यह बात अब जगजाहिर हो चुकी है और चीनी राजदूत ने बांग्लादेश को स्पष्ट रूप से यह बता दिया है कि चीन नहीं चाहता कि बांग्लादेश क्वाड में शामिल हो। बांग्लादेश में चीन के राजदूत ली जिमिंग ने 10 मई को 2021 एक आभासी कार्यक्रम में भाग लेते हुए कहा कि पेइचिंग-ढाका संधि का “काफी नुकसान” होगा, अगर वह (बांग्लादेश) क्वाड में शामिल होता है।1 केवल इतना ही नहीं. ग्लोबल टाइम्स, जिसे चीनी सरकार का मुखपत्र माना जाता है, ने भी आगाह किया कि, ‘अगर कोई देश क्वाड के भूराजनीतिक जाल में फंसता है तो उसकी आर्थिक संभावनाएं उसी के अनुरूप जोखिम में पड़ जाएंगी’।2. यह कुछके कारणों से दिलचस्प विकासक्रम है। यह कई स्तरों पर न केवल अनुपयुक्त है, बल्कि इससे शीर्ष स्तर की असुरक्षा और भय की बू आती है, जिसके चलते भारत और क्वाड के अन्य सदस्य देश एक साथ उपक्रम करने पर सहमत हुए हैं। इससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि चीन इसको लेकर गहरे उधे़ड़बुन में है कि क्वाड कहां जा रहा है और उन लोगों को लेकर भी चिंतित है, जो इस समूह में शामिल होंगे। दक्षिण एशिया में चीन को अपने महत्वपूर्ण भागीदार बांग्लादेश के खोने से सच में बहुत चिंता होगी।
बहुत संक्षेप में कहें तो, क्वाड ने अपना वजूद अख्तियार कर लिया है, वरना बरसों तक यह केवल गप्प-शप्प के अड्डे से ज्यादा कुछ प्रतीत नहीं होता था। किसी भी ऐसे गठबंधन, जिसे खासकर दूसरे के विरुद्ध समझ लिए जाने का जोखिम हो, उसमें भागीदारी के प्रति स्वाभाविक भारतीय हिचक को देखते हुए, यह समझा जा रहा था कि यह समूह एक हद से आगे नहीं जा पाएगा। लेकिन परिस्थितियां बदलीं तो अवधारणाएं भी बदल गईं। चतुष्टय सुरक्षा संवाद, जिसे क्वाड के रूप में जाना जाता है, उसको शुरू करने में दसेक साल लग गए, को गंभीरता से एक सामरिक ब्लाक ही माना जाता है। क्वाड की पहली शिखर बैठक मार्च 2021 में हुई थी, जिसमें इसके चारों सदस्य देशों भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान ने भाग लिया था। वास्तव में, इसी बैठक ने क्वाड को एक स्पष्ट संदेश के साथ जीवनदान दिया। शुरुआत से ही क्वाड को एक ऐसे समूह के रूप में जाना जाता था, जो मुखर चीन (अगर उसे आक्रामणकारी न कहना चाहें तो) के विरुद्ध अपने को खड़ा कर रहा था, किंतु टोक्यो में हालिया हुई बैठक ने तो अनुभवसिद्ध पहचान की और पुष्टि ही कर दी।
जबकि चीन क्वाड के कई सदस्य देशों का महत्वपूर्ण साझीदार है, अमेरिका, भारत और आस्ट्रेलिया का चीन के साथ हुए हालिया मतभेदों के बाद तो वह खुल कर सामने आ गया है। चीन द्वारा लाई गई वैश्विक महामारी जो आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दों के साथ कई देशों में कहर बरपा रही है, ने स्पष्ट रूप से QUAD में कुछ गंभीर सोच पैदा की है। चीन से निबटने को लेकर आशंकाएं और भय का संचरण अवश्यम्भावी था।
यद्यपि क्वाड की स्थापना 2004 में हुई थी, इसकी पहली बैठक 2007 को हुई थी, जिसकी मेजबानी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने की थी, जिसके बाद क्वाड आगे बढ़ा। लेकिन लंबे समय तक यह समूह के किसी के प्रति किसी गंभीर चुनौती के रूप में नहीं देखा गया। अमेरिका के चीन से बढ़ती पंगेबाजी की पृष्ठभूमि में आखिरकार 2017 में इस समूह में कुछ हद तक खिंचाव पैदा हुआ। चीन इस समूह के प्रति अत्यधिक आलोचनाशील रहा है, यहां तक कि अक्टूबर 2020 में टोक्यो में विदेश मंत्रियों की बैठक होने के पहले से वह इसके प्रति छिद्रान्वेषी रहा है। क्वाड का उल्लेख किए बिना चीन ने तीसरे पक्ष को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ‘अभिजन समूह’ के गठन का विरोध किया था।3
