यह जाना-माना तथ्य है कि भारत अपने वैश्विक दृष्टिकोण और विदेश नीति में “साझेदारी” और “देखभाल” के विचार को ज्यादा महत्त्व देता है। अपने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत 160 देशों में जिनमें अधिकतर दक्षिण-दक्षिण सहयोग के अंतर्गत आते हैं, उन्हें आईटीईसी (भारतीय प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहयोग) के तहत उनकी क्षमता के निर्माण और मानव संसाधन विकास के काम में पिछले लगभग छह दशकों से सहयोग करता रहा है। भारत उन्हें न केवल मानव संसाधन में सक्षम बनाता है बल्कि सहयोगी देशों की संरचनागत क्षमता के निर्माण में भी अपेक्षित शर्तों पर धनराशि मुहैया कराता है और उनकी आकांक्षाओं-अपेक्षाओं को पूरा करने में अनुदान देता है।
चूंकि इस समय लगभग पूरा विश्व कोविड-19 वैश्विक महामारी से संंक्रमित-पीड़ित है, भारत ने स्वयं पहल करते हुए इसके लिए जरूरी दवाएं, प्रतिरोधी उपकरणों और चिकित्सकीय टीमों को अपने यहां से 150 से अधिक देशों में भेजा है, इसके बावजूद कि उसकी स्वयं की एक अरब 30 करोड़ की आबादी वाले देश में जिसमें विश्व की ⅙ आबादी निवास करती है, इन चीजों की स्वयं ही बड़ी मात्रा में जरूरत है। इस समय भारत ने अमेरिका और पश्चिम समेत अनेक विकसित देशों को अपनी सहायताएं दी हैं। सच तो यह है कि ब्राजील के राष्ट्रपति ने इसे भारतीय मुहावरों में जीवनरक्षक “संजीवनी” करार दिया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की दवाओं की विश्व में साख और धाक है। यह कोविड-19 के संदर्भ में ज्यादा सच है। ठीक इसी तरह, भारत ने समय से पहले लॉकडाउन लगाने और अपेक्षित सटीक योजना बनाने और अपने देशवासियों को इसके प्रति अनुशासित करने के जरिए वैश्विक महामारी से अच्छे तरीके से निपटा है। इसी वजह से भारत में दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा कोरोना से कम मौतें हुई हैं। जाहिर तौर पर यह लोगों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निजी जुड़ाव के चलते संभव हो पाया, जो उनमें विश्वास करते थे और उन्हें सुनते थे।
यह भी जाना-माना तथ्य है कि भारत अपनी विशाल क्षमता के साथ विश्व में वैक्सीन का एक बड़ा हब बन गया है। न केवल सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजनेका की वैक्सीन (कोविशिल्ड) की प्रतिदिन 2.5 मिलियन खुराकों का निर्माण कर रही है, बल्कि भारत ने स्वयं अपनी वैक्सीन कोवैक्सीन का उत्पादन भारत बायोटेक के जरिए किया है। इसी तरह भारत, रूस की वैक्सिन स्पूतनिक वी वैक्सीन की एक बिलियन खुराकों का उत्पादन करेगा। भारत कुछ अन्य देशों, जिनमें चीन भी शामिल है, के साथ मिलकर पश्चिमी देशों की उत्पादकों से बौद्धिक संपत्ति अधिकार को शिथिल करने या इसे खत्म किए जाने की वकालत करता रहा है, यहां तक की सीमित अवधि के लिए भी ताकि विश्व की लाखों-करोड़ों आबादी तक इस वैक्सीन को पहुंचाया जा सके, जो अभी भी खतरे की जद में है। यद्यपि वी-5 क्लब के हिस्सा भारत को इस वैश्विक महामारी से लड़ने के समावेशी दृष्टिकोण का पूरे विश्व में यथेष्ट यश मिला है।
