जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा ने टोक्यो ओलंपिक 2020 के समापन के कुछ ही दिनों बाद, 3 सितंबर को एक आश्चर्यजनक घोषणा में कहा कि वे आगामी 29 सितंबर को होने वाले लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के अध्यक्ष के चुनाव में भाग नहीं लेंगे। इसका मतलब है कि प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल इसी साल 30 सितंबर को समाप्त हो जाएगा, जो कि एक वर्ष से थोड़ा कम है।
सुगा को उनके राजनीतिक कब्रिस्तान तक पहुंचाने के लिए दो प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं। एक, जनता की भारी अस्वीकृति के बावजूद, सुगा ने ओलंपिक खेलों की मेजबानी की अपनी जिद जारी रखी। इस पंक्ति के लेखक ने इसके पहले लिखे अपने एक लेख में खेलों के बाद कोविड-19 से जुड़े संक्रमण के मामलों में अचानक उछाल आने की आशंका जताते हुए ओलंपिक की मेजबानी करने वाले टोक्यो के खिलाफ जोरदार तर्क दिया था। और अंततः यही हुआ भी। इस लेखक ने यह पूर्वानुमान लगाते हुए कि कहा था कि इसके बाद सुगा अपने राजनीतिक जीवन के बदतर क्षण की ओर बढ़ रहें होंगे। यह अनुमान भी सच हुआ। दूसरे, कोरोनोवायरस से होने वाली महामारी और अन्य संबंधित मुद्दों पर सरकार की लचर प्रतिक्रियाओं के कारण भी सुगा कैबिनेट के प्रति जनसमर्थन की रेटिंग दर गिरती चली गई थी। यदि इनमें एक कारण और जोड़ा दिया जाए तो सुगा को लगा कि चुनाव मैदान के अन्य संभावित उम्मीदवारों के बीच एलडीपी के नीति प्रमुख फुमियो किशिदा की पार्टी नेतृत्व का चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह डर पैदा हुआ कि अगर वे अपने पद पर बने रहें तो अगले साल अक्टूबर में होने वाले प्रतिनिधि सभा के चुनावों में एलडीपी को खराब मौसम का सामना करना पड़ सकता है।
सुगा ने उम्मीद की थी कि कोविड-19 टीकाकरण में तेजी लाने और टोक्यो ओलंपिक को एक सफलता के रूप में प्रचारित करने की उनकी प्रारंभिक रणनीति से उन्हें राहत मिलेगी और वे पीएम की कुर्सी पर अपना कब्जा जमाए रह सकते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ, बल्कि इसके ठीक उलटा हो गया। न केवल कोरोना संक्रमण के मामलों ने स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे पर अतिशय दबाव डालना जारी रखा, जिसने सुगा के नेतृत्व के नक्कारेपन की पोल खोल कर रख दी। सरकार ने कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन या आपातकाल का जब-जब विस्तार किया लोग-बाग हलकान-परेशान हो उठे। यह स्थिति आम आदमी को बेहद असुविधाजनक और उसके रोजमर्रे की जिंदगी को तंग-तबाह करने वाली साबित हुई। उनकी कैबिनेट के सदस्यों के चुनाव पर लोगों से अच्छी रेटिंग पाने की उम्मीद न केवल अवास्तविक थी, बल्कि उनकी रेटिंग लगातार कम होती गई।[1] जैसा कि यह हुआ था, लोगों की तरफ उनकी सरकार की घटिया रेटिंग सुगा के लिए एक वेक-अप कॉल थी, जिसके कारण उन्होंने गरिमा के साथ सियासी दौड़ से बाहर हो जाने का फैसला किया।
