इमरान खान सरकार ने पाकिस्तान की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) का एक दस्तावेज तैयार किया है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पाकिस्तान के समग्र दृष्टिकोण को व्याख्यायित करता है और सरकारी विभागों को इसके प्रति आचरण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस दस्तावेज़ का एक सार्वजनिक संस्करण प्रकाशित किया गया है। इस एनएसपी के बनाने और उसे जारी करने के बाद से पाकिस्तान उन देशों के चुनिंदा समूह में शामिल हो गया है, जिसके पास एक औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति दस्तावेज है। इस मामले में तो भारत ने अब तक ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है जबकि उसके पास 1999 से ही एक सक्रिय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद है।
यह दस्तावेज़ पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग द्वारा नागरिक और सैन्य हितधारकों के साथ-साथ वहां के थिंक टैंक और अन्य संस्थानों के साथ गहन विचार-विमर्श एवं परामर्श के बाद तैयार किया गया है। इस पर उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने भी अपनी मुहर लगा दी है,जिसमें विभिन्न मंत्री और सेनाध्यक्ष शामिल हैं। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस दस्तावेज़ को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया है या नहीं। पर विपक्षी दलों ने देश की सुरक्षा नीति तय करने और उसे जारी करने से पहले उनसे परामर्श नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की है।
यह निश्चित है कि प्रस्तुत दस्तावेज़ पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण के वैचारिक ढांचे को निर्धारित करता है और इसमें राष्ट्रीय एकता, आर्थिक सुरक्षा, रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, विदेश नीति और मानव सुरक्षा पर अलग-अलग अध्यायों में विचार किया गया है।
नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति दृष्टिकोण के तर्क को निम्नलिखित शब्दों में रखा गया है: "सुरक्षा नीति आर्थिक सुरक्षा को व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा का मूल मानती है, वह भू-रणनीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भू-आर्थिक दृष्टिकोण पर जोर देती है, और इस बात की पहचान करती है कि हमारे राष्ट्रीय संसाधन पाई के विस्तार के लिए सतत एवं समावेशी आर्थिक विकास की आवश्यकता है। इसके बदले में यह पारंपरिक और मानव सुरक्षा को मजबूत करने के लिए संसाधनों की अधिक उपलब्धता की अनुमति देगा।
इस राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की प्रस्तावना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने लिखी है। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान का राष्ट्रीय सुरक्षा का दृष्टिकोण "नागरिक केंद्रित" होना चाहिए। वहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ खान के शब्दों में, सुरक्षा नीति "एक बेबाक और साहसिक दृष्टि है, जो एक भू-आर्थिक प्रतिमान पर जोर देती है और जो हमारे भू-रणनीतिक दृष्टिकोण का पूरक है"।
यह राष्ट्रीय सुरक्षा नीति सरकार के अन्य विभागों को मार्गदर्शन प्रदान करने वाली है। यह नीतियों के क्रियान्वयन का एक रोडमैप तैयार करती है, हालांकि उसके बारे में नीति के सार्वजनिक संस्करण में विस्तार से उल्लेख नहीं किया गया है।
दस्तावेज़ गैर-पारंपरिक और पारंपरिक आयामों को मिलाते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा व्यापक संदर्भ में रखता है। यह कहता है, "हमारे सामने चुनौती पारंपरिक बहस बंदूक (रक्षा पर खर्च करने और उसके सरंजाम को जुटाने) बनाम मक्खन (उत्पादन पर जोर देने) की नीति से दूर जाने की है। इसकी बजाय यह स्वीकार करना चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा के पारंपरिक और गैर-पारंपरिक पहलुओं को एक सहजीवी संबंध के माध्यम से जोड़ा जाए।"