भारत में 11 मिलियंस (लगभग एक करोड़ 10 लाख) लोगों के कोविड-19 से संक्रमित होने की खबर है, जिनमें 1,56,000 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। जनवरी 2021 के मध्य से 9.8 मिलियंस वैक्सीन की खुराकें लोगों को दी जा चुकी हैं। हालांकि कुछ भारतीयों ने इस वैक्सीन के निर्यात किए जाने पर सवाल उठाए हैं। उनका ख्याल है कि सबसे पहले इसे भारत में वितरित करने पर सरकार को ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। लेकिन यही लोग भारतीय वैक्सीन के असरकारक होने पर सवाल पैदा करते हैं। भारत सरकार के पास वैक्सीन वितरण की निश्चित रूप से अपनी एक योजना है और जिसे वह चरणबद्ध तरीके से 300 मिलियंस भारतीयों के साथ पहुंचाने के रूप में शुरू किया है। कुछ लोग यह भी तर्क देते हैं कि पश्चिमी देशों के नेताओं की तरह भारतीय नेताओं ने भी वैक्सीन की पहली खुराक स्वयं लेकर अपने लोगों के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण क्यों नहीं पेश किया, बजाय आम लोगों को बलि का बकरा बनाने के?इसमें कोई शक नहीं कि उन लोगों के इस कथन में जन की चिंता हो सकती है लेकिन पहले चरण में उन लोगों को टीके लगाए गए या लगाये जा रहे हैं, जो कोरोना से अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे हैं या जो चिकित्साकर्मी हैैं। ये लोग ही लोगों को कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों के उपचार के क्रम में रोजाना के स्तर पर ही खतरे झेलते हैं। इसलिए उन्हें सबसे पहले वैक्सीन लगाना लोगों में विश्वास-बहाली के बेहतर उदाहरण हो सकता है। शायद पूरे देश के डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी अपने आसपास के लोगों को वैक्सीन की सुरक्षा के बारे में विभिन्न मीडिया मंचों के जरिए बेहतर तरीके से संवेदनशील बना सकते हैं, क्योंकि उनकी विश्वसनीयता राजनीतिज्ञों की विश्वसनीयता से सच में बेहतर है। शकी टोमास किसी भी अच्छी या बुरी वस्तु में हमेशा दोष का ही दर्शन करेंगे,लेकिन भारत“अकेले चलने” या “विश्व के साथ चलने” में उचित ही भेदभाव नहीं करना चाहता है, क्योंकि वैश्विक महामारी कोई हद नहीं जानती।
वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी पिछले वर्ष 15 मार्च को कोविड-19 से निपटने के लिए सार्क पहल की शुरुआत की थी, जब उन्होंने इसके नेताओं को कोविड इमरजेंसी रिस्पांस फंड की स्थापना के लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने स्वयं इस कोष में 10 मिलियन डॉलर की राशि देकर इसकी शुरुआत की थी तथा प्रतिभागी सभी देशों के बीच विशेषज्ञता और चिकित्सा सुविधा के आदान-प्रदान का आह्वान किया था ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोगों का समय रहते उपचार किया जा सके। इसके मुताबिक भारत ने अपनी “नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी” के तहत अपने पड़ोसी देशों को,बड़ी मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध कराई, जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और मालदीव को अधिकतम अनुदान दिए गए। इसके अलावा, 25 देशों, म्यांमार से लेकर मोरेक्को, और बहरीन से लेकर ब्राजील और कुछ प्रशांत द्वीपीय देशोंं को व्यावसायिक आधार पर 17 मिलियन खुराकों की आपूर्ति की गई है या उन्हें बेची गई है। कनाडा समेत लगभग 50 देशों को इसकी आपूर्ति की जानी है। भारत में किसानों के प्रदर्शन को लेकर हुए हालिया विवादों के बावजूद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत की और उनसे कनाडा को वैक्सीन की आपूर्ति करने का अनुरोध किया। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हें 5 मिलियन वैक्सीन की आपूर्ति करने का निर्णय किया है।
