अफगानिस्तान के पतन पर कैसी है मध्य एशिया की प्रतिक्रिया?
Dr Pravesh Kumar Gupta, Associate Fellow, VIF
परिचय

हाल के सप्ताहों में मध्य एशियाई गणराज्यों (सीएआर) में जो घटनाक्रम होता रहा है, उसके नतीजे सामने आने लगे हैं। 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमा लिया, जो अफगानिस्तान में अशरफ गनी के नेतृत्व वाली सरकार के पतन का कारण बना। तालिबान की पुनर्वापसी अवश्यंभावी थी लेकिन वह इतनी तेजी के साथ सत्ता में लौट आएगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान देशों की सीमाएं अफगानिस्तान से लगती हैं। इसीलिए तालिबान की सत्ता में पुनर्वापसी से उन देशों की सुरक्षा पर सीधा खतरा बढ़ गया है। चूंकि अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता फरवरी 2020 में कतर के दोहा में हुआ था1, इसलिए बहुत संभव है कि मध्य एशिया गणतांत्रिक (सीएआर) देश अपनी सुरक्षा पर पड़ने वाले असर को लेकर आशंकित रहे हैं। इसीलिए, ताजिकिस्तान को छोड़कर मध्य एशिया गणतांत्रिक के देश भविष्य की चुनौतियों को कम करने के लिए अपनी तैयारी के साथ-साथ राजनयिक स्तर पर तालिबान के साथ बातचीत करते रहे हैं।

1990 के दशक में, सीएआर देश तालिबान के साथ रहे हैं,और इसलिए वे इस बार भी उसी तरह के प्रबंधन की अपेक्षा करते थे। हालांकि वर्तमान में, मध्य एशिया अफगानिस्तान की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के अपदस्थ हो जाने के बाद से, ये देश कम से कम दो स्तरों पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं; अफगान शरणार्थियों के रूप में होने वाले माननीय संकट और सुरक्षा पर पड़ने वाले असर को लेकर। इसके अलावा, एक सबसे बड़ा मसला है, जिसे सीएआर को लंबे समय तक सामना करना पड़ेगा, वह है तालिबान के साथ राजनीति स्तर पर बातचीत या मेलजोल का। उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान का अफगानिस्तान में आर्थिक और संपर्क निवेश (कनेक्टिविटी इन्वेस्टमेंट) है और इसलिए उनका तालिबान के साथ संबंध प्राथमिक रूप से अपने वित्तीय हितों की रक्षा-सरोकारों के इर्द-गिर्द ही रहेगा। दोहरे भू-आबद्ध देश होने के नाते, ताशकंद भी हैरातन-मजार-ए-शरीफ रेललाइन के पेशावर तक विस्तार के जरिए पाकिस्तानी बंदरगाह तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है।2 हाल ही में, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान सरकारों ने इस बारे में एक समझौता किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उज़्बेकिस्तान परिवहन और संपर्क परियोजनाओं पर बातचीत के सिलसिले में तालिबान के साथ किस तरह से सहयोग करता है। अब ऐसे उपक्रमों पर तालिबान किस तरह से प्रतिक्रिया देता है, यह एक अलग मसला है, जिसे काफी नजदीकी से देखने की जरूरत है।

संयुक्त सैन्य अभ्यास

मध्य एशिया में रूस एक सुरक्षा सहयोगी देश है। क्वालिटी सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन ( सीएसटीओ) , के जरिए मास्को अपने अन्य सदस्य देशों को गंभीर स्थिति में सैन्य सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध है। ताजिकिस्तान सीएसटीओ का एक सदस्य देश है और वह रूस की 201 मोटराइज्ड राइफल डिवीजन के हजारों सैनिकों का मेजबान भी है। अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्से में जब तालिबान ने फतह कर लिया, तो पराजित अफगानी सैनिकों ने और वहां की बाशिंदे सीमावर्ती देश ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में भागकर शरण ली है। मौजूदा स्थिति की गंभीरता को समझते हुए ताजिकिस्तान ने अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा पर अतिरिक्त फोर्स तैनात कर दी है और सीएसटीओ से मदद के लिए गुहार लगाई है।

