भारतीय सशस्त्र सेना का चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त करने का बहुतप्रतीक्षित निर्णय सरकार ने आखिरकार ले ही लिया है और यह स्वागत योग्य कदम है। निश्चित रूप से इस सुधार से विभिन्न सेवाओं (सेना, नौसेना और वायुसेना) के बीच बेहतर एकीकरण और तालमेल होगा तथा सैन्य बलों के सामर्थ्य विकास की कोशिशों का सबसे अच्छा नतीजा निकलेगा। इस पद पर आने वाले व्यक्ति की भूमिका एवं जिम्मेदारियां गंभीरता के साथ तय करना और उसे उच्चतर रक्षा संगठन एवं राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे में उचित स्थान पर बिठाना अगला महत्वपूर्ण काम होगा।
इस विषय पर 29 अगस्त, 2019 को वीआईएफ में एक चर्चा आयोजित की गई थी, जिसमें ये लोग शामिल हुए थेः-
निर्णय के क्रियान्वयन के लिए सिफारिशों की मुख्य बातें आगे के पैराग्राफ में दी गई हैं। ये सिफारिशें लिखते समय राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंत्रिसमूह की रिपोर्ट (2001) में की गई समग्र सिफारिशों पर समुचित ध्यान दिया गया है।
मंत्रिसमूह की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के ही अनुरूप सीडीएस चार सितारों वाला अधिकारी होना चाहिए, जिसका स्थान सेना प्रमुखों के बीच सबसे पहले होगा। यह पद सेना के तीनों अंगों के लिए खुला रहना चाहिए और किसी एक अंग का एकाधिकार नहीं होना चाहिए। एकीकृत रक्षा स्टाफ का मुख्यालय पिछले दो दशकों में पर्याप्त परिपक्व हो गया है और अब यह सीडीएस को सेना प्रमुखों की तरह पूरी तरह कामकाजी मंच मुहैया कराने की स्थिति में है।
काम की प्रकृति और समन्वय तथा सहमति निर्माण के लिए जरूरी कौशल को देखते हुए सीडीएस को तीनों सेनाओं के तीन सितारों वाले कमांडिंग इन चीफ स्तर के योग्य अधिकारियों के बीच से चन की गहरी प्रक्रिया के जरिये पहचाना चाहिए। पहले सीडीएस के लिए बेशक नहीं हो, लेकिन आगे के सीडीएस के लिए आईडीएस मुख्यालय में काम का अनुभव जरूरी शर्त होना चाहिए। चयन योग्यता के आधार पर हो, वरिष्ठता के आधार पर नहीं। किसी सेना प्रमुख (सेवारत या सेवानिवृत्त) का स्वतः सीडीएस बन जाना सही विकल्प नहीं है क्योंकि इसमें सेवाकाल कम बचा होता है और अचानक किसी एक सेवा से तीनों सेवाओं के समन्वय तक पहुंचने में समस्या होती है।
चुने गए अधिकारी को पूरे तीन वर्ष का कार्यकाल (यदि सेना प्रमुख सीडीएस बने तो कार्यकाल कम होगा) मिलना चाहिए और उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र भी सेना प्रमुखों की तुलना में अधिक होनी चाहिए ताकि शीर्ष पर स्थिरता बनी रहे। सैन्यकर्मियों तथा नागरिकों को नियुक्त किए जा रहे व्यक्ति की पेशेवर क्षमता और स्थिति के बारे में भरोसा दिलाने के लिए संसद की समिति ‘सुनवाई’ के जरिये यह देख सकती है कि नियुक्ति सही है अथवा नहीं। सरकार उचित स्तर पर एक समिति गठित कर सकती है, जो कुछ नाम छांटकर रक्षा मंत्री से उनकी सिफारिश करेगी।
रक्षा मंत्रालय पूरी क्षमता के साथ काम करे, इसलिए सीडीएस और रक्षा सचिव के संबंध बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। मंत्रिसमूह की रिपोर्ट (पैराग्राफ 6.26 और 6.27) में इस पर विस्तार से बात की गई है। रिपोर्ट कहती है कि सीडीएस ‘प्रधान सैन्य सलाहकार’ होंगे, लेकिन रक्षा मंत्री के ‘प्रधान रक्षा सलाहकार’ की जिम्मेदारी रक्षा सचिव निभाएंगे। वही मंत्रालय के भीतर सभी विभागों के कामकाज में तालमेल बिठाने के लिए जिम्मेदार होंगे तथा रक्षा मंत्रालय को आवंटित सरकारी रकम के खर्च पर संसद के प्रति जवाबदेह भी वही होंगे।