पहली खेप में, भारत ने पूरे विश्व में फैले संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षकों को भी वैक्सीन की 2 लाख खुराकें उपहार में देने का वादा किया है। भारत ने अफ्रीका को 10 मिलियन वैक्सीन की खुराकें देने और संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य कर्मियों को कोविड-19 वैक्सिन ग्लोबल एक्सेस (COVAX) सुविधा के अंतर्गत 1 मिलियन खुराकें देने का वादा किया है। भारत ने वैश्विक महामारी के विरुद्ध वैश्विक प्रतिक्रिया के लिए जी-20 की सऊदी अरब की अध्यक्षता का भी समर्थन किया है। यहां तक की क्वाड (QUAD) की मंत्रिस्तरीय बैठक में भी महामारी के खिलाफ लड़ाई एक अहम मसला था।
18 फरवरी को सार्क (10 देशों) अधिकारियों की एक बैठक हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक महामारी के विरुद्ध अब तक की क्षेत्रीय लड़ाई में हासिल नतीजों और इनके अनुरूप आगे के कदम उठाए जाने पर विचार विमर्श किया था, उन्होंने इस बात का भी आश्वासन दिया था कि इस काम में भारत उनकी जरूरतों की पूर्ति करेगा। भारत द्वारा उत्पादित वैक्सीन की प्रभाविता को और बढ़ाने के लिए उन्होंने इन देशों से अपने यहां टीका लगवाने वालों के डाटा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। मोदी ने यह भी सुझाव दिया,“क्या हम अपनी आबादी में कोविड-19 वैक्सीन की प्रभाविता के बारे में डाटा के मिलान, उनका संकलन और अध्ययन कर सकते हैं?” और “क्या अपने डॉक्टरों, नर्सों के लिए विशेष वीजा का देने का विचार कर सकते हैं ताकि वे स्वास्थ्य आपातकाल की समय में उन देशों के बुलावे पर एक दूसरे के क्षेत्र में शीघ्रता से और आसानी से आ-जा सकें?” प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते कुछ सालों में हमारा स्वास्थ्य सहयोग पहले ही बहुत कुछ हासिल कर चुका है तो क्या हम अपनी आकांक्षाओं को और बढ़ाने की बात सोच सकते हैं? कृपया मुझे आज आपके विचार-विमर्श के लिए कुछ सुझावों को प्रेषित करने की अनुमति दें : क्या भविष्य में होने वाली महामारी से बचाव के लिए उसकी रोकथाम से जुड़ी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए इसी तरह के क्षेत्रीय नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं? और क्या हमारा नागरिक उड्डयन मंत्रालय चिकित्सा सुविधाओं में समन्वय के लिए क्षेत्रीय एयर एंबुलेंस संधि कर सकता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के बाद के भविष्य की रूपरेखा पर अपने विचार जारी रखते हुए कहा क्या हम अपनी सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों और योजनाओं को भी साझा कर सकते हैं? भारत के ‘आयुष्मान भारत’ और ‘जन आरोग्य’ योजनाएं क्षेत्र के हमारे दोस्तों के लिए उपयोगी केस स्टडीज हो सकती हैं। ऐसा समन्वय हम लोगों के बीच अन्य क्षेत्रों में भी व्यापक क्षेत्रीय सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। मोदी ने कहा, “आखिरकार हमारी बहुत सारी चुनौतियां एक समान हैं-मसलन जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, गरीबी, निरक्षरता और सामाजिक तथा जेंडर असंतुलन। लेकिन हम इनके साथ सदियों पुरानी सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के जुड़ावों की शक्ति को भी साझा करते हैं। अगर हम उन सभी चीजों पर ध्यान केंद्रित करें जो हमें जोड़ती हैं तो हमारा क्षेत्र न केवल मौजूदा वैश्विक महामारी के प्रकोप से बच जाएगा बल्कि हमारी अन्य चुनौतियों से भी हमें छुटकारा मिल जाएगा।”
