
इस मामले में किर्गिज़स्तान के कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता पूर्व राष्ट्रपति एटाबायेव का समर्थन करते हैं। इनमें से एक कार्यकर्ता तोक्तयायम उम्मतलीवा ने एक समाचार चैनल से कहा कि एक पूर्व राष्ट्रपति से जुड़े मामले में पुलिस को इतनी सख्ती से पेश आने की कोई जरूरत ही नहीं थी। हालांकि एटाबायेव का संसद में कोई समर्थन नहीं मिला। मौजूदा राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव ने पुलिस और सुरक्षा बलों के विरुद्ध की गई उनकी हिंसा की निंदा की। उन्होंने संसद को सम्बोधन करने के दौरान कहा,‘‘पूर्व राष्ट्रपति एटाबायेव और उनके समर्थकों ने किर्गिज़ राष्ट्र के साथ गंभीर अपराध किया है। एटाबायेव को गिरफ्तार करने गए सुरक्षा बलों की कानून सम्मत कार्रवाई का प्रतिरोध कर और उनके विरुद्ध हथियारों का इस्तेमाल कर पूर्व राष्ट्रपति व उनके समर्थकों ने कानून का उल्लंघन किया है।’’ 4 अब पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी के बाद से उनके व समर्थकों एवं मौजूदा किर्गी सरकार के बीच यह सियासी दुश्मनी बढ़ती ही जा रही है। उनके समर्थक अब भी बड़ी संख्या में राजधानी विशकेक में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। हालांकि, एटाबायेव की गिरफ्तारी के बाद, किर्गिज़स्तानी सुरक्षा सेवाओं (जीकेएनबी) के चीफ ने यह कहा कि पूर्व राष्ट्रपति किर्गिज़स्तान की मौजूदा सरकार का तख्तापलट करना चाहते थे।5
किर्गिज़स्तान में मचे इस राजनीतिक घमासान में रूस की भूमिका अब तक अबूझ बनी हुई है। एटाबायेव से जुलाई 2019 में मास्को में हुई मुलाकात के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन के वक्तव्य से भी इस पर कोई रोशनी नहीं पड़ती है। अधिकारिक वक्तव्य के अनुसार, पुतिन ने कहा,‘‘इस मामले में मेरा पक्ष सबको पता है और मैंने अपनी राय से बेहतर तरीके से उन्हें बता भी दिया है। मैं विश्वास करता हूं कि किर्गिज़स्तान हमारा सहयोगी है, वह हमारा सबसे नजदीकी देश है; यह भी कि किर्गिज़स्तान पहले भी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर चुका है और कम से कम दो विद्रोह-विप्लव तो हाल ही में हुए थे। और मेरे विचार से किर्गिज़ लोगों की खातिर यह उठापठक अब रुक जाना चाहिए। इसलिए कि देश को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत है और सभी को मौजूदा राष्ट्रपति के पक्ष में एकजुट होना चाहिए और देश के विकास में उनकी मदद करनी चाहिए। खुद मेरी सरकार के किर्गिज़स्तान के साथ सहयोग की अनेक योजनाएं हैं और मुझे इन योजनाओं के क्रियान्वित होने में मुझे कोई संदेह नहीं है क्योंकि हम किर्गिज़ के मौजूदा नेताओं के साथ मिल कर उन पर काम कर रहे हैं। मध्य एशिया एकमात्र लोकतांत्रिक देश किर्गिज़स्तान में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता उसके स्वतंत्र अस्तित्व में आने के समय से ही चली आ रही है।’’6
किर्गिज़स्तान के 1991 में वजूद में आने के बाद से इसके दो राष्ट्रपतियों, अस्कर अयेव और कुर्मानबेक बाकियेव को बगावत (जिन्हें क्रमश: ट्यूलिप क्रांति और अप्रैल क्रांति कहा गया) के चलते सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। जातीय तनाव और गरीबी का बढ़ता स्तर देश के समक्ष कड़ी चुनौती बने हुए हैं। इसलिए, किर्गिज़स्तान के मौजूदा राष्ट्रपति के विरुद्ध एटाबायेव के समर्थकों के घनीभूत होते आक्रोशों को देखते हुए यह भय होता है कि देश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के दौर में न फंस जाए। इसलिए सरकार को भी विपक्ष के साथ तालमेल बैठाने की आवश्यकता है अन्यथा मौजूदा गतिरोध मध्य एशिया के इस देश को एक अन्य विप्लव के मुहाने पर ला देगा।
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