अब इसमें बदलाव आ गया है और अब कहना चाहिए कि “भारत की रक्षा की जिम्मेदारी रक्षा मंत्री की होगी रक्षा सचिव की नहीं।” इसलिए वरीयता क्रम में सेना प्रमुखों की ही तरह सीडीएस भी रक्षा सचिव से ऊपर होंगे, लेकिन दोनों क्रमशः सैन्य एवं असैन्य विभागों के प्रमुख होंगे, दोनों रक्षा मंत्री से सीधे मिल सकेंगे और अपने-अपने विषयों में रक्षा मंत्री को सलाह भी दे सकेंगे। आईडीएस मुख्यालय के साथ रक्षा सचिव का संपर्क वाइस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (वीसीडीएस) के जरिये होगा, जिसका जिम्मा फिलहाल चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी (सीआईएससी) के पास है। अभी यह काम सेना के अंगों के उपाध्यक्षों के जरिये होता है। सेना और मंत्रालय के बीच फाइल संभालने का जिम्मा एक ही हाथ में होना चाहिए। रक्षा सचिव जब अपने विचार बता दे तो उन्हें सीडीएस के जरिये रक्षा मंत्री के पास पहुंचाया जाना चाहिए।
सीडीएस से रक्षा नियोजन, आधुनिकीकरण और सैन्यबल के पुनर्गठन में गतिशील भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है। उसे ‘पांच सितारा दर्जा’ देने की बात भारत के संदर्भ में कोई अर्थ नहीं दिखता, लेकिन यह भी जरूरी है कि उसे महज ‘सम्मानित सीआईएससी’ बनाकर न छोड़ दिया जाए।
सीडीएस को जो भूमिकाएं दी जा सकती हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
हाल ही में गठित रक्षा योजना समिति (डीपीसी) का कामकाज मोटे तौर पर सीडीएस के हाथ में देना ही उचित होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले राजनीतिक निर्देशों को पेश करते हैं और सीडीएस उनके कामकाज को आगे बढ़ा सकते हैं और फैसलों तथा समन्वय का क्रियान्वयन भी सुनिश्चित कर सकते हैं।
इस समिति का नेतृत्व राजनीतिक निर्देश के अनुसार करने के लिए एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी उपलब्ध है तो समिति का दायरा बढ़ाने की संभावना भी हो सकती है और उसमें सीमा एवं आंतरिक सुरक्षा में जुटे गृह मंत्रालय के वे तत्व भी शामिल किए जा सकते हैं, जो सैन्य बलों के साथ मिलकर काम करते हैं। इसलिए यही उचित होगा कि सीडीएस को औपचारिक रूप से डीपीसी का सह-प्रमुख या डीपीसी का वरिष्ठ सदस्य माना जाए और सेना के तीनों अंगों के प्रमुख उसमें ‘स्थायी आमंत्रित सदस्य’ हों।
वाइस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (मौजूदा सीआईएससी) को सदस्य सचिव बने रहना चाहिए ताकि वह सुनिश्चित कर सकें कि आईडीएस मुख्यालय की प्रतिबद्धताओं पर काम हो रहा है। असैन्य पक्ष से रक्षा मंत्रालय में डीपीसी के निर्णयों का क्रियान्वयन रक्षा सचिव द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा।
सीडीएस को अन्य सुरक्षा ढांचों में भी रखना पड़ेगा ताकि उन सभी विभागों और संस्थाओं के बीच निर्बाध समन्वय हो सके, जिन पर भारत की समग्र राष्ट्रीय ताकत तैयार करने की जिम्मेदारी है। उन्हें अंतर-मंत्रालय ‘सामरिक नीति समूह’ का सदस्य बनाया जाना चाहिए। इस समूह के कामकाज का समन्वय कैबिनेट सचिव करते हैं और 2018 के उत्तरार्द्ध से ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) इसके अध्यक्ष हैं। सीडीएस को एनएसए की अध्यक्षता वाले परमाणु कमान प्राधिकरण की कार्यकारी परिषद में भी शामिल किया जाना चाहिए। उन्हें राजनीतिक परिषद में शामिल करने पर भी विचार किया जा सकता है। इस तरह सीडीएस रणनीतिक सैन्य कमान के कमांडिंग इन चीफ के जरिये परिषद के निर्णयों को लागू करने में शामिल हो सकेंगे।
