पाकिस्तान में हालात: इमरान खान सरकार पर बनता-बढ़ता दबाव
Arvind Gupta, Director, VIF

इमरान खान की सरकार फिसलन भरी है। नए डीजी आइएसआइ की नियुक्ति के एक अनोखे मामले पर सरकार और सेना के बीच भरोसा टूट गया है। दोनों पक्ष अब एक 'पेज' पर नहीं हैं। यह सरकार के लिए परेशानी का सबब है। पाकिस्तान में कई विश्लेषक इमरान खान सरकार के आसन्न पतन की भविष्यवाणी कर रहे हैं।

आइएसआइ के नए डीजी लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम 19 नवम्बर 2021 को पदभार ग्रहण करने वाले हैं। पाकिस्तानी सेना ने उनकी नियुक्ति की एकतरफा घोषणा करते हुए 6 अक्टूबर को अधिसूचना जारी कर दी थी। प्रधानमंत्री इमरान खान ने अप्रत्याशित रूप से यह कहते हुए इस घोषणा पर ऐतराज जताया था कि नियमों के मुताबिक इस विषय में पहले उनकी राय नहीं ली गई। उन्होंने खुले तौर पर यह भी कहा कि वे मौजूदा डीजी लेफ्टिनेंट जनरल फैयाज हमीद को कुछ और समय तक पद पर बने रहने देना चाहते हैं। हमीद को इमरान खान का कट्टर समर्थक माना जाता है।

इस प्रकार पाकिस्तानी सरकार में एक संकट शुरू हो गया है, जो अब नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। हालांकि, इमरान खान ने अंततः जनरल बाजवा की पसंद का समर्थन किया, लेकिन इसके पहले उन्होंने इस पद के लिए जनरलों का एक पैनल बनाने पर जोर दिया और उनमें लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम समेत तीन लोगों के साक्षात्कार लेने की बात कही। सेना के बरअक्स तुलना में आजाद ख्याली के इस अभूतपूर्व सार्वजनिक प्रदर्शन ने सेना के साथ सरकार के अब तक के मधुर संबंधों को खट्टा कर दिया। हालांकि सेना ने 2018 में प्रधानमंत्री के रूप में इमरान खान के 'चयन' में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

सैन्य-नागरिक शासन की इस 'हाइब्रिड' प्रणाली ने 2018 से यथोचित रूप से ठीक काम किया था। नीति के मोर्चे पर इमरान खान सरकार की तरफ से पैदा की गईं अनगिनत गलतफहमियों के बावजूद सेना ने अपना समर्थन वापस नहीं लिया। लेकिन, पाकिस्तानी विश्लेषकों के अनुसार, नवीनतम प्रकरण ने इस हाइब्रिड सिस्टम को नष्ट कर दिया है। इसके बाद विश्वास बहाल करना मुश्किल होगा।

पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान के हालात कई मोर्चों पर खराब हुए हैं। आर्थिक स्थिति नाजुक है। महंगाई दहाई अंक में बढ़ रही है। कर्ज का बोझ, जीडीपी के लगभग 100 प्रतिशत तक चला गया है। पेट्रोलियम, चीनी और गेहूं के आटे की ऊंची कीमतों से आम लोग हलकान हैं। तो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने भी पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में उसकी पोजिशन को बरकरार रखा है। आइएमएफ के साथ पाकिस्तान की बातचीत ठप हो गई है। आइएमएफ ऊर्जा की कीमतें बढ़ाने और कर दायरे को व्यापक बनाने जैसी सख्त शर्तों को लागू करने पर जोर दे रहा है। पाकिस्तानी रुपये में खतरनाक गिरावट आई है। एकमात्र बचत अनुग्रह विदेशों में रह रहे पाकिस्तानियों से हर महीने लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर प्रेषण की आमद के रूप हो रहा है। पर यह पर्याप्त नहीं है। हाल ही में, सऊदी अरब ने पाकिस्तानी बैंकों में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पार्किंग करके और आयातित तेल के भुगतान को टाल कर कुछ राहत प्रदान की है। लेकिन इस तरह के तदर्थ उपाय अर्थव्यवस्था को और डूबने से नहीं बचाएंगे। उच्च ब्याज दरों और कई अन्य कारकों के कारण पाकिस्तान में आर्थिक उत्पादकता कम हो गई है।

जनरल बाजवा ने इस साल अप्रैल में दिए अपने एक बहुप्रचारित भाषण में पाकिस्तान की विदेश और सुरक्षा नीतियों में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत दिया था। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान अपने पड़ोसियों के साथ सामान्य संबंध बनाना चाहता है। इसके बाद, पाकिस्तान भू-आर्थिकी पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा और कनेक्टिविटी बनाने के लिए अपनी भौगोलिक अवस्थिति का लाभ उठाएगा। उन्होंने पाकिस्तान के लिए एक सुरक्षा राज्य की बजाय एक सामान्य राज्य बनने की भी वकालत की, जो अब वह बन गया है। लेकिन बाजवा के दिए गए उन आश्वासनों से धरातल पर कोई बदलाव नहीं हुआ। अकेले कश्मीर और कश्मीर पर केंद्रित भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत की स्थापना, जिसका इमरान खान ने बढ़-चढ़ कर स्वागत किया, वह पाकिस्तान के लिए एक नाशकारी जीत साबित हो रही है।

