मध्य एशिया के लिए बीता साल 2021 बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। यह वर्ष सोवियत संघ के 1991 में विघटन के बाद से उसमें से छिटके मध्य एशियाई देशों की स्वतंत्रता के भी तीन दशक पूरे होने का साल है। मध्य एशिया की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए COVID-19 महामारी के सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य-प्रभाव विनाशकारी ही रहे हैं। उन देशों ने आम लोगों के जीवन पर महामारी के दुष्परिणामों को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाए, संक्रमित लोगों को क्वारंटाइन किया और इससे निबटने के लिए राहत पैकेजों की घोषणा जैसे कुछ उपायों पर अमल किया। हालांकि, आर्थिक असमानता फिर भी व्यापक हो गई है, जिससे ऊब कर लोगों ने अपनी सरकारों का विरोध किया है और उनके खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। इनके साथ ही, कोरोना महामारी ने चीन जैसे प्रमुख खिलाड़ियों को मध्य एशिया में अपनी चिकित्सा कूटनीति खेलने का भी एक अवसर प्रदान किया है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करना उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे अग्रिम पंक्ति के देशों के लिए जैसे एक अग्निपरीक्षा साबित हो गई है। यह मध्य एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक कसौटी भी साबित हुई है। अफगानिस्तान, ऊर्जा कूटनीति, बदलते अंतर्देशीय संबंध, और प्रमुख शक्तियों की गतिशीलता विगत 2021 वर्ष के अपने कुछ प्रमुख आकर्षण हैं।
हाल के दिनों में मध्य एशिया में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाया गया है। उज्बेकिस्तान की कूटनीतिक सक्रियता के कारण मध्य एशिया में अंतर्देशीय संबंध अपने सबसे अच्छे स्तर पर रहे हैं। यही वजह है कि मध्य एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को पुन: व्यवस्थित करने के ताशकंद के प्रयासों के कुछ सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। इन्हीं महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है, सभी मध्य एशियाई देशों के प्रमुखों की परामर्श बैठक का होना। तीसरी बैठक 6 अगस्त, 2021 को तुर्कमेनिस्तान में हुई थी। इसके पहले, दो अन्य बैठकें क्रमशः 2018 और 2019 में नूरसुल्तान और ताशकंद में आयोजित की गईं थीं।[1]
तीसरी बैठक में चर्चा किए गए कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों में अफगानिस्तान, कोविड-19 महामारी के परिणाम और कनेक्टिविटी शामिल थे। हालांकि प्रत्येक मध्य एशियाई देश का अपने भू-राजनीतिक हितों और घरेलू स्थिति के आधार पर अफगानिस्तान के बारे में एक निश्चित दृष्टिकोण है। पर उनके बीच इस बात पर सहमति है कि क्षेत्रीय संपर्क विकसित किया जाए और कोविड से उबरने के बाद सहयोग बढ़ाया जाए। यह इसी क्षेत्रीय सहयोग में वृद्धि की सहमति का नतीजा है जिससे कि मध्य एशिया में अंतर-राज्यीय व्यापार दोगुना हो गया है, और यह भी उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह बढ़ जाएगा।
तुर्कमेनिस्तान और अजरबैजान कैस्पियन सागर में सीमावर्ती देश हैं, फिर भी दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्यिक संबंध सीमित रहा है। उनके बीच तनावपूर्ण संबंध मुख्य रूप से कैस्पियन सागर के संसाधनों को साझा करने के विवादों के कारण थे। लेकिन पिछले वर्ष इन देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण विकास हुए हैं। कज़ाख शहर अकटाऊ में 'कैस्पियन सागर की कानूनी स्थिति पर कन्वेंशन' पर अगस्त 2018 में किए गए हस्ताक्षर ने अज़रबैजान के माध्यम से यूरोप में तुर्कमेन गैस निर्यात की संभावना को बढ़ाया है। इसने ट्रांस-कैस्पियन गैस पाइपलाइन (TCGP) को भी बढ़ावा दिया है। TCGP जो तुर्कमेनिस्तान के गैस निर्यात के विविधीकरण के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है, अज़रबैजान के सहयोग के बिना अमल में नहीं लाया जा सकता है जबकि अज़रबैजान को यूरोप में तुर्कमेन गैस पहुंचाने वाले पारगमन के रूप में लाभ मिल सकता है।
