सकारात्मक सोच अनेक जीवन में खुशियाँ भर सकती है
Akanksha Bajpai

आज हमारा देश भारत अत्यधिक गंभीर दौर से गुजर रहा है, अभी तो हम पिछले वर्ष हुए गंभीर ह्रास से उभर भी नहीं पाए थे, कि करोना की दूसरी लहर ने संपूर्ण देश को अपनी चपेट में ले लिया। मेरे आज तक के जीवन काल की जानकारी में यह कोरोना नामक संक्रमण या महामारी हमारे संपूर्ण देश के लिए र्वाधिक भीषण, गंभीर और विनाशकारी रूप में उत्पन्न हुआ एक ऐसा राक्षस है, जिसने अमीर-गरीब , उच्च-निम्न, साधारण-असाधारण प्रत्येक वर्ग को किसी न किसी रूप में क्षति पहुंचाई है। किंतु क्या इस असंतुलन या इस अपूरणीय क्षति के लिए सिर्फ भारत सरकार ही जिम्मेदार है? एक नागरिक होने के नाते हमारे कोई कर्तव्य, या ज़िम्मेवारी नहीं है और यदि हम सभी को अपने कर्तव्यों का संज्ञान है,तो क्या हमने अपने समस्त कर्तव्यों का पालन उचित प्रकार से किया है या अभी भी कर रहे हैं?

भारत सरकार द्वारा विगत 1 वर्ष से अत्यधिक सरल एवं साधारण निर्देश दिए जा रहे हैं।
जैसे- मास्क लगाना अनिवार्य है। समय-समय पर हाथों को साबुन अन्यथा सिर्फ पानी से धोना भी उचित है।
बिना किसी आवश्यक कारण अधिक भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचना इत्यादि।
कोरोना से सम्बन्धित कोई भी लक्षण महसूस होते ही जाँच कराये अथवा स्वयं को 14 दिन के लिये सबसे अलग कर लें। जिससे संक्रमण के प्रचार को रोका जा सके।

पिछले कुछ महीनों में देश के कुछ राज्यों में हुए चुनाव एवं कुंभ महापर्व के आयोजन को लेकर भारतीय समाज में बहुत नाराजगी दिखी, जबकि सरकार इस विपदा से देश को बचाने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है। किन्तु इसके पश्चात भी भारत सरकार को कड़ी आलोचनाओं का सामना आज तक भी करना पड़ रहा है। किन्तु ये सभी आलोचनाएं तब निरर्थक सिद्ध हो जाती है जब हम स्वयं वही सब कार्य करते हैं जिसके लिए हम दूसरों को दोषी ठहराते हैं। आज देश के विभिन्न राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा लॉकडाउन के सख्त निर्देश दिए गए हैं, और इसके साथ ही टीकाकरण अभियान भी प्रारंभ हो गया है और अन्य आवश्यक स्वास्थ्य संबंधी दवाइयां, उपकरण एवं अन्य विशेष सामग्रियों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। किन्तु बावजूद इसके भी इस महामारी पर नियंत्रण कर पाना भारत के लिए मुश्किल क्यों हो रहा है ? जबकि इन्ही सब प्रयासों के तहत अन्य देशों ने कोरोना वायरस पर बहुत हद तक नियंत्रण पा लिया है।

यदि सही मायने में पूछे तो इसका उत्तर किसी अन्य के पास नहीं यद्यपि स्वयं हमारे पास ही है।

जी हाँ! कोरोना हो या इसके जैसी अन्य कोई भी बीमारी या समस्या, ऐसी कठिन परिस्थिति में हम, ‘सब कुछ’ किसी एक व्यक्ति या सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। एक नागरिक होने के नाते कुछ मौलिक एवं मूल जिम्मेदारियां हमारी भी हैं। जिनका पालन करना सभी के लिए अनिवार्य है। कल तक जिनके लिए चुनाव एवं कुंभ एक बड़ी समस्या थी आज वही लोग मास्क न पहनकर, लॉकडाउन का पालन न करने पर बेहद ही तुच्छ एवं निम्न प्रकार के बहाने प्रस्तुत कर, विभिन्न अनिवार्य निर्देशों की अवहेलना करते हुए नजर आ रहे हैं। तो वहीं कुछ लोग इतनी भीषण परिस्थिति में भी ऑक्सीजन एवं अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सम्बन्धित सामग्रियों इत्यादि की कालाबाजारी करते हुए अमानवीयता का परिचय दे रहे हैं। ऐसे में कुछ लोगों का कहना है, कि प्रशासन सक्रिय नहीं है, यदि प्रशासन सक्रिय हो जाए तो सभी समस्याओं का हल हो जाएगा।

