भारत के लिए जलवायु परिवर्तन 1.38 अरब की विशाल आबादी वाले एक देश के रूप में बहुत बड़ी चिंता का विषय है, जो बदलते जलवायु के बिगड़ते प्रभावों के मद्देनजर सबसे अरक्षित देश की कोटि में आता है। यही कारण है कि नई दिल्ली घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में पूरे दम-खम से सक्रिय रही है। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि भारत को वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर 2021 में होने वाली वार्ताओं एवं सम्मेलनों में काफी सक्रिय देखा गया था। और, 2021 की शुरुआत में कोरोना महामारी से जूझते रहने के बावजूद, भारत ने जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कई प्रगतिशील विकास के मुकाम हासिल किए हैं। विगत वर्ष महत्त्वपूर्ण दौरों से लेकर महत्त्वपूर्ण घोषणाओं तक, जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारत की चिंताओं एवं सक्रियताओं को एक अपेक्षित आकार देता है।
जलवायु परिवर्तन वार्ता में नई दिल्ली द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों ही स्तरों पर 2021 में सक्रिय रूप से शामिल रही है। उनकी चर्चा नीचे की गई है-
जलवायु परिवर्तन पर द्विपक्षीय संबंधों में सबसे उल्लेखनीय जुड़ाव संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन की तरफ जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर नियुक्त उनके विशेष दूत जॉन केरी ने 2021 के अप्रैल और सितम्बर महीने में दो बार नई दिल्ली का दौरा किया था। इस दौरान जलवायु संकट से निपटने में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए कई अहम चर्चाएं हुईं। दोनों लोकतांत्रिक देश व्यापक रूप से कई क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए सहमत हुए जैसे कि बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा परिनियोजन का समर्थन करने के लिए वित्त का जुटान करना, अनुकूलन और लचीलापन पर सहयोग, नवाचार पर सहयोग करना और उभरती प्रौद्योगिकियों को बढ़ाना जैसे:
(ए) ऊर्जा भंडारण के लिए
(बी) हरित हाइड्रोजन
(सी) स्वच्छ औद्योगिक प्रक्रियाएं, और
(डी) सतत शहरीकरण और कृषि।
इन चर्चाओं के आधार पर, बाइडेन प्रशासन द्वारा अप्रैल 2021 में आयोजित 'लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट' में "भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030 पार्टनरशिप" को लॉन्च किया गया था। इस एजेंडे के एक हिस्से के रूप में, जॉन केरी और भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव की उपस्थिति में सितम्बर 2021 में 'यूएस-इंडिया क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग' (सीएएफएमडी) शुरू किया गया था।
लीडर्स समिट में भाग लेने के अलावा, नई दिल्ली ने जुलाई 2021 में जी20 देशों के जलवायु और ऊर्जा मंत्रिस्तरीय बैठक में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत की स्थिति को दोहराया। बैठक में नई दिल्ली इस तथ्य का उल्लेख करने से नहीं हिचकिचाई कि भारत पेरिस में तय किए गए जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सचेत रूप से अपनी भूमिका निभा रहा है। बैठक में, देश के नेताओं द्वारा एक अपील भी की गई थी कि विकासशील देशों की अपनी विकासात्मक आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए विकसित देश जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के प्रति अधिक न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाएं।
नवम्बर 2021 में आयोजित COP 26 में भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के अपने प्रयास में एक और कामयाबी हासिल की। इसने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं की घोषणा की। इसका न केवल देश के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन जैसी एक अथाह चुनौती से निपटने के लिए नई दिल्ली द्वारा की गई अतिरिक्त प्रतिबद्धताओं को भी देखा-सराहा गया। यह देखना भी बहुत प्रभावशाली था कि उसका यह संकल्प 'जलवायु वित्त' और 'जलवायु न्याय' के दो मूल सिद्धांतों पर टिका हुआ है, जिस पर यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी नीतियों को आधार बनाता है और उसे अपेक्षित रूप देता है। COP 26 के ग्लासगो समझौते में कोयले के उपयोग "फेज आउट" करने की बजाए "फेज डाउन" की शब्दावली गढ़ने में भारत के अंतिम मिनट के हस्तक्षेप की भले आलोचना की गई पर यह शिखर सम्मेलन नई दिल्ली के दृष्टिकोण से सफल साबित रहा क्योंकि वह विकासशील दुनिया के सरोकारों को थोड़े में प्रस्तुत करने में कामयाब रहा। इसके अलावा, कुछ साहसिक प्रतिबद्धताओं के साथ, भारत उस सम्मेलन एक विशिष्ट आभा से दमक रहा था और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों एवं आर्थिक विकास दोनों को संतुलित करने की अपनी क्षमता के प्रदर्शन के साथ सम्मेलन में भाग लेने वाले बाकी देशों से विशिष्ट दिखाई दिया।
स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के मामले में, नई दिल्ली ने एक और सफलता हासिल की। भारत को ऊर्जा में आत्मनिर्भर बनाने और हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए उसने एक वैश्विक केंद्र बनने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की स्थापना की घोषणा की। भारत के एक और विकास जिसने सम्मेलन में काफी सुर्खियां बटोरीं, वह था-इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की दिशा में भारत की तेज गति से प्रगति, और शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने के निर्धारित लक्ष्य के साथ 2030 तक भारतीय रेलवे का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण करना।
जलवायु परिवर्तन मानव जाति के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है और इसका प्रभाव व्यापक रूप से समय के साथ खराब होने की उम्मीद है। भारत इस तथ्य को स्वीकार करता है और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सक्रिय रूप से खुद को शामिल किया है, जिसके निशान 2021 में भी देखा गया था। यह 'सक्रिय भागीदारी' आने वाले वर्षों में जलवायु संकट से निपटने में वैश्विक सहयोग में भारत की भूमिका को आकार देगी। यह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विकासशील देशों की आवाज बनी रहेगी और उनकी चिंताओं को उठाएगी। इंटरनेशनल सोलर एलायंस (आईएसए), कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई), लीड इट और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसी पहलों ने आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भारत के लिए और अधिक पहल करने का मार्ग प्रशस्त किया और इसके खिलाफ लड़ाई में इसे वैश्विक महाशक्ति बनाया है। नई दिल्ली विभिन्न द्विपक्षीय और साथ ही बहुपक्षीय मंचों पर जलवायु वित्त के बारे में बात करना जारी रखेगी और जलवायु परिवर्तन जैसे एक अतुलनीय मुद्दे से निपटने के लिए अधिक न्यायपूर्ण वातावरण पर जोर देगी। यद्यपि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियाँ और प्रभाव और भी बदतर होंगे, मौजूदा उपायों के साथ, भारत अधिक लचीला बनने के लिए सही रास्ते पर है। कुल मिलाकर, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत की प्रमुख भूमिका बनी रहेगी।
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