अमेरिका-चीन में कारोबारी जंग: चीन में विग्रह
Jayadeva Ranade

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के नेताओं का मूड उदास-उदास सा है। जैसा कि कहा जाता है कि अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी जंग छिड़ी हुई है, इसने अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों को बुरी तरह से बदल दिया है। अब तो उस परस्पर सम्बन्ध पर एक दूसरे को लेकर संदेह पसर गया है, जिसे चीन दशकों पहले से बेहद खास रिश्ता कहते अघाता नहीं था।

राष्ट्रपति पद के लिए अपने धुंआधार चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप भी आतंकवाद और चीन, इन्हीं दोनों मुद्दों पर लगातार फोकस करते रहे थे। ऐसा करते हुए यह संकेत दे रहे थे कि सत्ता में आते ही वे इन दोनों पर हमला करेंगे। हालांकि ट्रंप के इस निश्चय के काफी पहले से ही अमेरिका के रणनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान यह जता रहे थे कि चीन का ताकतवर उभार अमेरिका के लिए कहीं से भी फायदेमंद नहीं है। किंतु तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश का ध्यान अफगानिस्तान युद्ध में बंट जाने और उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रपति बराक ओबामा के चीन को रोकने की दिशा में कार्यनीति न बना सकने के कारण यह काम अधूरा रह गया था। ऐसे में ट्रंप पूर्व राष्ट्रपति निक्सन के 30 साल बाद पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हुए जिन्होंने चीन के प्रति अमेरिकी रणनीति और नीति को फिर से जामा पहनाने का काम शुरू किया है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी कार्यकर्ताओं का अपना आकलन है कि अमेरिका की ओर से शुरू की गई कारोबारी जंग का कारण चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा पार्टी के सर्वोच्च पदों पर नेताओं के आसीन रहने की अवधि को समाप्त करना और अक्टूबर 2017 में आयोजित 19वीं पार्टी कांग्रेस में अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा करना था। ये ‘चीनी स्वप्न’ थे, जिन्हें 2021 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, जो संयोगवश कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीसीपी) का भी शताब्दी वर्ष है। ‘‘मेड इन चाइना-2025’’ योजना इस तरह तैयार की गई है कि चीन विश्व के सर्वाधिक अत्याधुनिक उच्च-प्रौद्योगिकी क्षमता सम्पन्न देशों की श्रेणी में शुमार हो जाए। शी ने यह भी घोषणा की कि चीन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के शताब्दी वर्ष में ‘‘वैश्विक दखल रखने वाला दुनिया की महाशक्ति बन जाए’’। यदि इन तमाम घोषणाओं को देखें तो इनसे चीन का मंसूबा दुनिया की महाशक्ति अमेरिका को पछाड़ना लगता है।

इसी के प्रत्युत्तर में, अमेरिका चीन के अभ्युदय को रोकने के लिए लगातार निशाना बनाता रहा है। अमेरिका ने यह संकेत भी दिया कि चीन का ‘‘मेड इन चाइना-2025’’ का लक्ष्य और ‘नागरिक-सैन्य एकीकरण’ का उसका सहवर्त्ती एजेंडा एक तरह से अपनी प्रौद्योगिकी का आमूल सैन्यीकरण है। अमेरिका ने अप्रैल 2018 में चीन की सर्वोत्कृष्ट और तीव्रता से तरक्की कर रही शेन्जेन की टेलीकम्युनिकेशन कम्पनी जेडटीई को सबसे पहले चुना और इस पर प्रतिबंध लगाए और अन्य शर्तें थोप दीं, जिसने कम्पनी को बर्बाद कर दिया। बाद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निजी दखल देने के बाद ही कम्पनी को दंड से निजात मिली। अमेरिका ने इसके बाद चीन की तेज गति से विस्तार कर रही उच्च तकनीक वाली टेलीकम्युनिकेशन कम्पनी हुआवे को अपना निशाना बनाया। जेएडटीई की तरह इस कम्पनी का भी चाइना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से स्पष्ट जुड़ाव थे। अमेरिका ने हुआवे के संस्थापक रेन झेंगफेई की पुत्री और कम्पनी की मुख्य वित्तीय अधिकारी मेंग वांगझोउ पर ईरान को अवैध तरीके से प्रतिबंधित उपकरण बेचने का आरोप लगाया और कहा कि यह अमेरिकी प्रतिबंधों का सरासर उल्लंघन है। अमेरिका ने कनाडा की अदालत से गुहार लगाई कि वहां दिसम्बर 2018 से हिरासत में रहीं मेंग को अमेरिका प्रत्यर्पित कर दिया जाए। इस बीच, अमेरिका ने चीन की छह प्रौद्योगिक इकाइयों के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिये, जिनमें से चार के मुख्यालय हांगकांग में हैं। बाद में लिये गए इस कदम का यह स्पष्ट मतलब था कि हांगकांग लम्बे समय तक अमेरिकी सरकार के प्रतिबंधों से लाभ नहीं उठा सकता। मौजूदा समय में चीन की 68 कम्पनियां अमेरिका में प्रतिबंधित हैं। इनके अलावा, चीनी सेना से किसी न किसी रूप में जुड़ीं 144 कम्पनियां भी अमेरिका की प्रतिबंधित सूची में दर्ज हैं।