वास्तव में, जापान के 99वें प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो आबे की नीतियों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने एवं उनकी विरासत को आगे ले जाने के लिए सुगा का चयन ही चकित करने वाला था। इस लेखक ने तभी संदेह जताया था कि ऐसे समय में जब जापान कई मोर्चों पर, विशेषकर सुरक्षा मुद्दों पर घरेलू और बाहरी दोनों तरफ से ही चुनौतियों का सामना कर रहा है तो क्या सुगा अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से कर सकते हैं? सुगा के पदभार ग्रहण करने के बाद से एलडीपी को दुर्भाग्य के एक के बाद एक झटके लगने लगे। वह चुनाव की एक पूरी श्रृंखला हार गई, जिनमें डायट विधानसभा में रिक्त सीटों को भरने के लिए अप्रैल में दोबारा हुए चुनावों एवं उपचुनावों और टोक्यो मेट्रोपॉलिटन के लिए जुलाई में हुए चुनाव में तिहरी हार भी शामिल है। अगस्त में हुए योकोहामा मेयर चुनाव में भी सुगा की पार्टी के पूर्ण समर्थित उम्मीदवार को करारी हार का सामना करना पड़ा था। यह महसूस करते हुए कि वे पहले से ही राजनीतिक पद से निष्कासन के दौर से गुजर रहे हैं, सुगा को अपनी राजनीतिक पूछ बनाए रखने और आगे किसी अपमान का सामना न करने के लिए ही एलडीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार की दौड़ से अपने को बाहर रखना पड़ा है। एलडीपी के नेतृत्व और मंत्रिमंडल में फेरबदल करने, और फिर एलडीपी नेतृत्व की दौड़ से पहले सितंबर के मध्य में निचले सदन को भंग करने का उनका इरादा भी विफल हो गया, क्योंकि धारा उनके खिलाफ उबल रही थी।
सुगा निजी तौर पर पार्टी के संगठनात्मक मामलों के लिहाज से एक कुशल कार्यकर्ता थे थीं, लेकिन शासन के बड़े मुद्दे पर उनकी वैसी पकड़ नहीं थी। महामारी और ओलंपिक जैसी अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करने में उनकी निस्साह्यता और प्रशासनिक अक्षमता उजागर हो गई। इस पर सबकी राय अलग हो सकती है,लेकिन आने वाले दिनों में जापानी राजनीति के विश्लेषकों द्वारा उनका छोटा कार्यकाल निश्चित रूप से गहन जांच के दायरे में आएगा, जहां उनका स्कोर कार्ड खराब हो सकता है। गुटबाजी से ग्रस्त जापानी राजनीतिक दल प्रणाली में, सुगा न तो वंशानुगत प्रतिनिधि थे और न ही किसी अंतर-पार्टी गुट के सदस्य थे। जैसा कि यह हुआ, सरकारी सेवाओं के डिजिटलीकरण पर उनकी सापेक्ष सफलता, और अकेलेपन और अलगाव के मुद्दों को दूर करने के उनके प्रयास उनके राजनीतिक जगह को वापस करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।
जापानी राजनीति में तेजी से बढ़ते घटनाक्रम के कारण सुगा को पार्टी अध्यक्ष पद की दौड़ से पीछे हटना पड़ा, जिससे यह आभास होता है कि सुगा का पार्टी में कोई दोस्त नहीं था और वे अकेले पड़ गए थे। सुगा के कुछ अनुचित निर्णयों के कारण यह बात कुछ हद तक सही भी हो सकती है। सुगा ने अपनी घोषणा से एक दिन पहले, पार्टी में फेरबदल का संकेत दिया था, जिसमें उन्होंने करीबी सहयोगी महासचिव तोशीहिरो निकाई से छुटकारा पाने की योजना बनाई थी, जिन्होंने एक साल पहले सुगा को पार्टी प्रमुख के रूप में चुने जाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।[2] यह एक गलत राजनीतिक बयान था, यह एक तरह से पार्टी के सहयोगी के साथ विश्वासघात था।
