विवाद बढ़ाने का कोई मतलब नहीं
Arvind Gupta, Director, VIF

हमारे हित जुड़े हुए हैं। इसलिए इस्लामी राष्ट्रों में जो प्रतिक्रियाएं दिख रही हैं, वे उन्हें थामें, क्योंकि द्विपक्षीय रिश्तों का बेपटरी होना दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचा सकता है.......

भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ताओं के टीवी बयानों से नाराज चल रहे मुस्लिम राष्ट्र कुछ हद तक नरम पड़ने लगे हैं। नई दिल्ली के दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाहियन ने स्पष्ट कहा है कि इस मामले में भारत सरकार की ओर से की गई कार्रवाई से वह संतुष्ट हैं। जाहिर है, विदेश नीति के मोर्चे पर अचानक आई इस बड़ी चुनौती से पार पाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे संबंध काफी अच्छे हो गए हैं। उनमें निरंतर सुधार दिख रहा था। इसमें निस्संदेह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा हाथ है, जिन्होंने न सिर्फ कई मुस्लिम राष्ट्रों का दौरा किया, बल्कि संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, सऊदी अरब जैसे देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को निजी दोस्ती के मुकाम तक ले जाने में सफल रहे।

इन सबसे स्वाभाविक तौर पर मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे आर्थिक व कारोबारी संबंध तेजी से मजबूत होने लगे थे। कहा यह भी जाने लगा था कि पश्चिम एशिया को लेकर भारत ने अपनी नीतियों में जो बदलाव किया है, उसके कारण हमारे आपसी रिश्ते अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। न सिर्फ हमारी दोस्ती मजबूत हुई, बल्कि इसी दौरान पाकिस्तान के साथ इन देशों के रिश्ते भी कमजोर हुए।

मगर पश्चिम एशिया के साथ रिश्तों में आई यह नई ऊंचाई पिछले दिनों दी गई विवादित टिप्पणियों के बाद जमींदोज होती दिखी। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत जैसे मुल्कों के साथ-साथ इस्लामी सहयोग संगठन (57 मुस्लिम राष्ट्रों की संस्था) ने भी अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की। न सिर्फ ईरान जैसे देशों ने समन भेजकर हमारे राजदूत से अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया, बल्कि मुस्लिम राष्ट्रों के कई सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने भी टिप्पणियों की कडे़ शब्दों में निंदा की। इससे हमारे आपसी रिश्तों में खटास पड़ने की आशंका बढ़ गई है, लिहाजा वक्त की यही मांग थी कि ‘डैमेज कंट्रोल’ करके किसी भी तरह से आसन्न नुकसान को कम किया जाए। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार इस कोशिश में सफल होती दिख रही है।

इस पूरे मामले का असर रोजी-रोटी की तलाश में मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले करीब 85 लाख भारतीयों पर पड़ सकता है। वे वहां से हर साल अरबों डॉलर की रकम भारत में अपने परिजनों को भेजते हैं। साल 2020-21 में मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले भारतीयों ने 83 अरब डॉलर की राशि भारत भेजी थी, जिनमें से 53 फीसदी तो संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, कुवैत और ओमान से ही आई थी। साफ है, धार्मिक टिप्पणी से पैदा हुए हालात मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले भारतीयों के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। इस चुनौती पर विजय पाने के लिए हमें प्रभावी रणनीति बनानी ही होगी। चूंकि पश्चिम एशिया के साथ भारत के रिश्ते हालिया वर्षों में काफी अच्छे हुए हैं, इसलिए उन देशों में तैनात हमारे राजदूत और कूटनीतिज्ञ भारत के पक्ष को सामने रख सकते हैं। इस तरह के कूटनीतिक कदम क्षणिक नाराजगी को थामने में कारगर साबित होते हैं। इसी तरह, हमारे शीर्ष नेता मुस्लिम राष्ट्रों के अपने समकक्षों से बातचीत कर सकते हैं।

निश्चय ही, हमारी हुकूमत ने इस तरह के कूटनीतिक व राजनीतिक प्रयास शुरू कर दिए होंगे। स्थानीय स्तर पर भी विवादित बोल बोलने वाले नेताओं पर कार्रवाई की गई है, जिसका मुस्लिम राष्ट्रों पर सकारात्मक असर पड़ा होगा। हालांकि, शोचनीय यह भी है कि इन देशों के साथ हमारे संबंध द्विपक्षीय हैं। अगर हमें उनसे फायदा होता है, तो वे भी हमसे खूब लाभ कमाते हैं। परस्पर हितों को आगे बढ़ाने वाला संबंध है यह। इसलिए, यह बात भी उनको स्पष्ट कर देनी चाहिए कि उनके समाज में ‘बायकॉट इंडियन प्रोडक्ट’ (भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करो) जैसी जो अतिवादी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वे उनको थामने की कोशिश करें, क्योंकि द्विपक्षीय रिश्ते का बेपटरी होना उनको भी नुकसान पहुंचा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि अरब देशों के साथ भारत सालाना 110 अरब डॉलर से अधिक का द्विपक्षीय कारोबार करता है। हमारी ऊर्जा जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा वहीं से आयात किया जाता है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ तो हमारा 60 अरब डॉलर का कारोबार है। स्पष्ट है, अगर द्विपक्षीय रिश्तों में कोई दरार आती है, तो कारोबारी नुकसान मुस्लिम राष्ट्रों को भी होगा।

इन देशों को यह संदेश देने की भी जरूरत है कि भारत कोई ऐसा राष्ट्र नहीं है, जो खास धार्मिक रुख रखता हो। यहां हर मजहब का बराबर सम्मान किया जाता है। लोगों को न सिर्फ अपना-अपना धर्म मानने और इबादत करने की आजादी हासिल है, बल्कि धर्म के आधार पर राष्ट्र उनमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता है। यही वजह है कि यदि धार्मिक टिप्पणी की गई, तो तुरंत कार्रवाई भी की गई। इसलिए, मुस्लिम राष्ट्रों के सामने हमें अपना पक्ष मजबूती से रखना ही होगा और उनको यह एहसास दिलाना होगा कि इस मामले को अनावश्यक तूल देने से आपसी रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

यहां इस्लामी सहयोग संगठन जैसी संस्थाओं को भी आईना दिखाने की जरूरत होगी। यह संगठन अभी जिस तरह से मुखर है और हमें समाधान देने की कोशिश कर रहा है, उससे पहले उसे अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। अपने सदस्य मुल्कों में मानवाधिकार को लेकर उसका जो रवैया रहा है, उसे हमें बेपरदा करना होगा। इससे यह भी पता चलेगा कि ये संगठन कितने पानी में हैं। इसके खिलाफ सख्त रुख दिखाना इसलिए जरूरी है, ताकि उसके नेता भारत के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने से पहले यह सोच लें कि नया भारत पलटवार भी कर सकता है।

यह समय ‘तू-तू, मैं-मैं’ का नहीं, बल्कि राजनयिक व कूटनीतिक तरीके से इस मसले का समाधान तलाशने का है। धार्मिक टिप्पणी से मुस्लिम राष्ट्रों को जो ठेस पहुंची है, उससे हमें जल्द ही पार पाना होगा। इस नकारात्मकता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यही दोनों पक्षों के हित में है। इस मसले को अनावश्यक बढ़ाना मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों में खटास भर सकता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Published in Live Hindustan on 9th June 2022.

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