चीन पिछले वर्ष कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी फैलाने की एक प्रमुख वजह माने जाने, भारत के प्रति लगातार आक्रामकता दिखाने और उसके पूर्वी लद्दाख में निरंतर तनाव बनाए रखने के कारण भारतीय जनमानस के लिए एक बड़ी समस्या है। इस नए दशक के प्रारंभ की ये तीन घटनाएं उल्लेखनीय हैं। पहली, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को 370 सदस्यीय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीसीपी) की 19वीं सेंट्रल कमेटी के 26-29 अक्टूबर 2020 को हुए पांचवें विस्तृत अधिवेशन में ‘मुख्य पथप्रदर्शक और खेवनहार’ की उपमा से नवाजा गया था। इसके पहले ‘महान खेवनहार’ की यह सम्मानजनक उपाधि दी गई थी, जो 1949-1976 के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के चेयरमैन रहे थे। पिछले साल हुआ यह विस्तृत अधिवेशन अन्य कई मायने में भी उल्लेखनीय था। इसने राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास तथा दूरगामी लक्ष्यों को पूरा करने वाली14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-25) को मान्यता दी गई। इसने चीन को 2035 तक एक “महान आधुनिक समाजवादी राष्ट्र” बनाने के उद्देश्य से 15 वर्षीय दूरगामी योजना को अंगीकार किया।
नेशनल पीपुल्स कान्फ्रेंस ने 2018 में अपने एक संशोधन के जरिये राष्ट्रपति पद पर दो वर्ष के कार्यकाल की सीमा को हटाने के साथ शी जिनपिंग के लिए आजीवन राष्ट्रपति के रूप में बने रहेंगे, जो पहले की स्थिति में 2023 में अवकाश ग्रहण करने वाले थे। इसके साथ ही, विस्तृत अधिवेशन ने शी जिनपिंग के उत्तराधिकारी को देश के सामने लाने की परम्परा का पालन नहीं किया। इस परिप्रेक्ष्य में यह प्रतीत होता है कि जिनपिंग कम से कम और दस साल तक या इससे भी ज्यादा, अंतरिम समय सीमा 2035, तक अपने पद पर बने रहेंगे, जब चीन भी एक महान आधुनिक समाजवादी राष्ट्र हो जाएगा।
दूसरी, चीन और यूरोपीय यूनियन ने 31 दिसम्बर 2020 को निवेश के लिए व्यापक समझौते पर बातचीत की है। यद्यपि चीन का यूरोपीयन यूनियन में प्रत्येक विदेशी निवेश विगत कुछ सालों में चरघातांकी (exponentially) रूप से काफी बढ़ा है, लेकिन कोविड-19 की पृष्ठभूमि में और अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के दौरान हुआ यह समझौता चीनी अर्थव्यवस्था तथा उसके तकनीकी विकास को निश्चित रूप से ऊर्जा देगा। इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात कि यह चीनी सरकार तथा सीसीपी को अंतरराष्ट्रीयता वैधता प्रदान करेगी। यह चीन के अपने सीमावर्त्ती पड़ोसी देशों के विरुद्ध, दो चीनी सागरों में तनाव पैदा करने और घरेलू मोर्चो पर चीनी आक्रामकता के मसले को पीछे धकेल देगा।
वैश्विक महामारी के बावजूद यह संभव है कि चीनी अर्थव्यवस्था-अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के अनुमानों के मुताबिक-1.5 से 2 फीसदी तक सकारात्मक रहेगी। चीनी अर्थव्यवस्था से आर्थिक पतन और वैश्विक मूल्य श्रृंखला विश्व के लिए बहुत ही संशलिष्ट और कठिन हो गया है। तदनुसार, संबंधों के फिर से बनाने में, अमेरिका और अन्य देश जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट के गंभीर संकट झेल रहे हैं, वे अपने-अपने देशों को प्रोत्साहन देने के लिए अनिवार्यत: रूप से चीन के साथ अपने कारोबारी संबंधों को पुनर्ऊज्जस्वित करेंगे। चीन भी लगभग 100 देशों में फैली अपनी बीआरआइ परियोजना के जरिये आर्थिक कूटनीति का फायदा उठाना चाहेगा।