बेशक, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि बेहद उपयुक्त शीर्षक ‘दि स्प्रिट ऑफ क्वाड’ से दिया गया संयुक्त वक्तव्य मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत महासागरों के बारे में व्यापकता पर आधारित साझा दृष्टिकोण था। यह क्वाड के नेताओं का पहला शिखर सम्मेलन था, जहां उन्होंने ‘हमारे समय की पारिभाषित चुनौतियों’ के मुकाबले परस्पर सहयोग को मजबूत करने का संकल्प लिया। 700 से कुछ अधिक ही शब्दों में जारी किए गए इस वक्तव्य में चीन का या किसी भी द्विपक्षीय मतभेदों (इसे शत्रुता पढ़ें) का जिक्र तक नहीं किया गया था। यह वक्तव्य इस स्पष्ट संदर्भ के साथ समाप्त हुआ था कि ‘इन संबंधों की महत्वाकांक्षा इस समय के लिए बेहद उपयुक्त है’; हम दुनिया के सबसे गतिशील क्षेत्र को ऐतिहासिक संकट से निपटने में मदद करने के लिए अपनी साझेदारी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि यह मुक्त, खुला, सुलभ, विविध और समृद्ध हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र बने, जैसा हम सब चाहते हैं।’4 इसलिए जबकि इसमें किसी व्यक्ति या देश विशेष का उल्लेख नहीं किया गया है, यह स्पष्ट तौर पर चीन के लिए घंटी लगी। इस पर चीन की तरफ से कुछ अभूतपूर्व प्रतिक्रियाएं हुईं, नहीं तो बांग्लादेश को दी गई अप्रत्याशित चेतावनी को और कैसे समझा जाएगा?
जबकि चीन की बढ़ती वैश्विक हैसियत और विशाल आर्थिक कद को चतुराई से दक्षिण एशिया और अन्य क्षेत्रों में उपयोग किया गया है, बांग्लादेश उसके पहुंच-कार्यक्रमों से फायदे में रहा है। इस प्रक्रिया में,चीन ने अपने आपको मित्रवत पड़ोसी के रूप में स्थापित किया है और बांग्लादेश में शुरू की गई बड़ी परियोजनाओं के लिए धन का बड़ा स्रोत लगाने का वादा किया है। फिलहाल इसका चीन के साथ सर्वाधिक व्यापक और मजबूत संबंध है, जिसमें राजनीतिक संबंध, आर्थिक सहयोग और रक्षा सहायता तक शामिल है।
वर्तमान संदर्भ में, बांग्लादेश की बंगाल की खाड़ी और इसके साथ, हिंद महासागर तक व्यापक पहुंच को देखते हुए उसे अधिक महत्व हासिल है। यह अनापेक्षित नहीं था कि चारों तरफ से भूमि से घिरे चीन का युनान प्रांत बंगाल की खाड़ी तक अपनी पहुंच बनाने के लिए बांग्लादेश के साथ आर्थिक संबंध कायम करेगा। ऐसे में यह समझ में आने वाली बात है कि चीन ने बिना किसी दिखावे के ही हिंद महासागर में पैठ बना ली है और समय के साथ इसकी समुद्री उपस्थिति बढ़ती गई है और गति पकड़ ली है। इस तरह बांग्लादेश से उसका संबंध मूल्यवान सिद्ध हुआ है। पांच दशकों के अंतराल में, चीन न पहचाने जाने वाले अपने संबंधों की स्थिति से बहुत आगे बढ़ गया है और अब तो वह बांग्लादेश का सबसे घनिष्ठ सहयोगी बन गया है। 1975 से लेकर आज तक, चीन बांग्लादेश के लिए एक अहम पड़ोसी बन गया है, जैसा कि भारत उसका सबसे निकटवर्ती पड़ोसी है। इसी में वह मुददा निहित है।