इससे संबंधित विकासक्रम में, अज़रबैजान और तुर्कमेनिस्तान ने 21 जनवरी, 2021 को कैस्पियन सागर में 'दोस्तलुग' (मैत्री) क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन संसाधनों के पारस्परिक अन्वेषण और दोहन के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था।[2] अज़रबैजान और तुर्कमेनिस्तान के बीच समझौता पिछले दो वर्षों में हुए संबंधों और पक्षों के बीच बढ़ते संपर्क का एक फल है। उनके बीच सहयोग संभवतः ऊर्जा क्षेत्र से परे कई अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित होगा। संभावित अगला क्षेत्र परिवहन लिंक का विस्तार होगा। पड़ोसी राज्य होने के बावजूद, दोनों देशों के कुछ ही नागरिक एक-दूसरे के क्षेत्रों में आवाजाही करते हैं, और दोनों देशों के बीच संस्थागत संबंधों का अभाव है।[3] इस परिप्रेक्ष्य में, लोगों से लोगों के संबंध भी बढ़ने की संभावना है। तुर्कमेनिस्तान का प्राकृतिक गैस निर्यात मुख्य रूप से चीन पर निर्भर है। इस वैकल्पिक गैस निर्यात मार्ग को सुगम बनाना अश्गाबात की ऊर्जा कूटनीति के लिए रणनीतिक रूप से लाभप्रद होगा। हाल ही में, तुर्कमेनिस्तान भी एक पर्यवेक्षक के रूप में तुर्क परिषद में शामिल हुआ है, जो तुर्कमेन-अज़रबैजान संबंधों और ऊर्जा संबंधों को और मजबूत करने में मदद करेगा।
15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने काबुल पर अधिकार कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार गिर गई। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी अपरिहार्य लग रही थी, लेकिन कुछ लोगों को यह अनुमान नहीं था कि यह इतनी जल्दी गिर जाएगी। इसी वजह से सीएआर इस विकास के संभावित परिणामों को लेकर काफी चिंतित हैं। अफगानिस्तान की उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ सीमा लगती है, और वहां तालिबान की हुकूमत कायम होने से उन देशों की आंतरिक सुरक्षा के लिए सीधा खतरा उत्पन्न हो गया है। परिणामस्वरूप, ताजिकिस्तान को छोड़कर, पड़ोसी मध्य एशियाई गणराज्यों ने अपनी संभावित सुरक्षा पर खतरों से निबटने की तैयारी के क्रम में तालिबान को भी राजनयिक स्तर पर शामिल किया है।[4]
तालिबान के काबुल पर दखल के जवाब में, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान ने अपनी सीमा सील कर दी थी और सैन्य रूप से लामबंद हो गए थे। इसी तरह, पूर्व सोवियत संघ का एक सदस्य, ताजिकिस्तान ने सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) का नेतृत्व किया था, ताजिक-अफगान सीमा पर सेना जुटाई और सीएसटीओ से अतिरिक्त मदद मांगी। मध्य एशिया में सुरक्षा प्रदाता रूस ने अफगान सीमा के पास उज्बेकिस्तान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किया। ताजिकिस्तान में, अफगान सीमा के पास, रूस, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया। इन सैन्य अभ्यासों ने तालिबान के फिर से संघटित होने से उत्पन्न कठिनाइयों का सामना करने के लिए सीएआर की तैयारी का प्रदर्शन किया।[5]
वर्तमान में, ताजिकिस्तान को छोड़कर, अन्य सीएआर कुछ स्तरों पर तालिबान के साथ जुड़े हुए हैं। उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के अफगानिस्तान में अपने-अपने आर्थिक हित हैं। उज़्बेकिस्तान दोगुना लैंडलॉक है; इसलिए, यह अफगानिस्तान के माध्यम से पाकिस्तानी बंदरगाहों तक पहुंच बनाने की इच्छा रखता है, जबकि तुर्कमेनिस्तान काबुल के लिए मुख्य बिजली प्रदाताओं में से एक है और अफगानिस्तान के लापीस लाजुली कॉरिडोर के लिए पारगमन के रूप में भी महत्त्वपूर्ण है। अफगानिस्तान भी तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) पाइपलाइन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इसलिए, ये वही देश हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता की शुरुआत की। वे अफगानिस्तान को सहायता प्रदान करने के लिए अन्य क्षेत्रीय देशों पर भी जोर देते रहते हैं। लेकिन उनके आर्थिक हितों को तभी पूरा किया जा सकता है, जब देश में स्थिरता का वातावरण हो और तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल जाए। कजाकिस्तान और किर्गिस्तान ने भी तालिबान सरकार के साथ सहकारी ढांचे पर चर्चा करने के लिए अपने प्रतिनिधियों को काबुल भेजा था।