तीसरी, चीन ने अभी हाल में ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कमांड वाली अपनी सेंट्रल मिलिटरी कमीशन (सीएमसी) की ताकत में विस्तार किया है, जिसका मकसद राष्ट्रीय हित की हिफाजत में घरेलू तथा विदेशों में सैन्य एवं नागरिक संसाधनों को संगठित करना है। राष्ट्रीय रक्षा कानून में किये गये संशोधनों ने, जो पिछली 1 जनवरी 2021 से लागू हैं, सीएमसी की सैन्य नीति तथा निर्णय लेने की अधिभावी शक्तियों को प्रकाश में ला दिया है। इस विधेयक ने देश की मिल्कियत वाले और निजी उद्ममों को-परम्परागत हथियारों के निर्माण में नयी प्रौद्योगिकी के समावेश के साथ ही, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष और विद्युत चुम्बकीय जैसे गैर परम्परागत परिदृश्यों में शोध-अनुसंधान में सहभागिता के लिए-संगठित करने में देशव्यापी समन्वयकारी प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, सेना की “जंग लड़ने और उसे जीतने की कूव्वत”, “युद्ध पूरी तरह तैयारी”, और यह कि पीएलए को अवश्य ही “किसी भी क्षण पूरी तरह लड़ने के लिए तैयार” रहने पर जोर दिया गया। वास्तव में चीन के राष्ट्रीय रक्षा कानून का लहजा और रुख पड़ोसी देशों में भय ही उपजा सकता है, भारत में और ज्यादा, जिसके साथ सीमा विवाद है और जो पहले से ही वास्तविक सीमा रेखा (एलएसी) पर मुठभेड़ को झेल रहा है।
प्रसंगवश, चीन के स्वप्न, मैराथन के 100 साल और 21वीं सदी की समय सीमा तक महान कायाकल्प किये जाने के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। चीन में और चीनी प्रवासियों के बीच ऐतिहासिक स्मृतियों और राष्ट्रीय मानसिकता में यह ताकतवर विमर्श के रूप में उकेरा हुआ है; यह लोगों की सामूहिक आकांक्षाओं के साथ अनुनादित है और देश में राष्ट्रवाद को परिचालित करता है। स्पष्टत: यह नारेबाजी नहीं है, क्योंकि गौरवशाली भविष्य, देश के शानदार अतीत का कायाकल्प करने का चीनी स्वप्न आक्रामक तरीके से जनता में पैठ बनाए हुए हैं।
चीन ने विगत 4 दशकों में असाधारण सफलता हासिल की है और क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के संदर्भ में तो यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो गई है। चीनी अपनी इस आर्थिक सफलता को ‘चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद’-विनम्र शब्दों में, बाजार आधारित पूंजीवादी दृष्टिकोण, विदेशी निवेश के लिए अपने दरवाजे खोलना, नियामक उदारवाद, एसओई को समर्थन और मैन्युफैक्चरिंग एवं उत्पादन पर जोर देने की देन मानता है। चीन की संवृद्धि की यह कहानी 2019 में विश्व बौद्धिक संपत्ति संगठन में अमेरिका की सर्वोच्चता को उसके 57,840 के मुकाबले 58,990 आवेदनों के साथ खत्म करती है और यह एक नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था में रूपांतरित होने की स्पष्ट गवाही देती है। नवाचार राष्ट्रीय ताकत का प्राथमिक स्रोत है, क्योंकि यह संपत्ति का निर्माण करता है, प्रौद्योगिकी विकास और भविष्य के नवाचार की तरफ ले जाता है। अकेले हुआवेई ने 2019 में विश्व स्तर पर सर्वाधिक तादाद (4411) में पेटेंट कराए हैं। इस यात्रा में, चीन बलात तकनीकी हस्तांतरण, गलत कारोबार के तरीकों, विदेशी संस्थाओं के लिए नियंत्रित पहुंच तथा स्थानीय संस्थाओं, खास कर एसओई, के लिए नियामक पक्षवाद से चीन बहुत लाभान्वित हुआ है।