लंबे समय तक जापानी राजनीति में रहने के बाद, सुगा ने अध्यक्ष पद की दौड़ से खुद को बाहर रखने की घोषणा करके अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही प्रदर्शन किया कि वे तारो कोनो, शिनजिरो कोइज़ुमी, और जाने-माने दिग्गज शिगेरू इशिबा जो पूर्व रक्षा मंत्री और महासचिव और संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की जगह लेंगे। इसके आगे भी भयंकर गलती करते हुए, सुगा ने पार्टी की चुनाव रणनीति समिति के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालने के लिए पार्टी के कार्यवाहक महासचिव, मोटू हयाशी से संपर्क किया, जिनकी अक्टूबर के अंत में होने वाले निर्धारित चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती। ऐसा करते हुए सुगा ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि हयाशी निकई गुट से संबंधित हैं, और जैसा कि अपेक्षित था, वे अपने बॉस के इस तरह अकेले छोड़ दिए जाने से बेहद गुस्से में थे। आश्चर्य नहीं कि हयाशी ने सुगा के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। निकाई गुट को कमजोर करने का सुगा का प्रयास, उन्हीं के लिए एक घातक झटका साबित हुआ, जिनका अपना आधार किसी भी संबंद्ध न होने के कारण भुरभुरी जमीन पर टिका हुआ है। कोइज़ुमी की चेतावनी से सुगा के बहरे कानों तक नहीं पहुँची।
अब सवाल उठता है: क्या सुगा ने एलडीपी के अध्यक्षीय चुनाव की दौड़ से हटकर अपनी कुछ प्रतिष्ठा बचाई?जैसा कि पहले कहा गया है, उनका छोटा कार्यकाल अब गहन जांच के दायरे में आएगा, जहां सुगा को निश्चित रूप से कम स्कोर मिलेगा। उन्होंने कई गलतियां कीं और अंत में एक सम्मानजनक निकास का विकल्प चुनकर उसकी एक कीमत चुकाई। अब यह तो इतिहास ही तय करेगा कि सुगा अपनी राजनीतिक विरासत के रूप में क्या विरासत छोड़ गए हैं।
एक लोकप्रिय दैनिक असाही शिंबुन में संस्कृति, कला और सामाजिक प्रवृत्तियों और विकास सहित व्यापक विषयों के अपने कॉलम में, वोक्स देई ने लिखा है कि सुगा की सियासी दौड़ से बाहर निकलने की पराजय राज-हत्या से जरा भी कम नहीं है।[3] इस स्तंभ में कहा गया है कि राज-हत्या, एक राजा को मारने की प्रथा आदिम समाजों में व्यापक रूप से प्रचलित थी। वोक्स देई ने आगे विस्तार से बताया है कि सुगा का दौड़ से अचानक बाहर निकलना एलडीपी की निर्दयता से अपने नेताओं को बदलने की शैली से भी संबंधित है। द गोल्डन बॉफ: ए स्टडी इन म्यूजिक एंड रिलिजन, में स्कॉटिश सामाजिक मानवविज्ञानी, सर जेम्स जॉर्ज फ्रेजर (1854-1941) ने विगत में कई उदाहरणों के जरिए बताया है कि प्राचीन जमाने में राजाओं और उच्च पुजारियों की शारीरिक अशक्तता के संकेत मिलते ही उन्हें मार दिए जाने की प्रथा रही है। तब यह माना जाता था कि एक सम्राट की स्वाभाविक-प्राकृतिक मृत्यु समाज पर विपत्ति लाएगी। इसलिए अगर राजा किसी बीमारी से आसन्न मौत से जूझ रहे होते तो उनके परिवार या उनके होने वाले उत्तराधिकारी के लिए राजा की हत्या कर देने को एक तरह से अनिवार्य बना दिया गया था। वोक्स देई ने असाही के अपने इस कॉलम ने एलडीपी के भीतर नवीनतम उथल-पुथल की तुलना राजा की हत्या (रेजिसाइड) की है। हालांकि देश-काल और परिस्थितियां अब पूरी तरह से अलग हैं।
