चीन-अमेरिका संबंधों पर चीनी विशेषज्ञों के विचार
Jayadeva Ranade

चीन की आर्थिक स्थिति जैसे-जैसे विषम होती जा रही है, और उसकी आक्रामक नीतियों से उसके पड़ोस में तनाव बढ़ता जा रहा है, उसको लेकर चीनी नेतृत्व अमेरिका के साथ अपने संबंध में आए मोड़ पर बहुत चिंतित हो उठा है। इसी वजह से अमरिका के साथ अपने संबंधों को सुधारने और उसके लिए प्रयास करने के तरीकों पर नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है। अमेरिका के साथ चीन के द्विपक्षीय संबंधों को अभी भी सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है और इसने चीन के वैश्विक उदय को बहुत हद सुविधाजनक बनाया है। चीनी कंपनियां न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होकर अपनी रेटिंग बढ़ाती हैं, एक द्विपक्षीय व्यापार के परिमाण का उपभोग करती हैं, जो 2020 में 615.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और इसमें 452.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का चीनी निर्यात भी शामिल हैं। अमेरिका चीन के लिए उच्च-प्रौद्योगिकी का प्रमुख स्रोत अभी बना हुआ है। हालाँकि, दोनों के संबंध इस समय भयावह मोड़ पर हैं और इसका लगातार बिगड़ते जाना चीन के नेताओं के लिए काफी चिंता का विषय है, जो यह मानते हैं कि अब इस क्षेत्र में आई एक और गिरावट चीन के 'उदय' को तहस-नहस न भी कर पाए तो उसे कम से कम रोक तो सकती ही है।

चीनी नेतृत्व की चिंता निस्संदेह चीन के आर्थिक विकास में आए ठहराव, चीजों की बढ़ती कीमतें, बेरोजगारी के बढ़ते स्तर, कई व्यवसायों के बंद होने और पिछले महीने से जियांगसू, झेजियांग, ग्वांगडोंग, फ़ुज़ियान और शंघाई जैसे अधिक समृद्ध प्रांतों और शहरों में सरकारी अधिकारियों के वेतन कटौती के बारे में बाहर आने वाली रिपोर्टों के साथ बढ़ गई है। इन सबके बीच, दिसम्बर में पेइचिंग में आयोजित वार्षिक केंद्रीय आर्थिक कार्य सम्मेलन ने भी चीन के सामने आने वाली आर्थिक कठिनाइयों की ओर इशारा किया है।

इस संदर्भ में चीन के वरिष्ठ एवं प्रभावशाली अधिकारियों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) में 'अमेरिकी विशेषज्ञों' द्वारा मीडिया में तथा दो महत्त्वपूर्ण सम्मेलनों में व्यक्त किए गए विचार विशेष दिलचस्प हैं। इनमें दिलचस्प बात यह है कि ये विचार नवम्बर के मध्य में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुए 'वर्चुअल' शिखर सम्मेलन के पखवाड़े के आसपास ही सामने आए हैं। चीन में अमेरिका के विशेषज्ञों में से एक माने जाने वाले युआन पेंग द्वारा दिया गया साक्षात्कार विशेष रूप से उल्लेखनीय है। पेंग के विचार इसलिए भी दिलचस्प हैं कि क्योंकि वे देश में दखल रखने वाले चाइनिज इंस्ट्टियूट ऑफ कन्टेंपररी इंटरनेशनल रिलेशंस (CICIR) के अध्यक्ष हैं, जो सीधे-सीधे राज्य सुरक्षा मंत्रालय (MoSS) के अधीनस्थ चीन की विदेशी खुफिया शाखा से संबद्ध है। युआन पेंग का यह साक्षात्कार शी जिनपिंग एवं बाइडेन के बीच होने वाले शिखर सम्मेलन के कुछ ही दिन पहले चीनी मीडिया में प्रकाशित किया गया था।

