शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के 22वें शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15-16 सितंबर 2022 को समरकंद का दौरा किया। उन्होंने उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी कीं। यूक्रेन में जारी युद्ध और ताइवान के तनाव को मद्देनजर रखते हुए एससीओ की बैठक संपन्न हुई। एससीओ शिखर सम्मेलन के समापन पर जारी समरकंद घोषणा[1] में वृहद रूप से राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा हुई। भारत के लिए विशेष रूप से अफगानिस्तान, आतंकवाद और कनेक्टिविटी के मुद्दे रहे हैं।
यह क्षेत्र भारत के साथ ऐतिहासिक रूप से जुड़ा है। इस्लाम के आगमन से पहले भी यह क्षेत्र उत्तरपथ द्वारा भारत से जुड़ा था। उज्बेकिस्तान में स्थित बोखरा का पुराना नाम विहार था और इस शहर के बाहरी इलाकों में बौद्ध विहार के खंडहर भी हैं। यही वह क्षेत्र था जहाँ से मुगल आए थे और यही क्षेत्र 19वीं सदी में रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच प्रतिद्वंद्विता का प्रमुख कारण था। वर्तमान में चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभाव मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में मध्य एशियाई गणराज्यों का दौरा किया था।
प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ द्विपक्षीय बैठक में यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने का आह्वान किया। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि शत्रुता शीघ्र समाप्त हो क्योंकि यहां आवश्यकता बातचीत तथा कूटनीति की है। उन्होंने यह भी कहा कि पुतिन को इस संबंध में पहल करनी होगी। 21 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने अपने संबोधन में पीएम मोदी के इस बयान का जिक्र किया कि 'आज का युग युद्ध के लिए नहीं है'।[2]
समरकंद घोषणापत्र में अफगानिस्तान की स्थिति पर तो चर्चा की गई लेकिन तालिबान को लेकर कोई संदर्भ नहीं दिया गया। इससे पता चलता है कि एससीओ नेता तालिबान के शासन को मान्यता नहीं देना चाहते हैं। घोषणापत्र में 'आतंकवाद, युद्ध एवं नशीले पदार्थों से मुक्त एक स्वतंत्र, तटस्थ, एकजुट, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण राज्य के रूप में अफगानिस्तान की स्थापना' के लिए सदस्य देशों के समर्थन का उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि 'अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का होना महत्वपूर्ण है, जिसमें अफगान समाज के सभी जातीय, धार्मिक और राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधि हों। जाहिर है वर्तमान की तालिबान सरकार उपरोक्त कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
अब प्रश्न है कि क्या पाकिस्तान ने इस मुद्दे को दबाने का प्रयास किया? उनकी चुप्पी से तालिबान शासन के साथ इस्लामाबाद के रिश्तों के संकेत मिलेंगे जो वर्तमान में सामान्य नहीं हैं। तालिबान ने इस्लामाबाद पर अमेरिकी ड्रोन को अफगानिस्तान तक रास्ता देने करने का आरोप लगाया है, जिसने जवाहिरी पर हमला किया और उसे मार दिया गया, हालांकि तालिबान ने यह स्वीकार नहीं किया कि अल-कायदा नेता अल जवाहिरी काबुल में रह रहा था। स्वात में तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) द्वारा हाल ही में हत्या की कई घटनाएं हुई हैं। अफगान तालिबान द्वारा टीटीपी से दूरी बनाने से इनकार करना ही इस्लामाबाद और काबुल शासन के बीच विवाद की एक जड़ है।
घोषणापत्र में उल्लेख किया गया है कि 'सदस्य देशों ने आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के सभी प्रकारों से, उसकी सभी अभिव्यक्तियों से सुरक्षा को ख़तरा मानते हुए गहरी चिंता व्यक्त की और दुनिया भर में आतंकवादी कृत्यों की कड़ी निंदा की। इसके अतिरिक्त घोषणा में यह भी कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सदस्य देश एक व्यापक सम्मेलन को अपनाएं। इन घोषणाओं को तैयार करने वाले लेखक को सीसीआईटी (अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन) का मसौदा तैयार करने और संयुक्त राष्ट्र महासभा से वार्ता हेतु जनादेश प्राप्त करने का विशेषाधिकार मिला हुआ था।
चीन 'आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद' पर व्यापक रूप से आम सहमति चाहता तो है, लेकिन तब तक जहां कि वे उसके हित आड़े न आएं। चीन एक तरफ उइगर मुसलमानों के दमन का एक अभियान चला रहा है, वहीं लगातार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों को नामित करने की प्रक्रिया में टांग अड़ा रहा है। सीसीआईटी पर एससीओ की राय अभी भी अस्पष्ट बनी हुई है और सदस्य राष्ट्रों के एकमत होने की मांग यह दर्शाता है कि सीसीआईटी अभी अपने अस्तित्व में नहीं है तथा भविष्य में संयुक्त राष्ट्र महासभा में वोट के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