राष्ट्रपति मिर्जियोयेव ने दक्षिण और मध्य एशिया के बीच अधिक से अधिक संपर्क की वकालत की है। और, दक्षिण तथा मध्य एशिया के बीच संपर्क विकसित करने के लिए अफगानिस्तान में स्थिरता का होना एक पूर्व शर्त है। ताशकंद की कनेक्टिविटी-पहल को आगे बढ़ाने के लिए, राष्ट्रपति मिर्जियोयेव ने जुलाई 2021 में इसी विषय पर एक उच्चस्तरीय सम्मेलन बुलाया था। इस सम्मेलन के मुख्य वक्ता पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान थे। काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के के साथ, इस्लामाबाद अब अफगानिस्तान में एक लाभप्रद स्थिति का उपभोग कर रहा है। वहीं, हाल के वर्षों में, पाकिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्य के बीच संबंधों में सुधार हुआ है। ट्रांस-अफगान रेलवे लाइन, जो वर्तमान टर्मेज-मजार-ए-शरीफ रेलवे लाइन का विस्तार होगी, ताशकंद-इस्लामाबाद सहयोग का एक अनिवार्य हिस्सा है। तुर्कमेनिस्तान ने भी इस परियोजना में शामिल होने में अपनी दिलचस्पी जाहिर की है।[6]
जैसा कि इस लेख में पहले ही उल्लेख किया गया है, मध्य एशिया में अंतरदेशीय संबंधों में सुधार हुआ है। उज्बेकिस्तान ने ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान दोनों के साथ अपने सीमा विवादों को सुलझा लिया है। इन देशों के बीच सीमा निर्धारण प्रक्रिया भी अच्छी तरह से आगे बढ़ी है। हालांकि, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच विवाद अनसुलझे रहे। पिछले साल अप्रैल 2021 के अंत में इन देशों के बीच बड़े पैमाने पर संघर्ष छिड़ा, जो दशकों में सबसे खराब संघर्ष रहा है। 28 अप्रैल को जो विवाद शुरू हुआ था, वह ताजिक अधिकारियों द्वारा एक जलाशय के एक सेवन स्टेशन पर निगरानी कैमरों की स्थापना के बाद बढ़ गया था। यह जलाशय विवादित क्षेत्र में स्थित है। यह अगले दो दिनों में दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच बड़ी लड़ाई में बदल गया। इस संघर्ष में 50 से अधिक ताजिक और किर्गिज़ लोग मारे गए एवं 200 से अधिक घायल हुए थे। दोनों देशों में घरों, स्कूलों और दुकानों को काफी नुकसान पहुंचा और हजारों लोग विस्थापित हुए थे।[7]
जल बंटवारे पर हिंसा किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच दशकों से बिगड़ते संबंधों का प्रतीक है। ये देश प्रेषण पर बहुत अधिक निर्भर हैं और COVID-19 महामारी ने आर्थिक कठिनाई को और बढ़ा दिया है। जलवायु परिवर्तन का पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिससे भूमि और जल बंटवारे पर बहुत अधिक दबाव बढ़ गया है। इसके अलावा, बढ़ती राष्ट्रवादी बयानबाजी और आर्थिक अस्थिरता ने विवादित क्षेत्रों में तनाव बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
रूस और चीन इस क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी बने हुए हैं। अफगानिस्तान और कोविड-19 महामारी से संबंधित बदलते क्षेत्रीय परिवेश के साथ उनकी स्थिति मजबूत हुई है। मध्य एशिया में सुरक्षा प्रबंधक के रूप में रूस की भूमिका अफगानिस्तान के तालिबान के अधिग्रहण के साथ पुनरुज्जीवित हो गई है। दूसरी ओर, चीन ने इस क्षेत्र में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में अपना दबदबा कायम रखा है। पहली बैठक जुलाई 2020 में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई थी। चीन ने महामारी के बाद आर्थिक सहयोग के अवसरों की जांच के लिए मध्य एशिया के साथ इस नए संवाद तंत्र की स्थापना की है।
