संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत से अपेक्षाएं
Amb Asoke Mukerji, Distinguished Fellow, VIF

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में आठवीं बार अपने 2 वर्ष के कार्यकाल की शुरुआत 1 जनवरी 2021 से कर दी है। भारत ने इसके लिए अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए तीन प्राथमिकताओं की पहचान की थी। ये प्राथमिकताएं हैं; आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करना; संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन का प्रभावी उपयोग; और मानवीय सरोकारों के साथ तकनीक का सक्षम उपयोग। भारत ने “रिफॉर्म्ड मल्टीलेटरलिज्म” के साथ अपनी इन प्राथमिकताओं का प्रस्ताव किया है, जिसके मूल में सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों को समानता के आधार पर निर्णय लेने की प्रक्रिया मंन भागीदार बनाना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने के दौरान सुरक्षा परिषद की आंतरिक संरचना में सुधार के लिए अपनी तरफ से “रिफॉर्म्ड मल्टीलेटरलिज्म” का आह्वान किया था। उनका कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर बढ़ती बहुआयामी चुनौतियां का मुकाबला करने के लिए रिफॉर्म्ड मल्टीलेटरलिज्म की आवश्यकता है। सुरक्षा परिषद में निर्णय लेने की प्रक्रिया वीटो द्वारा होती है, जिसका अधिकार केवल इसके पांच स्थाई सदस्यों (पी-5) को मिला हुआ है, जिन्होंने 1946 से ले कर अब तक इसका 293 बार उपयोग किया है।

निर्णय लेने में वीटो के उपयोग से बने गतिरोध का खामियाजा प्राय: दुखदायी मानवीय संकट के रूप में सामने आता है। अमेरिका और चीन के बीच 2020 के प्रारंभ से चला आ रहा गतिरोध इसका ताजा उदाहरण है, जिसने कोविड-19 वैश्विक महामारी से समय पर निबटने के लिए परिषद के प्रस्ताव को रोक दिया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र में सभी सदस्य देशों के राजनीतिक समर्थन लेने की बात थी। अब भारत जिसके पास वीटो का विशेषाधिकार नहीं है, वह परिषद के एक निर्वाचित अस्थायी सदस्य के रूप में कैसे अपने हितों को रख पाएगा, खास कर उन स्थितियों में जब P5 सदस्यों द्वारा वीटो का उपयोग किया जाता है, यह विश्व की उभरती ताकत के रूप में भारत की आकांक्षाओं की अग्निपरीक्षा होगी।

भारत द्वारा सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में आठवीं बार चुनाव में भाग लिए जाने की एक उपलब्धि यह हासिल हुई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के दो तिहाई सदस्य देशों ने उसके पक्ष में मतदान किया है। इस संदर्भ में कहना है कि P5 में से किसी देश ने सुरक्षा परिषद में अपनी सीटों के लिए संयुक्त राष्ट्र आम सभा से न तो मांग की है और न चुनाव लड़ा है। ऐसे समय में, जब संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नियमन में लोकतंत्रों की भूमिका पर दृढ़ता दिखा रहे हैं, तो भारत का एक सुव्यवस्थित ट्रैक रिकॉर्ड और उसकी कार्य-दक्षता लोकतांत्रिक तरीके से सुरक्षा परिषद के एक निर्वाचित सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण हो जाती है।

भारत को अवश्य ही इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए क्योंकि वह अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर चुनौतियों के मद्देनजर सुरक्षा परिषद को अधिक से अधिक जवाबदेह और प्रभावकारी बनाने का प्रयत्न करता है। शांति, सुरक्षा और विकास के बीच स्वीकृत अंतर्संबंध भारत को सुरक्षा परिषद के संदर्भ में अपनी तीन प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए सुरक्षा परिषद के भीतर सहभागिता के जरिए एक राजनयिक स्थान बनाने की इजाजत देता है।

