कॉप 26 : शुद्ध सकारात्मक और कॉरपोरेट के सामाजिक उत्तरदायित्व
Dr Swati Mitra

विलुप्त होते डायनासोर को लेकर ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 सम्मेलन में एक सहानुभूति अपील की गई थी, जिसका शीर्षक था-"विलुप्त होना कितना बुरा है"। इस अपील ने हर निर्णय निर्माता, नागरिक समाज, कॉरपोरेट, शिक्षाविदों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। इसने कोरोना वायरस से फैले अंतहीन संकटों के बीच जलवायु परिवर्तन एवं जलवायु की स्थिरता के प्रति वास्तविक रूप से प्रतिबद्ध होने के लिए दुनिया का आह्वान किया। भारत में नागरिक पुरस्कार समारोह को आम तौर पर लापरवाही से देखा जाता है और हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में निवेशक जेड एमर्सन के स्थिरता पर प्रकाशित लेख को भी यों ही देखा जाता है, जिसमें कॉरपोरेट के सामाजिक मूल्य, कार्बन तटस्थता, शुद्ध सकारात्मकता, साझा मूल्य या मिश्रित मूल्य जैसे शब्दों/अवधारणाओं के प्रति सरोकार जताया गया था। इसके बरअक्स पद्मश्री सम्मान, जो कि भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, उसको ग्रहण करने के लिए भारत के राष्ट्रपति के सामने नंगे पांव खड़ी एक महिला को जलवायु स्थिरता एवं वनीकरण में उनके प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया था। इसके जरिए उनके सरोकारों को अधिमान्यता दी गई थी। जाहिर है कि उनकी गतिविधियों का ताल्लुकात कार्बन फुटप्रिंटों को कम करने से ही जुड़ता था।

जलवायु स्थिरता की उपरोक्त सभी अवधारणाओं को उस अकेली महिला की उपलब्धियों ने एक सही परिप्रेक्ष्य में रखा है। तुलसी गौड़ा नाम की इस महिला ने एक लाख से अधिक पेड़ लगाए हैं और औषधीय पौधों की 300 प्रजातियों को ढूंढ़ कर उन्हें संरक्षित करने का अहम काम किया है। इसके चलते तुलसी को जंगल में एक मदर ट्री के रूप जाना जाता है। यह ऐसा पौधा होता है, जो कम वय के पेड़ों या पौधों के विकास और उनके अस्तित्व के अंकुरण के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है। तुलसी गौड़ा लैंगिक समानता के लिए काम करती हैं, बच्चों को वनीकरण के बारे में जागरूक करती हैं और उन्हें शिक्षित करती हैं। तुलसी की पृष्ठभूमि एक अनपढ़ एवं दिहाड़ी मजदूर की है, जो अपनी मां के साथ दो साल की अवस्था से ही खेतों-वनों में जाती थीं और बचपन से ही नर्सरी में काम करती रही थीं। पर्यावरण एवं जलवायु-सात्यता पर उनका ज्ञान, संयुक्त राष्ट्र एसडीजी की पूर्ति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और कॉप-26 में उठाए गए उनके सरोकार अद्वितीय हैं।

तुलसी ने हर अवधारणा को पर्यावरण, सामाजिक और शासन के दायरे में रखते हुए उसे इस तरह सरल बना दिया कि इसे कोई भी सहज ही हासिल कर सकता है। उनके कारनामों को पढ़ कर, देख-सुन कर हर कोई दांतों अंगुली दबा कर देखता रहा गया कि क्या एक अकेली महिला या व्यक्ति इस पृथ्वी ग्रह को फिर से हरा-भरा करने में इस कदर योगदान दे सकता है। तुलसी का यह काम कॉप-26 में उठाए गए सरोकारों के मुताबिक यूएनएसडीजी के प्रति प्रतिबद्दता जताना उन सामाजिक संगठनों के लिए आसान हो सकता है, या इस स्तर पर उनका योगदान करना संभव हो सकता है, चाहे उनका आकार जैसा भी और पूंजी की मात्रा जितनी कम या वेशी हो। आइए, हम उन कुछ संगठनों की पड़ताल करें जो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को निबाहने के लिए जाने जाते हैं, और यह देखें कि वे इन चीजों को कैसे अलग तरीके से करते हैं।