इसलिए एलडीपी के सांसदों ने पार्टी के एक नए चेहरे की तलाश शुरू कर दी क्योंकि चुनावों के दौरान कमजोर नेतृत्व के तहत उनकी अपनी राजनीतिक किस्मत खतरे में दिख रही थी। सुगा को कानागावा प्रीफेक्चर के अपने निर्वाचन क्षेत्र में अकेला छोड़ दिया गया, जहां वे अब अपने चुनाव अभियान के प्रति भी पार्टी के समर्थन का भरोसा नहीं कर सकते हैं। इसलिए सुगा के लिए सबसे अच्छा विकल्प कुछ सम्मान बनाए रखने के लिए अध्यक्ष पद की दौड़ से हटना था। सुगा की तिरस्कारपूर्वक तुलना एक "उत्पाद" के रूप में की गई थी, जिसके इस्तेमाल के बाद उसके भार बनने के बाद त्याग दिया जाता है क्योंकि उसमें किसी तरह की मरम्मत या सुधार की गुंजाइश नहीं होती है। आज सुगा को उनकी उपयोगिता समाप्त होने के बाद कुर्सी से उतारने वाले वे ही लोग हैं,जिन्होंने पिछले साल भारी समर्थन के साथ उन्हें प्रधानमंत्री के उच्चासन पर बिठाया था। I इससे जाहिर होता है कि राजनीति कितनी निर्मम हो सकती है।
सुगा के पद छोड़ने के फैसले के साथ, जापान 'रिवाल्विंग-डोर' प्रधानमंत्रियों के युग में वापस आ गया है, जिसकी सूची में सुगा नवीनतम नाम हैं।[4] उनके पूर्ववर्ती शिंजो आबे के प्रधानमंत्री के रूप में लगभग आठ वर्षों के कार्यकाल के लिए सबसे लंबे कार्यकाल का रिकॉर्ड है, जबकि सुगा का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम समय में समाप्त हो गया।[5]लेकिन आबे के लंबे कार्यकाल के पहले, नेताओं की छोटे कार्यकालों के कारण प्रधानमंत्री पद को अक्सर "घूमने वाले दरवाजे" के रूप में वर्णित किया जाता था। पिछले दो दशकों में, जापान में सात ऐसे प्रधानमंत्री हुए, जिनका कार्यकाल केवल एक वर्ष तक ही चल पाया।
पिछले दो दशकों में झांकें तो कई अन्य ऐसे प्रधानमंत्रियों को पाएंगे, जो केवल एक वर्ष तक ही अपने पद पर टिके रह सके थे। इस सूची में सबसे पहला नाम योशिरो मोरी (अप्रैल 2000-अप्रैल 2001) का है। मोरी को अपने पूर्ववर्ती कीज़ो ओबुची के कोमा में पड़ जाने और बाद में उनकी मृत्यु हो जाने के बाद प्रधानमंत्री बनाया गया था। उनके कार्यकाल को उनकी कई गलतियों के लिए जाना जाता है, मीडिया सर्वेक्षणों में उनकी रेटिंग दर 9% तक गिर गई थी, जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। हाल ही में, उनकी यौनवादी टिप्पणियों ने ऐसा हंगामा खड़ा कर दिया कि उन्हें टोक्यो ओलंपिक संगठन समिति के अध्यक्ष के रूप में पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। दूसरे प्रधानमंत्री शिंजो आबे थे। हालांकि आबे का दूसरा कार्यकाल सबसे लंबा था जबकि उनका पहला कार्यकाल सिर्फ एक साल तक चला था। उन्हें अपने खराब स्वास्थ्य (सितंबर 2006-सितंबर 2007) के कारण पद छोड़ना पड़ा था। तीसरे यासुओ फुकुदा थे, जो अबे के उत्तराधिकारी बने थे। उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि सत्ताधारी गठबंधन को विपक्षी बहुमत वाले उच्च सदन (सितंबर 2007-सितंबर 2008) में सरकारी बिलों को पारित करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। चौथे, प्रधानमंत्री तारो एसो हुए थे, जो वर्तमान में उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री हैं। उन्होंने 2009 के आम चुनावों (सितंबर 2008-सितंबर 2009) में एलडीपी को डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान (डीपीजे) के खिलाफ ऐतिहासिक हार का सामना करने के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पांचवें, युकिओ हातोयामा थे, जो 15 वर्षों में एलडीपी के नेतृत्व वाली पहली सरकार के प्रमुख बने थे। उन्होंने 2009 में निचले सदन के चुनावों में जीत के बाद ओकिनावा प्रीफेक्चर (सितंबर 2009-जून) में अमेरिकी सैन्य अड्डे को स्थानांतरित करने पर उत्पन्न हुए राजनीतिक धन घोटाले और विवाद पर इस्तीफा दे दिया था। 