सीडीएस के कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के बीच एक संस्थागत प्रक्रिया भी स्थापित करनी होगी चूंकि आईडीएस मुख्यालय, एनएससीएस और डीपीसी के बीच तालमेल भरे कामकाज से राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति एवं राष्ट्रीय रक्षा रणनीति बनाने तथा लागू करने के लिए मिलजुलकर काम होगा। एनएसए और सीडीएस के बीच करीबी कामकाजी रिश्ते से राष्ट्रीय सुरक्षा को बहुत लाभ मिलेगा।
रक्षा मंत्रालय के भीतर सीडीएस का सबसे अहम योगदान सशस्त्र सेनाओं के लिए क्षमता विकास की योजना बनाने में एवं रक्षा खरीद परिषद एवं उसकी फीडर समितियों (रक्षा खरीद बोर्ड, सेना पूंजीगत अधिग्रहण वर्गीकरण समिति और सेना पूंजीगत अधिग्रहण वर्गीकरण उच्चतर समिति) के जरिये अधिग्रहण प्रक्रिया को अमली जामा पहनाने में होगा। सीडीएस समूची राष्ट्रीय रक्षा रणनीति के निर्माण पर नजर रखेंगे और सेना के किसी अंग के भीतर अथवा अंगों के बीच खरीद में प्राथमिकता तय करेंगे। आईडीएस मुख्यालय में खरीद एवं वित्तीय योजना के लिए एक उपाध्यक्ष के अधीन संस्थागत ढांचा पहले से मौजूद है, इसलिए आवंटित बजट में परिचालन के लिहाज से खरीद की प्राथमिकता तय करने के लिए मुख्यालय ही सबसे उचित है। यह बजट भी अब सीडीएस के जरिये ही आवंटित हो सकता है।
इस अहम पहलू पर ध्यान देना चाहिए कि शुरुआती चरण में क्षमता विकास पर ‘एकल नियंत्रण’ और रणनीति, सिद्धांत तथा नीति निर्माण में सेना के तीनों अंगों के बीच ‘एकल समन्वय’ को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। क्षमता विकास पर सुझावों की सभी हितधारकों की मौजूदगी में डीएसी द्वारा समीक्षा जरूर होगी। जब भी सेनाओं के बीच मतभेद होगा तो सभी सेना प्रमुखों और सीडीएस को उस मसले पर रक्षा मंत्री तथा जरूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री के साथ चर्चा के लिए बुलाया जाएगा। अमेरिका समेत तमाम देशों में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। रक्षा मंत्रालय तथा सेनाओं के बीच असली एकीकरण तभी होगा, जब सेनाओं के 50 प्रतिशत से अधिक अधिकारियों को रक्षा मंत्रालय में निर्णय लेने वाले स्तर पर नियुक्त किया जाएगा।
परिचालन पर किसी एक व्यक्ति द्वारा सुझाव की प्रक्रिया में अभी देर है क्योंकि सीडीएस के पद के लिए संभावित उम्मीदवार तीनों सेनाओं की एकीकृत प्रणाली से नहीं आए हैं। सरकार को जरूरत पड़ने पर संबंधित सेना प्रमुख के साथ बातचीत की आजादी मिलनी चाहिए। यदि सैन्य सुझावों के लिए केवल ‘एक ही व्यक्ति को अधिकृत’ करना है तो सेना प्रमुखों को आगे आकर सीडीएस की मदद करनी होगी।
व्यापक विचार यह है कि सीडीएस की नियुक्ति के साथ ही तीनों अंगों की एकीकृत थिएटर कमान भी गठित होनी चाहिए और उनके परिचालन की कमान सीडीएस के पास होनी चाहिए। इस सिफारिश और सेना की 17 कमानों को एक साथ लाने की संभावना (जिससे बड़ी वित्तीय बचत होगी) पर अमल करना मुश्किल होगा। तीनों सेनाओं की कमानों में शामिल कमांडरों और कर्मचारियों को तीनों अंगों की परिचालन योजना, हथियारों तथा उपकरण प्रबंधन, परिचालनगत लॉजिस्टिक्स, नीति एवं प्रशिक्षण के पहलुओं तथा कार्मिक नीतियों की पर्याप्त समझ होती है।
