ताइवान की संप्रभुता की रक्षा के लिए चाहिए विश्व सहयोग
Prof Rajaram Panda

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, दक्षिणी चीन सागर के समान ही, ताइवान जलडमरूमध्य (स्ट्रेटस) विवाद का एक दूसरा बड़ा कारण है। लेकिन दोनों ही विवादों में चीन एक फैक्टर है,जहां वह अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहा है जबकि दक्षिणी चीनी सागर में, उसका अन्य एशियाई देशों के साथ भी विवाद है,जो समुद्री हिस्से में संप्रभुता के उसके दावे से संबंधित है।यह विशेष आर्थिक क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिसमें चीन दावा करता है कि समूचा दक्षिणी चीनी सागर पर उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। यहां न केवल वह प्रायद्वीप का निर्माण करने और सैन्य गतिविधियां संचालित करने में मशगूल है, उसकी नौसेना के जहाज दूसरे दावेदार देशों के मछली पकड़ने वाले क्षेत्र में लगातार आवाजाही करते रहते हैं। ऐसा माना जाता है किदक्षिणी चीन सागर में खनिजों का अपार भंडार है और चीन इन कीमती धातुओं पर अपना विशिष्ट एकाधिकार चाहता है। अभी तक, कुछ अंतरालों पर झड़पें होती रही हैं पर वे बड़े संघर्ष में नहीं बदल पाई हैं। लेकिन इस क्षेत्र में किसी बड़े युद्ध की आशंका किसी प्रकार से कम नहीं हुई है। अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपने अधिकारों का दावा करने वाले देशों को सुरक्षा देने का आश्वासन दिया हुआ है क्योंकि ये छोटे-छोटे एशियाई देश हैं, जो चीन के साथ अकेले भिड़ने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि दक्षिणी चीन सागर में युद्ध की स्थिति टल गई है।

यद्यपि,ताइवान पर चीन की नीति, जिसे वह एक बागी और अपने से अलग हुआ प्रांत मानता है और इसीलिए वह स्वयं के एक स्वतंत्र देश होने का दावा नहीं कर सकता। इसीलिए ताइवान पर चीन द्वारा बल प्रयोग करके उसे अपनी मुख्य भूमि में मिला लेने का खतरा बना हुआ है। यहां खतरनाक स्थिति बनी हुई है। अगर पेइचिंग ने ताइवान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तो अन्य देश भी इस संघर्ष में अनिवार्य रूप से कूद पड़ेंगे।इससे एक क्षेत्रीय टकराव की स्थिति बन गई है। ऐसे में अमेरिका ताइवान को बचाने के लिए आगे आने वाला पहला देश होगा। यह लेख इस संभावना को खंगालने का एक संजीदा प्रयास है कि क्या ताइवान स्ट्रेटस पर युद्ध का खतरा अवश्यंभावी है? और वास्तव में युद्ध भड़कता है तो वह इसका मुकाबला कैसे करेगा?, और क्या वह इस लड़ाई के छिड़ने के पहले अपनी राजनयिक-सक्रियता से रोक सकता है?। इस विश्लेषण के प्रयोजन के लिए, यह मान कर चला गया है कि दक्षिणी चीन सागर की तुलना में ताइवान जलडमरूमध्य नजदीकी संदर्भ में उत्तेजना का चरम बिंदु अधिक उभरता प्रतीत होता है।

चीन के दावों की पृष्ठभूमि

यद्यपि पेइचिंग समूचे ताइवान पर अपनी संप्रभुता का दावा तभी से करता आया है, जब से चीन में माओत्से तुंग की अगुवाई में वामपंथी ताकतों ने अपना दखल जमाया था, तभी चीन के राष्ट्रवादियों एवं उनके नेता चांग काई शेक चीन से भागकर 8 दिसंबर 1949 को ताइवान के प्रायद्वीप में जाकर बस गए, जहां उन्होंने ताइपेई में अपनी नई राजधानी की स्थापना की। इसे “दो चाइना” के परिदृश्य की शुरुआत के रूप में चिन्हित किया गया, जिसमें चीन के मुख्य हिस्से पर वामपंथियों का नियंत्रण रहा और जिसने अगले 30 सालों तक अमेरिकी कूटनीति को तंग करता रहा। यह विकासक्रम इस बात का भी संकेत था कि चीनी राष्ट्रवादी ताकतों एवं कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष का एक प्रभावशाली समापन का भी संकेत था, यद्यपि बिखरे हुए चीनी राष्ट्रवादियों की कम्युनिस्ट सेना से तब तक छिटपुट लड़ाइयां होती रहीं जब तक की वे पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो गए।