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और अन्य देशों की सेना तक कोविड-19 की वैक्सीन आपूर्ति का फैसला किया है। सेना से सेना तक वैक्सीन वितरण प्रक्रिया की शुरुआत भी हो चुकी है,भारत की सेना द्वारा मित्र देशों की सेना को वैक्सिंग वितरित की जाएगी। जिस तरह से अग्रिम मोर्चे पर डटी भारतीय सेना को वैक्सीन और कोविशिल्ड दोनों की खुराकें दी गई हैं, उसी तरह की आपूर्ति उन सेनाओं को भी की जाएगी। यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्राकृतिक आपदाएं और महामारी हदेंं नहीं जानतीं। इसीलिए ये दोनों ही आपदाएं वैश्विक जवाबदेही हैं। भारत ने इस दिशा में अनोखी पहलें की हैं और हमारे पड़ोसी देशों की, और बाकी विश्व को भी उनकी इच्छा के मुताबिक, उभरती हुई जरूरतों के संदर्भ में नेतृत्व प्रदान किया है। भारत न केवल इस महामारी से लड़ने के लिए एक क्रियात्मक प्रणाली की वकालत कर रहा है बल्कि उसके उभार को रोकने के लिए भी तंत्र बनाने पर जोर दे रहा है। विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव-संख्या 2532 के क्रियान्वयन को लेकर होने वाली बहस में भाग लेते हुए कोविड-19 के विरोध व्यापक वैश्विक सहयोग बनाने और निम्नलिखित 9 सूत्री एक्शन प्लान के प्रस्ताव का एक खाका भी पेश किया था।
I. टीकाकरण अभियान और अन्य स्वास्थ्य लाभ के उपाय के साथ नए लोगों को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता को कम करने और फिर उसे समाप्त करने पर जोर देना।
II. वायरस के समाप्त होने और उसके विभिन्न रूपों की जिनोमिक निगरानी करने तथा उनके बारे में जानकारियों को आदान-प्रदान करने के संदर्भ में एक नियमित तथा समयबद्ध समन्वय पर जोर दिया।
III.वैक्सीन को लेकर लोगों के प्रतिरोध को प्रभावी तरीके से हल करना। वैक्सीन के प्रति आम लोगों के भय और चिंताओं को दूर करने के लिए वैज्ञानिक और वास्तविक तथ्यों को मुहैया कराने के साथ वैक्सीन संबंधित सूचनाओं को अवश्य ही संदर्भित, समानुभूतिक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील बनाना।
IV.जन स्वास्थ्य आधारभूत ढांचा में सुधार करना और वैक्सीन वितरण, खासकर उन इलाकों में जहां स्वास्थ ढांचा कमजोर है, में प्रभावी प्रशिक्षण के जरिए दक्षता का निर्माण करना।
V. “वैक्सीन राष्ट्रवाद” को रोकना, वास्तव में इसकी जगह अंतर्राष्ट्रीयतावाद को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन देना। फालतू की जमाखोरी सामूहिक स्वास्थ्य सुरक्षा हासिल करने के हमारे प्रयास को परास्त कर देगी।
VI. सभी को उचित और समान तरीके से वैक्सीन के वितरण के लिए कोवैक्स सुविधा को मजबूती देना।
VII. बच्चों को करुणा के अलावा अन्य बीमारियों से ग्रसित होने के खतरा उत्पन्न होने के पहले ही शीघ्रताशीघ्र प्रतिरक्षण कार्यक्रमों को पूरे विश्व में बढ़ावा देना। केवल एक स्वास्थ्य संकट से दूसरे को जन्म देने का व्यापार नहीं कर सकते।
VIII. इस वैश्विक महामारी के लाभ मंशा से भ्रमित करने वाले अभियानों को उनके कुत्सित मकसदों और गतिविधियों को आगे बढ़ने से रोकना।
IX. क्षमताओं में सुधार, कार्यक्रमों का विकास एवं जानकारी और विशेषज्ञता आधारित निर्माण के जरिए अगली वैश्विक महामारी से निपटने के लिए अपने को सक्रिय रूप से तैयार करना।
पिछले हफ्ते नास्कॉम (NASSCOM’s) के प्रौद्योगिकी और नेतृत्व फोरम पर भारत के प्रदर्शन की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की प्रौद्योगिकी और उद्यमिता की क्षमता की सराहना की,“कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने जो समाधान दिए उसने पूरे विश्व को प्रेरित किए हैं। भारत ने उदाहरण के जरिए इसे दिखाया है कि वह उसका अब तक का सबसे व्यापक वैक्सीनेशन अभियान “वसुधैव कुटुंबकम” पर आश्रित है, जो अभी भी उसका आदर्श वाक्य है।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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