नीति यह मानती है कि पाकिस्तान उभरती हुई विश्व व्यवस्था में उत्पन्न होने वाले नए अवसरों के लाभ उठा सकता है, बशर्ते वह अपने भू-रणनीतिक हैसियत का दोहन करे, आसपास के क्षेत्रों से जुड़ाव रखे, पाकिस्तान को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए मेहमाननवाज देश बनाने की गरज से एक भू-आर्थिक दृष्टिकोण का पालन करे, पाकिस्तान का निर्यात बढ़ाए, नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करे, मानव संसाधन विकास और कौशल में निवेश करे, संस्थानों के बीच समन्वय में सुधार लाए और सुरक्षा नीति के क्रियान्वयन में पूरे सरकारी दृष्टिकोण का पालन करे।
सुरक्षा दस्तावेज में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है कि पाकिस्तान की दयनीय आर्थिक स्थिति ने पाकिस्तान की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। दस्तावेज़ देश की कमजोरियों को साफगोई से कुबूल करता है : कम उत्पादकता, बढ़ता कर्ज, अपर्याप्त कौशल आधार, खराब शिक्षा प्रणाली, संसाधनों का अक्षम उपयोग, भारी असमानताएं, आय असमानताएं, और भोजन, पानी और ऊर्जा संसाधनों पर बढ़ता तनाव, और कई अन्य कमजोरियां हैं।
यह दस्तावेज़ आतंकवाद का समर्थन करने वाले एक असहिष्णु देश के रूप में बनी पाकिस्तान की छवि को ठीक करने की मांग करता है। नीति में कहा गया है कि "पाकिस्तान की विविधता को संपोषित करने, सहिष्णुता को विकसित करने और शैक्षिक-सांस्कृतिक संस्थानों और एक समावेशी राष्ट्रीय विमर्श के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने पर केंद्रित दृष्टिकोण के माध्यम से निरंतर और समर्पित प्रयास किए जाएंगे।"
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अंतर्गत 'मानव सुरक्षा' पर एक पूरा अध्याय दिया गया है, जिसमें "जनसंख्या और प्रवास, स्वास्थ्य-सुरक्षा, जलवायु और जल सुरक्षा, खाद्य-सुरक्षा और लैंगिक-सुरक्षा" से उत्पन्न चुनौतियों का उल्लेख किया गया है। दस्तावेज़ में लैंगिक समानता, संरचनात्मक हिंसा को रोकने और महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने का उल्लेख "सर्वोपरि महत्त्व" के मुद्दों के रूप में किया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति अंतर्धार्मिक सद्भाव और अल्पसंख्यक अधिकारों के बारे में भी बात करती है, और "जाति, पंथ, धर्म, लिंग, या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बावजूद खुलेपन और समान अवसरों पर आधारित बौद्धिक अभिव्यक्ति और विचार" की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
आंतरिक सुरक्षा अध्याय आतंकवाद, हिंसक उप-राष्ट्रवाद, उग्रवाद और संप्रदायवाद, राजनीति और व्यापार के साथ ड्रग्स एवं नशीले पदार्थों की सांठगांठ से संबंधित है। इसमें धूर्तता से यह दावा भी है कि "आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए मजबूत वित्तीय निगरानी प्रणाली बनाने के पाकिस्तान के प्रयासों को विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है"। यह अध्याय "सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ खुफिया अभियान चलाने, आतंकवाद के लिए वित्तीय स्रोतों के किसी भी उपयोग को रोकने" के बारे में बात करता है। सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य से किए जाने वाले हस्तक्षेपों और उन क्षेत्रों में, जहां "हिंसक उप-राष्ट्रवादी तत्व संचालित होते हैं", वहां शासन संबंधी पहल को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाए जाने की बात कही गई है।
जाहिर है कि भारत में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा नीति-दस्तावेज़ को गहरी दिलचस्पी के साथ देखा जाएगा। यह जानने के लिए कि क्या पाकिस्तान का भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण उसके इस भू-आर्थिक प्रतिमान के आग्रह के अंतर्गत बदल जाएगा !