किन्तु यदि हम ध्यान से सभी बातों पर विचार करें तो क्या हम सब खुद को चाबुक की नोक पर चलने वाली कोई नादान एवं अव्यवहारिक कठपुतली समझते हैं कि बिना किसी कठोर दंड के स्वतः ही मानवता के लिए और स्वयं अपनी सुरक्षा के लिए भी हम आवश्यक निर्देशों का पालन करने में असमर्थ हैं। बात यहीं समाप्त नहीं होती है, "जब सरकार या प्रशासन सख्त कार्यवाही करते हैं, तो भी हम उसे स्वीकार न करते हुए ‘सरकार एवं प्रशासन’ को ही एक आरोपी के रूप में कटघरे में खड़ा कर देते हैं।”

"क्षमा वंदन के साथ कहना चाहती हूं", कि हमारे द्वारा किए गए इस प्रकार के दोहरे समीकरण से परिपूर्ण अवांछनीय, अविवेकी,दुर्व्यवहार न सिर्फ किसी एक व्यक्ति यद्यपि संपूर्ण समाज एवं संपूर्ण देश को दुर्बल बनाने में जिम्मेदार हैं ।

स्वामी विवेकानंद जी ने सदैव मानवता के कार्यो को ही ईश्वर प्रार्थना माना। वे मानते थे कि ईश्वर भक्त के साथ-साथ व्यक्ति को राष्ट्रभक्त भी होना चाहिए। किन्तु इस कठिन परिस्थिति को सुलझाने से ज्यादा उलझाने में कहीं अधिक भूमिका देश के अधिकांश नागरिकों द्वारा ही जाने-अनजाने सोशल मीडिया पर बिना किसी ब्रेक के फैलने वाली गलत एवं मिथ्या सूचनाएं निभा रही हैं। उदाहरण के तौर पर एक वीडियो आता है जिसमें व्यक्ति बताता है कि नाक में नींबू का रस डालने से कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है और एक अन्य व्यक्ति इस वीडियो का अनुसरण कर लेता है, जिसके फलस्वरूप अगले दिन वह मृत पाया जाता है, जो अत्यधिक निंदनीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण था। इसी प्रकार अभी हाल ही में एक मुख्य समाचार चैनल से पता चला कि मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग टीकाकरण की प्रक्रिया से बचने का प्रयास कर रहे हैं या शासन के अनेक प्रयत्नों के बाद भी, वे सीधे तौर पर इसका बहिष्कार कर रहे हैं। सभी लोगों से इसका कारण पूछा तो, उनका कहना था कि यह टीका सेहत के लिए हानिकारक है, इसके अनेक दुष्प्रभाव है, इससे हमारी मृत्यु भी हो सकती है, इत्यादि बेबुनियादी एवं मिथ्या,तथ्य जिसकी जानकारी मासूम ग्राम वासियों के बीच फैला दी गई है। जबकि सच्चाई इसके पूर्णतः विपरीत है और आज इस कठिन परिस्थिति में टीकाकरण ही हमारा एकमात्र सुरक्षा कवच है। और यह सभी के लिए आवश्यक है ।

अन्य देश भी टीकाकरण की प्रक्रिया के तहत ही इस कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने में सफल हुए हैं।
किन्तु अफसोस कि हमारे देश में सही और सत्यापित सूचनाओं से पहले निरर्थक एवं मिथ्या सूचनाओं का प्रचार-प्रसार करना आजकल एक चलन सा बन गया है। और यह लिखते हुए हृदय विदीर्ण हो जाता है, कि इन सभी कृत्यों को सफल बनाने में अशिक्षित वर्ग से बड़ी भूमिका शिक्षित वर्ग निभा रहा है । यह सभी कृत्य हमें यह बताते हैं कि विद्यालय मात्र से प्राप्त औपचारिक शिक्षा हमें शिक्षित तो बनाती है, किंतु ज्ञानी और संस्कारी नहीं, क्योंकि “ज्ञान और संस्कार जब मिलते हैं तो समाज का हनन नहीं यद्यपि सृजन और विकास होता है।”