चीनी लॉबी के दबाव में, जिसने राष्ट्रवादियों के सरोकारों का समर्थन किया था, अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन के प्रशासन पर ताइवान की राष्ट्रवादी सरकार को अपना समर्थन देने के लिए पुरजोर दबाव बना, जिसके चलते उसने मुख्य चीन की कम्युनिस्ट सरकार को अमेरिकी मान्यता नहीं दी। चांग काई शेक की सरकार को अमेरिकी मान्यता दिए जाने के ट्रूमैन के निर्णय ने माओ को क्रोधित कर दिया, जिसने अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच किसी भी तरह की राजनीति संबंध की संभावना को खत्म कर दिया।1 1949 के उत्तरार्ध के वर्षों में अमेरिका का ताइवान को लगातार अपना समर्थन देता रहा था। यह 1971 तक जारी रहा। इसी समय, अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ताइवान के साथ-साथ चीन से संबंध जोड़ने की संभावना खंगालने के लिए अपने विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को एक गुप्त मिशन पर बीजिंगभेजा था। निक्सन के इस नीतिगत निर्णय को विश्व पटल पर सोवियत संघ के रूप में अमेरिका के उभरते एक प्रतिद्वंद्वी को संतुलित करने की कवायद के रूप में देखा गया।2आखिरकार, 1979 में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से चीन को अपनी मान्यता दे दी जबकि ताइवान को अपना समर्थन जारी रखने का आश्वासन दिया।

निष्ठा परिवर्तन का उत्तरार्ध

अमेरिका के ताइवान के प्रति अपनी निष्ठा परिवर्तित करने सेअमेरिकी-चीन संबंध तथा चीन-अमेरिका संबंध में भी एक अवधारणात्मक परिवर्तन आया। चीन का आर्थिक और सैन्य मंसूबा मजबूती प्राप्त करता गया और इसी के दौरान सोवियत संघ विखंडित हो गया।इससे शीत युद्ध के अंत की शुरुआत हो गई। इसके पश्चात, अमेरिका और चीन दोनों ने ही एक दूसरे को विभिन्न प्रिज्म से देखना शुरू किया। दशकों की असहज शांति के साथ, चीन के साथ अमेरिका का संबंध नाटकीय रूप से बदल गया और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इसका स्वरूप और बिगड़ कर बदतर हो गया। कारोबार में व्यापक घाटा दोनों के बीच विवाद और तनाव का कारण बना जिसमें चीन के साथ अमेरिका के व्यापार में काफी घाटा होता था। इसे ट्रंप दुरुस्त करना चाहते थे और उन्होंने चीन से इस कारोबारी असंतुलन को दूर करने के लिए कुछ कदम उठाने की मांग की थी। लेकिन बात नहीं बनी। फिर तो दोनों देश जल्दी ही आयातित वस्तुओं पर करों की दरें बढ़ाकर, कुछ निश्चित वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर और इसी तरह के कुछ अन्य निवारणात्मक उपायों को अपनाकर एक दूसरे के विरुद्ध जवाब देने की मुद्रा में आ गए। उनका द्विपक्षीय संबंध जैसे ही गिरावट के अगले चरण में पहुंचा, चीन के वुहान में कोरोना महामारी का प्रकोप फैल गया, जिसने अमेरिका के साथ उसके संबंधों में एक नया विपरीत आयाम जोड़ दिया। चीन पर इस महामारी से संबंधित सूचनाएं छिपाने का आरोप लगाया गया। इसके बाद पूरी दुनिया ने चीन को संदेह की नजरों से देखना शुरू कर दिया।

चीन ने ताइवान पर अपना रुख और कड़ा करना शुरू कर दिया। उसके द्वारा सेना की लगातार तैनाती करने तथा सुधारात्मक नीतियां अपनाने के राजनीतिक संकेत देने से तनाव और बढ़ गया। ताकत के बल पर एकीकरण की समर्थक लॉबी तो और भी आगे चल गई है और वह ताइवान को दंडित करने के लिए सैन्य कार्रवाई की मांग की है। इसके परिणामस्वरूप, ताइवान को चीन द्वारा सैन्य ताकत के जोर से हड़प लेने की संभावना काफी बढ़ गई है।