विश्व को अपेक्षा थी कि जिस पूंजीवाद ने वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है और उदारवादी लोकतांत्रिक देशों में लोगों की जीवन पद्धतियों के साथ संवाद-संपर्क चीन के रूपांतरित होने और यहां तक कि उसके लोकतांत्रीकरण में प्रोत्साहन देगा। यह पूरी तरह से झूठा साबित हुआ है। प्रसंगवश, अतः नीतिगत ढांचे की मुद्रा को वेन डायग्राम के पांच चक्रों में रखा जा सकता है। पहला, नियम-कायदे पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति चीन का रुख। यह सभी जानते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद-चीन की स्वतंत्रता के काफी पहले-संयुक्त राष्ट्र संघ और ब्रेटन वुड्स इंस्टीट्यूशंस, फिर विश्व व्यापार संगठन के जरिए एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाई गई थी। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में उभरा एक मजबूत चीन 2013 से ही अंतर्राष्ट्रीय नियम-कायदों की लगातार उपेक्षा कर रहा है। यह दक्षिण चीनी सागर, पूर्वी लद्दाख, नेपाल और भूटान में धीरे-धीरे सरकते रहने, या स्थाई मध्यस्थता न्यायालय द्वारा स्प्रैटली द्वीप समूह पर फिलिस्तीन के पक्ष में दिए गए फैसले की अवमानना इसके प्रमाण हैं। चीन संयुक्त राष्ट्र संघ (1971) और डब्ल्यूटीओ में (2001) में शामिल होने से बहुत लाभान्वित हुआ है। स्पष्ट है कि सीसीपी अंतर्राष्ट्रीय नियम-कायदों में किसी मौलिक बदलाव की मांग नहीं करता, यह महज उसके तरीकों को मरोड़ने और चीन के नजरिए से उसमें समंजन जाता है। राष्ट्रपति शी के नेतृत्व में चीन की विदेश नीति संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों (कुल 15 में से चार ) में अपने नेतृत्व की भूमिकाओं की खोज से लेकर अत्यंत ही महत्वाकांक्षी और निश्चयात्मक हो गई है। शिनजियांग, तिब्बत, हांगकांग और मंगोलिया में मानवाधिकार मामले में चीन के खराब रिकॉर्ड के बावजूद अप्रैल, 2020 में उसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के परामर्शक समूह में नियुक्त किया गया था।
दूसरा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पक्ष में महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक अभिप्रेरण को रचना। चीन के संरचनागत प्रावधानों से विश्व में उसके प्रभुत्व कायम करने की इच्छा जाहिर होती है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पहले ही बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) के पीछे किसी भी प्रच्छन्न “भू-राजनीतिक चाल” को खारिज कर दिया है और “मानव जाति के लिए एक साझा भविष्य के साथ एक समुदाय का निर्माण” की चीनी प्रतिबद्धता को रेखांकित किया है। जिनपिंग ने बोआओ फोरम फॉर एशिया को संबोधित करते हुए कहा, “चीन की कोई भूराजनीतिक चाल नहीं है, और यह किसी अपवर्जनात्मक समूह की मांग नहीं करता है और दूसरे देशों के साथ कारोबार करने में कोई प्रतिबंध नहीं चाहता है।” हालांकि, पुनर्भुगतान की क्षमता के लिहाज से निर्धनतम देशों या आंतरिक विखंडन के वाले देशों में निवेश जोखिम भरा है और चीन ने इस खतरे को स्वीकार करने की इच्छा जाहिर की है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि बीआरआइ के 8 प्राप्तकर्ता देशों-जिबूती, किर्गिस्तान, लाओस, मालदीव, मंगोलिया, मोनटेंगरो, पाकिस्तान