इसके अनेक तार्किक उदाहरण भारतीय प्राचीन ग्रंथ एवं शास्त्रों में भी देखने को मिलते हैं।

उदाहरण के लिए राम एवं रावण दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त राजकुमार एवं राजा थे, किन्तु "संस्कार विहीन रावण" स्वयं अपने सम्पूर्ण कुल का नाशक बना। "एक लाख पूत सवा लाख नाती। ता रावण घर दिया ना बाती।" अर्थात जिस रावण के एक लाख पुत्र, और सवा लाख पौत्र थे उसके अन्त समय में न कोई उसे मुखाग्नि देने वाला बचा और न ही अन्तिम दिया जलाने वाला ही बचा था।" और वही "उच्च संस्कारों एवं मर्यादा से परिपूर्ण श्री राम" ने, न सिर्फ अयोध्या में यद्यपि संपूर्ण आर्यावर्त में अपना ज्ञान एवं संस्कार की ताकत से उच्च आदर्शों के नए कीर्तिमान स्थापित कर इक्ष्वाकु वंश की समस्त 39 पीढ़ियों को कृतज्ञ किया।

हमारे महाकाव्य महाभारत ने भी इसके उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। दुर्योधन समेत समस्त कौरवों एवं युधिष्ठिर,अर्जुन समेत समस्त पांडवों की शिक्षा-दीक्षा एक ही गुरुकुल(शिक्षण संस्थान) तथा समान गुरुओं द्वारा हुई थी किन्तु शकुनि के षड्यंत्र एवं नकारात्मक सोच से अत्यंत प्रभावित "संस्कार विहीन दुर्योधन" ने भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष एक अक्षौहिणी सेना के चयन के पश्चात भी अपने साथ साथ समस्त कौरवों के विनाश का कारण बना। तो वहीं माता कुंती , पितामह भीष्म जैसे महान पारिवारिक सदस्यों के सकारात्मक, एवं सृजनात्मक ज्ञान से संपोषित "संस्कारवान अर्जुन" ने प्रथम अवसर मिलने पर भी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना के समक्ष अकेले एवं निःशस्त्र श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में चुना और श्री कृष्ण की अलौकिक एवं समय अनुसार उचित निर्णायक बुद्धिमता के बल पर विजय प्राप्त कर संपूर्ण आर्यावर्त में पुनः न्याय से परिपूर्ण धर्म की स्थापना की।

ऐसे अनेकों महत्वपूर्ण उदाहरण हमें हमारे प्राचीन एवं अतुलनीय शास्त्रों एवं साहित्य में मिलते हैं, जिन्हें कुछ अज्ञानी लोग निरर्थक एवं निराधार समझते हैं। अपनी ही संस्कृति एवं संस्कारों के प्रति एक मत ना होने की वजह से शायद आज इस कठिन परिस्थिति में भी हमारा देश इस असामंजस्यता रूपी मानसिक रोग से पीड़ित है।

"कोरोना की जंग तो हम, कुछ ज्ञानी, संस्कारी एवं मानवता को ही सर्वोपरि कर्तव्य मानकर सकारात्मक सोच वाली हमारे समाज में व्याप्त श्रेष्ठ विचारधाराओं के बल पर जीत ही जाएंगे" भले ही इसमें थोड़ा सा समय क्यों ना लग जाए। किन्तु इससे भी बड़ी बीमारी का इलाज अत्यधिक आवश्यक है और वह बीमारी है नकारात्मक एवं हीन भावना से परिपूर्ण मानसिकता जो न तो स्वयं का विकास करती है और ना ही दूसरों को विकसित होने देती है। अतः आज इस कठिन परिस्थिति से लड़ने में हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है, कि जो लोग निस्वार्थ भाव से आगे बढ़कर इस परिस्थिति का सामना कर सेवा भाव में लगे हुए हैं उनका हौसला बढ़ाएं एवं उनकी श्रेष्ठ भावना को सफल बनाने के लिए मिथ्या से परिपूर्ण नकारात्मकता फैलाने से बचें।

स्वामी विवेकानंद जी ने भी ऐसा ही कुछ कहा था:

"किसी की निंदा ना करें: अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं. अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाई-बहनों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।"