यह दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पेइचिंग के पास पहले से ही सभी सीएआर के साथ अच्छे और मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। चीन उन्हें एक साझा मंच पर भी लाता है, जैसे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ)। इस नई पद्धति को संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और भारत जैसे अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखा गया है। दूसरी बैठक दो मुख्य कारणों से महत्त्वपूर्ण थी; पहली, यह चीन में आयोजित की गई थी, और दूसरी बात यह कि, इसमें महामारी के बीच सीएआर के विदेश मंत्रियों ने भौतिक रूप से भाग लिया था। यह सीएआर नेतृत्व के पेइचिंग में किया गया निवेश उसके भरोसे के परिमाण को दर्शाता है। यह क्षेत्र के अन्य किरदारों, मुख्य रूप से रूस के बारे में चिंतित हुए बिना मध्य एशिया से निपटने में चीन के विश्वास को भी प्रदर्शित करता है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने द्विपक्षीय आधार पर किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के मंत्रियों से भी मुलाकात की थी।
मध्य एशिया चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो कोविड-19 महामारी से भी दुष्प्रभावित हुआ है। महामारी के बाद ठीक होने में मध्य एशिया को चीन के बढ़े हुए समर्थन का उद्देश्य अपनी बीआरआइ परियोजनाओं में तेजी लाना है। इसके अलावा, मध्य एशियाई क्षेत्र में बढ़ते सिनोफोबिया का मुकाबला करने के लिए पेइचिंग की ओर से यह वास्तव में एक आवश्यक प्रतिक्रिया है।
भारत-मध्य एशिया संबंधों ने हाल के दिनों में गति पकड़ी है। भारत ने COVID-19 महामारी के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करके इस क्षेत्र को अपना समर्थन दिया है।[8] जुलाई 2021 में, विदेश मंत्री डॉ.एस.जयशंकर ने एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए ताजिकिस्तान का दौरा किया था। उन्होंने अपनी यात्रा के दूसरे चरण में, उज़्बेक सरकार द्वारा आयोजित क्षेत्रीय संपर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए ताशकंद का दौरा किया था। बाद में अक्टूबर 2021 में डॉ.जयशंकर ने किर्गिस्तान और कजाकिस्तान का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने विकास परियोजनाओं के लिए किर्गिस्तान को 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट(एलओसी) देने की भी घोषणा की थी।[9] इन यात्राओं ने 2021 में भारत और मध्य एशिया के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा तय की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 17 सितम्बर, 2021 को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से 21वें SCO शिखर सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने अपने भाषण में कट्टरपंथ और उग्रवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, जिसमें आतंकवाद के वित्तपोषण और सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए एक व्यापक योजना के विकास का आह्वान किया गया था। पीएम मोदी ने मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी में सुधार के लिए भारत की प्रतिबद्धताओं को भी आगे बढ़ाया। उन्होंने चीन की बीआरआइ की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा कि किसी भी कनेक्टिविटी पहल को लागू करते समय क्षेत्रीय अखंडता का मान-सम्मान किया जाना चाहिए।[10]