और तजाकिस्तान बीआरआइ की वजह से कर्ज संकट के उच्चतम जोखिम में हैं। चिंताओं के इन हिस्से में कर्ज के पुन: मूल्यांकन या उस देश में पूरा हो चुके प्रोजेक्ट को लंबे समय के लिए लीज पर ले लेना, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के जैसे-द्वारा कर्ज के बने रहने या कर्ज के जाल में फंसाये रखने की है। कर्ज चुकता करने में इन देशों की असमर्थता चीन की अपनी वित्त प्रणाली को जोखिम में डालता है और उसकी अर्थव्यवस्था में मंदी का खतरा उत्पन्न करता है। इस तरह, चीन सही ही बीआरआई प्रोजेक्ट को संरक्षित रखने तथा अपनी घरेलू वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने में गंभीर खतरे का सामना करेगा। इस अनुवर्ती जोखिम के बावजूद बीआरआइ योजना से जुड़े देशों को ऋण देना जारी रखना, स्पष्टत: चीन की इस पहल के पीछे भूराजनीतिक और आर्थिक दोनों ही प्रेरणा हैं। अतः यह माना जा सकता है कि विश्व को नेतृत्व देने की चीनी महत्वाकांक्षा के लिए भूराजनीतिक के एक इंजन के रूप में बीआरआइ की अवधारणा की गई है और उसकी पाजिशनिंग की गई है। केवल यही वैश्विक नेतृत्व देने की उसकी महत्वाकांक्षा अत्याधिक व्ययकारी और विफल परियोजनाओं में धन लगाने के आर्थिक जोखिम लेने की उसकी इच्छा को जाहिर करती है।
तीसरे, भूराजनीति क्षेत्र में क्षेत्रीय और समुद्री सीमाओं के मसले हैं। चीन के इतिहास में इस अवधि (1839 से 1949) को अफीम युद्ध, चीन-जापान युद्ध, चीन-फ्रांस युद्ध और थोपे गए गैर बराबरी के समझौते, जिसने आंतरिक विखंडन को बढ़ावा दिया, राष्ट्रीय सामूहिक मानसिकता में सड़न ला दी, उसे शताब्दी के अपमान के रूप में जाना जाता है। चीन की भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, भूसामरिक और सैन्य कार्रवाइयों का लक्ष्य, भूरणनीतिक बाधाओं को दूर हटाना है- अहितकर पहली प्रायद्वीप श्रृंखलाओं और महाद्वीपीय प्रांतों से हो कर सी लाइंस ऑफ कम्युनिकेशंस (एसएलओसी) के जरिए ये काम होना है। प्रायदवीपों और दक्षिण चीन सागर की शैल भीत्ति पर गैरकानूनी और विवादित विकास के साथ, और मिसाइलों के निर्माण मंय अहम निवेश, जलपोतों, वायुयानों और दूरस्थ बंदरगाहों में लंगर डालने की सुविधाएं-ये सारा का सारा एसएलओसी को सुरक्षित करने और वैश्विक आकांक्षाओं की पहुंच को प्रदर्शित करता है।
सरजमीनी सीमा पर,सीसीपी की चिंताएं मुख्य भूभाग और सीमाओं के बीच में अंतर के साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता से संबंधित हैं। शिनजियांग या पहले के पूर्वी तुर्किस्तान में उईगर मुसलमानों की बेचैनी, दक्षिणी और भीतरी मंगोलिया के मंगोल और विशाल क्षेत्रीय सीमा पर बसे तिब्बत, उसकी मुख्य चिंता के विषय हैं। इन सीमा क्षेत्रों के प्रबंधन की व्यापक प्रकृति सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के बीच जुड़ाव को परिलक्षित करती है, जो इन बेचैन जातीयताओं से उपजी हैं। सभी आर्थिक विकास, जनसांख्यिकी को बदलने या उसे कमतर करने के प्रयास इन जातीयताओं को किसी नियम के दायरे में लाने में सक्षम नहीं हुआ है। भारत की सीमा शिंजियांग और तिब्बत दोनों से लगती है और इन दोनों जगहों के लोगों के साथ उसके ऐतिहासिक संबंध रहे थे। अतः बेचैन परिधि पर अवस्थित सीमावर्ती देश चीन की दूरगामी रणनीति के केंद्र हैं।