इसके बाद रूस ने उज्बेकिस्तान के साथ अफगान सीमा के समीप एक संयुक्त सैन्य अभ्यास किया जबकि उज्बेकिस्तान सीएसटीओ का सदस्य देश भी नहीं है। इसके अलावा, रूस, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान ने अफगानिस्तान सीमा के समीप ताजिकिस्तान में ही संयुक्त सैन्य अभ्यास किया है। रूस और चीन के बीच भी, चीन के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में एक सैन्य अभ्यास किया गया था। हालांकि तालिबान ने जोर देकर कहा है कि वह अफगानिस्तान की सीमा को नहीं लांघेगा,लेकिन उसके वादे को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यह जानते हुए उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजिकिस्तान में आसन्न चुनौतियों से निपटने के लिए उपाय करने शुरू कर दिए हैं। इन सभी सैन्य अभ्यासों का संकेत है कि मध्य एशिया के देश तालिबान के फिर से उभार होने के बाद सुरक्षा मुद्दे पर उससे मिलने वाली चुनौतियों से निबटने के लिए तैयार हैं।

इस प्रसंग में रूस की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस पर परोक्ष रूप से उसकी सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना है। यह स्थिति रूस को भी मध्य एशिया क्षेत्र में अपने सुरक्षा ढांचे में अपनी दखल को बनाए रखने में मदद करेगी। 21 अगस्त को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कजाकी राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट तोकाएव से मास्को में मुलाकात के दौरान यह घोषणा की कि तालिबान की हुकूमत में आने के बाद अफगानिस्तान की स्थिति की समीक्षा के लिए सीएसटीओ इस हफ्ते वीडियो कांफ्रेंसिंग करेगा। अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने के उपक्रम में, सीएसटी को तालिबान की सत्ता में लौटने के बाद की स्थिति में मध्य एशिया में अपनी एक सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है।.3

अफगानिस्तान से लोगों की निकासी प्रक्रिया को सुगम बनाना

काबुल में तालिबान उग्रवादियों के आगमन के साथ, खबर है कि कई बार वायुयानों ने उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की वायु सीमा का उल्लंघन किया है। RFE/RLके अनुसार, 14-15 अगस्त को सेना के 22 विमान और 24 हेलीकॉप्टर्स ने अफगानिस्तान से उज्बेकिस्तान में घुसे थे। कहा जाता है कि उन विमानों से 585 अफगानी सैनिकों को ढोया जा रहा था। इन विमानों को उज्बेक के सीमावर्ती शहर टरमेज के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने के लिए बाध्य होना पड़ा था।4 इसके अलावा, लगभग 150 अफगान शरणार्थियों ने भी हैरातन पुल पार कर उज्बेक-अफगान सीमा पार किया।5

काजिक और उज्बेक सरकारों ने अफगानी शरणार्थियों और उनके पराजित सैनिकों को शरण देने के मुद्दे पर अलग-अलग राय जाहिर की है। उज्बेकिस्तान ने शरणार्थियों को स्वीकार करने के प्रति अपनी हिचक दिखाई है और यहां तक कि उसने अफगानिस्तानी सैनिकों को हिरासत में लेकर उन्हें उनके देश लौटा दिया है, जो उसके यहां आने की इजाजत मांग रहे थे। हालांकि, उज्बेकिस्तान से अलग, दुशांबे ने उन्हें अपने यहां ठहरने की इजाजत दी और बाद में उन्हें स्वदेश भेज दिया। ताजिकिस्तान ने भी कहा है कि वह एक लाख अफगानिस्तानी शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने के लिए तैयार है और उसने इसके लिए अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है। ताजिकिस्तान का अफगान के ताजिक लोगों से एक भावनात्मक-संवेदनात्मक रिश्ता है, जो अफगानिस्तान में पख्तून के बाद दूसरा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। ताजिक अफगान के समुदायों में से कुछ तालिबान में भी विभिन्न पदों पर हैं, जबकि उनमें से अधिकतर तालिबान विरोधी हैं। अफगान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सलेह के ताजिकिस्तान ही भागकर जाने की खबर थी, जो बाद में अफवाह साबित हुई।6 उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान दोनों ने ही काबुल हवाई अड्डे से लोगों को निकालने की प्रक्रिया में सहयोग किया है, इनमें विभिन्न देशों के अन्य लोगों के साथ अफगानिस्तान के शरणार्थी भी शामिल हैं।7