2010)। छठे, नाओतो कान थे, जिन्होंने हातोयामा की जगह ली थी। एक साल (जून 2010-सितंबर 2012) से थोड़ा अधिक समय तक उनका कार्यकाल रहा। मार्च 2011 में आए भूकंप और सुनामी के गलत प्रबंधन के लिए उनकी सरकार की भारी आलोचना की गई, जिसने फुकुशिमा नंबर 1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र में ट्रिपल मेल्टडाउन शुरू कर दिया था। सातवें, योशीहिको नोडा (सितंबर 2011-दिसंबर 2012) हुए थे, जो डीपीजे के नेतृत्व वाली सरकार के अंतिम प्रधान मंत्री थे। उनका कार्यकाल अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो गया था, जब उन्होंने दिसंबर 2012 में एक एकाएक चुनाव कराए जाने के लिए निचले सदन को भंग कर दिया था और अबे के नेतृत्व में एलडीपी से हार गए थे। इस प्रकार, अबे के रूप में जापान में प्रधानमंत्री के सबसे लंबे कार्यकाल (दिसंबर 2012-सितंबर 2020) के एक दौर की शुरुआत हुई। लेकिन अबे के उत्तराधिकारी बने सुगा, जिन्होंने एक वर्ष से भी कम समय में इस्तीफा दे दिया, वे जापान के 'रिवाल्विंग-डोर' प्रधानमंत्रियों की सूची में शामिल हो गए हैं।
अभी जापान में सब कुछ घरेलू राजनीति पर केंद्रित है और विदेश नीति को पिछली सीट पर बिठा दिया गया है। एक छिपा हुआ भय है कि जापान जल्द ही राजनीतिक अस्थिरता के युग में लौट आएगा। अगर ऐसा होता है तो कुछ समय के लिए नीतिगत पक्षाघात का डर वास्तविक हो सकता है और यह जापान के लिए अच्छा नहीं है।
जापान के अगले प्रधान मंत्री बनने के लिए निम्नलिखित नेता संभावित उम्मीदवार हैं।[6] फुमियो किशिदा, जो आबे प्रशासन में एक विदेश मंत्री रहे हैं और सुगा प्रशासन में एलडीपी नीति प्रमुख रहे थे, जो यह घोषणा करने वाले पहले व्यक्ति थे कि वे राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होंगे। हालांकि उन्हें आबे के उत्तराधिकारी के रूप में इत्तला दे दी गई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि उनकी सार्वजनिक स्वीकृति दर तब कम थी। इसके अलावा, किशिदा अधिक विनम्र हैं और संविधान में शांति खंड को संशोधित करने के लिए इतनी उत्साहित नहीं हैं। इसके बाद आती हैं, आंतरिक मामलों की पूर्व मंत्री साने ताकाची, जो जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं। वे बढ़ती महामारी को कैसे नियंत्रित करें और टीकाकरण अभियान को कैसे चलाएं जैसे मुद्दों पर अपने विचारों के अलावा, विवादास्पद भी हैं। वे अक्सर जापान के युद्ध में मृत लोगों के विवादास्पद स्मारक यासुकुनी तीर्थ का दौरा करती हैं। वे विवाहित जोड़ों को अलग उपनाम रखने की अनुमति देने का भी विरोध करती है, जो उन्हें आधुनिक जापानी महिलाओं के बीच स्वीकार्य नहीं बना सकता है। हालांकि ताकाची को अबे का समर्थन प्राप्त है क्योंकि उन्होंने अपने आर्थिक सुधारों को जारी रखने का संकल्प लिया है, जिसे अबेनॉमिक्स के नाम से जाना जाता है। एक वाइल्डकार्ड उम्मीदवार के रूप में, यदि वे सफल होती हैं और पार्टी की अध्यक्ष पद की दौड़ जीत जाती हैं तो वे जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बन जाएंगी, क्योंकि नेतृत्व की दौड़ जीतने से एलडीपी की डाइट में सीटों की प्रमुख संख्या के कारण विजेता को खुद ब खुद प्रधानमंत्री बना दिया जाता है। हालांकि यह असंभावित परिदृश्य है।
