आधुनिक समय में महाविनाश और महासृजन एक दूसरे के प्रतिद्वंदी बनकर आमने-सामने खड़े हैं। इनमें से किसी एक का चयन सामूहिक मानवीचेतना को ही करना पड़ेगा। ऐसी अप्रतीम चेतना को, जिसका प्रतिनिधित्व जागृत और वरिष्ठ प्रतिभाएं करती रही हैं। ऐसी प्रतिभाएं जो प्रामाणिकता एवं प्रखरता से सुसंपन्न हों उन्हीं को युग समन्वय का निर्णायक भी कहा जा सकता है ।
अर्थात : जिसको सुख सम्पत्ति में प्रसन्नता न हो, संकट विपत्ति में दु:ख न हो, युद्ध में भय अथवा कायरता न हो, तीनों लोकों में महान् ऐसे किसी पुत्र को माता कभी-कभी ही जन्म देती है।
उक्त श्लोक की सत्यता को प्रमाणित करते हुए, "२८ सितंबर १९०७ को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गांव (वर्तमान पाकिस्तान में है) के एक राष्ट्रभक्त सिख परिवार में जन्में भगत सिंह के रूप में संदर्भित एक उत्कृष्ट देशभक्त, जिन्होंने भारत को अंग्रेजी कुशासन से स्वतंत्र कराने में न सिर्फ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अपितु अपनी मातृभूमि के लिए २३ वर्ष ६ माह की अल्प आयु में २३ मार्च १९३१ को हंसते-हंसते मृत्यु का आलिंगन कर लिया।"१
भगत सिंह सिर्फ एक नाम नहीं अपितु परतंत्र भारत में अपने स्वतंत्र एवं श्रेष्ठ विचारों द्वारा समग्र भारत के ह्रदय में आजादी की अलख जगाने वाला ऐसा रत्न है जिसे भले ही भारत रत्न नामक पुरस्कार ना मिला हो किंतु यह भारत माता का सपूत स्वयं भारत भूमि के लिए किसी श्रेष्ठ रत्न रूपी पुरस्कार से कम नहीं है। सरदार भगत सिंह और उनके इस महान बलिदान ने देश की जनता में आजादी की जो तड़प पैदा की, देशभक्ति की जो आग फैलाई वह आज भी लोगों के ह्रदय-तरंगों को झकझोरती है। अपने बलिदान से उन्होंने देश में एक ऐसी क्रांति की लहर पैदा कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप देश का हर व्यक्ति आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए बलिदान होने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर आगे आने लगा। क्रांति की जो चिंगारी सरदार भगत सिंह ने लगाई थी, उसकी तपन आज भी भारतवासी महसूस करते हैं।
एक समय था जब वाणी पर ही नहीं अपितु हमारी प्रत्येक क्रिया-प्रतिक्रिया पर भी अंकुश था। हम जो कुछ सोचते थे, बोल नहीं सकते थे,क्योंकि वह अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध घोषित हो सकता था। न तो हमारे चिंतन को विश्व के अन्य देश जान सकते थे, न हमें समझ सकते थे। मैकॉले की शिक्षा पद्धति द्वारा बुद्धिजीवी गुलामों की फौज खड़ी हो रही थी जो उनके हित में काम करें और अपनी राष्ट्रीय पहचान को तिलांजलि दे दे।
ऐसी असहनीय परिस्थिति में देश की आजादी के लिए न सिर्फ भगत सिंह अपितु असंख्य नवयुवकों-नवयुवतियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों ने हंसते-हंसते मातृभूमि की सेवा में स्वयं को समर्पित कर कुर्बान कर दिया और हमें यह स्वतंत्र देश एवं परिवेश प्रदान किया जिसके फलस्वरूप आज हमें एक स्वतंत्र संवैधानिक राष्ट्र मिला किंतु हम इस आजादी और आजादी के महानायकों का मोल समझने में कहीं ना कहीं असमर्थ रहे हैं। सब कुछ अपने लिए प्राप्त करने और राष्ट्र को कुछ भी ना देने की प्रवृत्ति, दूसरों पर आश्रित रहने की प्रवृत्ति, यह विस्तृत दृष्टिकोण की नहीं अपितु संकीर्ण सोच की परिचायक है। आज जब हमारी वाणी पर कोई रोक नहीं है, हम अपना मार्ग स्वयं चुनने और आगे बढ़ने के लिए आजाद हैं तो हम अपने मूल कर्तव्य ही भूलते जा रहे हैं। बिना कर्तव्य निभाये अधिकारों की मांग करना किसी अपराध से कम नहीं है।आधुनिक परिपेक्ष में सभी के लिए इन आदर्शों को समझ पाना कुछ कठिन सा प्रतीत होता है।