प्रशांत कमान को मजबूत करने का तर्क

मार्च में, हिंद-प्रशांत कमांड के एडमिरल फिल डेविडसन ने सीनेट आर्म्ड सर्विस कमेटी के समक्ष एक रिपोर्ट पेश किया था कि चीन इस दशक के अंत तक ताइवान पर अपना नियंत्रण का प्रयास कर सकता है।3डेविडसन ने नीति-निर्माताओं से कहा कि चीन स्वयं को अमेरिका का स्थानापन्न होने और नियम-कायदों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक नेतृत्वकारी भूमिका में आने की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई है। उसने इस भूमिका में आने के लिए 2050 की मियाद तय कर रखी है। चीन की सेनकाकू प्रायद्वीप, हांगकांग, तिब्बत एवं दक्षिणी चीन सागर में एवं जलयानों, वायुयानों, राकेट इत्यादि संचालन की हालिया गतिविधियां के संकेत हैं कि चीन दीर्घावधि में अमेरिका को विश्व की एकल सर्वोच्च शक्ति से बेदखल कर खुद उसकी जगह लेना चाहता है। इस तरह वैश्विक व्यवस्था को अपनी शर्तों पर वांछित आकार देना चाहता है। डेविडसन का आकलन है कि यद्यपि ताइवान के प्रति अमेरिका की “रणनीतिक अस्पष्टता” की नीति ने ताइवान को मुख्यभूमि चीन से स्वतंत्र रहने में संभवतः मदद ही की है, फिर ऐसी नीतियों को पुनः समीक्षित किए जाने की आवश्यकता है।

अमेरिका जब कभी ताइवान नेतृत्व के साथ बातचीत करता है, चीन आपत्तियां जताता है और अमेरिका पर काफी लंबे समय से स्थापित ‘एक चीन नीति’ का उल्लंघन करने का दोषी ठहरा देता है। इसलिए वे,अमेरिका से ताइवान की रक्षा क्षमता बढ़ाने में मदद के लिए “लगातार एवं अवरोधों के बावजूद हथियारों की बिक्री” को जारी रखने की बात कहते हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूनाइटेड स्टेटस इंडो-पैसिफिक कमांड (USINDOPACOM), अमेरिकी फौज का एक एकीकृत कमांड है, जो अपने सालाना हांगकांग सैन्यअभ्यास के जरिए ताइवान की मदद करता है। इंडोपैकोम 2022 के बजट में पैसिफिक डिटरेंस इनिशिएटिव (पीडीआइ) के लिए $4.68 बिलियन डॉलर राशि की मांग की गई है। इस क्षेत्र में चीन का जवाब देने के मकसद से 2020 में पीडीआइ का गठन किया गया था।4इस कमांड को अपने तय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2023 के बजट से $22.69 बिलियन डॉलर की दरकार होगी।5यह तर्क अमेरिका में जोर पकड़ता जा रहा है कि चीनी मिसाइलों से रक्षा के लिए स्वदेशी मिसाइल को रक्षा प्रक्रिया में शामिल किया जाए। यह भी तर्क दिया गया है कि गुआम पर तीन तरफा निर्देंशित मिसाइलों को मार गिराने के लिए एक एजिस एशोर (Aegis Ashore) सुविधा का निर्माण किया जाए ताकि इसे नौसेना के काम के लिए उपलब्ध कराया जा सके।6यह भी तर्क दिया जाता है कि मौजूदा समय में सेना की एजिस विध्वंसक के साथ मिल कर काम करने वाली टर्मिनल हाई अल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) प्रणाली चीन से संभावित खतरों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं।7

तब क्या युद्ध अवश्यंभावी है?