सुगा के उत्तराधिकारी बनने में प्रशासनिक सुधार मंत्री और कोविड-19 उन्मूलन के प्रभारी तारो कोनो सांसदों की सूची में उच्च स्थान पर हैं। वे अमेरिका में पढ़े-लिखे हैं, धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं, मीडिया के चहेते हैं और उन्होंने जापान के विदेश और रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया है। सुगा प्रशासन में उन्होंने प्रशासनिक सुधार का महकमा संभाला था। हालांकि उन्हें थोड़ा मूडी माना जाता है। उनके विचार उनके पिता, पूर्व मुख्य कैबिनेट सचिव योहेओ कोनो से थोड़े अलग हैं, जिन्होंने 1993 में "कम्फर्ट वुमेन" के लिए माफी मांगी थी। यह शब्द जापान के सैन्य वेश्यालयों में काम करने के लिए उसके विजित देशों की मजबूर महिलाओं के लिए एक व्यंजना थी। कोनो को तारो एसो धड़े का भी समर्थन प्राप्त है।
हमेशा मिलनसार कोनो 58 साल के हैं।वे 4 सितंबर को एसो गुट के कई मध्य-रैंकिंग सदस्यों के साथ मिले हुए हैं, जिनसे वे संबंधित रहे हैं। एसो, अबे के घनिष्ठ मित्र हैं और वे कोनो की उम्मीदवारी का समर्थन करते हैं। कोनो के साथ समस्या यह है कि उन्हें यकीन नहीं है कि क्या एसो गुट का पूरा समूह उनका समर्थन करेगा क्योंकि कुछ किशिदा की उम्मीदवारी का भी समर्थन करते हैं।[6]
फिर एक पूर्व रक्षा मंत्री शिगेरू इशिबा/b> भी एक प्रत्याशी हो सकते हैं, जो मतदाता सर्वेक्षणों में तो शीर्ष पर हैं, लेकिन पार्टी सांसदों के बीच बहुत कम लोकप्रिय हैं। लेकिन कृषि और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को पुनरुज्जीवित करने जैसे कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर उनके विचारों को देखते हुए, शायद उन्हें लोगों प्यार न मिले, जिससे उनकी संभावना कमजोर हो जाती है। लेकिन इशिबा निकाई के संपर्क में हैं, जिनके पास अपार शक्ति है और इसलिए वे अपने गुट का समर्थन चाहते हैं।72 वर्षीय सुगा ने पार्टी की छवि को सुधारने के लिए 82 वर्षीय निकाई को एक प्रमुख कार्यकारी पद से हटा दिया था, हालांकि एक साल पहले सुगा को निर्वाचित कराने में उनकी अहम भूमिका रही थी। निकाई की अपने प्रति सुगा द्वारा किए गए विश्वासघात की भावना के बावजूद ईशिबा का मामला कमजोर हो सकता है और इसलिए एसो गुट की तरह ईशिबा का अपने गुट में भी कोनो की ओर कुछ झुकाव के साथ मतों का विभाजन उनका खेल खराब कर सकता है। निकाई अपने गुट में केवल 17 सदस्यों के साथ, जिसमें वे खुद भी शामिल हैं, ईशिबा को मैदान से बाहर निकालने में सफल होते नहीं दिखते हैं।
विचार-विमर्श में कोई स्पष्टता नहीं होने का इसका मतलब यह है कि जापान राजनीतिक अस्थिरता के दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है? ऐसा लगता है कि इस परिदृश्य के कुछ समय तक रहने की संभावना है।[8] इतने सक्षम और सक्षम उम्मीदवारों के मैदान में होने के कारण, राजनीतिक स्थिरता के लिए एक आसन्न खतरा नहीं लगता जो लंबे समय तक चल सकता है।