चौथा, सीसीपी सर्वोत्कृष्ट और सर्व-महत्वपूर्ण है, जो राष्ट्रपति शी के 16 विशेष कथन में दिखाई देता है। यह डिक्टम है,“सरकार, सेना, समाज और स्कूल, उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम-पार्टी उन सभी का नेतृत्व करती है।” सीसीपी को प्रपंच रचने, तिकड़म को अंजाम देने और इसे सभी मोर्चों पर पहुंचाने का आरोप लगाया जाता है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में सीसीपी स्टेट काउंसिल-चीन की कैबिने-की तुलना में अत्यधिक शक्तिशाली हो गई प्रतीत होती है। सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) और सेंट्रल फॉरेन अफेयर्स कमीशन-(सीएफएसी) (पहले यह सेंट्रल फॉरेन अफेयर्स लीडिंग (छोटे समूह) हुआ करता था) निगरानी का काम करता है और विदेश एवं सुरक्षा नीतियों के मामलों में निर्णय लेता है। सीएमसी और सीएफएसी की अध्यक्षता के साथ और अन्य कई अग्रणी समूहों का अध्यक्ष राष्ट्रपति के होने के साथ विदेश नीति और सुरक्षा नीतियां अकेले एक व्यक्ति के नियंत्रण में हैं।
चीनी स्वप्न का पीएलए एक बुनियादी हिस्सा है, वह राष्ट्रीय सेना के बजाय सीसीपी की एक सशस्त्र इकाई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के व्यापक दायरे में एक महान शुद्धता अभियान पीएलए में पिछले 6 साल से चलाया जा रहा है। जैसा कि यह राजनीतिक कमिसार प्रणाली पार्टी के लिए गए फैसले के क्रियान्वयन की गारंटी देती है, पार्टी में अनुशासन कायम रखती है, राजनीतिक शिक्षा के साथ सेना में अपने विचार का रोपण करती है, और पार्टी की राजनीतिक प्रणाली के साथ काम करती है। राजनीतिक कमिसार को सीसीपी के राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने, पीएलए पर पार्टी के पूर्ण नियंत्रण को बहाल रखने का काम दिया गया है। चुकी राजनीतिक ताकत सीसीपी के साथ है अतः इसे अवश्य हैं बुनियादी अहाता के रूप में प्रतीत होता है और राष्ट्रपति शी के मातहत पार्टी में आक्रामकता के निर्माण के साथ, राज्य की वैधता उस पार्टी पर निर्भर है। इस संदर्भ में, यह प्रत्यक्ष है कि शक्ति का अत्यधिक केंद्रीकरण राष्ट्रपति के साथ है।
पांचवां, नागरिकता है, चीन के लोग और उनमें परस्पर संबंध तथा जो राज्य का अपने नागरिकों के साथ है। देश को एक साथ जो़ड़े रहना, राष्ट्रीय स्वप्न को साकार करना और परियोजनाओं को ऊर्जस्वित करना अपरिहार्य है। यह अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने उनकी गरीबी को दूर करने के लिए आर्थिक नीतियों का समुचित क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अपरिहार्य है। यह कहा गया है कि पिछले दो दशकों में, चीन के लगभग 700 मिलियन लोग गरीबी रेखा से बाहर उन्नत अवस्था में लाए गए हैं। निचले स्तर पर लगातार बने सामाजिक असंतोष का डर है क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त करने के बावजूद चीनी समाज में बड़ी असमानताएं और अंतर्कलह बनी हुई हैं। बुजुर्ग आबादी, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और जन्म दर में गिरावट अमंगलकारी हैं, जो सीसीपी को लोगों की निजता के अधिकारों को कुचलने और उनके प्रति निर्मम होने के लिए असाधारण रूप से दखलकारी और चौकन्ना होने का लालच देती है।