पॉल पोलमैन ने अपनी प्रख्यात पुस्तक "नेट पॉजिटिव" में उस समय के अपने कार्यानुभवों का जिक्र किया है, जब उन्होंने यूनिलीवर लिमिटेड के सीइओ के रूप में पदभार संभाला था। तब उत्तर-पश्चिमी इंग्लैंड के एक छोटे से गांव पोर्ट सनलाइट में पॉल की अपनी टीम के वरिष्ठ सदस्यों से पहली मुलाकात हुई थी। यहीं पर आज से 131 साल पहले लीवर भाइयों ने अपनी सफलता की एक चमकदार कहानी की शुरुआत की थी। यहीं उन्होंने साबुन कारखाने (सनलाइट डिटर्जेंट और लाइफबॉय साबुन बनाने) की स्थापना से पहले ही वहां काम करने वाले श्रमिकों के लिए घर, छोटा-सा अस्पताल और एक थिएटर बनाया था। इसके पीछे लीवर भाइयों का लक्ष्य "जनसाधारण की जगहों को साफ-सुथरा बनाना और महिलाओं के लिए काम के बोझ को कम करना" था। पोलमैन की गंभीरता भी इसी तर्ज पर एक नई रणनीति ढांचा "द कंपास" बनाकर उन मूल्यों को बनाए रखने की है, जिसने संगठन के अस्तित्व, उसमें लोगों में निवेश, उनके विकास और जिम्मेदारी लेने को स्पष्टता दी है। यूनिलीवर की सस्टेनेबल लिविंग प्लान (यूएसएलपी) के लॉन्च के साथ सामाजिक सरोकारों को संगठन के ह्दयस्थल में रणनीति और स्थिरता के साथ रखा गया था, जिसके ईर्द-गिर्द हर दूसरी गतिविधि घूमती है।

इसी तरह, स्वीडिश संगठन आइकेईए (IKEA), जिनकी पिछली कहानी विश्व युद्धों के दौरान स्मालैंड में इंगवार कांप्राड माचिस बनाने की रही है,जिसने तब आर्थिक मंदी एवं गरीबी की वजह बनी थी। हालांकि अब इसके उत्पादों ने पर्यावरण के प्रति गुणवत्ता, सामर्थ्य और संवेदनशीलता पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। प्रत्येक आइकेईए उत्पाद में स्थिरता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके संस्थापकों का मिशन "कई लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को बेहतर बनाना" था। यह संगठन पेंट/डाई की गुणवत्ता पर गहरी नजर रखता है, इसकी सोर्सिंग ने दुनिया भर में लाखों ग्राहकों के बीच एक "विश्वास" पैदा किया है।

अंत में, परोपकार के मामलों में दुनिया के नंबर एक टाटा समूह की पृष्ठभूमि भी सामाजिक जिम्मेदारी और व्यापार में तरक्की दोनों साथ-साथ चलती हैं, जब किसी ने भी इस दिशा में संगठित तरीके से नहीं सोचा था। जमशेदपुर (तब बिहार का अंग था, अब झारखंड का हिस्सा है।) शहर को इसी विचारधारा पर बसाया-बनाया गया था कि इसमें न केवल स्टील कारखाना में काम करने वाले रहेंगे बल्कि यह एक नए राष्ट्र के निर्माण की दिशा में भी एक अग्रगामी कदम होगा। इसको बसाने का काम 1912 में शुरू किया गया था और कुछ वर्षों के भीतर ही यह क्षेत्र न केवल कर्मचारियों के लिए बल्कि सभी नागरिकों के लिए आवास, पार्कों, उद्यानों, खेल स्टेडियमों, मनोरंजन सुविधाओं, बाजारों, स्वास्थ्य सेवा-सुविधाओं के साथ एक सुनियोजित टाउनशिप में बदल गया था। टाटा समूह का दया भाव किसी भी सामाजिक गतिविधि में लगे औसत कर्मचारियों और उनके परिवारों तक पहुंचता है।