अगर ताइवान पर अगले छह सालों में चीन की चढ़ाई करने का अमेरिकी आकलन-अनुमान सही होने जा रहा है तो ऐसी संभावना खतरे को काफी ऊंचा कर सकती है और फिर अमेरिका एवं चीन के बीच जंग को लाजिमी कर देती है। जबकि चीन का 2035 प्लान8और 14वीं पंचवर्षीय प्लान9में राष्ट्रीय एकीकरण की बजाए घरेलू विकास को वरीयता दिया गया है, अब बहस इस बात की है कि क्या पेइचिग ने अगले कुछ वर्षों में लगातार जंग करने का कोई प्रतिबद्ध निर्णय किया है। हालांकि चीन के शीर्ष नेता अभी भी “शांतिपूर्ण एकीकरण” के फार्मूले पर टिके हुए हैं। इससे ताइवान से पेइचिंग के लड़ाई की तैयारियों एवं सैन्य मुद्राओं में हाल के वर्षों में बढोतरी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन तैयारियों में सैन्य निर्माण,बल के बार-बार जबरदस्त प्रदर्शन के साथ-साथ सरकार द्वारा "बल द्वारा एकीकरण" के जरिए राष्ट्रवाद को आह्वाना किया जाना शामिल है। जबकि ऐसी भाव-भंगिमा एक संघर्षी संकेत भेजती हैं, अमेरिका अपने चौकसी को विराम नहीं दे सकता और वह चीन को यह चुनौती देने के लिए तैयार है कि अगर उसने लक्ष्मण रेखा पार की और ताइवान पर मिसाइलों से हमला किया तो उसे करार जवाब दिया जाएगा।10ताइवान पर संभावित मुठभेड़ को लेकर आस्ट्रेलिया से सुदूर बैठे देश भी काफी चिंतित हैं। आस्ट्रेलिया के रक्षामंत्री पीटर डटन का आकलन है कि ताइवान को लेकर चीन के साथ “जंग की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए” और उनका देश इस क्षेत्र के सहयोगियों के साथ मिल कर शांति कायम करने और उसे बनाए रखने की कोशिश करेगा।11ताइवान पर यह प्रतिक्रिया देने के लिए चीन ने आस्ट्रेलिया को चपत लगाने में कोई देरी नहीं की और उससे एक चाइना नीति के सिद्धांतों का पालन करने की नसीहत दी।12 यहां स्मरण किया जा सकता है कि आस्ट्रेलिया एवं चीन के बीच अप्रैल 2020 से कुछ मसलों पर तनाव बढ़ा हुआ है। आस्ट्रेलिया ने चीन की बीआरआइ परियोजनाओं को “अपनी विदेश नीति के साथ असंगत” होने का हवाला देते हुए उसमें अपनी भागीदारी से हाथ खींच लिया है। इस निर्णय को चीन ने “अतार्किक एवं उकसावे वाला” बताया है। चीन पर डटन के वक्तव्य पर चीन की प्रतिक्रिया उसके अपने नैरेटिव की सीध में ही थी।

चीन-आस्ट्रेलिया संबंधों में नाक की लड़ाई का ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब पेइचिंग के राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग ने चीन-आस्ट्रेलिया कार्यनीतिक आर्थिक संवाद के अंतर्गत होने वाली गतिविधियों को “अनिश्चितकाल तक के लिए टाल” दिया। यह दावा करते हुए चीन-आस्ट्रेलिया सहयोग के प्रति आस्ट्रेलिया सरकार के “मौजूदा रुख” के जवाब में ऐसा कदम उठाया गया है।13बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव के रद्द किए जाने की वजह से भी पेइचिंग आस्ट्रेलिया पर आगबबूला है, जिसमें दावा किया गया है कि कैनबेरा चीन के साथ संबंध सुधारने में अभिरुचि नहीं रखता है। आस्ट्रेलिया की संसद ने अपनी सरकार से डार्विन पोर्ट को 99 वर्ष के लिए लैंडब्रिज ग्रुप को लीज पर देने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है। इसने भी दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। दोनों देशों के बीच तनाव तब और उबाल मारने लगा जब अप्रैल 2020 में आस्ट्रेलिया ने कोरोना वायरस के प्रकोप के उद्गम स्थल की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने पर जोर दिया। तब से ही, दोनों देशों के बीच उत्पन्न तनाव ने व्यापार को चौपट कर दिया है। विविधकरण एवं यहां तक कि पर्यावरण पर दबाव डाले बगैर विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था “इकनामिक डिकपलिंग” का आह्वान और तेज होता गया है।

चीन उन सारे कामों को करने में संलिप्त है, जिससे कि ताइवान की अर्थव्यवस्था को चौपट किया जा सके। उसकी ऐसी कारगुजारियों का ताजा मामले में, ताइवान ने 28 अप्रैल को चीन पर आरोप लगाया कि वह उसकी तकनीक को चुरा कर एवं उनके इंजीनियरों को प्रलोभन देकर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में उसके देश के प्रति आर्थिक युद्ध छेड़े हुए है।14ताइवान सेमीकंडक्टर बनाने वाला विश्व स्तर पर अग्रणी एवं एक समृद्ध देश है, जिसका उपयोग कारों से लेकर लड़ाकू जेट विमान तक में होता है।ताइवान लंबे समय से चीन द्वारा उसकी सफलताओं की कॉपी किए जाने से चिंतित है, जिनमें चीन की औद्योगिक खुफियागिरी और छल-कपट के तरीकेशामिल हैं। अब ताइवान की संसद ने इसकी रोकथाम के लिए कानून को कड़े करने के लिए विधेयक लाने पर विचार कर रही है। ताइवान की उपलब्धियों से मिलने वाली चुनौतियों से चीन डरा हुआ है और वह अपने सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए ताइवान की प्रतिभाओं का“शिकार”कर रहा है। और इस तरह, ताइवान की प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंचाने के लिए उसकी औद्योगिक-व्यावसायिक खुफिया जानकारियों को हासिल कर रहा है।