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति इस बात पर जोर देती है कि पाकिस्तान भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहता है, लेकिन संबंधों में सुधार "जम्मू-कश्मीर विवाद के न्यायसंगत और शांतिपूर्ण समाधान" पर निर्भर करता है, जो "हमारे द्विपक्षीय संबंधों के मूल में बना हुआ है।" यह दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की दयनीय स्थिति के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है "...अनसुलझे कश्मीर विवाद और भारत के आधिपत्य के परिणामस्वरूप द्विपक्षीय संबंधों को बाधित किया गया है।"
मानो इतना भर उल्लेख भी पर्याप्त नहीं था, पाकिस्तान का सुरक्षा नीति दस्तावेज़ भारत के आंतरिक मामलों में सीधे-सीधे हस्तक्षेप करता है, जब यह तथाकथित "हिंदुत्व संचालित नीति" के उदय पर अपनी चिंता व्यक्त करता है, जो उसके मुताबिक "पाकिस्तान की सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करता है"।
पाकिस्तान का यह भारत विरोधी प्रलाप जारी रहता है। उसके दस्तावेज में भारत को "सैन्य दुस्साहसवाद", "गैर-संपर्क युद्ध", "हथियारों का निर्माण", "पाकिस्तान के प्रति आक्रामकता" और "वैश्विक अप्रसार व्यवस्था को कमजोर करने वाले विशिष्टतावाद" की नीतियों के लिए दोषी ठहराया गया है। इसके अलावा, भारत पर "एकतरफा समाधान थोपने" का भी आरोप है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नकारात्मक परिणाम देता है। दस्तावेज़ में कहा गया है कि भारत लगातार "पाकिस्तान को निशाना बनाने के लिए दुष्प्रचार फैलाने" में लगा हुआ है। इसकी पृष्ठभूमि में सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा आतंकी हमले के बाद आतंकवादी ठिकानों पर किए गए हवाई हमले, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और आतंकवाद एवं आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए पाकिस्तान के लगातार समर्थन का भारत द्वारा खुलासा करना,आदि तथ्य इसके परोक्ष संदर्भ हैं। हाल की भारतीय कार्रवाइयों को द्विपक्षीय संवाद के लिए "बाधा" माना गया है।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में जम्मू-कश्मीर पर उसके रुख में पुनर्विचार किए जाने के कोई संकेत नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर में भारतीय सशस्त्र बलों को "कब्जे वाली ताकतों" के रूप में वर्णित किया गया है और उन पर "मानवाधिकार उल्लंघन" और "नरसंहार" करने के आरोप लगाए गए हैं। दस्तावेज़ पाकिस्तान के आम परहेज को दोहराता है कि वह "कश्मीर के लोगों को अपने नैतिक, राजनयिक, राजनीतिक और कानूनी समर्थन देने के लिए तब तक दृढ़ संकल्पित है, जब तक कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा गारंटीकृत आत्मनिर्णय के अपने अधिकार को प्राप्त नहीं कर लेते।)"
अनुच्छेद 370 को निर्दिष्ट किए बिना ही, पाकिस्तान के सुरक्षा दस्तावेज़ में दावा किया गया है कि "अगस्त 2019 की भारत की अवैध और एकतरफा कार्रवाइयों को अवैध रूप से भारत के अधिकार वाले जम्मू-कश्मीर (IIOJK) के लोगों ने खारिज कर दिया है।" और यह कि "भारत अपने अवैध कार्यों को छिपाने के लिए कश्मीरी प्रतिरोध के इर्द-गिर्द झूठा प्रचार करना जारी रखता है।"
पाकिस्तान का सुरक्षा दस्तावेज भारत को खतरा मानता है। दस्तावेज़ चेतावनी देता है कि "हमारे तत्काल पड़ोस में एक प्रतिगामी और खतरनाक विचारधारा की गिरफ्त में सामूहिक चेतना के आने के साथ हिंसक संघर्ष की संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं...ऐसे में विरोधी (भारत) द्वारा एक सुविचारित नीति-विकल्प के रूप में बल प्रयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।" और, इस खतरे को मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान को "किसी भी हथियारों की दौड़ में शामिल हुए बिना अपने सशस्त्र बलों के निरंतर आधुनिकीकरण में चतुराई से निवेश के जरिए आवश्यक पारंपरिक क्षमताओं को सुनिश्चित किया जाएगा।" पाकिस्तान अपनी "नेटवर्क केंद्रिकता, युद्धक्षेत्र की जागरूकता, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं और अन्य बल गुणक" में अपनी क्षमताओं को बढ़ाएगा।