यदि भगत सिंह चाहते तो आसानी से बच सकते थे किंतु अपने मित्रों की योजना के प्रतिकूल उन्होंने राष्ट्रहित में स्वयं को उत्सर्ग करना ही श्रेयस्कर समझा, हालांकि समकालीन प्रसंगों में बहुत से लोगों ने भगत सिंह को अतिवादी, उग्रवादी या चरमपंथी इत्यादि कहकर उनके विचारों का विरोध किया और आज भी बहुत से लोग भगत सिंह के विचारों से संगत नहीं रखते हैं किंतु भगत सिंह केवल मात्र एक क्रांतिकारी ही नहीं अपितु अनेक प्रतिभाशाली गुणों के धनी व्यक्तित्व भी थे जैसे- वे एक सुलझे हुए लेखक, विशाल दृष्टिकोण के धनी, कुशल रणनीतिकार और भारतीय क्रांति के दार्शनिक भी थे। उनके जीवन के ऐसे बहुत से उदाहरण दृष्टांत हैं, जो हमें बताते हैं कि वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
माडर्न रिव्यू के संपादक के नाम, उन्होंने पत्र लिखा था जो भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज के नाम में संकलित है। इस पत्र में उन्होंने क्रांति के अर्थ की उचित व्याख्या की है। पत्र में उन्होंने लिखा था कि, "क्रांति (इन्किलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप से स्वतंत्र आंदोलन नहीं होता है, विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता यद्यपि यह हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो।"२ इस पत्र में भगत सिंह ने क्रांति के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है और क्रांति से जुड़े कई सवालों की तह में जाकर उनकी बारीकियों को समझाने का प्रयास किया। जन-आन्दोलन के प्रति भगत सिंह का दृष्टिकोण स्पष्ट था।बटुकेश्वर दत्त के साथ संयुक्त रूप से २२ अक्टूबर १९२९ को लाहौर के विद्यार्थियों के नाम लिखते हैं कि "इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएं। आज विद्यार्थियों के सामने सर्व-महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी राष्ट्र सेवा एवं समर्पण है, राष्ट्रीय त्याग के अंतिम क्षणों में नौजवानों को क्रांति का यह संदेश, देश के कोने-कोने में पहुंचाना है।"३ फैक्ट्री-कारखानों के क्षेत्रों में, झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव हो जाएगा।ऐसे विशाल दृष्टिकोण वाले भगत सिंह का जीवन न सिर्फ समकालीन भारत वासियों के लिए प्रेरणादायक था,अपितु आधुनिक परिवेश में भी उनके जीवन से अनेक शिक्षाएं ग्रहण की जा सकती हैं। समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है किंतु यदि यह परिवर्तन सकारात्मक एवं विकास की दिशा में अग्रसर हो तो वह श्रेष्ठ परिवर्तन होता है।
वायु की गति से भी तेज भागने वाले आधुनिक समय में यदि प्राचीन विचारों एवं आदर्शों का समन्वय हो जाए तो यह पुनः भारत की संस्कृति एवं सभ्यता को उन्नति के शिखर पर ले जाकर खड़ा कर सकता है ।
आधुनिक परिपेक्ष में शहीद भगत सिंह के जीवन के निम्नलिखित दृष्टान्त विभिन्न शिक्षाओं के माध्यम से आधुनिक लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रेरणादायक सिद्ध हो सकते हैं।
१. संगति का प्रभाव- प्रत्येक जीव जन्म से ही सामाजिक प्राणी होता है। किन्तु उसके व्यक्तित्व को बनाने में सर्वाधिक प्रभाव उस परिवेश का पड़ता है जिसके सम्पर्क में वह सर्वाधिक रहा हो। वैसे तो भगत सिंह का जन्म ही एक देशभक्त परिवार में ही हुआ था किन्तु इसके बावजूद भी, बाल्यकाल से ही कर्तार सिंह सराभा, लाला लाजपत राय, रास बिहारी बोस इत्यादि स्वतन्त्रता सेनानियों के सम्पर्क में आने से उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण का दृष्टिकोण और भी विस्तृत होता चला गया। फलस्वरूप राष्ट्रभक्ति एवं मानवता ही सर्वोपरि धर्म एवं भारत की स्वतंत्रता ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन गया।