इन बंदिशों से चीन को तगड़ा झटका लगा है। चीन का शीर्ष नेतृत्व तो चीन के उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर पड़ने वाले इन गहरे और व्यापक दुष्प्रभावों का आकलन कर ही बुरी तरह हिला हुआ है, जो खुद को प्रभावशाली वैश्विक नेता और आत्म-निर्भर होने के दावे करते रहे हैं। जैसे कि संकेत मिले हैं, जेएडटीई और हुआवे के आलाकमान भी हतप्रभ हैं कि उनकी कम्पनियां महज कुछ कल-पुर्जे के लिए मुठ्टी भर विदेशी कम्पनियों, खास कर अमेरिका की चार कम्पनियों पर, इस हद तक निर्भर हो गई हैं। हुआवे के रेन झेंगफेई, जो खुद पीएलए में इंजीनियर रहे हैं, ने जहां पहले अमेरिकी बंदिशों से कारोबार पर खराब असर पड़ने को खारिज कर दिया था, वह भी अब मान रहे हैं कि कारोबार में बने रहने के लिए टेलीकम्युनिकेशन के अपेक्षित उपकरणों, जैसे कि लेसर इमेजिंग चीप्स आदि को विकसित करना जरूरी होगा, जबकि यह आसान नहीं है और इसमें काफी लम्बा समय लगना है।

कारोबार में आए गतिरोध को दूर करने के लिए होने वाली बातचीत में कोई प्रगति न होने और अमेरिका निर्मित उच्च-प्रौद्योगिकी के उपकरणों पर लगी पाबंदी के साथ ही, चीनी कम्पनियां गम्भीर वित्तीय संकट से गुजर रही हैं क्योंकि उनका उत्पादन बुरी तरह ठप पड़ गया है। इन कम्पनियों के शेयर्स द्रुत गति से धड़ाम हो गए हैं। सभी जानते हैं कि हुआवे के मोबाइल फोन, कम्पनी के प्रमुख उत्पाद रहे हैं, उनके 48 फीसद शेयर मार्केट में गिर गए हैं, जिनसे कम्पनी के राजस्व को कड़ी चपत लगी है। पहले के इस दावे कि हुआवे इस मौसमी तूफान को आसानी से पार कर लेगी, हुआवे के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रेन झेंन्गफेई ने हाल ही में कहा कि हुआवे अत्यंत गम्भीर संकट में हैं। एक तरफ चीनी कम्पनियों का यह हाल है, तो दूसरी तरफ अमेरिका यहीं तक रुका नहीं रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इन चीनी कम्पनियों पर फिर से अपना दबाव बढ़ा दिया है। उन्होंने अपने सहयोगी और विश्व के देशों से अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर हुआवे के 5जी को नहीं खरीदने की अपील की है। हालांकि अभी तक इस बात का कोई इशारा नहीं है कि अमेरिका चीन पर कसे लगाम में कोई ढील देगा। अभी-अभी विगत 30 जुलाई को शंघाई में शुरू हुई व्यापार-वार्ता ट्रंप के इस ट्विट से समाप्त हो गई कि वह और 10 फीसद कर लगाने जा रहे हैं।