चाइना मॉर्निंग पोस्ट (23 दिसम्बर को) ने शंघाई स्थित 'द पेपर' में यांग जिमियन के लिखे लेख की ओर सबका ध्यान खींचा था। इसलिए भी कि यांग शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआइआइएस) के पूर्व अध्यक्ष हैं, वर्तमान में पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं और पूर्व विदेश मंत्री यांग जिएची के छोटे भाई हैं। उस लेख में यांग ने चीन के लिए अमेरिका से संबंध की महत्ता का बखान करते हुए इशारा किया कि अमेरिका अब भी शक्तिशाली बना हुआ है। लेख में, यांग जीमियन ने कहा कि चीन की अमेरिकी रणनीति "जहां भिड़ंत वाली होनी चाहिए, वहां उसे उसी रूप में रहना चाहिए, और जहां यह सहयोगी हो सकती है, वहां उसे सहयोगी होनी चाहिए"। उन्होंने यह सुझाव दिया कि चीन को "सेंस ऑफ क्राइसिस" को बरकरार रखते हुए अमेरिकी कारक का बेहतर उपयोग मास्को के साथ अपने बढ़ते संबंधों में स्वयं के प्रभाव की एक सीमा को लेकर मोलतोल के रूप में करना चाहिए। हालांकि, अमेरिका पर चीन के कठोर रुख का बचाव करते हुए, उन्होंने आने वाले महीनों में यूरोप के साथ पेइचिंग के संबंधों में संभावित गिरावट के बारे में आगाह किया। यांग जीमियन ने यह भी आगाह किया कि, राजनीतिक और आर्थिक संबंधों में एक ऊष्मा के बावजूद, चीन और रूस ने हमेशा एक-दूसरे से आंख मिलाकर नहीं देखा है, इसको ध्यान में रखते हुए कि: "बेशक दोनों के बीच समस्याएं हैं। यहाँ तक कि भाइयों की भी अपनी समस्याएँ होंगी और यह कहने की जरूरत नहीं है कि रूस तो फिर भी हमारा पड़ोसी है (इसलिए समस्याएं स्वाभाविक है)।” उन्होंने कहा, "यह स्पष्ट है कि चीन और रूस विशिष्ट विदेश नीति के मुद्दों पर बिल्कुल समान स्थिति में नहीं हैं। लेकिन हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि वे चीन-रूस संबंधों का एक गौण पहलू है।" जबकि यांग जिमियन ने पूर्व की ओर रूस के रुख को, विशेष रूप से चीन को लेकर, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कूटनीति में "गुणात्मक परिवर्तन" के रूप में वर्णित किया, फिर भी आगाह किया कि पेइचिंग को सतर्क रहना चाहिए और "हम संकट की भावना को पूरी तरह से त्यागने का जोखिम नहीं उठा सकते।[कम्युनिस्ट पार्टी के] महासचिव शी जिनपिंग ने कहा है कि हम महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर विध्वंसक गलतियां नहीं कर सकते। उनकी यह बात चीन-रूस संबंधों के लिए भी कही जाती है।"

यूरोप में चीन की कूटनीतिक रणनीति के संदर्भ में, उन्होंने चीन, रूस और अमेरिका के साथ यूरोपीय संघ को वैश्विक मामलों के चार स्तंभों में से एक बताया, लेकिन साथ ही यह चेतावनी दी कि एंजेला मर्केल (जर्मन की चांसलर) के जाने के साथ ही "चीन-जर्मन के बीच मित्रता की अपेक्षा करना अवास्तविक होगा। रिश्ते वैसे ही रहेंगे।" उन्होंने कहा कि "यूरोप अमेरिका का सहयोगी है और वे समान आदर्शों और उद्देश्यों को साझा करते हैं। हालांकि उनके बीच मतभेद हैं, लेकिन केवल एक सीमा तक ही।" इसके पहले नवम्बर में एसआइआइएस की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अलग लेख में, यांग जिमियन ने चेतावनी दी कि पेइचिंग को यूरेशिया में चीन के अपने प्रभाव के विस्तार के प्रति रूस की निगरानी को ध्यान में रखना चाहिए। ठीक इसी तरह उसे चीन एवं रूस को बांटने और अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति का विस्तार करने के वाशिंगटन के प्रयासों को लेकर सतर्क रहना चाहिए।

अमेरिका में चीन के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले राजदूत कुई तियानकाई द्वारा व्यक्त विचार भी महत्त्वपूर्ण हैं। कुई वैचारिक रूप से, अधिक रूढ़िवादी 'वाम' कैडरों में शुमार किए जाते हैं। उन्होंने वाशिंगटन में चीनी राजदूत के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के परिवार और उनसे अंतपुर में अपनी अच्छी पैठ बना ली थी, इसे देखते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उनका कार्यकाल बढ़ा दिया था। इन्ही कुई तियानकाई ने 21 दिसम्बर को पेइचिंग में दियाओयुताई स्टेट गेस्टहाउस में आयोजित एक संगोष्ठी में जोर देकर कहा कि चीन को अमेरिका से व्यवहार करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए। वे चीनी विदेश मंत्रालय (MoFA) के सीधे-सीधे दखल वाले पेइचिंग स्थित थिंक-टैंक, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के तत्त्वावधान में चीनी राजनयिकों और शिक्षाविदों के लिए आयोजित वार्षिक संगोष्ठी में बोल रहे थे।