इस तरह के न झुकने वाले नियमन के आलोक में, यह निष्कर्ष निकालना मुश्किल है कि पाकिस्तान की भारत-नीति निकट भविष्य में बदल जाएगी, भले ही वह दुनिया को यह बताने की कोशिश कर ले कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टिकोण में एक नया प्रतिमान अपनाने जा रहा है।
जहां तक अन्य देशों के साथ पाकिस्तान के संबंधों की बात है तो दस्तावेज़ में आश्चर्यजनक रूप से नया या अप्रत्याशित रूप से कुछ भी नहीं दर्ज किया गया है।
चीन के बारे में कहा गया है कि पाकिस्तान "चीन के साथ अपने गहरे ऐतिहासिक संबंधों" का विस्तार "पारस्परिक जुड़ाव के सभी क्षेत्रों में विश्वास और रणनीतिक अभिसरण" के आधार पर करेगा। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) "पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगा और उसके घरेलू विकास को तेज करेगा, गरीबी को कम करेगा और क्षेत्रीय संपर्क में सुधार करेगा"। पाकिस्तान अन्य इच्छुक देशों को "सीपीईसी से संबंधित और अन्य विशेष आर्थिक क्षेत्रों" में निवेश करने के लिए आमंत्रित करेगा।
अमेरिका के साथ अपने संबंधों के बारे में पाकिस्तान का कहना है कि वह इसे आतंकवाद के प्रतिरोध के तंग दायरे से आगे ले जाना चाहता है।
पाकिस्तान के भू-आर्थिक प्रतिमान में मध्य एशिया के महत्त्व को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई है। रूस और मध्य एशिया का अनुकूल उल्लेख मिलता है। दस्तावेज़ में कहा गया है, "पाकिस्तान ऊर्जा, रक्षा सहयोग और निवेश में रूस के साथ अपनी साझेदारी को फिर से परिभाषित करने के लिए प्रतिबद्ध है", और, "विज़न सेंट्रल एशिया' के तहत, पाकिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ ऊर्जा और पारगमन पर समझौतों को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है।"
अफ़ग़ानिस्तान के बारे में पाकिस्तान का सुरक्षा दस्तावेज़ "आर्थिक, मानवीय और सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ घनिष्ठ सहयोग से वहां शांति और स्थिरता को सुविधाजनक बनाने और समर्थन करने" के लिए पाकिस्तान की प्रतिबद्धता की बात करता है। अफगानिस्तान को "मध्य एशियाई राज्यों के साथ आर्थिक संपर्क के लिए प्रवेश द्वार" के रूप में माना जाता है। यह "अफगानिस्तान में शांति के लिए पाकिस्तान के समर्थन के लिए प्रमुख परिचालक" होगा। रूस और मध्य एशियाई देशों के बारे में कहा गया है कि वे “अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के हमारे साझा उद्देश्यों में महत्त्वपूर्ण भागीदार” हैं।
यह साफ है कि पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा नीति-दस्तावेज़ का लक्ष्य जितना भारत है, उतना बाकी दुनिया नहीं है।
इस दस्तावेज़ के माध्यम से पाकिस्तान दुनिया के बाकी हिस्सों को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि यह एक प्रगतिशील, उदार देश है, जिसमें बड़ी आर्थिक क्षमताएं-संभावनाएं हैं। वह एक असहिष्णु, दिवालिया, निष्क्रिय, आतंकवादी पीड़ित देश ही नहीं है, जैसा कि भारत दुनिया भर को यह भरोसा दिलाता होगा। पाकिस्तान राष्ट्रीय सुरक्षा की नई समझ के माध्यम से उस धारणा को ठीक करना चाहेगा जिसे वह दुनिया के सामने पेश कर रहा है।