अफगानिस्तान के विकास के लिए भारत और सीएआर के बीच घनिष्ठ सहयोग करने की आवश्यकता है। हालांकि, तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ, भारत की अफगानिस्तान नीति को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। भारत ने पहले तालिबान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, फिर एक समावेशी सरकार के साथ एक स्थिर अफगानिस्तान की मांग की, जो किसी भी रूप में उसके साथ बातचीत करने की एक पूर्व शर्त के रूप में है। अफगानिस्तान में अपनी सक्रिय कूटनीति के हिस्से के रूप में, नई दिल्ली ने 10 नवम्बर, 2021 को अफगानिस्तान पर एक क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता आयोजित की, जिसमें सीएआर, रूस और ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने एक साथ भाग लिया था। सम्मेलन में आए सभी प्रतिभागियों ने अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता बनाए रखने और आतंकवाद और अवैध मादक पदार्थों की तस्करी का मुकाबला करने के लिए मिलकर काम करने पर सहमति व्यक्त की। इसके अलावा, प्रतिभागी देशों के एनएसए काबुल में एक समावेशी सरकार बनाने पर सहमत हुए और इस बात की पुष्टि की कि किसी अन्य देश के खिलाफ अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।[11]
भारत की मध्य एशिया नीति के सकारात्मक परिणाम के रूप में, भारत-मध्य एशिया वार्ता का तीसरा संस्करण दिसम्बर 2021 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया, जिसने भारत और सीएआर के बीच आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ाया गया। पारस्परिक संबंधों में निरंतरता द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण हो गई है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों से सामूहिक से मिले और वन टू वन भी मुलाकात की। उन्होंने चार ‘सी’ पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया: वाणिज्य, क्षमता निर्माण, संलग्नता और संपर्क। सीएआर के विदेशमंत्रियों ने भी पीएम मोदी से मुलाकात की। मध्य एशिया में भारत की उपस्थिति को आगे बढ़ाने में ये कारक महत्त्वपूर्ण हैं। बहरहाल, दोनों क्षेत्रों के बीच आगे सहयोग की अपार संभावनाएं हैं।[12]
अफगानिस्तान में विकास को बारीकी से देखने की जरूरत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि मध्य एशियाई देश तालिबान से कैसे निपटते हैं। अब तक, यह मानवीय सहायता तक ही सीमित रहा है, लेकिन देश के बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण के लिए व्यापक सहयोग आवश्यक है। इसके साथ ही मध्य एशिया में चरमपंथ और आतंकवाद के फैलने की संभावना पर भी नजर रखने की जरूरत है।
2022 की शुरुआत से, सामाजिक-आर्थिक असमानता को लेकर कजाकिस्तान में सरकारों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। यह हमें 2019 में लौटाता है, जब इसी तरह के विरोध प्रदर्शनों ने राष्ट्रपति नज़रबायेव को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। हालाँकि, नए कज़ाख राष्ट्रपति टोकायव ने व्यापक आर्थिक और संवैधानिक परिवर्तन शुरू किए हैं, परंतु ये बदलाव लोगों को खुश नहीं कर पाए हैं। कजाकिस्तान की सरकार इन विरोधों को कैसे संभालती है, यह कजाकिस्तान में घरेलू राजनीति के परिपथ के साथ-साथ क्षेत्रीय गतिशीलता को भी तय करेगा।
मध्य एशिया में रूस-चीन संबंध परस्पर लाभकारी सिद्ध हुए हैं। रूस सुरक्षा की संरचना पर हावी है, जबकि चीन मध्य एशिया के आर्थिक घटकों में अपना प्रभुत्व बनाए रखे हुए है। अफगानिस्तान के विकास के साथ, मध्य एशिया की सुरक्षा में रूस और चीन का प्रभाव बढ़ेगा। ताजिकिस्तान में चीनी सैन्य ठिकाने के दावे पहले से ही होते रहे हैं। स्थिति विकसित होने पर यह मॉस्को और पेइचिंग के बीच विवाद का विषय हो सकता है। हालांकि, रूस और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका और पश्चिम के बीच शत्रुता बढ़ने के साथ, रूस-चीन टकराव की संभावनाएं सीमित हैं।