कुई तियानकाई ने कहा, "देश के लोगों का हर हित बड़ी मेहनत से कमाया जाता है और हमें किसी को भी इसे लूटने देने या इसे अपनी लापरवाही, ढिलाई और अक्षमता से गंवा नहीं देना चाहिए।" उन्होंने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके अमेरिकी समकक्ष जो बाइडेन के बीच नवम्बर में पहली आभासी शिखर बैठक के बावजूद दोनों शक्तियों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, यही वजह है कि वे अपनी बातचीत के दौरान टकराव से बचने की कोशिश करने पर राजी हुए। उनका आकलन था कि निकट भविष्य में चीन-अमेरिका संबंधों में सुधार की संभावना नहीं है। कुई तियानकाई ने यह भी कहा,"अमेरिका-चीन संबंधों में इतिहास का वर्तमान चरण काफी समय तक जारी रहेगा, और अमेरिका एक बहुत ही अलग सामाजिक व्यवस्था, विचारधारा, सांस्कृतिक परंपराओं और यहां तक कि जातीयता के साथ एक शक्ति के उदय को स्वेच्छा से स्वीकार नहीं करेगा।" उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि वाशिंगटन की चीन नीति में "नस्लवाद एक बहुत मजबूत तत्व" है। कुई तियानकाई ने जोर देकर कहा, "अमेरिका चीन को दबाने, उस पर दखल रखने, उसे बांटने और घेरने के लिए निश्चित रूप से हर संभव प्रयास करेगा। वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगा।" कुई के ये विचार अमेरिका में उनके राजदूत नियुक्त किए जाने के पहले जुलाई 2012 में प्रकाशित उनके लेख के बाद से तेज हो गए हैं।

उसी कार्यक्रम में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि अमेरिका के साथ उनका देश पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का स्वागत तो करता है,लेकिन वह टकराव से नहीं डरता है। वांग यी ने अगले साल के लिए चीन की कूटनीतिक प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि चीन और अमेरिका को 2022 में अपने संबंधों को सुधारने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, जो 1979 में तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक पेइचिंग यात्रा के बाद चीन और अमेरिका के बीच संबंधों को सामान्य करने का मार्ग प्रशस्त हुआ था, आज इस रिश्ते की आधी सदी पूरी हो गई है।

इस विचार के कुछ हद तक विपरीत दृष्टिकोण झांग बैजियन ने व्यक्त किया था, जिसमें अमेरिका से समझौते के लिए दरवाजा खुला छोड़ा गया था। यह बात इसलिए अहम है कि 73 वर्षीय झांग पार्टी हिस्ट्री रिसर्च सेंटर के पूर्व उप प्रमुख हैं और पूर्व चीनी उप विदेश मंत्री झांग वेनजिन के बेटे हैं। वेनजिन ने झोउ एनलाई के साथ अमेरिकी नेता हेनरी किसिंजर की बातचीत में हिस्सा लिया था, जब वे दिसम्बर 1971 में चीन की गुप्त यात्रा पर आए थे। दिसम्बर में सान्या, हैनान में एक आर्थिक विकास मंच पर चीन-अमेरिका संबंधों पर एक पैनल को संबोधित करते हुए, झांग बैजियन ने चीन को 'खुलेपन' की नीति और 'राष्ट्रीय हितों की रक्षा' को संतुलित करने की आवश्यकता पर बल दिया था। उन्होंने कहा कि अमेरिका सभी चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने में सक्षम है और उन्होंने मशविरा दिया कि चीन को इसके खिलाफ अपना दांव नहीं लगाना चाहिए। उन्होंने कहा, "वैश्विक नेता के रूप में अमेरिका की भूमिका घट रही है, लेकिन ऐतिहासिक अनुभव से, अमेरिका भी आत्म-नियमन की मजबूत क्षमता वाला देश है। इसलिए यह देखने की जरूरत है कि क्या भविष्य में संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई समायोजन होगा।" उन्होंने कहा, "यह महत्त्वपूर्ण है कि हम अपने विकास की उम्मीदों को संयुक्त राज्य अमेरिका की अपनी समस्याओं को हल करने में उसकी असमर्थता पर नहीं टिकाएं।" झांग बैजियन ने बताया कि दुनिया की नम्बर दो अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में चीन के नीतिगत फैसलों का बड़ी और छोटी अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के हर तत्व पर भारी प्रभाव पड़ सकता है। लिहाजा, पेइचिंग को अन्य देशों के साथ व्यवहार करते समय अपने लक्ष्यों, इरादों और नीतियों में स्पष्ट रहने की जरूरत है।

