नजदीकी के एक नए शिखर पर भारत-ब्रिटेन संबंध
Arvind Gupta, Director, VIF

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही। यह दौरा उस समय हुआ, जब अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य तेजी से बदल रहे हैं। रूस और यूक्रेन जंग की मैदान में आमने-सामने हैं, तो तालिबानी शासन में अफगानिस्तान की हालत खास्ता है। इनका भारतीय उप-महाद्वीप पर खासा असर पड़ रहा है। इस लिहाज से जॉनसन की यात्रा में हिंद-प्रशांत क्षेत्र (इंडो पैसिफिक) पर विशेष चर्चा उल्लेखनीय है। ब्रिटेन पिछले कुछ समय से हिंद-प्रशांत क्षेत्र और हिंद महासागर में एक बड़ी भूमिका अदा करने को इच्छुक दिखा है। पिछले साल उसने अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति का खुलासा भी किया था। ब्रिटेन के इस रुख का इसलिए स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह माना जा रहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अमेरिका व यूरोपीय देशों का ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र से बंटकर यूरोप की तरफ चला जाएगा। इससे चीन को अपना दबदबा बनाने का मौका मिल जाएगा। लेकिन बोरिस जॉनसन के दौरे ने उन आशंकाओं को निर्मूल बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बैठक में न सिर्फ हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई, बल्कि दोनों नेताओं ने व्यापार के लिहाज से मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र बनाने पर भी सहमति जताई। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कानून-सम्मत व्यवस्था बनाने पर बनी सहमति से चीन पर स्वाभाविक दबाव बनेगा।

जॉनसन की यात्रा से यह संकेत भी मिला है कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य और क्षेत्रीय मुद्दों के संदर्भ में भारत के रुख को पश्चिमी देश समझते हैं। बैठक में यूक्रेन के हालात पर चर्चा होनी ही थी, और वह हुई भी। भारत लगातार यह कहता रहा है कि कूटनीति और बातचीत के जरिये ही इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए। जॉनसन भी इस पर सहमत दिखे। इतना ही नहीं, पिछले साल दोनों देशों में ‘कॉ्प्रिरहेंसिव स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप’ यानी व्यापक रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत हुई थी, जिसका 2030 तक के लिए रोडमैप बनाया गया है। इसमें यह चर्चा की गई कि अगले दस वर्षों में दोनों देश आपसी रिश्तों को किस तरह मजबूत बनाएंगे और रणनीतिक साझेदारी के विभिन्न पहलुओं पर कैसे काम करेंगे। अच्छी बात यह है कि जॉनसन की यात्रा में मुक्त-व्यापार समझौता को लेकर भी गंभीर चर्चा हुई और माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक यह समझौता साकार हो जाएगा। अभी तक भारत ने ऐसा समझौता ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ किया है। अगर ब्रिटेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ भी यह करार हो जाता है, तो दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते नए मुकाम पर पहुंच जाएंगे।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री की यात्रा में नए रक्षा समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए। इससे आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को गति मिलेगी। इस अभियान के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में ही उच्च तकनीकी क्षमता के रक्षा उत्पाद बनाने के न्योते मिले हैं। जाहिर है, इससे भारत में रक्षा उत्पाद बनाना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा। ब्रिटेन की मंशा है कि रक्षा उपकरणों के मामले में रूस पर भारत की निर्भरता कम हो। इस सिलसिले में उसने निर्बंध सामान्य लाइसेंस को लेकर भी समझौता किया है, जिससे हमारे यहां की नौकरशाही कुछ कम होगी और तेज गति से रक्षा उत्पादों का आयात संभव हो सकेगा। वैश्विक नवाचार साझेदारी (ग्लोबल इनोवेशन पार्टनरशिप) को मजबूत करने के लिए 10 करोड़ डॉलर फंड की घोषणा भी उल्लेखनीय है, जिसके अंतर्गत दोनों देश नवाचार से जुड़ी परियोजनाओं में साथ-साथ निवेश कर सकेंगे।

इस यात्रा ने यह भी पुष्टि की, जिसकी चर्चा खुद बोरिस जॉनसन ने भी की कि भारत और ब्रिटेन के रिश्ते इससे पहले इतने अच्छे शायद ही थे। करीब 16 लाख भारतवंशी ब्रिटेन में रहते हैं, जो वहां की राजनीति व आर्थिकी में अहम भूमिका निभाते हैं। दोनों नेताओं ने इस तथ्य को सकारात्मक नजरिये से देखा और उम्मीद जताई कि ये भारतवंशी ब्रिटेन व भारत, दोनों के विकास में अधिक मदद कर सकेंगे। कुल मिलाकर, बोरिस जॉनसन की यह यात्रा भारत की कूटनीतिक सफलता रही। इससे द्विपक्षीय रिश्तों में काफी गरमाहट आएगी।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Published in Live Hindustan on 23rd April 2022.

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