मध्य एशिया में आर्थिक और व्यापारिक भागीदारों के रूप में जापान और दक्षिण कोरिया ने उत्तरोत्तर महत्त्व प्राप्त किया है। रूस और चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए सीएआर इन देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा दे रहे हैं। तुर्की और यूरोपीय संघ ने भी मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये राष्ट्र मध्य एशिया के पहले से ही जटिल भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पांच मध्य एशियाई देशों के प्रमुखों को 2022 में भारत के 73वें गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। इस यात्रा के दौरान भारतीय और मध्य एशियाई नेता शिखर स्तरीय बैठक होगी, जो भारत की मध्य एशिया रणनीति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। दूसरी ओर, नई दिल्ली को सार्थक परिणाम प्राप्त करने के लिए मध्य एशिया के साथ संपर्क, व्यापार और वाणिज्यिक संबंधों को बढ़ावा देना होगा। जब तक अफगानिस्तान में स्थिति स्थिर नहीं हो जाती, भारत को मध्य एशिया को ईरान से जोड़ने की जांच करनी चाहिए, जहां बुनियादी ढांचा पहले से मौजूद है।
[1]थर्ड कॉन्सुलेटिव मीटिंग ऑफ हेड्स ऑफ दि सेंट्रल एशियन स्टेट्स: सम पर्सपेक्टिव्स, डिप्लोमेसी इंडिया, 8 अगस्त 2021 https://diplomacyindia.com/third-consultative-meeting-of-heads-of-the-central-asian-states-some-perspectives-29193/
[2] येहुन अलीएव, “अजरबैजान, तुर्केमिस्तान साइन डील ऑन कैस्पियन हाइड्रोकॉर्बन फिल्ड”, अनादोलु एजेंसी, 22 जनवरी 2021.https://www.aa.com.tr/en/economy/azerbaijan-turkmenistan-sign-deal-on-caspian-hydrocarbon-field/2118835
[3]ब्रेंडा शैफर, “मोर दैन जस्ट फ्रेंड्स? न्यू अजरबैजान-तुर्केमिनस्तान एग्रीमेंट ऑन ज्वाइंट एनर्जी प्रोडक्शन इन दि कैस्पियन सी”, सीएसीआइ एनालिस्ट, 16 फरवरी 2021. https://www.cacianalyst.org/publications/analytical-articles/item/13662-more-than-just-friends?-new-azerbaijan-turkmenistan-agreement-on-joint-energy-production-in-the-caspian-sea.html
[4] ‘डवलपमेंट इन अफगानिस्तान: कन्सर्न फॉर रसिया’ज सेंट्रल एशिया पॉलिसी,’ आर्टिकल, VIF, 13 अगस्त 2021. https://www.vifindia.org/article/2021/august/13/developments-in-afghanistan-concerns-for-russia-s-central-asia-policy
[5]वही।
[6] ‘व्हाइ आर सेंट्रल एशियन रिपब्लिक्स वूइंग पाकिस्तान?’, आर्टिकल, VIF, 15 जुलाई 15, 2021. https://www.vifindia.org/article/2021/july/15/why-are-central-asian-republics-wooing-pakistan
[7] ‘बेस्ट ऑफ 2021: व्हाट ड्रोव दि वर्स्ट किर्गिज-ताजिक कनफलिक्ट इन ईयर्स?’, दि थर्ड पोल, 24 दिसम्बर 2021. https://www.thethirdpole.net/en/regional-cooperation/climate-nationalism-unresolved-borders-and-the-pandemic-drove-kyrgyz-tajik-conflict/
[8] ‘इंडिया’ज मेडिकल डिप्लोमेसी इन सेंट्रल एशिया एमिड कोविड-19’, दि डिप्लोमेसी एंड बियोंज प्लस, 25 जून 2020. https://diplomacybeyond.com/indias-medical-diplomacy-in-central-asia-amid-covid-19/
[9] ‘इंडिया एग्रीज ऑन $200 मिलियन एलओसी सपोर्ट टू किर्गिस्तान, से एस.जयशंकर’, दि बिजनेस स्टैंडर्ड, 11 अक्टूबर 2021. https://www.business-standard.com/article/international/india-agrees-on-200-million-loc-support-to-kyrgyzstan-says-s-jaishankar-121101100373_1.html
[10] ‘पीएम मोदी एट एससीओ सम्मिट: सिक्युरिटी ए चैलेंज एंड रूट कॉज इज रैडिक्लाइजेशन, अफगानिस्तान एन एक्जाम्पल’, इंडिया टुडे, 17 सितम्बर, 2021. https://www.indiatoday.in/india/story/pm-narendra-modi-sco-summit-address-on-islam-radicalisation-1853828-2021-09-17
[11] ‘थर्ड एडिशन ऑफ इंडिया-चाइना डायलॉग: ब्लॉस्टरिंग इंडिया’ज सेंट्रल एशिया पॉलिसी’, आर्टिकल, VIF 30 दिसम्बर 2021 https://www.vifindia.org/article/2021/december/30/third-edition-of-india-central-asia-dialogue-bolstering-indias-central-asia-policy
[12] वही।
Image Source: https://central.asia-news.com/cnmi_ca/images/2021/08/11/31146-ca_leaders_1-739_416.jpg
Post new comment