शी जिनपिंग-बाइडेन 'वर्चुअल' शिखर सम्मेलन से लगभग एक पखवाड़े पहले, सीआइसीआइआर के अध्यक्ष युआन पेंग ने सिना फाइनेंस को चीन-अमेरिका संबंधों पर एक विस्तृत साक्षात्कार दिया। सीआइसीआइआर अधिक प्रभावशाली चीनी थिंक-टैंकों में से एक है और युआन पेंग ने पिछले दो वर्षों में पोलित ब्यूरो को कभी-कभार ब्रीफिंग करते भी देखा गया है। सिना फाइनेंस ने 21 अक्टूबर को चीनी में एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था।

इस इंटरव्यू में युआन पेंग ने कहा, "संयुक्त राज्य अमेरिका में 'ताकत की स्थिति से' अंतरराष्ट्रीय संबंधों से निपटने में जड़ें गहरी हैं। एक ऐसे देश के रूप में जो यथार्थवाद का अनुसरण करता है, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 20वीं सदी में दुनिया की नम्बर एक ताकत बन जाने के बाद से हमेशा 'सत्ता ही सत्य' है के सिद्धांत का अनुसरण किया है। उन्होंने समझाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका दो विशेष कारणों से 'ताकत और हैसियत के साथ बर्ताव करने जोर देता है: "एक तो उसे इस बात पर जोर देना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अभी भी दुनिया की नंबर एक शक्ति है"। वह चीन के इस सिद्दांत कि 'पूर्व का उदय हो रहा है तथा पश्चिम का अस्त हो रहा है’ का मुकाबला करने और यह साबित करने के लिए कि दुनिया की डोर अभी भी संयुक्त राज्य अमेरिका के हाथों में है,‘सत्ता की हैसियत से किसी संबंध की शुरुआत करने’ पर लगातार जोर दे रहा है।" दूसरे, संयुक्त राज्य अमेरिका की अपनी ताकत और स्थिति के बारे में गहरी चिंता को प्रतिबिंबित करना है। घरेलू और विदेशी समस्याओं (और इससे भी बदतर घरेलू समस्याओं) का सामना करते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका को पहले की तुलना में अपनी ताकत पर कम भरोसा रह गया है। यह मुहावरा 'ताकत और हैसियत से शुरू' हर दिन उसके दिल में चिंता को छिपाने के लिए बोला जाता है, लेकिन अपनी ताकत और हैसियत की समस्या के बारे में उसकी गहरी चिंताओं को उजागर करता है।”.

युआन पेंग ने यह कहते हुए कि "चीन की एक सदी या कुछ सौ वर्षों से एक सामान्य प्रवृत्ति रही है, और यह एक खास चीज़ तक ही सीमित नहीं है", उन्होंने कहा कि "संयुक्त राज्य अमेरिका ऐतिहासिक रुझान को नहीं देखता है और उसमें गहरे स्तर के सुधारों के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है; बल्कि वह अभी भी प्रमुख शक्तियों के बीच संबंधों को संभालने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल करता है, जो इतिहास की प्रवृत्ति के खिलाफ जा रहा है"। उन्होंने कहा "11 सितम्बर 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका को सुरक्षा संकट का सामना करना पड़ा। 2008 में सबप्राइम मॉर्गेज क्राइसिस के चलते आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। इसके बाद, 2016 में डोनाल्ड ट्रंप की जीत को एक राजनीतिक संकट के रूप में देखा गया। इसे एक ऐसे सामाजिक संकट का भी सामना करना पड़ सकता है, जो पिछले कई दशकों में नहीं देखा गया है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन 2001 में "विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया", वह विकास के लिए समर्पित है और शांतिपूर्ण विकास के रास्ते का अनुसरण करता है, और इसका विकास हर गुजरते दिन के साथ आगे बढ़ रहा है। लेकिन वास्तव में संयुक्त राज्य अमेरिका की चिंता चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत या जीडीपी में वृद्धि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उदय, सैन्य ताकत के रूप में उदय और उसकी अपनी स्वयं की ऐसी प्रणाली का विकास है,जिसने उसकी आर्थिक वृद्धि को प्रेरित करना भी वाशिंगटन की चिंता का विषय है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि जो बात अमेरिका को विशेष रूप से चिंतित करती है, वह यह कि "चीन के उदय को चीनी विशेषताओं वाली समाजवादी व्यवस्था और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है, न कि पश्चिमी देशों का। इस कारण से संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ लोगों ने पूर्वानुमान लगाया कि चीन की निरंतर वृद्धि को पश्चिमी प्रणाली के कार्यान्वयन पर निर्भर होना चाहिए, और जिससे आने वाली उसकी आर्थिक स्वतंत्रता अंततः 'पश्चिमी शैली के लोकतंत्र' की ओर ले जाएगी। हालाँकि, यह ठीक है कि चीन ने अपनी प्रणाली में सुधार के माध्यम से महान विकास हासिल किया है। यह अमेरिकियों को पूरी तरह से शांत हो कर बैठने और यहां तक कि उनके 'सोने और खाने' को पूरी तरह से हराम कर दिया है।