निस्संदेह, बांग्लादेश में पेइचिंग और नई दिल्ली के बीच प्रतिद्वंद्विता है। संरचनागत विकास से लेकर अनेक अन्य आर्थिक संबंध, रक्षा से लेकर राजनीतिक संबंध तक के क्षेत्र में दोनों ही बांग्लादेश के साथ विशेष संबंधों की अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। अप्रत्याशित नहीं कि महामारी ने एशिया की दोनों शक्तिशाली देशों को बांग्लादेश का ध्यान अपनी ओर खींचने का एक अवसर दे दिया है।
एक आयाम यह था कि चीन का बांग्लादेश के स्वास्थ्य क्षेत्र में सीमित मौजूदगी है। हालांकि कोविड-19 महामारी ने उनके द्विपक्षीय संबंधों में एक नया तत्व जोड़ दिया है। पेइचिंग ने 16 मार्च 2021 को आपातकाल में उपयोग के लिए बांग्लादेश को चीनी कोरोनावायरस वैक्सीन की 100,000 खुराक भेजने की पेशकश की थी। बांग्लादेश में एक चीनी कम्पनी को सिनोवैक कोरोनावायरस वैक्सीन के तीसरे राउंड के परीक्षण की इजाजत दे दी गई है, हालांकि इसके लिए उसे फंड देने पर रजामंदी नहीं हुई है।
भारत बेशक इस क्षेत्र में, खास कर बांग्लादेश को लेकर, कोविड के वैक्सीन मामले में अग्रणी रहा है, पर वह हाल ही में लड़खड़ा गया है। वादा किए हुए वैक्सीन की खेप न भेज पाने में असमर्थतता पर बांग्लादेश में कई लोगों ने भारत को आड़े हाथों लिया है लेकिन इसे ज्यादा चीनी राजदूत के वक्तव्य से बांग्लादेश में ज्यादा बवाल मचा हुआ है, जिसका साया उसके संबंधों पर पड़ रहा है। यह विश्वास करना कि चीन अपने कुछ प्रमुख निर्णयों के जरिए बांग्लादेश को मोड़ ले सकता है तो यह एशिया की उभरती ताकत की गलतफहमी होगी। या कि चीन अपना आधार गंवा रहा है? चीनी प्रतिक्रियाओं से असुरक्षा और चिंता होती है।
जबकि बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन ने बिना किसी अनिश्चित शब्दों के यह स्पष्ट किया है कि उनका देश एक संप्रभु एवं स्वतंत्र देश है, जो अपनी विदेश नीति खुद तय करता है, ढाका में प्रभावशाली लोग (मूवर्स एंड शेकर्स) इस अपमान को आसानी से नहीं भूलेंगे। पेइचिंग बांग्लादेश की दोस्ती को उसकी इजाजत मानने की भूल कर बैठा है। यह बुनियादी गलती है, खास कर उस राष्ट्र के बारे में जिसका दमन के खिलाफ खड़े होने और उससे लड़ने का इतिहास रहा है बल्कि विगत 50 वर्षों की यात्रा में अनेक कठिनाइयों से जूझते हुए आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में हासिल कई सारी अहम उपलब्धियों का जश्न भी मनाया है। बांग्लादेश ने हमेशा ही विकल्पों को स्पष्टता से उदाह्रत किया है और संक्षेप में याद किया कि भारत पेइचिंग द्वारा शुरू किए गए बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) में शामिल करने से बांग्लादेश को नहीं रोक पाया।
दिलचस्प है कि, ढाका को क्वाड में नहीं आमंत्रित किया गया है और न ही इस समूह का अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने का कोई प्रस्ताव है। लेकिन यह मामला बारीक विवरण का है, जिसका हल निश्चित रूप से बाद में किया जा सकता है। फिलहाल तो, बांग्लादेश चीनी राजदूत के इस अराजनयिक सुझाव से टीस का अनुभव कर रहा है। दरअसल, बांग्लादेश के टिप्पणीकार प्राय: चीन को दक्षिण एशिया के कई समूहों में शामिल करने की जरूरत पर जोर देते रहे हैं, जो कई कारणों से हैरान करने वाले हैं। इस घटना के बाद, वे इस तरह के कोई सुझाव देने के पहले पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होंगे।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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