अमेरिका के लिए विकल्प

हाल तक चीन ने इस मसले पर इंतजार करना पसंद किया था और ताइवान-चीन के शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए तरीकों की मांग की थी। यह माना जाता था कि ऐसी रणनीति किफायती और उत्पादक होगी, और इससे उसके शांतिपूर्ण उत्थान की आकांक्षा वाले देश की एक वांछित छवि भी विश्व में बनेगी। लेकिन चीन का यह नैरेटिव अब बदल गया मालूम पड़ता है। चीन ने अब मान लिया है कि वैश्विक मामलों में अमेरिका की वह महत्ता जो युद्ध बाद के वर्षों में,विश्व राजनीति को परिभाषित करती थी, वह अब नहीं रही। जबकि उसके बनिस्बत चीन का कद-सैन्य और आर्थिक- दोनों ही स्तरों पर विचारणीय रूप से बढ़ा है। चीन में एक स्कूल का विचार है कि जिसका कहना है कि अमेरिका की ताकत में आगे और कटाव होगा, जिससे विश्व के अन्य क्षेत्रों में उसके प्रभाव को कम करेगा। चीन के लिए तब अपने प्रायद्वीप देशों के एकीकरण में सैन्य बल का उपयोग करना आसान हो जाएगा। हालांकि अभी इस बारे में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकी है, लेकिन यह एक कार्य नीति है जिस पर पेइचिंग विचार कर रहा है। एक अन्य विचार अपनी जगह बना रहा है कि ताइवान की इच्छा राजनीतिक समाधान को शुरू करने और उसको स्वीकार करने की होगी जब वह मुतमईन हो जाएगा कि वह अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकी समर्थन की कोई गारंटी नहीं लेसकता। जो लोग इस विचार को मानते हैं, वे इस तथ्य की अनदेखी कर देते हैं कि चीन अपनी सैन्य एवं आर्थिक ताकतों के समर्थन पर दुनिया में एक खतरे के रूप में उभरा है, लेकिन उसकी सैन्य शक्ति अमेरिका से मुकाबला नहीं कर सकती और ताइवान का अमरिका द्वरा त्याग देने की संभावना क्षितिज पर दिखाई नहीं देती।

जापान ताइवान को अपनी नीति में किस प्रकार शामिल करता है?

ताइवान का मसला बड़ा जटिल है और अमेरिका एवं चीन विशेष नीति-विकल्पों का सामना कर रहे हैं। इस तथ्य के बावजूद कि अमेरिका ताइवान के पक्ष में खड़ा है, शक्ति का नाजुक संतुलन बना हुआ है। चीन ने ताइवान के समुद्र क्षेत्र में घुसपैठ कर दी है। पहले की नीतियों से एक स्पष्ट प्रस्थान में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को अपने संयुक्त वक्तव्य में ताइवान का उल्लेख किए जाने से कोई हिचक नहीं हुई, जिसे उन्होंने वाशिंगटन दौरे पर आए जापान के प्रधानमंत्री यशोहिदे सुगा से 16 अप्रैल 2021 में मुलाकात के बाद जारी किया था। संयुक्त वक्तव्य में ताइवान का पहला उल्लेख 1969 से ही किया जा रहा है। पहला उल्लेख तब किया गया था, जब चाइना ने 25 विमानों का एक दस्ता प्रायद्वीपीय राष्ट्र ताइवान को डराने के लिए रवाना कर दिए थे, जिनमें कुछ लड़ाकू विमान एवं कुछ परमाणु बम ले जाने वाले विमान भी शामिल थे।15

