भारत इस समय अभूतपूर्व स्तर पर स्वास्थ्य आपात स्थिति का सामना कर रहा है। कोविड -19 महामारी अब तक 250,000 से अधिक लोगों की जिंदगियों को निगल चुकी है और भारत में 2.4 करोड़ से अधिक लोग इससे संक्रमित हुए हैं। अब यह महामारी तेजी से ग्रामीण इलाकों में फैल रही है जहां बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा नगण्य है। हालात ऐसे हैं कि देश की राजधानी सहित बड़े-बड़े महानगरों में भी अस्पताल, ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा संबंधी दवा एवं उपकरण आदि में भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। कमोबेश छोटे शहरों और कस्बों में भी ऐसे ही हालात हैं।
जिस तरह महामारी ने अपना रूप दिखाया है, उससे पिछले पंद्रह वर्षों में हमारे द्वारा गढ़ी गईं हमारी आपदा प्रबंधन प्रणालियों की खामियां उजागर हो गई हैं।
1998 में ओडिशा में आए भयंकर चक्रवात के बाद प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में आपदाओं से समग्र रूप से निपटने के लिए राष्ट्रीय तंत्र विकसित करने के लिए गंभीर विचार-विमर्श किया गया। इसके लिए एक बहु दलीय अध्ययन समूह गठित किया गया। प्रधानमंत्री स्वयं इस समूह के अध्यक्ष बने और श्री शरद पवार को उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। इसके बाद भुज और लातूर में आए भूकंप और हिंद महासागर में आई सुनामी ने प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से समग्र रूप से निपटने के तत्कालीन सरकार के संकल्प को और अधिक मजबूत किया। आपदाओं से निपटने की संरचनात्मक व्यवस्थाओं और सर्वोत्तम व्यावहारिक उपायों को सीखने के लिए इस समूह ने कई देशों का दौरा किया। पर्याप्त चर्चा और विचार-विमर्श के बाद संसद ने सर्वसम्मति से आपदा प्रबंधन अधिनियम पारित किया।1 यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।
इसके अधिनियम के तहत प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सर्वोच्च निकाय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया जाना था। इसमें अधिकतम नौ सदस्य हो सकते थे और उनमें से एक को उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करना था। इस संगठन को उच्च स्तरीय दर्जा दिया जाना प्रस्तावित था जिसमें प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का दर्जा केबिनेट मंत्री और सदस्यों का दर्जा केंद्रीय राज्य मंत्रियों के बराबर होता ताकि वे केंद्र सरकार और राज्यों के मंत्रालयों के साथ सुगमता से काम कर पाते। इस संगठन को सीधे प्रधानमंत्री के अधीन रखे जाने से भी इसे मंत्रालयों और राज्यों के साथ मिलकर काम करने में सुगमता हुई। अपने प्रारंभिक वर्षों में संगठन ने सराहनीय कार्य किया। संगठन द्वारा बाढ़, चक्रवात, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं और रासायनिक, जैविक, रेडियो विकिरण और परमाणु (सीबीआरएन) जैसी मानव निर्मित आपदाओं सहित विभिन्न प्रकार की आपदाओं से निपटने के लिए विशेषज्ञों, तकनीकी विशेषज्ञों, गैर-सरकारी संगठनों और नौकरशाहों द्वारा तैयार दिशानिर्देश जारी किए गए। इसमें चिकित्सा संबंधी आपात स्थितियों से निपटने के लिए विशेष प्रावधान भी थे। इन 20 दिशानिर्देशों के महत्व को विश्व भर में स्वीकारा गया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की देखरेख गृह मंत्रालय द्वारा की जाती है जिसके अधीन पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं।