इमरान खान की अस्पष्ट और असंगत नीतियों के कारण धार्मिक समूहों की गतिविधियों के लिए नई लहर मिल गई है। सरकार को उस समय शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था, जब उसे धार्मिक पार्टी तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान (टीएलपी) पर एक दिन प्रतिबंध लगाने और फिर रात भर में उस फैसले को रद्द कर उसके साथ एक गुप्त समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा। खून खराबा करने में उस्ताद टीएलपी के पास सड़कों पर काफी ताकत है और वह इस्लामाबाद में तैनात फ्रांसीसी राजदूत को देश से निष्कासित करने की मांग कर रहा है। टीएलपी के अलावा, इमरान सरकार अब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को खुश करने की कोशिश कर रही है, जो एक आतंकवादी समूह है, जिसे अफगानिस्तान में पनाह मिलती है और तालिबान का समर्थन भी। आर्मी पब्लिक स्कूल (APS) में हमले के लिए जिम्मेदार टीटीपी के साथ बातचीत शुरू करने पर सरकार आलोचनाओं के घेरे में आ गई है।

इन सबसे इमरान खान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। वे हर तरफ से दबाव में घिरते जा रहे हैं। यहां तक कि न्यायपालिका भी उन पर बरस रही है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तलब किया था और पूछा था कि पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ,जो एपीएस हमले के समय प्रभारी थे, उनके सहित सरकार के उच्च पदस्थ एवं ताकतवर लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? सरकार के पास जवाब दाखिल करने के लिए एक महीने का समय है। हालांकि ऐसी संभावना नहीं है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुझाव के अनुसार कार्रवाई करने की स्थिति में है।

जनरल फैयाज के जाने और नदीम अंजुम के आने से राजनीतिक दलों में यह संदेश गया है कि जिस सैन्य प्रतिष्ठान ने इमरान खान को सत्ता में लाया था, वह अब उनका समर्थन करने के लिए इच्छुक नहीं है। इमरान खान सरकार के पास नेशनल असेंबली में बहुत कम बहुमत है। उनके गठबंधन सहयोगी पीएमएलक्यू और एमक्यूएम अब बेचैन हो रहे हैं। उन्होंने उनसे सलाह न लेने और उनके समर्थन को हल्के में लेने के लिए इमरान सरकार की आलोचना करना शुरू कर दिया है। इन सबसे विपक्षी पार्टियों का हौसला फिर बढ़ गया है। पीपल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट, जेयूआइ, पीपीपी और पीएमएलएन का समूह, जिसने इस साल की शुरुआत में कई रैलियां की थीं, लेकिन वे अपनी ऊष्मा खो चुकी थी, अब यह समूह फिर से सक्रिय हो रहा है। इसने हाल ही में कराची में एक जनसभा आयोजित की थी और जल्द ही ऐसी और रैलियों करने की योजना बना रहा है। यह माना जा रहा है कि नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ सैन्य प्रतिष्ठान के संपर्क में हैं। यहां तक कि पीडीएम के मुखिया मौलाना फजलुर रहमान ने भी सरेआम सेना की तारीफ करनी शुरू कर दी है।

पाकिस्तान में सियासी माहौल तेजी से बदला है और इमरान खान के खिलाफ हो गया है। यदि उनकी सरकार से सैन्य समर्थन वापस ले लिया जाता है, तो इमरान खान की हुकूमत नहीं टिकेगी। उनका नया पाकिस्तान बनाने और इस्लामिक कल्याणकारी राज्य रियासत-ए-मदीना की स्थापना का सपना चकनाचूर हो गया है।

पाकिस्तान में विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि सैन्य प्रतिष्ठान ने इमरान खान की सरकार को चलता करने का मन बना लिया है, लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है कि इस काम को आगे कैसे किया जाना है।

एक परिदृश्य तो यह है कि सैन्य प्रतिष्ठान हुकूमत का चेहरा बदल दे और पीटीआइ को समर्थन करने की बजाय, शाहबाज शरीफ के नेतृत्व में पीएमएलएन का समर्थन करे। एक दूसरी सूरत यह हो सकती है कि नए सिरे से चुनाव कराया जाए। हालांकि इसमें यह भी देखना होगा कि इमरान खान इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे। क्या वे हताशा में कुछ करेंगे? क्या वे बिना लड़े ही हार मान लेंगे? उनके पास विकल्प क्या हैं? और इस स्तर पर कोई स्पष्टता नहीं है। उधर, जनरल बाजवा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

इमरान खान सरकार कब तक चलेगी? इसे लेकर कोई बहुत निश्चित नहीं हो सकता। पाकिस्तानी विश्लेषक अलग-अलग अनुमान देते हैं-कुछ कहते हैं कि इमरान सरकार कुछ दिनों की या ज्यादा से ज्यादा कुछ महीनों तक ही चलेगी। लेकिन कई लोगों को लगता है कि सरकार के दिन गिने-चुने रह गए हैं। जो भी हो, पर पाकिस्तान अनिश्चितता के दौर में दाखिल हो गया है। उधर, अफगानिस्तान पहले से ही एक कठिन भविष्य का सामना कर रहा है, जो इस क्षेत्र के लिए काफी राहत की बात है। फिर भी भारत को सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इन घटनाक्रमों से उसके सुरक्षा हित कहीं से भी खतरे में न पड़ें।


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://english.cdn.zeenews.com/sites/default/files/2021/04/22/931327-imran-khan.gif

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