अमेरिका जापान के उस पहले संयुक्त वक्तव्य में “ताइवान के जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता” कायम करने एवं “क्रॉस-स्ट्रेटस का शांतिपूर्ण समाधान” निकालने जैसे शब्दों को शामिल किया गया था। ऐसे शब्दों का उल्लेख इस आधी सदी में पहली बार किया गया था। अंतिम बार अमेरिकी-जापान संयुक्त वक्तव्य में ताइवान मसले का उल्लेखतब किया गया था, जब 21 नवंबर 1969 को जापान के प्रधानमंत्री ईसाकू सातो ने अमेरिका का दौरा किया था। तब उस वक्तव्य में ताइवान की शांति और सुरक्षा से लेकर जापान की सुरक्षा पर जोर दिया गया था। हालांकिजब जापान और अमेरिका ने चीन के साथ अपने अपने संबंधों को 1970 के दशक में सामान्य कर लिया तो ताइवान का उल्लेख जापान-अमेरिका के आगे के संयुक्त वक्तव्यों में कम हो गया। तब चीन के अभ्युदय एवं उसकी आक्रामक विदेश नीतियों को बढ़ावा देने के बाद क्षेत्र की भू राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया, इसने टोक्यो और वाशिंगटन के रणनीतिक विचार को बदल दिया कि वह ताइवान के प्रति अपनी नीतियों को किस तरह से परिभाषित करते हैं। यह इसलिए कि पेइचिंग अधिक दखलकारी और ताइवान को लेकर अपने दावे के प्रति ज्यादा मुखर हो गया था, जिसे वह चीन का एक भूभाग मान कर अपना दावा करता था। इसे चीन की मुख्य भूमि में मिला लेने की धमकी देते हुए कहा कि अगर ताइवान को एकीकरण का शांतिपूर्ण विकल्प मान्य नहीं हुआ तो वह सेना की ताकत का इस्तेमाल करेगा।

इस परिदृश्य में बदलाव तब आया जब राष्ट्रपति ली टेंग हुई ताइवान के राष्ट्रपति बने। उन्होंने1990 के दशक में ताइवान की पहचान बनाने पर जोर देते हुए ताइवान के लोकतांत्रिकरण को बढ़ावा दिया और देश में पहली बार राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव हुआ था। चीन ने ताइवान कीनई पहचान की मांग पर चिढ़ कर कई मिसाइलें ताइवान के जल में सैन्य अभ्यास के नाम पर दाग दीं गईं। इसका असल मकसद ताइवान को डराना था। अमेरिका ने इसके जवाब में अपना एक एयरक्राफ्ट के साथ सेना भेज दी। चीन को अपना अभियान रोकना पड़ा क्योंकि तब वह अपनी फौज की क्षमता को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ था।बाद में, इसने कहा कि पेइचिंग इस अपमान को भूला नहीं है।16

जैसे-जैसे चीन की सैन्य शक्ति अधिक शक्तिशाली होती गई, यह अधिक जुझारू बनने लगा, जिससे अमेरिका और इस क्षेत्र के अन्य हितधारकों के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गईं क्योंकि ताइवान पर चीन की ओर से किसी भी सैन्य साहसिक कार्य के अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं। हालांकि ताइवान के वर्तमान राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने यथास्थिति बनाए रखने की कवायद की है, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग में ताइवान में घुसने की क्षमता और मंशा दोनों है। कनेहारा कहते हैं, यह “सवाल कब” का है।17वे आगे कहते हैं कि यह कठोर वास्तविकता ही असली कारण है, जिसके चलते बाइडेन-सुगा के संयुक्त वक्तव्य में “ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता” का जैसे शब्दों का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है। कनेहारा जापान में पूर्व सहायक मुख्य कैबिनेट सचिव रहे हैं, इसलिए वे ताइवान की आकस्मिकता को जापान की आकस्मिकता के रूप में देखते हैं।18वह इसलिए, ताइवान की आकस्मिकता के कभी भी निवारण के मद्देनजर जापान एवं अमेरिका के लिए एक त्रुटिहीन गठबंधन का तर्क देते हैं।