"भारत का एक सुंदर सत्य यह भी है अनेक भारतीय अपनी सच्चाई एवं सज्जनता के साथ इस कठिन परिस्थिति में जमीनी तौर पर विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान कर उत्तम मानवता का विशेष उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।" जिनके प्रति हम सभी को ॠणी एवं कृतज्ञ होना चाहिए। क्योंकि ऐसी ही सकारात्मक और मानवीय गुणों से परिपूर्ण सोच वाली महान आत्माओं के अथक प्रयासों की वजह से हमारा देश आज इतनी गंभीर परिस्थिति में भी अविचल एवं अडिग खड़ा हुआ है। अतः यह एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का समय नहीं है यद्यपि कमियां निकालने से ज्यादा अपने द्वारा जाने-अनजाने हुई गलतियों को स्वीकारते हुए,सुधार कर आगे बढ़ने का यही उचित एवं श्रेष्ठ समय है। “दूसरों की गलतियों से सीख कर उसे न दोहराना ही बुद्धिमता का श्रेष्ठ परिचय है।”

स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार "नर सेवा नारायण सेवा" ही मानव जीवन का मूल उद्देश्य है।
सकारात्मक सोच की शक्ति अद्भुत है यह घनानंद जैसे शक्तिशाली राजा को भी सिंहासन से उतार कर,एक साधारण बच्चे चंद्रगुप्त को मौर्य वंश का संस्थापक बनाकर राजसी सिंहासन पर बैठा सकती है।

देश की रक्षा करना ही हमारा सर्वोपरि कर्तव्य है इसलिए "लौटकर आऊंगा ज़रूर आऊंगा चाहे तिरंगा लहराकर आऊँ या तिरंगे में लिपटकर आऊँ, पर वापस ज़रूर आऊंगा।" ऐसी सकारात्मक सोच की शक्ति रखने वाले "कैप्टन विक्रम बत्रा" जैसे अनेक बहादुर जवानों को "पॉइंट 4875" पर विषम परिस्थितियों में भी अद्भुत एवं अविस्मरणीय जीत दिला सकती है।

स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहे तो, जितना उत्तम विकास कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है कुछ सच्चे, ईमानदार, ऊर्जावान,और सकारात्मक महिलाएं और पुरुष, उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें। "यह सच है कि संकट की घड़ी का मजबूती एवं दृढ़तापूर्वक सामना करना अत्यधिक कठिन है किन्तु असंभव नहीं।" “अपने प्रिय जनों का ह्रास एक अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई किसी भी रूप में नहीं की जा सकती है।”

जानकारी के अभाव में लड़े गये युद्ध में अनअपेक्षित ह्रास होते हैं, किंतु कोरोना की तीसरी लहर के पूर्वानुमान सभी के समक्ष आ चुके हैं अतः आज जो लोग हमारे साथ हैं, उनकी एवं स्वयं की सुरक्षा के लिए "अनेकता में एकता की शक्ति वाली सकारात्मक सोच" रखते हुए हमें हर संभव प्रयास करने चाहिए। आज हमारे देश को सिर्फ सरकार या प्रशासन का ही नहीं यद्यपि देश के प्रत्येक नागरिक का साथ चाहिए।

अतः संविधान को सर्वोपरि मानते हुए एक भारतीय नागरिक के रूप में अपने मौलिक कर्तव्यों को निभाते हुए नकारात्मक संदेश एवं विचारों को अपने भीतर ही अंत कर, सकारात्मक सोच की मजबूत कड़ी से जुड़कर अपनी क्षमतानुसार एक-दूसरे की सहायता करते हुए मानवता के प्रति संवेदनशील रहकर भारत देश से इस कोरोना रूपी महामारी का अंत करने में विशेष सहायक बनिये।

बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था, कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों ना हो यदि वह लोग जिन्हें संविधान का अमल करना है खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा और इसके विपरीत यदि वह लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाना है वह लोग अच्छे हैं तो संविधान भी देश के लिए श्रेष्ठ सिद्ध होगा। संविधान का सम्मान करना सिफॆ सरकार का ही नहीं यद्यपि देश के प्रत्येक नागरिक का सर्वोपरि कर्तव्य है।

अतः सरकार एवं प्रशासन द्वारा हमारी सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों का उचित पालन कर स्वयं को एवं देश को सुरक्षित एवं स्वस्थ रखने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभायें।

एक भारत श्रेष्ठ भारत।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


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