समरकंद घोषणा ने कनेक्टिविटी पर जोर दिया। यह मुद्दा भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस समय हमारा व्यापार और आर्थिक सहयोग इस क्षेत्र में सीमित है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण ट्रांजिट कॉरिडोर (INSTC) विकसित करने के साथ-साथ चाबहार बंदरगाह पर काम की गति को तेज करने की आवश्यकता है।
समरकंद में ईरान के राष्ट्रपति रायसी के साथ प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय बैठक में अफगानिस्तान और कनेक्टिविटी के मुद्दों पर भी चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने उनके साथ चाबहार बंदरगाह में शहीद बेहेश्टी टर्मिनल के विकास के साथ-साथ रीजनल कनेक्टिविटी में सुधार पर भी विचार विमर्श किया।
परमाणु समझौते पर ईरान के पक्ष का समरकंद संयुक्त घोषणापत्र ने समर्थन किया है और 'ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर संयुक्त व्यापक कार्य योजना के सतत कार्यान्वयन' का आह्वान भी किया। संयुक्त घोषणा पत्र ने सभी पक्षों द्वारा 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 के अनुसार' परमाणु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं के प्रभावी कार्यान्वयन का भी आह्वान किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव (परमाणु समझौता) को मंजूरी देने के लिए अपनाया गया था। ये दोनों सूत्र बताते हैं कि परमाणु समझौते पर अब सिर्फ कार्य करना बाकी है, मौजूदा सौदे पर फिर से बातचीत नहीं होनी है। यूरोपिय यूनियन भी संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पुनर्स्थापित करने का समर्थन कर रहा है।
शंघाई सहयोग संगठन वैश्विक मुद्दों पर पश्चिम देशों के विषय के लिए एक विकल्प प्रस्तुत करता है। समरकंद घोषणापत्र में 'लोगों के स्वतंत्र और लोकतांत्रिक तरीके से अपने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास को चुनने के अधिकार' का सम्मान करने का आह्वान किया गया। इस घोषणा पत्र में संप्रभुता, स्वतंत्रता, राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता और आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप के तथा उनके सम्मान पर भी जोर दिया गया।
समरकंद घोषणापत्र में इस बात पर भी मजबूती से विचार किया गया कि यूएनएससी के सदस्य देशों के अलावा आर्थिक प्रतिबंधों की एकपक्षीय मांग का आवेदन अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के साथ असंगत है, विकास के लिए प्रयासरत देशों और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। यह रूस के लिए तात्कालिक परिस्थितियों के संबंध में हैं हालाँकि, यह चीन के लिए अधिक चिंता का विषय हो सकता है, जो अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाजारों के साथ अधिकतम व्यापार का लाभ उठा रहा है। चीन के भविष्य की संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि वे आर्थिक प्रतिबंधों से मुक्त होकर इन अर्थव्यवस्थाओं तक निरंतर पहुंच बनाए रहे।
समरकंद की घोषणा में मिसाइल रक्षा के मुद्दे का भी संदर्भ था। एकल राष्ट्रों और राष्ट्र के समूहों द्वारा एकपक्षीय और अप्रतिबंधित वैश्विक मिसाइल रक्षा तंत्र का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थायित्व पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव का भी उल्लेख हुआ। यह रूसी स्थिति को दर्शा सकता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मिसाइल रक्षा प्रणालियों की तैनाती एबीएम संधि का उल्लंघन है।
समरकंद घोषणा[3] में वर्तमान के यूक्रेन संकट पर चुप्पी साधी हुई थी। इस घोषणा पत्र में हालिया के ताइवान संकट का भी उल्लेख नहीं किया गया। इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि ये विषय एससीओ के दायरे से बाहर थे। घोषणा में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को शामिल किया गया और ईरान तथा अफगानिस्तान के संदर्भ शामिल थे, जबकि दोनों मध्य एशिया से बाहर हैं। यह याद रखने योग्य है कि यूक्रेन के मुद्दे पर महासभा में हुए मतदान में, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने भाग नहीं लिया, जबकि तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान अनुपस्थित थे। ताइवान पर चीनी स्थिति के लिए परीक्षण अनावश्यक है।