ये कमानें तमाम वर्षों में ‘साथी सेवाओं के साथ बढ़ने’, एक सेना से दूसरी सेना में नियुक्ति, संस्थागत तथा एक दूसरे के साथ प्रशिक्षण के जरिये तैयार हुई हैं। दुर्भाग्य से भारत के पास अभी तक इस तरह का पेशेवर अनुभव नहीं है। सीडीएस और संयुक्त परिचालन कमान आने पर सेना के प्रमुखों को कर्मचारियों की भूमिका मिल जाएगी, इतनी जल्दी ऐसा सोचने से काम बिगड़ेगा।
सीडीएस से जुड़े फैसले को आरंभ में संस्थागत ढांचे के किसी भी स्तर पर उथलपुथल मचाए बगैर स्थिर व्यवस्था में लागू करना समझदारी होगी। सीडीएस कार्यालय की स्थापना के बाद नेतृत्व बाहरी माहौल, जोखिम की संभावना, संसाधनों की उपलब्धता आदि पर विचार कर तीन कमान स्थापित करने के बारे में सोच सकता है। इसमें कुछ वर्ष लग सकते हैं और इस पर अलग से विचार किया जा सकता है।
किया जा सकेगा। इस व्यवस्था में रक्षा मंत्री को सैन्य एवं अफसरशाही सुझाव के दो समानांतर तथा परस्पर पूरक रास्ते खुलेंगे। सीडीएस समन्वय, साझेदारी, विश्लेषण एवं पेशेवर सैन्य सुझाव देने के लिए इकलौता बिंदु होगा। यह ढांचा मौजूदा सांगठनिक एवं कामकाजी ढांचे में सटीक बैठता है, जिसमें सेना के तीनों अंगों के उपाध्यक्ष तथा रक्षा सचिव दोनों धाराओं के कामकाजी मेल को सुगम बनाते हैं। यदि असैन्य अधिकारियों की सीडीएस के अधीन सैन्य विभागों में और सैन्य अधिकरियों की रक्षा सचिव के अधीन असैन्य विभागों में नियुक्ति होगी तो व्यवस्था को लाभ मिलेगा। इस व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए संयुक्त सचिव स्तर पर अधिकाधिक नियुक्तियों पर विचार किया जाना चाहिए।
कानूनी पहलू पर बात करें तो रक्षा मंत्रालय को तीनों सशस्त्र सेनाओं के अधिनियमों की समीक्षा करने एवं उन्हें सीडीएस के लिए सोची गई भूमिका के अनुरूप दुरुस्त करने की जरूरत है। सीडीएस को मजबूत करने के लिए तीनों अंगों में या एकीकृत ढांचे में अतिरिक्त कानून बनाने पर भी विचार किया जा सकता है।
भारतीय सशस्त्र सेनाओं के लिए सीडीएस नियुक्त करने के ऐतिहासिक रक्षा सुधार को अमल में लाना राष्ट्र तथा सेनाओं के हित में होगा क्योंकि प्रदर्शन पर अधिक जोर दिया जाएगा तथा पदानुक्रम एवं प्रोटोकॉल के झमेलों में उलझने के बजाय रक्षा योजना के तालमेल में मौजूद खामियां दूर करने पर जोर दिया जाएगा। इस व्यवस्था को दो दशक से काम कर रहे आईडीएस मुख्यालय के समर्थन वाले चार सितारों के अधिकारी को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं है। इस मॉडल को कामयाब बनाना है तो सीडीएस को रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सेना प्रमुखों और रक्षा सचिव का पूरा समर्थन चाहिए। भारत में थिएटर कमान का गठन अभी दूर की बात है और इस समय सीडीएस की नियुक्ति के साथ इसकी भी कोशिश करना ठीक नहीं होगा। इस पद और कार्यालय का इस्तेमाल तालमेल भरे क्षमता विकास के लिए करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। परिचालन संबंधी सुझाव के लिए सेना के संबंधित अंग के प्रमुखों की मदद तब तक लेते रहना चाहिए, जब तक तीनों सेनाओं के गहन अनुभव वाले सीडीएस आना आरंभ नहीं हो जाते। अंत में अच्छा सीडीएस वह होगा, जो चतुराई, सहमति निर्माण तथा अपने समकक्षों के प्रति आदर के साथ काम करने की कला में माहिर होगा। यही उसकी ताकत होगी।
Post new comment