युआन पेंग ने कहा: " चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने विगत 20 वर्षों में रणनीतिक दृष्टिकोण से एक साथ रणनीतिक परिवर्तन किए हैं।" 'एशिया-प्रशांत पुनर्संतुलन' से 'इंडो-पैसिफिक' तक, अमेरिका ने चीन से निपटने के लिए अपना रणनीतिक ध्यान चीन के दरवाजे पर लगा दिया है और तथाकथित वैश्विक रणनीतिक संकुचन और एशिया-प्रशांत रणनीतिक आक्रमण की नीति को लागू किया है। नतीजतन, दो शक्तियों, चीन और अमेरिका में, एक सदी में पहली बार एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 'आम तौर पर टकराव' और 'आमने-सामने की भिडंत’ होने की नौबत आई है। इसलिए, वे अक्सर एक-दूसरे की हर हरकत को रणनीतिक रूप से संदेहास्पद तरीके से देखते हैं।" उन्होंने आगे आकलन किया कि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अतीत में जिस रणनीतिक नींव पर भरोसा किया था, वह अब खो गया है। पूरी तरह से भिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं, विचारधाराओं, सभ्यताओं और विकास के चरणों वाले दो देशों के रूप में, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने संबंधों को समर्थन और बनाए रखने के लिए एक ठोस रणनीतिक आधार के रूप में बाहरी कारकों का उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका सोवियत संघ पर निर्भर था और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, यह अर्थव्यवस्था और व्यापार पर निर्भर था, और '9/11की घटना' के बाद वह आतंकवाद-विरोध पर आधारित है। अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य अमेरिका की जल्दबाजी में वापसी का उल्लेख करते हुए, उनका आकलन था कि ऐसा इसलिए किया गया कि ऐसा न किया तो अमेरिका अपना "चेहरा खो देगा और आतंकवाद का बेहतर मुकाबला करने के लिए चीन को एक रणनीतिक बदलाव का एहसास होगा"।

यह देखते हुए कि दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने फिर से बात की है और दोनों पक्षों के बीच जलवायु परिवर्तन में सहयोग लगातार आगे बढ़ रहा है, युआन पेंग ने कहा, "तनाव में चीन-अमेरिका संबंध आसान हो गए हैं। सुश्री मेंग वानझोउ तीन साल के अंतराल के बाद मातृभूमि लौट आई। यह उपलब्धि इसी माहौल में हासिल की गई है। इन सबका कम से कम चीनी लोगों के मन में सकारात्मक और अच्छे परिणाम की आस जगी है। इसने दोनों देशों के बीच संबंधों में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने की बुनियाद रख दी है।" हालांकि, उन्होंने कहा, "हमने यह भी देखा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूएस-यूके-ऑस्ट्रेलिया एलायंस (एयूकेयूएस) के गठन जैसे खतरनाक तरीकों से क्षेत्रीय तनाव पैदा कर दिया है और चीन के साथ अपने नियंत्रण और टकराव को घटाया नहीं है। मेंग वानझोउ घटना के शांतिपूर्ण निपटारे का मूल कारण यह है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, चीनी सरकार और चीनी लोगों ने इस बारे में मिलकर काम किया है और पूरे संघर्ष में कायम रहे हैं। यह संघर्ष का परिणाम है और इसका मतलब चीन के प्रति संयुक्त राज्य अमेरिका की रणनीति में आया कोई बड़ा बदलाव नहीं है। यदि चीन-अमेरिका खेल एक लंबी लड़ाई या रणनीतिक गतिरोध है, तो चरणबद्ध छूट या तनाव इसकी एक सामान्य स्थिति होगी। वर्तमान सहजता केवल रुक-रुक कर और आंशिक है।"