उसके दावों के विपरीत, सच तो यह है कि पाकिस्तान आर्थिक दिवालियेपन की ओर बढ़ रहा है। पाकिस्तानी नेता और अधिकारी खुले तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि बढ़ते कर्ज संकट ने पाकिस्तान की संप्रभुता को प्रभावित किया है क्योंकि देश को कड़ी शर्तों पर ऋण के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की दर पर दौड़ना पड़ता है। पाकिस्तान हर साल अपना कर्ज चुकाने के लिए 15 अरब डॉलर का कर्ज लेता है। इसका विदेशी कर्ज बढ़कर 130 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि इसका विदेशी मुद्रा भंडार करीब 24 अरब अमेरिकी डॉलर ही है।
इन हालात में, पाकिस्तान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और बाहरी फंडिंग के लिए बेताब है, जिसके बिना उसकी अर्थव्यवस्था में सुधार नामुमकिन है। इस कारण भी उसका राष्ट्रीय सुरक्षा नीति दस्तावेज दुनिया के लिए पाकिस्तान की एक सौम्य छवि पेश करने का एक प्रयास है।
राष्ट्रीय सुरक्षा नीति पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों पर कोई भी अहम नुस्खे देने पर पूरी तरह स्पष्ट है। यह अधिकार पाकिस्तानी सेना के लिए सुरक्षित है। यह स्पष्ट नहीं है कि सेना का राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के प्रति किस हद तक समर्थन है। हालाँकि, पिछले साल इस्लामाबाद सुरक्षा संवाद में बाजवा की उस टिप्पणी से, जिसमें उन्होंने भू-अर्थशास्त्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक नए प्रतिमान के बारे में भी बात की थी, ऐसा प्रतीत होता है कि मौजूद दस्तावेज़ को कम से कम सेना की मौन स्वीकृति मिली हुई है।
इमरान खान ने सुरक्षा नीति की प्रस्तावना में उल्लेख किया है कि पाकिस्तान रियासते मदीना की छवि में एक कल्याणकारी राज्य बनेगा। दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम फोबिया से लड़ेगा। लेकिन, भू-आर्थिक प्रतिमान और दुनिया के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए दुनिया को ललचाने की सरकार की कवायद को देश का धार्मिक कट्टरपंथी समूह पाकिस्तान के घुटने टेकने के रूप में देखे जाने की संभावना है।
यदि पाकिस्तान वास्तव में अपनी नीतियों के केंद्र में अर्थव्यवस्था को रखता है तो यह एक स्वागत योग्य कदम होगा। यह भारत, क्षेत्र और दुनिया के लिए अच्छा होगा। लेकिन, क्या पाकिस्तान का सच में ऐसा करने का इरादा है? भारत को अपना मुख्य खतरा मानने के उसके रवैये को देखते हुए तो ऐसा लगता नहीं है। पाकिस्तान की भारत की नीति में किसी भी आसन्न बदलाव का कोई संकेत नहीं है।
भू-अर्थशास्त्र और व्यापक-आधारित सुरक्षा के बारे में बात करना एक बात है पर शब्दों को आचरण में उतारना एक पूरी तरह से अलग मामला है। दस्तावेज़ परोक्ष रूप से स्वीकार करता है कि पाकिस्तानी राज्य तेजी से निष्क्रिय होता जा रहा है। वह इस तथ्य को भी नहीं छिपाता है कि पाकिस्तान कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। दस्तावेज़ के प्रारूपकर्ता स्वयं कहते हैं कि दस्तावेज़ में उल्लिखित कई लक्ष्य और उद्देश्य "आकांक्षी" हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें वहां लागू करना आसान नहीं होगा।
जहां तक भारत की बात है तो वह पाकिस्तान को उसके व्यवहार के आधार पर ही उसका मूल्यांकन करेगा। मौजूदा स्वरूप में तो पाकिस्तान का दस्तावेज भारत के लिए उसके एक परिष्कृत जनसंपर्क से अधिक मायने नहीं रखता है। हालाँकि, बाकी दुनिया इसे ऐसा नहीं देख सकती है। कम से कम पाकिस्तान को उम्मीद होगी कि अन्य देश मानव सुरक्षा और भू-आर्थिक अवधारणाओं के आकर्षण से प्रभावित होंगे, जिस पर उसका राष्ट्रीय सुरक्षा नीति दस्तावेज इतना जोर देता है।
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