जैसा कि जनमत सर्वेक्षण से पता चलता है, इन सभी उम्मीदवारों में कोनो मजबूत विकेट पर हैं। एक क्योडो न्यूज पोल की तरफ से 5 सितंबर को जारी नतीजों में कोनो को सबसे लोकप्रिय प्रत्याशी के रूप में चुना गया है। जहां उन्हें उत्तरदाताओं से 31.9 प्रतिशत का समर्थन प्राप्त हुआ, वहीं इशिबा को 26.6 प्रतिशत और किशिदा को 18.8 प्रतिशत हिस्सा मिला था।[9] योमीउरी शिंबुन द्वारा 6 सितंबर 2021 को प्रकाशित एक अन्य सर्वेक्षण में 23 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि सुगा के उत्तराधिकारी के रूप में कोनो को सबसे उपयुक्त व्यक्ति बताया गया था।[10] हालांकि, पार्टी के बुजुर्गों को लगता है कि 58 साल के कोनो पद के लिहाज से बहुत छोटे हैं और फिर अपने बड़बोलेपन और एक अस्थिर चित्त के व्यक्ति के रूप में उनकी छवि भी उनके आड़े आती है। हालांकि शुरू में किशिदा को अबे के एक उपयुक्त उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया था, अब सुगा कोनो का समर्थन करते हैं। हालांकि इस लेख के लिखे जाते समय (8 सितम्बर 2021) यह अनुमान लगाना कठिन है कि आखिरकार जापान का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा पर कोनो की दावेदारी मजबूत दिखती है। हालांकि गुटों में ग्रस्त जापानी राजनीति में अप्रत्याशितता को देखते हुए परिदृश्य में एक सहसा बदलाव होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, जहां स्विंग अचानक हो सकती है। इन सभी को औपचारिक उम्मीदवार बनने के लिए 20 सांसदों का समर्थन सुनिश्चित करना आवश्यक है, तभी वे तात्कालिक लक्ष्य की दौड़ में बढ़ सकते हैं।
2020 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले शिंजो अबे और उनके उत्तराधिकारी बने सुगा का अभी भी पार्टी के दो सबसे बड़े गुटों और रूढ़िवादी सांसदों के बीच अच्छा-खासा प्रभाव है। कहा जाता है कि आबे अपनी पूर्व आंतरिक मामलों की मंत्री साने तकाइची को प्रमोट करना चाहते हैं। लेकिन 6 सितंबर के योमीउरी सर्वेक्षण ने खुलासा किया कि ताकाची को महज 3 फीसद ही मत मिले जबकि अबे को 5 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इसलिए, नाटकीय बदलाव की संभावना नहीं है। [11]
जैसा कि जापान कोरोनोवायरस संक्रमण की पांचवीं लहर से गुजर रहा है, वहां कोविड-19 से गंभीर रूप से संक्रमित रोगियों की तादाद रिकॉर्ड पर है, और इस परिदृश्य में तनावग्रस्त बुनियादी चिकित्सा ढांचे और अधिक जटिलता पैदा कर रहा है, इस स्थिति में लोग एक ऐसे नेता की उम्मीद करेंगे, जो समय पर सटीक कार्रवाई कर इस संक्रमण को रोक कर बेहतर परिणाम दे सके। टीकाकरण के बादशाह(जार) के रूप में कोरोनावायरस पर प्रभावी प्रतिक्रिया देने के लिए कोनो को सही उम्मीदवार होने की उम्मीद है और इस तरह उन्हें आगामी 30 सितंबर को जापान का प्रधानमंत्री होते देखा जा सकता है। सुगा की सबसे बड़ी गलती कोरोना के दिनों में ओलंपिक खेलों का आयोजन करना था, जो वायरस के अचानक उछाल का प्राथमिक कारण बना था और इसी एक गलती ने उनका राजनीतिक मृत्युलेख लिख दिया। इसलिए जापान के नए प्रधानमंत्री को फास्ट ट्रैक के आधार