तुर्कमेनिस्तान तटस्थता की नीति का अनुसरण करता है, इसीलिए उसने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा हो जाने की घटना को अपने भूभाग के बाहरी खतरे के रूप में लिया है। इसके बाद, अश्गाबात ने अफगानिस्तान के साथ लगे अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी सैन्य तैनाती बढ़ा दी है।8 देश में अधिनायकवादी हुकूमत रहने के कारण भी, यह अफगान-शरणार्थियों का पसंदीदा देश नहीं है। इसके अलावा, तुर्कमेनिस्तान सरकार ने अफ़गानों को-चाहे वे सैनिक हों या नागरिक-अपने यहां दाखिल होने से रोक रखा है। यहां तक कि जातीय तुर्कियन के भी तुर्कमिनिस्तान की सीमा में लांघने पर रोक लगा दी गई है।9

अफगानिस्तान के घटनाक्रम में रूस की प्रतिक्रिया आज आश्चर्यचकित करने वाली रही है। एक तरफ तो मास्को ने मध्य एशियाई देशों को उनकी सुरक्षा चुनौतियां से उबरने में मदद की है। ठीक दूसरी तरफ, वह नहीं चाहता कि अफगान शरणार्थियों को मध्य एशिया में शरण दी जाए। 23 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक वक्तव्य में कहा कि इन शरणार्थियों के वेष में अफगान उग्रवादी भी आ सकते हैं, जो मध्य एशिया की तरफ से रूस में घुसने का प्रयास कर सकते हैं, जहां उन्हें मौजूदा समय में रखा गया है।10 अफगानिस्तान में रूस की नीति तालिबान की तुलना में इस्लामिक स्टेट खुरसान (आइएसके) से मिलने वाली चुनौती पर अपना सारा ध्यान केंद्रित करने की है।11 इसीलिए रूस तालिबान के साथ अपना संबंध इस ख्याल से बेहतर रख रहा है कि तालिबान आइएस-के की बढ़त से अफगानिस्तान में मोर्चा लेगा। हालांकि आइएसआइएस को ताकत बढ़ाने की जरूरत नहीं है, और इस मामले में रूस की स्थिति तालिबान को यह इशारा कर सकती है कि वह मध्य एशिया में किसी तरह की पैठ न करे।

क्या मध्य एशिया तालिबान विरोधी ताकतों को मदद करेगा?

अहमद मसूद, अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जो अफगानिस्तान में 1980 के सोवियत के खिलाफ प्रतिरोध (नॉर्दन एलायंस) के मुख्य अगुआ हुआ करते थे, उन्होंने नेशनल रीसिस्टेंट फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान का नेतृत्व किया था। उन्होंने मुजाहिदीन लड़ाकों को पंजशीर घाटी में जमा किया था और तालिबान को अपने भूभाग से खदेड़ना शुरू कर दिया था। उनकी इस मुहिम में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सलेह भी शामिल हैं, जो अफगानी ताजिक हैं।13 इसके अलावा, अनेक तालिबान विरोधी नेताओं ने भी उनका साथ दिया था। 1990 के दशक में, रूस, ईरान और भारत ने नॉर्दन एलायंस का समर्थन किया था, जिससे उसे बड़ा बल मिला था।13 नॉर्दन एलायंस के समर्थन में ताजिकिस्तान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। दुशांबे ने एक पारगमन भू क्षेत्र के रूप में नॉर्दन एलायंस के लड़ाकों को मदद पहुंचाई थी।14