इसे अवश्य ही सामने लाया जाना चाहिए कि चीन में सभी के सभी शिकारी नहीं हैं। उईगर मुसलमानों, मंगोलों (भीतरी मंगोलिया में) और तिब्बतियों तथा हांगकांग में दमन और मानवाधिकार उल्लंघनों की रिपोर्टे हैं। बेतहाशा भ्रष्टाचार है, कड़ी निगरानी और चीनी समाज में निजता का क्षरण है, दमन है और हांगकांग में दंडात्मक गिरफ्तारियां हैं, कोविड-19 संकट के कुप्रबंधन का चीन के खिलाफ विश्व का आक्षेप है, कंसंट्रेशन कैंप्स और उईगर कैदियों के अंग-भंग करने के मामले हैं। चीन का देसी राजनीतिक चरित्र, एकल पार्टी वाले राज्य का है, जो अपने विपक्ष या असंतुष्ट को साफ कर देता है, जैसा कि हांगकांग में हालिया की गई गिरफ्तारियों से संकेत मिलता है, और यह कसूरवार समझ लिए गए लोगों को दंडित करने में निर्दयी है। इस बिंदु पर जैक मा के खिलाफ कुर्की का मामला भी संभव है, जिन्होंने निजी क्षेत्र में निवेश के आत्मविश्वास को प्रभावित किया है।
प्रतिशोध लेने में विश्वास करने वाली विदेश नीति, प्रभुत्ववादी और मिजाज से विस्तारवादी होने के साथ चीन एक साम्राज्यवादी शक्ति है। यह स्पष्ट है कि चीन गहरी भूराजनीतिक आकांक्षाओं के साथ विश्वव्यापी संरचना परियोजनाओं पर आधारित “सीनोस्फेयर” का प्रयत्नपूर्वक निर्माण कर रहा है। यद्यपि यह सीनोस्फेयर समय पर चीन समय के साथ अपने द्वारा बनाए जा रहे आर्थिक साम्राज्य से कहीं आगे निकल जाएगा।
राष्ट्रीय स्वप्न को उपलब्ध करने के मार्ग मे कोई भी चुनौती इसीलिए अमान्य होगी और उसके विरुद्ध यहां तक की कड़ी ताकत भी इस्तेमाल की जा सकती है।
निष्कर्ष में, यह भविष्यवाणी करना कठिन है कि अगले दशक में चीन कैसा दिखेगा। इस अवधि में पीएलए संघर्ष के तमाम क्षेत्रों-सरजमीनी, आकाश, समुद्र, अंतरिक्ष, साइबर जगत और विद्युत चुंबकीय वातावरण-में अपनी भरपूर क्षमता के निर्माण का लक्ष्य रखेगी। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2018 में वकालत की थी कि चीन अपनी “एक इंच भी जमीन” और संप्रभुता के दावों पर कोई समझौता नहीं करेगा। चीन ने 2020 में घुसपैठ के जरिए भारत को क्या संदेश दिया-बस यही कि दुर्गम वातावरण में विवादित भूमि के लंबे टुकड़े को हासिल कर लेना या शिंजियांग और तिब्बत के बीच आवाजाही के लिए सुरक्षित गलियारा बनाना? जैसा कि जी216 हाईवे पूर्व में आगे जी219 तक है और यह शिंजियांग को तिब्बत से जोड़ता है, अभी निर्माणाधीन है, जो समेकित रूप से काठमांडू को जोड़ेगा। चीन की भूराजनीतिक आकांक्षाएं स्पष्ट रूप से बड़ा मुद्दा है। अतः सीमा के सवाल को खांचों में नहीं बांटा जा सकता और न ही इसे प्राथमिकता से परे रखा जा सकता है, इसके कम समय में ही लहक उठने की संभावना है। चीन की भूराजनीतिक आकांक्षाएं सीमा के पार चली जाती हैं। अनिश्चितताओं और वैश्विक रूप से अंतर्गुम्फित भूराजनीतिक वातावरण की बढ़ती प्रासंगिकता वाले युग में भारत को अगले 15 वर्षों की परिकल्पना करनी है और उसी तरह से अपनी रणनीति बनानी है और इसी के अनुरूप तैयार रहना है। भारत को व्यवहारवादी राजनीति पर ध्यान देना है। उसे बयानबाजी, भावुकता और संवेदनशीलता का परित्याग करना है। किसी भी रणनीति के गलत आकलन से बचने के लिए हमें शुरू से ही बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखकर भविष्य के लिए तैयारी करनी चाहिए, राजनय में स्मार्ट होना चाहिए और चुनौतियों को उसके मौजूदा स्वरूप में ही स्वीकार करना चाहिए।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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