रूस का पश्चिमी देशों के साथ संबंध तेजी से बिगड़ता जा रहा है। दोनों पक्षों के नेताओं को बोली-बानी में तीखापन है और वह असद्भावनापूर्ण है। दोनों ने एक दूसरे देशों के राजनयिकों को निकाल बाहर किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जोए बाइडेन ने 19 मार्च 2021 को एक टीवी इंटरव्यू में पुतिन को ‘हत्यारा’ करार दिया था। पुतिन ने भी इसी तुर्शी दर तुर्शी जवाब दिया कि हत्यारा ही हत्यारा को जानता है।1 यह द्विपक्षीय संबंधों में आई एक नई गिरावट का संकेत है।
अमेरिका ने रूस पर साइबर हमला करने, उसके चुनावों में दखल देने, यूक्रेन में घुसपैठ करने और अवैध तरीके से क्रीमिया पर कब्जा जमाने, भ्रष्टाचार के जरिए विदेशी निवेशकों पर डोरे डालने, अपने खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों, और विरोध करने वाले राजनीतिक विपक्षियों पर निशाना साधने और उनकी ‘हत्या’ में रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल करने, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा और उसके सहयोगियों की सुरक्षा की उपेक्षा करने के आरोप लगाए हैं।
शीत युद्ध के बाद रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन और उनके विदेश मंत्री कोजिरेव (Kozyrev) ने 90 के दशक में रूस के लिए एक समन्वयकारी भूमिका तय की थी। लेकिन उनके उत्तराधिकारी पुतिन को यह भूमिका रास नहीं आई, उन्होंने इस भूमिका में पश्चिमी का पिछलग्गू होने से इनकार कर दिया। वहीं, पुतिन के रूस ने भी अपने रणनीतिक प्रभावों वाले देशों में सत्ता परिवर्तन की कारगुजारियों के लिए पश्चिमी देशों पर आरोप लगाया था। 2008 में जॉर्जिया-रूस युद्ध और दक्षिण ओसेशिया और अबकाज़िया को रूसी मान्यता देना, जॉर्जिया के प्रांतों के विघटन ने रूस और पश्चिम के रिश्तो में तनाव ला दिया। 2014 में क्रीमिया और डोनबस में रूसी सेना की कार्रवाई, के बाद यूक्रेन ने पश्चिम के साथ रूस के रिश्ते को बिगाड़ने का संवाहक बना। पश्चिम ने रूस के खिलाफ बहुत सारे प्रतिबंधों का इस्तेमाल किया है। इस कार्यवाही से अकेले पड़े रूस ने सीरिया, लीबिया और दुनिया के अन्य देशों में अपनी भूमिकाएं तलाश कर अपने अलगाव को कम किया है। ओबामा प्रशासन ने 2019 में रूस के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की थी, जो कई वजहों से परवान नहीं चढ़ सकी। अब रूस को 2016 और2020 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में दखल देने का आरोप लगाया गया है। बाइडेन प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु स्थिरता के मुद्दे पर रूस के साथ सहयोग का संकेत दिया है, लेकिन दोनों देशों के परस्पर संबंधों को देखते हुए उनमें सघन सहयोग की संभावना बनती नहीं दिख रही है।
बाइडेन प्रशासन का अंतरिम राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति गाइडेंस कहता है, “रूस अभी तक अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने तथा विश्व के मंच पर एक विघ्नकारी भूमिका निभाने पर आमादा है। पेइचिंग और मास्को दोनों ने ही अमेरिकी ताकतों को रोकने और हमें तथा मित्र देशों के हितों की पूरी दुनिया में रक्षा करने से रोकने के लिए साझेदारी की है।”2
शीत युद्ध के उपरांत, रूस और पश्चिमी देशों के बीच शत्रुता गहरी होती गई है। यह दुश्मनी भारत पर भी असर डालेगी। इस रुझान को समझते हुए भारतीय विदेश नीति को अपना संज्ञान लेना होगा। भारत, रूस और पश्चिम में से किसी एक को चुनना गंवारा नहीं कर सकता। इस मामले में उसे मुद्दे पर आधारित अपना दृष्टिकोण बनाना पड़ सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने 15 अप्रैल को अपने एक्जेक्यूटिव आदेश3 में रूस के खिलाफ रणनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में कई प्रतिबंध लगाए हैं। इसमें रूस की कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से कर्ज लेने, साइबर खुफियागिरी के लिए रूस की खुफिया एजेंसी का सीधे नाम लेने और क्रीमिया एवं यूक्रेन के साथ डीलिंग के लिए रूस के लोगों पर प्रतिबंध लगाना भी शामिल है। ये नये प्रतिबंध प्रतीकात्मक अधिक दिखाई देते हैं। बाइडेन अपनी प्रतिक्रिया में सावधानी बरत रहे थे, जब उन्होंने कहा कि उनकी प्रतिक्रिया “आनुपातिक” होगी। उन्होंने कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में रूस के साथ सहयोग के लिए अपने द्वार खुले रखे हैं।