यह नया कर चीन से आयात पर 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पहले से लगाये गए करों के अतिरिक्त है। इसके जवाब में पेईचिंग ने अमेरिकी उत्पादों पर 110बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर लगा दिया था लेकिन उसकी इस जवाबी कार्रवाई से अमेरिका के महज 10 फीसद उत्पादों पर ही असर पड़ा है। इस पर भी अमेरिका चुप नहीं बैठा और उसने चाइनीज उत्पादों पर 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कर लगाने की धमकी दे डाली। अब ट्रंप द्वारा 1 सितम्बर 2019 से लागू 10 फीसद नया कर चीन से साल भर में आयातित होने वाले उत्पादों पर लगाये जाने वाले 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करों के अतिरिक्त है। इसके चलते चीनी प्रौद्योगिकी स्टॉक मार्केट में 2अगस्त, 2019 को जैसे सदमे की लहर फैल गई। हांगकांग में, उस टेनसेंट का शेयर 2.6 फीसद तक लुढ़क गया, जबकि मिचुअन डायपिंग 3.6 तक जा पहुंचा। अपने वजूद सम्भालने में डांवाडोल हो रही शियोमी स्मार्टफोन कम्पनी के शेयर तो 1.7 फीसद तक लुढ़क कर जैसे पाताल में चले गये। इसी तरह, वाल स्ट्रीट में अलीबाबा और जेडी.कॉम दोनों के शेयर 4 फीसद से ज्यादा ही धराशायी हो गए, जबकि विशालकाय सर्च बाइडू 2.2 फीसद तक पहुंच कर दम तोड़ गया।

इन मामलों में चीन की शुरुआती प्रतिक्रिया ट्रंप को लेकर कोशिश करो और ‘खरीद लो’ की रही। लेकिन जब अमेरिका ने जुलाई और अगस्त 2018 में 50 बिलियन डॉलर मूल्य के चीनी आयात पर 25 फीसद टैक्स लगा दिया और फिर सितम्बर, 2018 में 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के चीनी आयात पर 10 फीसद अतिरिक्त टैक्स लगा दिया तो साल के अंत में, ट्रंप ने 25 फीसद तक टैक्स लगाने की धमकी दी तो चीन ने अमेरिका के कारोबार प्रतिनिधि लाइटहाइजर से और अन्य अधिकारियों से गम्भीरता से बातचीत शुरू की। इसके साथ-साथ, चीन ने अपने समर्थक पैरोकारों के समूहों और व्यक्तियों को अमेरिका को यह बताने के लिए मुस्तैद किया कि चीन के विरुद्ध पाबंदियां लगा कर अमेरिका स्वयं ही अपना नुकसान करेगा। सीसीपी ने तो अमेरिका के राष्ट्रवाद के प्रति उसके आग्रह और विदेशियों से नाहक भयभीत (जेनेफोबिया) होने का नारा तेज कर दिया। चीन के सरकारी मीडिया के अधिकारियों ने अमेरिकी कार्रवाई को सरासर अनुचित और धौंस दिखाने वाली बताया और दावा किया कि अमेरिकी चोटों का चीन पर कोई असर नहीं पड़नेवाला। सरकारी मुखपत्र पीपुल्स डेली ने तो मई और जून महीने में 13 लेखों की बाकायदा एक पूरी श्रृंखला प्रकाशित की जिनमें अमेरिका पर वर्चस्ववादी रवैये अपनाने का आरोप लगाए गए थे। इस बाबत चीन के प्रोपगैंडा अभियान के प्रभाव का एक उदाहरण अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अनेकानेक लेखों का प्रकाशन कहा जाएगा, जिनमें विस्तार से यह बताया गया है कि मौजूदा कारोबारी जंग से किस तरह अमेरिकी उपभोक्ता और कारोबार का बहुत नुकसान होगा; कि किस तरह इसका अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा; और किस तरह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, जिसमें चीन की दखल है, वह लड़खड़ा जाएगी। एक उदाहरण अमेरिकी फॉरेन अफेयर्स और चीनी स्कॉलर कम्युनिटी की तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखा गया खुला पत्र भी है। चीन इस डर पर खेल रहा है कि वह रेअर अर्थ के निर्यात की अपनी नीति की समीक्षा कर रहा है। लेकिन अमेरिका अपने रास्ते पर अडिग है। चीनी उप प्रधानमंत्री लियू लियू ने मई में रेअर अर्थ के निर्यात की पुनर्समीक्षा सम्बन्धी एक मसौदा सीसीपी की सेंट्रल कमिटी के समक्ष पेश किया था, जिसे कमेटी ने मंजूर नहीं किया। कमेटी ने अनुभव किया कि इस कदम का चीन की सम्प्रभुता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस तरह से बातचीत विफल हो गई। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चिनयिंग ने घोषणा की. ‘‘चीन अपनी तरफ से न अतिरिक्त दबाव देगा, न ही संत्रास दिखाएगा और न ही भयादोहन (ब्लैकमेल) करेगा। यह भी कि हम बड़े सैद्धांतिक मामलों में एक इंच भी पीछे हटेंगे।’’