एनडीएमए अधिनियम 2005 में इस प्राधिकरण की व्यापक भूमिका का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत सरकार ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) बनाया। इसी क्रम में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) का नेतृत्व मुख्यमंत्रियों द्वारा और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (डीडीएमए) का नेतृत्व मामले के अनुसार जिला कलेक्टर/मजिस्ट्रेट/उपायुक्त द्वारा किया जाना प्रस्तावित था ताकि आपदा प्रबंधन में समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण लाया जा सके और इसे अपनाया जा सके। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि पहली बार आपदा के दौरान राहत देने के बजाय विकासात्मक लाभों के संरक्षण और जीवन, आजीविका और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए सक्रिय रोकथाम, शमन और पूर्व-तैयारी संचालित दृष्टिकोण का अनुकरणीय बदलाव लाया जाना था।
इस प्राधिकरण को "आपदा प्रबंधन के लिए नीतियों, योजनाओं और दिशानिर्देशों को निर्धारित करने" और "आपदा के लिए समयोचित और प्रभावी प्रतिक्रिया" सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी संभालनी थी। "राज्यों द्वारा राज्य संबंधी योजनाओं को तैयार करने के लिए" इसके द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना था।
धारा 6 एनडीएमए को व्यापक छूट देती है। प्राधिकरण आपदाओं की रोकथाम और इनपर काबू पाने के लिए कदम उठा सकता है और आपदाओं से निपटने के लिए तैयारी और क्षमता निर्माण सुनिश्चित कर सकता है। स्पष्ट रूप से यदि यह प्राधिकरण अपनी मूल संरचना और महत्ता के अनुसार काम कर रहा होता तो वर्तमान महामारी में यह एक प्रमुख भूमिका निभा रहा होता। इसने एच1एन1 फ्लू के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ निर्बाध रूप से और प्रशंसनीय काम किया।
अधिनियम की धारा 8 में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्राधिकरण की सहायता के लिए राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी) का गठन करने का प्रावधान है। इस समिति में संबंधित विभागों के सचिव स्तर के अधिकारी शामिल होते है। सैद्धांतिक रूप से एनडीएमए द्वारा कोविड-19 कार्य दल का समन्वय किया जा सकता है। इसी तरह कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में संकट प्रबंधन समिति (सीएमसी) थी। एनडीएमए, सीएमसी, एनईसी और संबंधित मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करने से आपदा प्रबंधन में समन्वय संबंधी सभी खामियों को दूर किया जा सकता था। उन्हें तकनीकी विशेषज्ञों, स्वास्थ्य कार्मिकों, शिक्षाविदों, गैर सरकारी संगठनों आदि का भी व्यापक समर्थन मिल पाता। इससे पूरे सरकारी तंत्र की आम जनता तक पहुँच सुगम हो पाती।
आपदाओं से निपटने के लिए एक व्यापक तंत्र पहले ही बनाया जा चुका है। मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) बनाए गए। उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि राज्यों के सभी विभाग राष्ट्रीय और राज्य प्राधिकरणों द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार आपदा प्रबंधन योजना तैयार करें।
इसी तरह, जिला मजिस्ट्रेट के अधीन जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) बनाए गए। क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि डीडीएमए के सदस्य और पदेन सह-अध्यक्ष हैं। इसे सरकार और जनता के बीच एक बढ़िया संपर्क बिंदु मिलता है।
इसके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) का गठन किया गया जिसके वर्तमान में लगभग 14,000 कार्मिक है। यह बल अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है और इसे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ आपदा प्रबंधन बलों में से एक के रूप में माना जाता है। एनडीआरएफ ने वर्ष दर वर्ष आपदा प्रभावित लोगों को त्वरित और समयोचित राहत प्रदान करने में उत्कृष्ट भूमिका निभाई है।
इस तरह आपदा प्रबंधन के लिए पहले ही एक विस्तृत और पूर्णतया प्रतिबद्ध संरचना होनी चाहिए थी। परंतु इसे अब मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से कम कर दिया गया है। सवाल यह उठता है कि मौजूदा महामारी संबंधी आपदा में एनडीएमए क्या भूमिका निभा रहा है?