ताइवान की रक्षा की अमेरिकी प्रतिबद्धता राजनयिक मान्यता की मोहताज नहीं है। यहां तक कि 2020 में जब ट्रंप ने व्यापार घाटे का मसला चीन के साथ उठाया था, तब अमेरिका ने यूएसएस मेक कैंपवेल निर्देशित मिसाइल-विध्वंसक को ताइवान जलडमरूमध्य में रूटीन प्रदर्शन पर रवाना कर दिया था। जो इस बात का परिचायक था कि अमेरिका चीन का ताइवान के साथ शांतिपूर्ण संबंध सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अमेरिका ने इस आवश्यकता को महसूस किया कि ताइवान पर चीन के किसी भी सैन्य कार्रवाई को रोकने के लिए चीन के नेतृत्व को एक मजबूत संदेश देने की जरूरत है।19अमेरिका ने ताइवान को अमेरिका ने ताइवान को एसिमिट्रिकA2/AD क्षमताएं अर्जित करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। इसके अलावा, एशिया रिएसोरिएंश इनीशिएटिव एक्ट-2018 में अमेरिका को इस बात के लिए अधिकृत किया कि वह ताइवान को हथियार मुहैया कराएगा।20इनमें सिमिट्रिक क्षमताएं जो एकीकृत हैं, मोबाइल, वहनीय, एवं लागत-सक्षम हैं।TAIPEI अधिनियम 2019 के अंतर्गत भी,इसकेक्रियान्वयन की जिम्मेदारी अमेरिका की है।21यह अधिनियम राष्ट्रपति और सरकार के अन्य प्रतिनिधियों को ताइवान की “सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता दिलाने की वकालत करता है, जिसमें राज्य की हैसियत की दरकार नहीं है औरजिसमें अमेरिका भी एक भागीदार है; इसीलिए ताइवान को एक गारंटीशुदा ऑब्जर्वर की हैसियत से अन्य उपयुक्त अंतरराष्ट्रीय संगठनों में शामिल कराने की बात करता है।”22ऐसे संगठनों में विश्व स्वास्थ्य सभा भी शामिल है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन को निर्देशित करती है।

इनमें से कोई भी कार्रवाई ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में औपचारिक मान्यता नहीं देती है या अमेरिका की "वन-चाइना" नीति का उल्लंघन नहीं करती है-जो पेइचिंग के पसंदीदा "वन-चाइना" सिद्धांत की तुलना में क्रॉस-स्ट्रेटस संबंधों की कम कठोर परिभाषा प्रदान करती है।अमेरिका के इस आश्वासन के आधार पर ताइवान को आत्मविश्वास से लबरेज हो जाना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में सार्थक तरीके से अपना योगदान करना चाहिए। इसके अलावा, अन्य देशों को ताइवान के अस्तित्व के लिए निवेश करने में संकोच नहीं करना चाहिए। चीन ने अफ्रीका में और अन्य जगहों पर कई छोटे राष्ट्रों को आर्थिक मदद से लुभा कर उनकी निष्ठाएं बदल दी हैं। ताइवान भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक अनाथ देश बनकर नहीं रहेगा। ताइवान के साथ भारत के संबंधों को उन्नत करने के लिए सुरक्षा विश्लेषकों की मांग बढ़ रही है। ताइपेई के अपने प्रतिनिधि कार्यालय में वरिष्ठ राजनयिक को भेज कर भारत ने अपनी मंशा का संकेत पेइचिंग को दे चुका है।23 लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन किया जाना चाहिए। ताइवान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए टेस्ट केस है।