तो, सवाल है कि इन सभी सामाजिक सरोकारों का क्या प्रभाव है, क्या इन्हें प्राप्त किया जा सकता है? अच्छी खासी संख्या में व्यावसायिक इकाइयों के होने से मिलने वाले लाभों के अलावा, उनकी नैतिक प्रतिष्ठा अपने कर्मचारियों एवं उपभोक्ताओं के प्रति विश्वस्त करती है, जिससे कि कम्पनियां अपना विकास करती हैं। यह पाया गया कि उपरोक्त सभी मामलों के अध्ययनों में एक कारक "सहानुभूति" समान रूप से मौजूद थी, जिसने कम्पनियों के व्यावसायिक उत्पादों, उनकी पहुंच और उनके एवं समुदाय के बीच धुंधले अंतर को मिटा दिया है। उदाहरण के लिए, जब क्राफ्ट ने यूनिलीवर का अधिग्रहण करना चाह रहा था तो इसके खिलाफ एक जोरदार सार्वजनिक आक्रोश उत्पन्न हो गया था, इस आशंका से कि "यह अधिग्रहण उन मूल्यों को नष्ट कर देगा जिनके लिए यूनिलीवर की स्थापना की गई थी।" यह होता है एक सामाजिक रूप से जागरूक संगठन का प्रत्येक हितधारक पर प्रभाव। उपरोक्त सभी मामले वास्तविक कहानियां हैं और इन्हें तीन सरल चरणों में प्राप्त किए जा सकते हैं:

(ए) प्रत्येक संगठन/व्यक्ति की एक बैक-स्टोरी होती है, जिसका हमेशा पालन करने, उसे तरोताज़ा रखने और ऊपर के स्तर से नीचे की ओर जाने की आवश्यकता होती है।

(बी) किसी भी मुद्दे को उठाने के लिए एक मिशन दृष्टिकोण रखना चाहिए। चाहे वे COP 26 के दिशानिर्देश हों या UNSDG की संहिताएं, वे बड़े वैश्विक मुद्दों को व्यापक रूपरेखा दे रही हैं।

(सी) प्रत्येक हितधारक के साथ साझेदारी बनाना। अक्सर यह देखा जाता है कि शेयरधारकों पर बहुत अधिक जोर देने से संगठन के लक्ष्यों में लगातार विकेंद्रण आता है और लागत में कटौती होती है। एक वह कारण जिससे पोलमैन को सफलता मिली, वह था हितधारकों को प्राथमिकता देना, न कि कोई और तरीका था।

किसी भी संगठन पर सामाजिक ब्रांडिंग कितनी प्रभावी हो सकती है, यह निष्कर्ष दो व्यक्तिगत उदाहरणों से परिलक्षित होता है। एक तो यह कि जब मेरे पड़ोसी ने महामारी के दौरान दो सप्ताह तक टाटा सम्पन दाल प्राप्त करने के लिए इंतजार किया, तो उसका कारण था। उन्होंने कहा,“मुझे पता है कि टाटा उत्पाद के खरीदने पर खर्च किया गया मेरा एक-एक रुपया सामाजिक भलाई में खर्च होता है।" इसी तरह, एक विदेश यात्रा पर, जब हमें पता चला कि हमारे एक सहकर्मी की पत्नी किसी अन्य महाद्वीप में IKEA की सहकर्मी हैं, तो हम तुरंत पास के स्टोर में खरीदारी करने गए। वहाँ हमलोगों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया और सामानों की खरीद पर भारी छूट भी दी गई। अब चूंकि महामारी अप्रत्याशित चुनौतियां खड़ी करने की लुका-छिपी खेल खेल रही है तो, जैसा कि पोलमैन कहते हैं, सामाजिक पहलुओं पर ध्यान देने वाले एक शुद्ध सकारात्मक संगठन की ही पर्यावरण के लिहाज से दीर्घायुष्य होने की संभावना होती है।


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://cdn.givingcompass.org/wp-content/uploads/2018/09/13131104/5-Inspirational-Examples-of-Corporate-Social-Responsibility-in-Marketing.png

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