"मैं एक इंसान हूँ और जो भी चीज़े इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं मुझे उनसे फर्क पड़ता हैं।" -भगत सिंह
२.संकल्प शक्ति- भगत सिंह का एक मात्र जीवनोपद्देश्य था, भारत की गुलामी का अन्त। "भारतवर्ष और आजादी के लिए किये गये इस दृढ़संकल्प को,अंग्रेजी कुशासन के द्वारा मिली विभिन्न अमानुषिक यंत्रणायें, परिवार का मोह या धन का लोभ कुछ भी उन्हें तोड़ न सका।"४ क्या हम कल्पना कर सकते हैं, कि एक ऐसी हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, जिसके बारे में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी शक्तिशाली हुकूमत, एक २३ साल के युवक से भयभीत हो गई थी।
यह कुछ और नहीं अपितु उस दृढ़संकल्प की शक्ति थी,जो भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद के समक्ष जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर किया था कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपने उस संकल्प को पूर्ण कर दिखाया।
अर्थात : मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं ही होता है,जो इस तथ्य को समझते हैं,वे अपने चिंतन और प्रयास को श्रेष्ठ उद्देश्यों में ही नियोजित करते हैं।
३.संगठन का क्रियान्वीकरण सार्थक होना अनिवार्य है- किसी भी संगठन का गठन तभी सार्थक होता है, जब संगठन के मुख्य अधिकारी से लेकर प्रत्येक कार्यकर्ता व्यक्तिगत लाभ एवं रुचियों का त्याग कर निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहे। व्यक्तिगत रूप से भगत सिंह को फिल्में देखना, रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। उन्हें चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थी। यदा-कदा समय मिलते ही वह अपने मित्रों के साथ फिल्में देखने चले भी जाते थे। "किंतु १९२४ में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मुख्य प्रचारक के रूप में, तत्पश्चात १९२६ में नौजवान सभा के गठन के बाद अपने संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भगत सिंह ने अपने व्यक्तिगत जीवन को दरकिनार कर, अपना सर्वस्व राष्ट्र पर न्योछावर कर दिया।"५ उनके प्रत्येक संगठन का अंतिम लक्ष्य स्वाधीनता प्राप्त करना था। जीवन जीने की कला में भगत सिंह निपुण थे किन्तु उनका मानना था, कि "जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता हैं उसे परम्परागत अनुचित चलन की आलोचना एवं विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौति देनी होगी। मैं यह मानता हूँ कि मैं महत्वकांक्षी, आशावादी एवं जीवन के प्रति उत्साही हूँ लेकिन आवश्यकतानुसार मैं इन सबका परित्याग कर सकता हूँ यही एक मात्र मेरा और इस संगठन का उद्देश्य होना चाहिए।"
४. विस्तृत दृष्टिकोण- भगत सिंह का उद्देश्य भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराना मात्र नहीं था अपितु उस सामाजिक व्यवस्था का अंत करने से भी था जिसमें पूंजीपतियों द्वारा निम्न समाज का शोषण किया जा रहा था। भगतसिंह से नीचे की अदालत में पूछा गया था कि क्रांति से उन लोगों का क्या मतलब है? इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा था कि क्रांति के लिए ख़ूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है।"क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।"