हालांकि सरकार ने वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप कई तात्कालिक कार्यबलों का गठन किया है परंतु एनडीएमए परिदृश्य से गायब है। एनडीएमए, एसडीएमए की बैठकें तक नहीं बुलाई गई हैं। कई राज्यों के प्राधिकरण लंबे समय से निष्क्रिय पड़े हैं। महामारी से निपटने के लिए अपेक्षित बहुत सारी शक्तियां अर्जित करने के लिए सरकार ने एनडीएमए अधिनियम का उपयोग करके सही कदम उठाया है। इसके अलावा कोई नहीं जानता कि महामारी से निपटने के लिए एनडीएमए ने सरकार को क्या सलाह दी है। महामारी के प्रति सरकारी प्रयासों में एनडीएमए को शामिल किया गया है या नहीं, इस बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
एनडीएमए अधिनियम में एनडीएमए के उपाध्यक्ष की नियुक्ति का प्रावधान है। वर्तमान में एनडीएमए का कोई उपाध्यक्ष नहीं है। एनडीएमए में अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं। वर्तमान में इसके केवल पांच सदस्य हैं। जरूरत इस बात की है कि एनडीएमए को इसकी पूर्ण क्षमता के अनुरूप संचालित किया जाए ताकि मानव निर्मित आपदाओं से निपटने में भी आपदा प्रबंधन को वही क्षमता और नैतिक अधिकार प्राप्त हो सके, जैसा कि इसे प्राकृतिक आपदाओं के मामले में प्राप्त है।
गृह मंत्रालय के बजट के विश्लेषण के अनुसार, आपदा प्रबंधन के बुनियादी ढांचे के लिए 2020-21 के बजट में संशोधित प्राक्कलन 72 करोड़ रुपए था जबकि 2019-20 में बजट प्राक्कलन में यह 147 करोड़ रुपये था। इस तरह इसमें 51 प्रतिशत की गिरावट थी।2
वर्तमान समय में एनडीएमए की विशिष्ट भूमिका और स्थान है। सरकारी योजना और प्रतिक्रिया में एनडीएमए का एकीकरण बेहद उपयुक्त रहेगा। जैसे ही एनडीएमए सक्रिय होगा, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला प्रबंधन प्राधिकरण भी हरकत में आ जाएंगे। उनके पास काफी ज्ञान उपलब्ध है और देश के सुदूर कोनों तक उनकी पहुंच है।
यह चूंकि वायरस पहले ही ग्रामीण क्षेत्रों में फैल चुका है इसलिए प्रभावित लोगों तक तुरंत राहत पहुंचाना आवश्यक होगा। एनडीए/एसडीएमए/जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। वे आपदा प्रतिक्रिया संभालने के लिए विशेषज्ञों और गैर सरकारी संगठनों को संलग्न करने में सहायता कर सकते हैं। इससे अभी किए जा रहे कार्यों को और अधिक मजबूती मिलेगी।
एनडीएमए राहत प्रयासों के समन्वय के लिए भारतीय सशस्त्र बलों से भी संपर्क कर सकता है। एनडीएमए और संबंधित तंत्रों को भी महामारी से निपटने का एक अमूल्य व्यावहारिक अनुभव मिलेगा। एनडीएमए का सक्रिय होना सभी के लिए लाभकारी होगा।
एनडीएमए को उसकी पूरी क्षमता और संरचनाओं सहित दोबारा खड़े किए जाने में अब कोई समय व्यर्थ नहीं किया जाना चाहिए। यदि अभी भी एनडीएमए को उच्च प्राथमिकता देकर दोबारा खड़ा किया जाता है तो कोरोना की तीसरी लहर जिसकी अभी आशंका जताई जा रही है, की चुनौती से निपटने के देश को उपयुक्त रूप से तैयार करने में सहायक होगा। सरकार को इस सिफारिश पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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