यह दिलचस्प है कि प्रतिबंधों के बावजूद राष्ट्रपति पुतिन ने 22 एवं 23 अप्रैल को जलवायु परिवर्तन पर बाइडेन द्वारा बुलाए गए आभासी शिखर सम्मेलन में भाग लेने का फैसला किया। इसका मतलब यह है कि पुतिन नहीं चाहते हैं कि अमेरिका के साथ सभी संपर्क टूट जाएं।
अमेरिकी प्रतिबंधों के विरुद्ध रूस की प्रतिक्रिया एकदम उसी रूप में है। उसने जैसे का तैसा आचरण करते हुए अमेरिका के 10 राजनयिकों को रूस से निष्कासित कर दिया है और यहां उसके मौजूद एवं पूर्व अधिकारी क्रिस्टोफर ए.रे, सुसान राइस और जॉन बोल्टन समेत 8 राजनयिकों को काली सूची में डाल दिया है।
रूस पश्चिम की कट्टर शत्रुता का सामना करता है। वह पूर्वी भाग में नाटो के विस्तार को लेकर गहरे चिंतित है। पश्चिमी देशों का पूर्वी यूरोप के देशों एवं बाल्टिक राष्ट्रों में सैन्य आपूर्ति के प्रयासों को भी रूस में गहरी चिंता के साथ देखा जाता है। पश्चिमी देशों ने पूर्वी यूरोप में बैलिस्टिक मिसाइलों को भी तैनात कर दिया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पिछले कुछ समय से यूक्रेन के लिए नाटो की सदस्यता की मांग करते रहे हैं। इस साल के जून में होने वाले नाटो शिखर सम्मेलन में यूक्रेन को इसकी सदस्य देने के बारे में एक रोडमैप बनाया जा सकता है। यह निश्चित रूप से रूस को व्यापक रूप से उकसाने वाला एक बड़ा कदम होगा, जो यूरोप में तनावों को और बढ़ाएगा। अनेक यूरोपीय देश यूक्रेन के साथ सैन्य अभ्यास की योजना बना रहे हैं। रूस ऐसी गतिविधि को अपने विरुद्ध शत्रुता के रूप में देखता है।
रूस ने अप्रैल में यूक्रेन से लगी अपनी सीमा पर 1 लाख सैनिकों को तैनात कर दिया है। इससे यूक्रेन के खिलाफ रूस की सैन्य कार्रवाई का डर पैदा हो गया था। इसको लेकर पश्चिमी देशों की तरफ से रूस की काफी लानत-मलामत की गई है और तीखे वक्तव्य जारी किए गए हैं। अपनी दृढ़ता दिखाने और यूक्रेन से बातचीत कर हल निकालने के बाद रूस ने अपनी सेना वापस बुला ली है। संकट तो टल गया है, लेकिन इसने अपने पीछे काफी तीखापन और दोषारोपण का वातावरण छोड़ गया है।
रूस ने पश्चिम की कार्रवाई को अपने विरुद्ध होने वाली गतिविधि के रूप में देखा है। पुतिन ने रूसी संसद में स्टेट ऑफ द यूनियन के अपने वार्षिक संबोधन4 में पश्चिम देशों को ‘लाल रेखाओं’ को पार न करने की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “ मैं उम्मीद करता हूं कि रूस के संदर्भ में कोई भी रेड लाइन पार करने की सोचेगा। हम खुद ही एक-एक खास मामले को तय करेंगे, फिर देखेंगे कि इसका क्या समाधान होगा।”5
रूस आर्थिक मामलों में पश्चिम की तुलना में काफी कमजोर है लेकिन इसने अपने परमाणु और परंपरागत हथियारों को अत्याधुनिक बनाया है। पुतिन को इसके लिए गर्व है और उन्होंने रूसी संसद में इसे जताया भी। उन्होंने कहा कि 2024 तक रूसी सैन्य ताकत को 76 फीसद तक आधुनिकरण कर दिया जाएगा और 2021 के आखिर तक जल, थल और वायु तीनों को 88 फ़ीसदी परमाणु शक्ति से लैस कर दिया जाएगा। अवांगार्ड हाइपरसोनिक अंतरमहादेशीय प्रक्षेपास्त्र प्रणाली और प्रीवेस्ट कॉम्बेट लेजर सिस्टम को भी रूसी सेना में शामिल किया जाएगा। सरमैट सुपर हेवी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल भी 2022 तक तैनात कर दी जाएगी।6 इसके बाद किंजल हाइपरसोनिक मिसाइलें, कलिब्री मिसाइलें, सिरकोन (Tsirkon) हाइपरसोनिक मिसाइलें और Poseidon एवं Burevestnik समेत युद्ध प्रणाली शामिल हैं।7