पर टीकाकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए, चिकित्सा पेशेवरों और अतिरिक्त अस्पताल बिस्तरों को सुरक्षित करके चिकित्सा बुनियादी ढांचे में सुधार करना चाहिए, और घर पर ठीक होने वाले मरीजों के लिए चिकित्सा संस्थानों में सुधार करना चाहिए। यह काम विशाल है। सुगा के अपेक्षित उत्तराधिकारी के रूप में कोनो उन उपायों के लिए सार्वजनिक समीक्षा के लिए खड़े होंगे, जिन जवाबदेहियों को वरण करना पसंद किया है।
इसका मतलब यह नहीं है कि विदेश नीति के मुद्दे पीछे हट जाएंगे। नए प्रधानमंत्री के लिए यह एक और चुनौती है। उस पहलू को जानबूझकर इस लेख के विश्लेषण के दायरे से बाहर रखा गया है और इसकी अलग से जांच की जाएगी।
[1] “सुगा सेज ही वुडनॉट रन इन अपकमिंग एलडीपी इलेक्शन, इफेक्टली इंडिंग टर्म एज जापान पीएम”, मेनिचि डेली न्यूज 3 सितम्बर 2021, https://mainichi.jp/english/articles/20210903/p2g/00m/0na/031000c
[2] “इन द एंड, नो वन वाज देयर टू हेल्प सुगा एज ए एलडीपी लीडर”, दि असाही शिम्बुन, 4 सितम्बर 2021, https://www.asahi.com/ajw/articles/14433434
[3] “वोक्स पुपली: सुगा एक्जिट डिबेकल एमाउंट टू नथिंग लेस दैन रजिसाइड, एलडीपी स्टाइल,”, असाही शिम्बुनो, 4 सितम्बर 2021, https://www.asahi.com/ajw/articles/14433038
[4] कज़ुकी नागाटा, “सुगा ज्वाइंस रैंक्स ऑफ जापान’स 'रिवाल्विंग-डोर' प्राइम मिनिस्टर्स”, दि जापान टाइम्स, 3 सितम्बर 2021, https://www.japantimes.co.jp/news/2021/09/03/national/politics-diplomacy/revolving-door-prime-ministers/
[5] “जापान’स लॉंगेस्ट-सर्विंग प्राइम मिनिस्टर्स”, 20 नवम्बर 2019, https://www.nippon.com/en/features/h00296/japan%E2%80%99s-longest-serving-prime-ministers.html
[6] “Potential candidates to become Japan’s next prime minister”, The Asahi Shimbun, 3 September 2021,https://www.asahi.com/ajw/articles/14432736
[7] “कैंडिडेट्स जोकिंग फॉर पॉजिशन इन एलडीपी प्रेसिडेंशियल रेस” दि असाही शिम्बुनो, 5 सितम्बर 2021, https://www.asahi.com/ajw/articles/14433971
[8] विलियम गैलो, “जापान’ज सुगा टू रिजाइन, सिगनलिंग पॉसिबिल रिटर्न टू पॉलिटकल इंस्टैबिलिटी”, 3 सितम्बर 2021, https://www.globalsecurity.org/wmd/library/news/japan/2021/japan-210903-
[9] “तारो कोनो टॉप्स ओपिनियन पोल एज मोस्ट फिट टू बिकम जापान’स नेक्सट पीएम”, मेनिचि डेली न्यूज, 5 सितम्बर 2021, https://mainichi.jp/english/articles/20210905/p2g/00m/0na/031000c. यह भी देखें, “वैक्सीन
जार तारो कोनो टॉप्स ओपिनियन पोल एज मोस्ट फिट टू बिकम जापान’स नेक्सट लीडर”, दि जापान टाइम्स, 6 सितम्बर 2021,
https://www.japantimes.co.jp/news/2021/09/06/national/taro-kono-ldp-survey/
[10] सारा जोन्स, “पब्लिक सपोर्ट स्ट्रांग फॉर जापान’स कोविड वैक्सीन मिनिस्टर एज नेक्सट पीएम, सेज ओपिनियन पोल”, 6 सितम्बर 2021, https://www.newzpick.com/2021/09/06/public-support-strong-for-japans-covid-vaccine-minister-as-next-pm-says-opinion-poll/
[11]वही।
(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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