लेकिन चीन में संशय गहराता जा रहा है और अमेरिका खुद अन्य क्षेत्रों में प्रदर्शित कर रहा है। चीन में अमेरिकी कारोबारी पर्यटकों से तरह-तरह के सवाल किये जा रहे हैं, उन्हें तंग किया जा रहा है। जुलाई के आखिर में कम्पनियों ने एक सलाह जारी कर अमेरिकी नागरिकों से चीन न जाने की हिदायत दी थी। कनाडाई नागरिकों को चुन-चुन कर खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है और दो लोगों, जिनमें से एक चीन में सेवारत राजनयिक हैं, को गिरफ्तार किया गया है और उन्हें मौत की सजा दी गई है। हालांकि यह घटनाक्रम कनाडा में हुआवे के सीएफओ मेंग वानझोऊ की गिरफ्तारी की प्रतिक्रिया में हुए हैं, लेकिन उनकी जिंदगी पर गम्भीर खतरा है। उधर, अमेरिका में भी दाखिला लेने आए चीनी छात्रों से सवाल पर सवाल किये जा रहे हैं और प्राय: उनमें से बहुतों को वापस चीन भेज दिया जाता है। यहां तक कि अमेरिका के नेशनल इंस्ट्टियूट ऑफ हेल्थ (एनआइएच) में कार्यरत चीनी वैज्ञानिकों और अनुसंधाताओं की सेवाएं समाप्त की जा रही हैं। एफबीआइ ने अमेरिका के 51 राज्यों में स्थापित क्षेत्रीय कार्यालयों में जासूसी के उन मामलों की छानबीन तेज कर दी है, जिनमें चीन का कहीं से ताल्लुक है।

दरअसल, शी जिनपिंग के लिहाज से चीन और अमेरिका में कारोबारी जंग का वक्त मुनासिब नहीं है। इसलिए कि यह चीन की अर्थव्यवस्था में ढलान का समय है। इसे लेकर छात्रों, कामगारों और पूर्व सैनिकों में सरकार के प्रति प्रबल असंतोष है। देश के प्रमुख अकादमिशियनों, पार्टी की सर्वोच्च सलाहकार निकाय चाइना पीपुल्स पॉलिटकल कन्सुलेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीपीसीसी) के सदस्यों, ‘प्रिंसलिंग्स’ और पूर्व आला अफसरों, जिनमें कम से कम दो वाणिज्य मंत्री भी शामिल हैं; इन सबने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों की मुखालफत तेज कर दी हैं। खबरें तो यहां तक है कि कुछ प्रमुख अकादमिशियनों ने राजनीति से अवकाश ले चुके कुछ दिग्गज नेताओं से मिल कर कहा है कि वे लोग शी जिनपिंग से अपनी नीतियां बदलने को कहें या वे पद छोड़ दें। उस बैठक में मौजूद एक शिक्षाविद् ने अपनी राय दी कि चीन को अपनी नीतियां बदल लेनी चाहिए और उसे अमेरिका को ‘ठीक करने’ का प्रयास नहीं करना चाहिए। पार्टी कार्यकर्ता भी खासा तमतमाए हुए हैं। उनका मानना है कि शी जिनपिंग खुद ही ‘‘अपने दायरे से बाहर’’ चले गए हैं। अन्य लोगों ने पहले बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) को ईर्द-गिर्द फैलाए जा रहे उग्र राष्ट्रवाद पर सवाल उठाया है और सरकार को बयानबाजी कम करने की सलाह दी है। इसका असर शायद हुआ है तभी बीजिंग में आयोजित दूसरे बीआरआइ फोरम के दौरान अति-राष्ट्रवाद का शोर कुछ मद्धिम रहा। निजी बातचीत में चीन के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता मानते हैं कि ‘‘चीन दुनिया में अकेला’’ पड़ गया है और ‘‘हरेक हमारे खिलाफ’’ हो गया है। अन्य देश भी चीन की आर्थिक क्षमता को फिर से तौलने लगे हैं और महसूस करते हैं कि चीन अजेय नहीं हैं।