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में रूस तक पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन उनके सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने और राजनीतिक वर्ग ने इसका घोर विरोध किया था। इसके बाद ट्रंप-पुतिन शिखर वार्ता में भी कुछ निकल कर सामने नहीं आया। बाइडेन रूस के खिलाफ हैं, लेकिन उन्होंने कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में तालमेल के विकल्प खुले रखे हैं।
इसी बीच, यूरोपीय देश भी अपनी स्थिति को लगातार सख्त बना रहे हैं। अनेक देश अपने यहां से रूसी राजनयिकों को निष्कासित कर रहे हैं। पोलैंड, बुल्गारिया और चेकोस्लोवाकिया ने अपने यहां से रूसी राजनयिकों को निकालने का फैसला किया है। यह कार्रवाई जैसे को तैसा प्रतिक्रिया को आमंत्रित करेगा। ऐसे में, नाटो 8 जून में होने वाला शिखर सम्मेलन को गहरी दिलचस्पी से देखा जाएगा क्योंकि इसमें नाटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार होना है।
कोई भी सामान्य रुझानों को समझने की भूल नहीं कर सकता। रूस और अमेरिका के बीच संबंध बड़ी तेजी से बिगड़ रहे हैं। यह वैश्विक अस्थिरता को बढ़ाएगा। इसके चलते शीत युद्ध की शब्दावली लौट आई है। अमेरिकी शब्दावली में रूस दुश्मन है। पुतिन एकाधिकारवादी हैं। और क्रीमिया एवं यूक्रेन में उसकी कारगुजारियों तथा अमेरिकी प्रतिष्ठानों पर साइबर हमलों के लिए रूस को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।
रूस की अवधारणा में, पूरा विश्व अमेरिका के हुकुम पर चलाया जा रहा है न कि अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों के मुताबिक। रूस अपने को अलग-थलग करने के पश्चिम के किसी भी प्रयास का विरोध करेगा। रूस विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रुप से नई साझेदारी बना रहा है। उसका चीन के साथ अत्यंत ही सघन संबंध है और वह तुर्की के साथ ही अपने संबंध विकसित कर रहा है। सीरिया, नागोर्नो-कारबाख़ और लीबिया में रूस ने अपने लिए एक सक्रिय भूमिका तलाशी है। वह चतुष्टय (क्वाड), हिंद-प्रशांत अवधारणा का विरोध करता है और आसियान देशों के साथ अपने संबंध बना रहा है। ठीक इसी समय, वह शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन, ब्रिक्स, सीएसटीओ, यूरेशियन यूनियन आदि पर बहुत जोर दे रहा है। इसने अपेक्षित सैन्य और साइबर क्षमताओं को अर्जित कर लिया है। रूस ने अपने विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंधों को अपनी क्षमताओं के विकास में उपयोग किया है। उसे इस बात पर गर्व है कि उसने स्वदेशी वैक्सीन विकसित की है, जिसकी मदद से विभिन्न देशों पर अपना प्रभाव जमा रहा है।
हालांकि तनाव बढ़ाने और टकरावों को मोल लेने में किसी भी पक्ष को कोई फायदा नहीं होगा। बाइडेन ने सर्वोच्च नेताओं के साथ सीधी बातचीत का प्रस्ताव किया है और गर्मी में यूरोप के नेताओं के साथ शिखर बैठक कर रहे हैं। पुतिन इससे सहमत हैं। बाइडेन कहते हैं कि वह रूस और अमेरिका के बीच एक स्थिर और अनुमानित संबंध चाहते हैं। लेकिन अगर उसने अमेरिकी हितों के विरुद्ध काम किया तो वह उसका माकूल जवाब देंगे। पुतिन ने भी चेतावनी दी है रूसी लाल रेखाओं को पार नहीं किया जाना चाहिए अन्यथा वह भी मुंहतोड़ जवाब देगा। हम उम्मीद करते हैं कि दोनों पक्ष अपने मामलों को शिखर सम्मेलन में हल कर लेंगे। अब यह देखना बाकी है कि बाइडेन और पुतिन के बीच होने वाले शिखर सम्मेलन में क्या नतीजा निकल कर आता है। बेहतर यही होगा कि दोनों तरफ से इसे लेकर कम से कम अपेक्षाएं रखी जाएं।
रूस के राष्ट्रपति ने संघीय सभा में भाषण दिया। यह समारोह Manezh सेंट्रल एग्जीबिशन हाल में हुआ. 21 अप्रैल 2021
http://en.kremlin.ru/events/president/news/65418
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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