धनिक समाज द्वारा करोड़ों मासूमों का यह शोषण भयानक असमानता और जबरदस्ती उत्पन्न किया गया भेदभाव है। जब तक मनुष्य द्वारा मनुष्य का तथा एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण, जिसे साम्राज्यवाद कहते हैं, समाप्त नहीं कर दिया जाता, तब तक मानवता को उसके क्लेशों से छुटकारा मिलना असंभव है। क्रान्ति से हमारा मतलब अंततोगत्वा एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना से है जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य होगा और मानवता को पूंजीवाद के बंधनों से और साम्राज्यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा। आज से ११४ वर्ष पूर्व एक समृद्धि शाली परिवार में जन्म लेकर भी इस नौजवान ने अपने व्यक्तिगत रूचि एवं लाभ के बारे में ना सोच कर अपितु संपूर्ण समाज को समृद्ध एवं सशक्त करने की ऐसी निश्चल सोच को न सिर्फ प्राथमिकता दी अपितु इसे धरातल पर उतारने के लिये अपना जीवन भी बलिदान कर दिया।
५. नम्य एवं अहमविहीन स्वभाव- राष्ट्र हित के लिए अहं से दूर रहकर सर्वोचित निर्णय को स्वीकार करना भी भगत सिंह का एक विशेष गुण था। जिसके कारण वे रूढ़िवादी या अड़ियल स्वभाव के नहीं थे। इसी स्वभाव के कारण वे किसी भी बात पर कई प्रकार से सोच पाते थे, कोई भी निर्णय लेने से पहले विभिन्न दृष्टिकोणों से उसके परिणामों को निहारते थे और जो सबसे उपयुक्त एवं उचित होता था, वही निर्णय लेते थे। "महात्मा गांधी के दर्शन से महत्वपूर्ण मतभेद रखते हुए भी कांग्रेस द्वारा संचालित जन-आंदोलन के प्रति भगत सिंह का दृष्टिकोण सकारात्मक था।"६ आंदोलन किसका है उसका नेतृत्व कौन कर रहा है, आदि अनावश्यक प्रश्नों को उन्होंने महत्त्व नहीं दिया। उनके लिए आंदोलन महत्वपूर्ण था, उनका, संदेश जन-जन तक विशेषकर गरीबों तक पहुँचाना महत्वपूर्ण था। उन्हें पता था कि जन-आंदोलन को जब व्यापकता मिलेगी, तब स्वतः क्रांति हो जाएगी। स्वार्थ लोभ की संकीर्ण सीमा से वह कोसों दूर थे। देशभक्ति की ज्वाला उनके मन में निरंतर धड़कती थी, जिसके कारण बिना कुछ काम किए भी चैन से नहीं बैठ पाते थे। बावजूद इसके भी वे बहुत धैर्यवान एवं स्थिर मनः स्थिति वाले थे।
"अपनी गिरफ्तारी के बाद जेल में रहकर उन्होंने भूख हड़ताल की जिसे पहले कभी किसी ने नहीं किया। भूख हड़ताल गांधीवादी अस्त्र है, लेकिन जेल में कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए इस अस्त्र को भी अपनाने में भगत सिंह ने संकोच नहीं किया ।"७
६. संप्रेषण का उपयोग- संप्रेषण अर्थात हमारे विचारों और भावनाओं को औरों के समक्ष सार्थक रूप से अभिव्यक्त करना। विशेषज्ञ एवं प्रतिभासंपन्न व्यक्ति संप्रेषण कला में निपुण हों, यह आवश्यक नहीं है। मानसिक एकाग्रता एवं स्थिरता, संप्रेषण के सर्वोत्तम माध्यम हैं। पूर्णिमा का श्वेत, शुभ्र चंद्रमा का प्रतिबिंब भी तभी स्पष्ट दिखाई देता है जब जलाशय का जल निर्मल एवं स्थिर हो। ठीक उसी तरह मन जब अपने उद्देश्य के प्रति एकाग्र एवं स्थिर होता है, तो अपने तथ्यों को आसानी से एवं स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता है। परिस्थिति को संज्ञान में रखकर, संप्रेषण की आवश्यकता एवं उपयोगिता के आधार पर अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने में भगत सिंह निपुण थे। स्वतंत्र रहते हुए तो वे अपने विचार विभिन्न माध्यमों से जनमानस तक पहुंचाई ही देते थे किन्तु गिरफ्तारी के पश्चात भी परिस्थितयों को बारीकी से समझते हुए "अदालत के फैसलों को चुनौती देकर वे अपने उत्तर को अपने बचाव में नहीं अपितु समस्त भारत के लिये ऊर्जा से परिपूर्ण प्रेरणात्मक संदेश में प्रस्तुत करते थे।"८ जो विभिन्न समाचार पत्रों द्वारा जन-जन तक पहुँच जाता था।