युआन पेंग ने समझाया कि "चीन का 'विश्व दृष्टिकोण' मुख्य रूप से तीन पहलुओं में अभिव्यक्त होता है। पहला है 'सौ वर्ष में परिवर्तन सिद्धांत'। इस अवधि में, दुनिया में बड़े बदलाव और चीनी राष्ट्र की 'महान कायाकल्प रणनीति' क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर निर्देशांक की तरह हैं, जो विश्व की स्थिति और चीन के समग्र चरण को निर्धारित करते हैं। दूसरा 'ऐतिहासिक अवसर का सिद्धांत' है, इसका मतलब है कि चीन की तुलना चाहे स्वयं से करे या अन्य लोगों के साथ करे, उसके लिए लंबे समय तक के लिए रणनीतिक अवसर है और यह लंबे समय तक के लिए होगा। तीसरा 'विकास जोखिम का सिद्धांत' है, जो यह है कि चीन के पास जितनी अधिक अवधि के रणनीतिक अवसर हैं, उतने ही अधिक जोखिम हैं"। युआन पेंग ने रेखांकित किया कि "वर्तमान चरण ठीक उच्चतम जोखिम गुणांक वाला चरण है। चाहे चीन-अमेरिका का खेल पूर्ण टकराव की ओर बढ़ रहा हो या वह शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए प्रयास कर रहा हो, दोनों ही स्थितियों में हमारी बुद्धि की परीक्षा होगी" और चीन के लिए, "चीनी राष्ट्र का महान कायाकल्प एक समग्र स्थिति है, और इसमें चीन-अमेरिका संबंध एक छोटी स्थिति है।" युआन पेंग ने अपने निष्कर्ष में कहा," चीन को बाहरी दुनिया की चिंताओं को लेकर शांत दिमाग बनाए रखने की जरूरत है। नैतिकता का मूल्यों के साथ भुगतान करना अच्छा है, और शिकायतों को सीधे रिपोर्ट करने में भी अच्छा होना चाहिए, और इसे महत्त्वपूर्ण क्षणों में लड़ने का साहस भी करना चाहिए। इतिहास में महान शक्तियों का उदय अक्सर युद्ध के माध्यम से होता है।हम दृढ़ हैं और आश्वस्त हैं कि हम युद्ध से उत्थान नहीं प्राप्त करेंगे, लेकिन संघर्ष अपरिहार्य है"। चीनी और अमेरिकी राष्ट्रपतियों के बीच 'वर्चुअल' शिखर सम्मेलन की अवधि के दौरान सार्वजनिक डोमेन में इन विचारों की उपस्थिति से पता चलता है कि सीसीपी में चीन-अमेरिका संबंधों पर सक्रिय चर्चा चल रही है।

चीनी और अमेरिकी राष्ट्रपतियों के बीच 'वर्चुअल' शिखर सम्मेलन की अवधि के दौरान सार्वजनिक डोमेन में इन विचारों की उपस्थिति से पता चलता है कि सीसीपी में चीन-अमेरिका संबंधों पर चर्चा चल रही है। सीसीपी के भीतर चीन-अमेरिका संबंधों और इसके प्रति पेइचिंग के दृष्टिकोण के बारे में कुछ वर्षों से अलग-अलग विचार मौजूद हैं। वरिष्ठ चीनी कम्युनिस्ट कैडरों की हालिया टिप्पणियों से पता चलता है कि वे जानते हैं कि अमेरिका अभी भी शक्तिशाली है और ऐसे अमेरिका का सामना करने के लिए चीन को लंबे समय तक तैयार रहना होगा। तो इस वक्त उनकी टिप्पणियां और इस बात पर उनका जोर देना कि चीन अपने स्वयं के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, यह संकेत है कि वे चीन के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए निकट अवधि में अमेरिका के साथ कुछ समझौता करने के पक्ष में हैं। शी जिनपिंग समेत एक दृढ़ कठोर नीति का पालन एक प्रमुख मुद्दा किसी भी "चेहरे के नुकसान" को रोकने के लिए होगा। यह काम कम से कम 20 वीं कांग्रेस के आयोजन तक बहुत मुश्किल होगा।


Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
Image Source: https://cds.chinadaily.com.cn/dams/capital/image/202007/23/5f192929e4b005da0b47ae61.jpeg

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