चीनी राष्ट्रपति समरकंद में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान कजाकिस्तान का दौरा किया। उन्होंने कजाकिस्तान की "स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता" के लिए समर्थन व्यक्त किया।[4] उन्होंने यह भी कहा कि चीन "आपके देश के आंतरिक मामलों में किसी भी बल के हस्तक्षेप का स्पष्ट रूप से विरोध करेगा।"[5] कजाकिस्तान रूसी नेतृत्व वाले सुरक्षा संगठन (सीएसटीओ) का सदस्य है। इस बयान से पता चलता है कि चीन ने कजाकिस्तान के भीतर भी एक राजनीतिक भूमिका निभानी शुरू कर दी है जहां ऐतिहासिक रूप से रूस ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन करता रहा है। दोनों देशों (रूस और चीन) के बीच हमेशा सहयोग और प्रतिस्पर्धा का दौर रहा है। रूस द्वारा बनाई गई सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के लिए दो संगठन - सीएसटीओ (सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन) और यूरेशियन आर्थिक संघ (ईईयू), में चीन शामिल नहीं है। इस बार समरकंद घोषणा में ईईयू और ओबीओआर (वन बेल्ट वन रोड) को जोड़ने का परामर्श दिया गया था।
यदि रूस और पश्चिम देशों के बीच मौजूदा टकराव जारी रहा तो भविष्य में मध्य एशिया में चीनी प्रभाव और बढ़ेगा। इसे पहले ही सुरक्षा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया गया है। यूएस ने आतंकवाद विरोधी अभ्यास के तहत 2017 में ताजिकिस्तान में सैन्य परीक्षण किया। व्यापार और आर्थिक सहयोग के मामले में चीन की स्थिति बहुत मजबूत है। इसने रूस, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के रास्ते चीन में तेल और गैस लाने के लिए एक पाइपलाइन मार्ग बनाने में भारी निवेश किया है। इसने अपस्ट्रीम आयल (तेल के कुआँ की खुदाई) और गैस निस्तारण में भी हिस्सेदारी हासिल की है। मध्य एशियाई देशों के नजरिए से देखें तो उनके पास तब तक कोई विकल्प नहीं है जब तक कि उनके तेल और गैस को अन्य बाजारों में लाने के लिए पाइपलाइन न हो। यदि ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित किया जाता है, तो ईरान के माध्यम से मध्य एशिया से भारत में तेल और गैस लाने का रास्ता खुल जाएगा। ईरान के पास ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैस भंडार है।
पीएम मोदी ने समरकंद के अपने संबोधन में इस बात का उल्लेख किया कि, 'यूक्रेन में महामारी और संकट ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में कई बाधाएं पैदा कीं, जिसके कारण पूरी दुनिया एक अभूतपूर्व ऊर्जा और खाद्य संकट का सामना कर रही है। पीएम मोदी ने आह्वान किया कि, 'हमारे नागरिकों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाए'।[6]
यूक्रेन संकट के बाद कच्चे तेल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल के उच्च स्तर से घटकर अब लगभग 92 डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं लेकिन वे अभी भी एक साल पहले की कीमतों की तुलना में 23% अधिक हैं। इस दौरान 20 सितंबर को ब्रेंट क्रूड की कीमत 73.57 डॉलर से बढ़कर 90.52 डॉलर हो गई है।[7] यूरोप में गैस की कीमतें अभी भी इस वर्ष के औसत से सात गुना अधिक हैं।[8] एक साल में गेहूं की कीमत में 60 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ जो 260 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 420 डॉलर प्रति टन हो गया है।
एससीओ अपना विस्तार कर रहा है। शंघाई सहयोग संगठन की नींव 1996 में शंघाई-5 की घोषणा को अपनाने के साथ रखी गई थी। शंघाई सहयोग संगठन अपने स्थापना के 5 साल बाद 2001 में विस्तारित हुई थी। इसने जुलाई 2002 में अपना चार्टर अपनाया। तब से, इसकी सदस्यता बढ़ गई है। अब इस संगठन में 8 देश चीन, रूस, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं। ईरान की सदस्यता को मंजूरी देने के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। बहरीन, मालदीव, कुवैत, यूएई और म्यांमार को संवाद साझेदार के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके अलावा मिस्र, सऊदी अरब और कतर को समान दर्जा देने के लिए भी समझौता किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि भारत अगले वर्ष एससीओ की अध्यक्षता करेगा।
[1]Samarkand Declaration of the Council of the Heads of States of Shanghai Cooperation Organisation, Ministry of External Affairs, https://www.mea.gov.in/bilateral
[2]General Debate of the 77th session of the UN General Assembly, https://gadebate.un.org/en
[3]Samarkand Declaration of the Council of the Heads of States of Shanghai Cooperation Organisation, Ministry of External Affairs, https://www.mea.gov.in/bilateral
[4] Wall Street Journal, The SCO’s Clumsy Push to Disrupt the World Order by Walter Russell Mead, September 19 2022
[5]Ibid
[6]PM’s remarks at SCO Summit in Samarkand, https://www.narendramodi.in/prime-minister-narendra-modi-s-remarks-at-sco-summit-in-samarkand-uzbekistan-564434
[7] Oil Price, 20.9.2022
[8]Bloomberg, Europe Gas Prices Drop as Nations Ramp Up Efforts to Ease Crisis, 19 September 2022
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