"भगत सिंह हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बांग्ला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक होने के साथ- साथ, भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे।"९ उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया।एक श्रेष्ठ वक्ता, पाठक और लेखक होने का प्रमाण, करागार में उनके लिखे पत्रों व लेखों में प्रयुक्त उनके विचारों से मिलता है। "उन्होंने भारतीय समाज में लिपि (पंजाबी की गुरुमुखी व शाहमुखी तथा हिन्दी और अरबी एवं उर्दू के सन्दर्भ में विशेष रूप से), जाति और धर्म के कारण आयी दूरियों पर भी दुःख व्यक्त किया था।।"१०
७. सामूहिक संघ कार्य (टीम वर्क)- एक साथ आना एक शुरुआत है, साथ रहना एक प्रगति है और एक साथ काम करना एक सफलता है। – हेनरी फोर्ड
एक निर्धारित लक्ष्य को कुशलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए, एक व्यक्ति के लिए दूसरों के मूल्य और साझा करने की कला को जानना बेहद जरूरी है।उक्त उद्धरण का महत्त्व भगत सिंह की कार्यप्रणाली में स्पष्ट रूप से परिलक्षित था।वह अपने समूह में प्रत्येक व्यक्ति के विचारों को महत्त्व देते हुए विभिन्न प्रकार के कौशल और प्रतिभा वाले लोगों को समान अवसर प्रदान कर अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रभावी रूप से प्रत्येक संभव प्रयास करते थे।अपने समूह में सर्वसम्मान की भावना को प्राथमिकता देने के कारण उनके समूह के सदस्य, भगत सिंह को अपना नेता नहीं अपितु एक परिवार का महत्त्वपूर्ण सदस्य मानते थे। भगत सिंह एवं उनके साथियों के स्वंतत्रता आन्दोलन में किये गये अद्भुत प्रदर्शन एवं अकल्पनीय बलिदान से सभी अवगत हैं।तत्कालीन समय में भगत सिंह एवं उनके संगठन की बढ़ती लोकप्रियता में सामूहिक प्रयासों की उपयोगिता स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होती है।
अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि अत्यन्त अल्प आयु में ही शहीद भगत सिंह ने अपनी शहादत के द्वारा समग्र युवा पीढ़ी को उत्प्रेरित कर सेवा, समर्पण एवं दृढ़निश्चय के माध्यम से प्रतिकूल परिस्थिति को भी स्वनुकूल बनाकर लक्ष्य प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया।
" सामान्यत: लोग परिस्थिति के आदि हो जाते हैं और उनमें बदलाव करने की सोच मात्र से डर जाते हैं। अतः हमें इस भावना को क्रांति की भावना से बदलने की आवश्यकता हैं।" - भगतसिंह
प्रस्तुत आधुनिक वेला, जिससे विश्वमानवता गुजर रही है, परिवर्तन की है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में भगत सिंह के कहे हुए वाक्य आज सत्य प्रतीत होते नज़र आते हैं। युग परिवर्तन पूर्व में भी होता रहा है, जिसे सामूहिक विकसित चेतना के नाम से भी उद्घोषित किया जा सकता है। परिवर्तन के इस समय में, इस अव्यवस्थित स्थिति को सुव्यवस्थित एवं सुनियोजित बनाने हेतु आज पुनः हमारे समाज को न सिर्फ एक शहीद भगत सिंह अपितु ऐसे अनेक ऐतिहासिक एवं प्रेरणात्मक व्यक्तित्व से शिक्षा ग्रहण कर, नवीन एवं प्राणवान प्रतिभाओं को एकत्र कर सर्वसामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक परिपेक्ष में एक नवीन किन्तु सकारात्मक युगधर्म की प्राण प्रतिष्ठा करने की अत्यन्त आवश्यकता है।
“किसी ने सच ही कहा है, सुधार वृद्ध नहीं कर सकते । वे तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं,वे हमारा उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। सुधार तो होते हैं युवाओं के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।” ~ भगत सिंह
जो काम सद्भाव से प्रेरित होकर किए जाते हैं, वे फलित होते हैं। कर्म साधनारत ऐसे ही व्यक्ति देव मानव कहलाते हैं और परमात्मसत्ता का अनुग्रह तथा जनसम्मान पाते हैं।
(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>
Outstanding and very enlightening article..sincerely appreciated.
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