इन बढ़ते दबाव के परिप्रेक्ष्य में सीसीपीसीसी ने एक कठोर कदम उठाने का निर्णय किया। चीनी राष्ट्रपति आगे आने वाले कड़े समय के लिए अपनी पार्टी और लोगों को तैयार करना शुरू कर दिया है। जून के उत्तरार्ध में दौरे पर आए जियांग्शी ने उपस्थित कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे ‘सेकेंड लांग मार्च’ की तैयारी में लग जाएं। इस लांग मार्च का स्तवन करने का जिम्मा 500 पत्रकारों को दिया गया है। चीन की सरकारी मीडिया ने इस निर्णय की सराहना की। पीपुल्स डेली ने टिप्पणी की कि अमेरिका द्वारा लगाये जाने वाले करों से चीनी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ना बताना ‘हास्यास्पद’ है। उसने यह भी जोड़ा कि ‘‘इस अकाट्य तथ्य को किसी भी कोलाहल में नहीं दबाया जा सकता’’। सीसीपी का अग्रणी पाक्षिक क्यू शी ने तो जोर देकर कहा,‘‘अमेरिका जो भी कुछ कर रहा है, उससे आर्थिक एवं व्यापार को लेकर तकरार और बढ़ सकती है लेकिन चीन किसी भी धमकी या दबाव से नहीं डरेगा। चीन के पास कोई विकल्प नहीं है, न ही इससे बचने का कोई दूसरा रास्ता है। उसके पास विवाद के समाधान होने तक लड़ने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। किसी व्यक्ति या ताकत को चीन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और न ही चीनी लोगों की इस्पाती इच्छाशक्ति और ताकत और जंग की अदम्यता को तुच्छ नहीं समझना चाहिए।’‘

हांगकांग में भी 9 जून को संकट शुरू हो गया और उसके थमने के आसार नहीं हैं। यह शी जिनपिंग के लिए एक दोहरी गंभीर जटिल स्थिति है। हांगकांग में प्रदर्शनकारी दिनोंदिन अधिकाधिक मुखर होते जा रहे हैं। उन्होंने प्रत्यर्पण विधेयक को वापस लेने और पेइचिंग द्वारा नियुक्त किये गए हांगकांग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) कैरी लैम को वापस बुलाने की मांग जोर-शोर से करने लगे हैं। इसमें पेइचिंग ने फिलहाल दखल न देना तय किया है, लेकिन निश्चित ही वह तय समय पर कोई न कोई फैसला लेगा। इस बीच, आधिकारिक तौर पर स्वामित्व वाले चीनी समाचार आउटलेट के कार्यकाल में एक दिलचस्प विचलन दिखाई देता है। इससे शीर्ष नेतृत्व और सीसीपी के धड़ों में मतभेदों को सतह पर ला दिया है। यह शी जिनपिंग की हैसियत को अरक्षित होने का संकेतक हो सकता है।

शी जिनपिंग की वैयक्तिक पृष्ठभूमि सीसीपी के प्रति उनकी अचल प्रतिबद्धता दिखाती है और चीन को एक मुख्य वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की उनकी आकांक्षा को जाहिर करती है। इस लिहाजन, उनकी अंत:प्रेरणा इन दबावों को झेल लेगी और 19वीं पार्टी कांग्रेस में तय लक्ष्यों को वह पूरा करेंगे। अब इसका मतलब चीन अपने पड़ोसी ताइवान, वियतनाम, जापान और भारत जैसे देशों के प्रति संभव सैन्य मुठभेड़ों के साथ अपनी विदेश नीति में अधिक आक्रामकता से पेश आएगा, इस बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। चीन की ताजा भाव-भंगिमा को देखकर यह लगता है कि उसकी पीएलए अमेरिका को इस क्षेत्र के अपने सहयोगी देशों की आड़ में दखलअंदाजी की किसी भी कोशिश का मुंहतोड़ जवाब देने को लेकर आश्वस्त है। बिदायह में अगले कुछ दिनों में होने वाली अनौपचारिक बैठक में यह देखने को मिलेगा कि इसमें भाग लेने आ रहे दिग्गज शी जिनपिंग की नीतियों को लेकर उन पर निशाना बनाते हैं या नहीं।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source:https://s.marketwatch.com/public/resources/images/MW-HO836_xi_tru_ZH_20190805132740.jpg

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