पाद-टिप्पणियां
  1. https://www.history.com/this-day-in-history/chinese-nationalists-move-capital-to-taiwan
  2. https://southreport.com/china-us-relations-henry-kissingers-secret-visit-to-china-through-pakistan-and-fake-kissinger/
  3. मैलोरी शेलबोर्न, “डेविडसन : चाइना कुड ट्राई टू टेक कंट्रोल ऑफ ताइवान इन ‘नेक्स्ट सिक्स ईयर्स”, 9 मार्च 2021, https://news.usni.org/2021/03/09/davidson-china-could-try-to-take-control-of-taiwan-in-next-six-years
  4. माइकेल मैकग्राडी, “यूएस इंडो पेसिफिक कमांड आस्क फॉर फंडिंग ऑफ द पैसिफिक डिटेरेंसइनीशिएटिव”, 5 मार्च 2021, https://maritime.direct/en/2021/03/05/us-indo-pacific-command-asks-for-funding-of-the-pacific-deterrence-initiative/
  5. जोए गोल्ड, “आइंग चाइना, इंडो पेसिफिक कमांड सिक्स 27 बिलियन अमेरिकन डॉलर डिटेरेंस फंड”, 1 मार्च 2021, https://www.defensenews.com/congress/2021/03/02/eyeing-china-indo-pacific-command-seeks-27-billion-deterrence-fund/
  6. मैलोरी शेलबोर्न, “डेविडसन : एजिस एशोर ऑन गुआम ‘फ्री अप’ थ्री नेवी डिस्ट्रॉयर्स”, 4 मार्च 2021, https://news.usni.org/2021/03/04/davidson-aegis-ashore-on-guam-would-free-up-3-navy-destroyers
  7. वही।
  8. बॉब सेविक, “ चाइना विजन 2005 China’s Vision 2035: फ्रॉम बीजिंग फोरबिडेन सिटी टू इंटरकनेक्टेड यूरेशियन मेगा सिटी”, 24 मार्च 2021, https://www.china-briefing.com/news/chinas-vision-2035-from-beijings-forbidden-city-to-interconnected-eurasian-megacity/
  9. “चाइना 14th फाइल ईयर प्लानः ए ब्लूप्रिंट फॉर मॉडर्नाइजेशन”, 26 नवम्बर 2020, https://nepalforeignaffairs.com/chinas-14th-five-year-plan-a-blueprint-for-modernization/
  10. युन सून, “इज वॉर ओवर ताइवान इमिनेंट?”, 15 अप्रैल 2021, https://www.apln.network/analysis/commentaries/is-war-over-taiwan-imminent.यही आर्टिकल दि कोरिया टाइम्स में 14 अप्रैल 2021, प्रकाशित हुआ। देखें, https://www.koreatimes.co.kr/www/opinion/2021/04/197_307067.html
  11. सारा मार्टिन, “ऑस्ट्रेलियन डिफेंस मिनिस्टर सेज कनफ्लिक्ट्स ओवर ताइवान इंवाल्विंग चाइना ‘शुड नॉट बी डिस्काउंटेड’”, The Guardian, 25 अप्रैल 2021, https://www.theguardian.com/world/2021/apr/25/australian-defence-minister-says-conflict-over-taiwan-involving-china-should-not-be-discounted
  12. https://www.aninews.in/news/world/asia/beijing-slams-australia-over-taiwan-remarks-tells-it-to-abide-by-one-china-principle20210427024137/
  13. टेडी एनजी,“चाइना-ऑस्ट्रेलिया रिलेशंस: बीजिंग ‘इंडेफिनिटली सस्पेंड्स’ हाई लेवल इकोनामिक डायलॉग विद कैनवेरा”, 6 मई 2021, https://www.scmp.com/economy/article/3132425/china-australia-relations-beijing-indefinitely-suspends-high-level-economic
  14. “ताइवान सेज चाइना वेजिंग इकोनामिक वार फेयर अगेंस्ट टेक्निकल सेक्टर”, The Economic Times, 28 अप्रैल 2021, https://economictimes.indiatimes.com/news/defence/taiwan-says-china-waging-economic-warfare-against-tech-sector/articleshow/82287129.cms?utm_source=ETTopNews&utm_medium=
  15. राजाराम पांडा,“एक्सप्लेन्ड: सुगा-बाइडेन सम्मिट एट्रेन्गथनिंग अलाएंस”, 26 अप्रैल 2021, https://www.vifindia.org/article/2021/april/26/explained-suga-biden-summit-strengthening-alliance
  16. नोबुकात्सु कनेहारा, “इन ऑवर रीजनः ताइवान कंटीजेंसी इज जापान कंटीजेंसी”, Japan Forward, 6 मई 2021, https://japan-forward.com/in-our-region-a-taiwan-contingency-is-a-japan-contingency/
  17. वही।
  18. वही।
  19. पैट्रिक एम. क्रोनिन और रयान न्यूहार्ड, “डिफेंडिंग ताइवान शार्ट ऑफ डिप्लोमेटिक रिकॉग्निशन”, 20. मई 2020, https://www.hudson.org/research/16053-defending-taiwan-short-of-diplomatic-recognition
  20. देखें, https://www.congress.gov/115/plaws/publ409/PLAW-115publ409.pdf
  21. देखें, “ट्रंप साइन TAIPEI एक्ट, थ्रेटनिंग ‘कंसीक्वेंसेस’ फॉर नेशन दैट फेल टू टो यूएस लाइन ऑन ताइवान”, 27 मार्च 2020, https://www.rt.com/news/484220-trump-taipei-act-china/
  22. वही।
  23. फॉर द ऑथर्स व्यूज ऑन दिस, सी, राजाराम पांडा, “ ए केस फॉर डिपेनिंग इंडिया-ताइवान रिलेशंस”, 30 अक्टूबर 2020, https://www.vifindia.org/article/2020/october/30/a-case-for-deepening-india-taiwan-ties

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)


Image Source: https://bsmedia.business-standard.com/_media/bs/img/article/2020-10/08/full/1602140472-5361.jpg

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