इस बार, तालिबान विरोधी मुहिम उतनी मजबूत नहीं है, जितनी यह 1990 के दशक में थी। इसके पीछे कारण यह है कि इस मुहिम को बड़े खिलाड़ियों का समर्थन प्राप्त नहीं है। रूस उनकी मदद नहीं करेगा, और ईरान एवं भारत भी फिलहाल इस फ्रेम से बाहर हैं। वाशिंगटन पोस्ट में, हाल में ही प्रकाशित एक आर्टिकल में अहमद मौजूद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वे तालिबान विरोधी मुजाहिदीनों की मदद करें। बिना बाहरी मदद के, वे लोग तालिबान के मुकाबले के काबिल नहीं है।15 मध्य एशिया के देश तालिबानी हुकूमत से बनने वाले खतरों के नजरिए से पूरी तरह सुरक्षित हैं। इसीलिए यह कहना जल्दबाजी होगी की सीएआर के देश तालिबानी विरोधी ताकतों को अपना समर्थन देंगे, जब रूस पूरी तरह से ऐसे किसी भी मुहिम में शामिल होने के लिए राजी नहीं है, जो तालिबान को चिढ़ाए। सीएआरएस ऐसी किसी मुहिम में शामिल करने से भी रोक रखेंगे, जो तालिबान को नाराज कर सकता है। हालांकि यह बात इस पर निर्भर करेगी कि खुद तालिबान का अफगानिस्तान के लोगों एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रति कैस सलूक रहता है। उनका व्यवहार ही, तालिबान के प्रति प्रतिरोध की नियति को तय करेगा। यहां यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या नेशनल रेसिस्टेंट फ्रंट ऑफ अफगानिस्तान तालिबान पर हमलावर होकर भी मैदान में टिका रहने लायक है?

निष्कर्ष

अभी तो फिलहाल, सीएआर के देश अस्थिर स्थितियों के साथ तालमेल बिठा रहे हैं,लेकिन अभी बुरा समय आने वाला है। एक बार तालिबान अफगानिस्तान में अपनी स्थिति को मजबूत कर लेंगे, वे अपने दमनकारी तरीकों की तरफ लौट आएंगे, जो क्षेत्र में अस्थिरता और असुरक्षा को बढ़ाएगा। मध्य एशिया के देश गंभीर सुरक्षा और आर्थिक समस्याओं की चुनौतियों का सामना करेगा, अगर अफगानिस्तान में गृह युद्ध फैलता है तो। इसके अलावा, अराजकता की वापसी, अफगानिस्तान को आतंकवादियों एवं आपराधिक समूह के एक क्षेत्र में तब्दील कर देगा, इसके अलावा क्षेत्र को और स्थिर करेगा और कारोबार, अर्थव्यवस्था प्रगति में बाधा डालेगा तथा संपर्क एवं दक्षिण और मध्य एशिया के बीच आवाजाही को बाधित करेगा। उस स्थिति में, ये देश कैसे निबटेंगे, यह हमें देखना है।