आतंकवाद से निबटने के लिए, भारत को सुरक्षा परिषद की निर्णयकारी प्रक्रिया में अपने लिए एक भूमिका की मांग अवश्य करनी चाहिए, जब वह अफ-पाक (Af-Pak) क्षेत्र को वैश्विक आतंकवाद का उद्गम स्थल के रूप में अपने विचार रखता है। सुरक्षा परिषद के लिए 2020 में होने वाले चुनाव में अफगानिस्तान 2013 में भारत के पक्ष में खड़ा था। आज भारत और अफगानिस्तान दोनों ही यहां से फिर-फिर प्रायोजित होने वाले आतंकवाद के शिकार हैं, जो उनके हितों के सीधे-सीधे विरुद्ध है। अफगानिस्तान के विकास के सबसे बड़े भागीदार के रूप में भारत को सुरक्षा परिषद में पेश किये जाने वाले अपने किसी भी प्रस्ताव में अफगानिस्तान की चिंताओं और उसके सरोकारों को अवश्य शामिल करना चाहिए। इनमें, आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में सुरक्षा परिषद से पारित वह प्रस्ताव भी शामिल है, जिसके तहत पाकिस्तान से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के वादे को पूरा करने की मांग भी शामिल है। इसमें भारत की सफलता के लिए P5 सदस्य देशों के समर्थन की दरकार होगी, जो अफ-पाक (Af-Pak) क्षेत्र से निसृत होने वाले आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में अपने क्षेत्रीय और भू-राजनीतिक स्वार्थों के वशीभूत होकर महत्वाकांक्षा के विभिन्न स्तरों का उपयोग किया है।

संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों की तैनाती को अधिक प्रभावी बनाने के लिए भारत को एशिया और अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र शांति व्यवस्था के लिए मैनडेट्स का मसौदा बनाने में अवश्य ही एक मुख्य भूमिका निभानी चाहिए, जहां वर्तमान में भारत की 6000 शांति रक्षक सेना तैनात है। लाइबेरिया और दक्षिणी सूडान में महिला संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक के रूप में भारत के शानदार रिकॉर्ड सुरक्षा परिषद मैंडेट्स के लिए महिला, शांति और सुरक्षा तथा नागरिकों की संरक्षा जैसे विषयों को सामने ला सकता है। इस प्रक्रिया में, भारत शांति स्थापना के साथ शांति बनाने की प्रक्रिया को जोड़ने, विशेषकर राजकाज संचालित करने वाले राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूती देने के अपने स्वीकृत सुधार प्रस्तावों के क्रियान्वयन को सुगम बनाने पर जोर देगा।

मानव सशक्तिकरण और मानवीय विकास में डिजिटल तकनीक के तीसरे क्षेत्र में, भारत डिजिटल इंडिया प्लेटफार्म के अपने राष्ट्रीय अनुभवों को लेकर बेहतर स्थिति में है। वह अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और विकास के लिए सूचना और सम्प्रेषण की तकनीकों पर होने वाली परिषद की बहसों की अगुवाई कर सकता है। साइबर मसले पर सुरक्षा परिषद की कार्रवाइयों के ढांचे के लिए सतत विकास का एजेंडा 2030 के प्रति पूर्णतावादी दृष्टिकोण रखने की भारत की वकालत साइबर सुरक्षा मसले पर पी-5 के मौजूदा एकआयामी ध्रुवीकरण को बिगाड़ सकती है। अनियंत्रित रह गये, ऐसे ध्रुवीकरण का परिणाम संभवत: उभरती डिजिटल वैश्विक व्यवस्था के टकरावपूर्ण विखंडन में हो सकता है, जो सतत विकास के प्रयासों को ऩुकसान पहुंचा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र आम सभा के एशिया-प्रशांत निर्वाचन क्षेत्र द्वारा सर्व सहमति से समर्थित एक सदस्य के रूप में भारत से एशिया प्रशांत मामलों से संबंधित एजेंडे पर सक्रिय होने की अपेक्षा की जाएगी। ये मसले पहले से ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में हैं। इनमें अफगानिस्तान, ईरान, यमन, सीरिया और फिलिस्तीन के सवाल शामिल हैं। इन मसलों पर भारत की एक स्पष्ट और रचनात्मक भूमिका, इन्हीं मामलों में अब तक चीन द्वारा दिखाए गए स्पस्टतया उदासीन रवैये को प्रति-संतुलित कर देगा, जो परिषद में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का वर्तमान में एकमात्र स्थाई सदस्य है। इसीलिए सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारत की यह आठवीं पारी स्थाई सदस्य बनने की दिशा में सुनिश्चित मूल्य को रेखांकित करता होना चाहिए।

Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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