पाद-टिप्पणियां
  1. एग्रीमेंट फॉर ड ब्रिंगिंग पीस टू अफ़गानिस्तान बिटवीन द इस्लामिक इमेज ऑफ अफगानिस्तान इज नॉट रिकॉग्नाइज्ड बाय यूनाइटेड स्टेट्स एज ए स्टेट एंड इज नोन एज ए तालिबान एवं यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, फरवरी 29, 2020. https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/02/Agreement-For-Bringing-Peace-to-Afghanistan-02.29.20.pdf
  2. अमिदा हाशिमोवा, ‘उज्बेकिस्तान पुशिंग टू रिअलाइज दि ट्रांस अफगान रेलरोड, दि डिप्लोमेट, फरवरी 19, 2021. https://thediplomat.com/tag/mazar-e-sharif-kabul-peshawar-railway/
  3. ‘CSTO, SCO टर्न अटेंशन टू अफगान सिचुएशन’, RFE/RL, अगस्त 21 2021. https://gandhara.rferl.org/a/csto-sco-afghan-situation/31421532.html
  4. ब्रूस पैनियर, ‘टर्माइल इन अफगानिस्तान स्पिल्स इंटू सेंट्रल एशिया’, RFE/RL, अगस्त 18, 2021. https://www.rferl.org/a/aghanistan-taliban-central-asia/31417118.html
  5. वही.
  6. ‘अफगान वीपी ऑफिस व्लैशेज फ्लीइंग रियमूर एमिड तालिबान टेकडाउन, कॉल इट ‘'प्रोपेगेंडा बाई पाकिस्तान'’, न्यूज़ 18, अगस्त 13, 2021. https://www.news18.com/news/world/amarullah-salehs-office-dismisses-reports-of-going-to-tajikistan-calls-it-propaganda-by-pakistan-4081217.html
  7. ‘अफगानिस्तान इवेक्यूज अराइव इन ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान’, RFE/RL, अगस्त 21, 2021. https://gandhara.rferl.org/a/afghanistan-evacuees-tajikistan-uzbekistan/31421633.html
  8. मंसूर मीरोवालेव, ‘अफगानिस्तान सेंट्रल एशियन नेवर पैनिक, रिजेक्ट रिफ्यूजीज’, अलजजीरा, अगस्त 19, 2021. https://www.aljazeera.com/news/2021/8/19/afghanistans-ex-soviet-neighbours-panic-reject-refugees
  9. अफगानिस्तान इवेक्यूज अराइव इन ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान’, RFE/RL, अगस्त 21, 2021https://gandhara.rferl.org/a/afghanistan-evacuees-tajikistan-uzbekistan/31421633.html
  10. वनेसा गू (Vanessa Gu), ‘‘पुतिन सेज ही इज वरीड दैट अफगान ‘मिलिटेंट’ ट्राय टू इंटर रसिया ‘अंडर कवर ऑफ रिफ्यूजी’” द बिजनेस इंसाइडर. अगस्त 23, 2021. https://www.businessinsider.in/international/news/putin-says-hes-worried-that-afghan-militants-might-try-to-enter-russia-under-cover-of-refugees/amp_articleshow/85554300.cms
  11. सैम्यूल रमानी,‘व्हाट रसिया स्ट्रेटजी इन अफ़गानिस्तान?, टीआरएल वर्ल्ड न्यूज़ अगस्त 10 2021. https://www.trtworld.com/opinion/what-s-russia-s-strategy-in-afghanistan-49065
  12. ‘डिफिएंट अफगानिस्तान फॉर्मर वाइस प्रेसिडेंट अमरुल्लाह सालेह वो न्यू फाइट विद तालिबान’, दि हिंदू, अगस्त 17, 2021. https://www.thehindu.com/news/international/defiant-afghanistans-former-vice-president-amrullah-saleh-vows-new-fight-with-taliban/article35956937.ece
  13. प्रणय शर्मा, ‘इंडिया वरिज ओवर तालिबान इन अफगानिस्तान फ्यूल्स टॉक ऑफ रिवाइव्ड ‘नॉर्दन एलायंस’ विद ईरान, रसिया, साउथ चाइना मॉनिटरिंग पोस्ट, जुलाई 16, 2021. https://www.scmp.com/week-asia/politics/article/3141461/indians-worries-over-taliban-afghanistan-fuels-talk-revived
  14. रोनी राजकुमार ‘अफगानिस्तान: कैन हिस्ट्री रिपीट इटसेल्फ..? फिनानसिएल एक्सप्रेस, अगस्त August 20, 2021. https://www.financialexpress.com/defence/afghanistan-can-history-repeat-itself/2314397/
  15. अहमद मसूद, ‘दी मुजाहिदीन रेसिस्टेंट टू द तालिबान बिगिंस नाउ, बट वी नीड हेल्प,’ दि वाशिंगटन पोस्ट, अगस्त 18, 2021.
    https://www.washingtonpost.com/opinions/2021/08/18/mujahideen-resistance-taliban-ahmad-massoud/

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)


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