विश्व भर में सूखों की बढ़ती बारंबारता और तीव्रता गहन चिंता का विषय बन रहे हैं। 2018 में पूरी दुनिया के मीडिया में दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केप टाउन के जल रहित (आउट ऑफ वाटर) होने की खबरें छाईं हुईं थी क्योंकि इस शहर को ऐसे सूखे का सामना करना पड़ा जो 311 वर्षों में सबसे भंयकर था और लगातार तीन वर्षों तक बेहद कम बारिश हुई। इसी तरह 2019 में भारत का चेन्नई शहर भी बेहद कम वर्षा के कारण जल रहित हो गया था। पिछले 18 महीनों से ताइवान भी ऐसी ही स्थिति का सामना कर रहा है। यह देश ऐसे सूखे का सामना कर रहा है जो 56 वर्षों में सर्वाधिक भयंकर है।1 देश में हालांकि पहले भी कई सूखे पड़े हैं परंतु इस बार के सूखे की गंभीरता से विशेषज्ञ चिंतित हैं।
साधारण शब्दों में 'सूखा', ऐसी समयावधि के रूप में परिभाषित किया जाता है जब किसी क्षेत्र या इलाके में सामान्य से कम वर्षण होता है। पर्याप्त वर्षण चाहे यह बारिश हो या हिमपात, नहीं होने की स्थिति में मिट्टी की नमी या भूजल एवं जलधाराओं का प्रवाह कम हो सकते हैं, फसलों को नुकसान हो सकता है और सामान्य उपयोग तक के लिए पानी की कमी हो सकती है।"2 जलवायु परिवर्तन इसमें 'खतरे के प्रवर्धक' के रूप में काम करता है। ऐसा तर्क दिया जाता है कि इससे स्थितियां बदतर होती हैं क्योंकि गर्मी जितनी अधिक होती है, वर्षण उतना ही कम होता है जिससे गंभीर सूखे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।
बीबीसी समाचार के अनुसार, ताइवान दुनिया में सर्वाधिक बारिश वाले स्थानों में से एक है। यह उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में उपोष्णकटिबंधीय और दक्षिण में उष्णकटिबंधीय जलवायु का अनुभव करता है।3 यह ऐसा देश है जहां अकसर तुफान आते हैं, विशेष रूप से पतझड़ और गर्मी के मौसम में।4 हालांकि वर्ष 2020 में, देश में कोई भी तूफान जमीनी इलाकों तक नहीं पहुंचा जिससे जलाशयों का स्तर बेहद कम हो गया क्योंकि पुनः भराव के लिए यह जलाशय इन तूफानों पर अत्यधिक निर्भर हैं। यह भी तर्क दिया जाता है कि ताइपे में पतझड़ के मौसम में होने वाली बरसात कम रही है।5 मौसम संबंधी इन तीव्र घटनाओं के कारण मध्य और दक्षिणी ताइवान में इसके जलाशय लगभग खाली हो गए हैं। ग्रीनपीस के अनुसार 12 मार्च 2019 से लेकर 12 मार्च 2021 तक सिंचु काउंटी में बाओशान सेकेंड जलाशय का जलस्तर 96.2 प्रतिशत कम हो गया।6 इसके अतिरिक्त चियाई काउंटी में ज़ेंग-वेन जलाशय दो वर्ष की अवधि में 81.1 प्रतिशत कम हो गया और बताया जाता है कि ताइचुंग में टेकी जलाशय में 73.3 प्रतिशत की कमी आई है।7 मध्य ताइवान में स्थित द्वीप की बेहद प्रसिद्ध सन मून झील भी लगभग सूख गई है और घास के मैदान में बदल गई है।8 मध्य और दक्षिणी ताइवान सूखे से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में शामिल हैं।9 इस सबके परिणामस्वरूप, इस वर्ष अप्रैल में ताइचुंग, चांगहुआ और मियाओली जैसे शहरों में सरकार द्वारा पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। यहां सप्ताह में दो दिन पानी उपलब्ध नहीं था और स्थानीय निवासियों को पानी की आपूर्ति के लिए टैंकर भेजे गए थे।10 इनके अलावा तरणतालों, कार धोने और भाप स्नान पर भी प्रतिबंध था और सरकार ने कंपनियों को आदेश दिया कि वे अपना पानी का उपयोग कम करें।11 इसके अतिरिक्त न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख के अनुसार सूखे का सामना करने के लिए ताइवान सरकार ने 'कुंओं और समुद्री जल अलवणीकरण संयंत्रों से पानी निकाला, जलाशयों के ऊपर कृत्रिम बादल बनाने के लिए जहाज उड़ाकर रसायन छिड़के और न्यूयॉर्क शहर के क्षेत्रफल के बराबर खेती की जमीन में सिंचाई रोक दी’।12 इतने बड़े स्तर के सूखे के व्यापक प्रभाव पड़ते हैं और ताइपे इसका साक्षी है। ऐसे परिदृश्यों में जब पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो समाज को अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि सूखे के कारण ताइवान के कृषि के साथ-साथ पर्यटन उद्योग भी गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। ग्रीनपीस ने रिपोर्ट किया है, पूरे द्वीप की विभिन्न स्थानीय सरकारों ने कृषि क्षेत्र में लाखों डॉलर के नुकसान की सूचना दी है और द्वीप का पर्यटन उद्योग जो महामारी के कारण पहले ही मुश्किलों का सामना कर रहा था, सूखे के कारण और अधिक प्रभावित हुआ है।13
ताइवान का सेमीकंडक्टर उद्योग एक अन्य महत्वपूर्ण और इस सूखे से जुड़े शायद सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक है। यह द्वीप अन्य कंपनियों के लिए चिप बनाने वाले दुनिया के सबसे बड़े निर्माता, ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (टीएसएमसी) का मूल स्थान है जो कि सिंचु और ताइचुंग शहरों में स्थित है। ये दोनों ही शहर सूखे से सर्वाधिक प्रभावित हैं। अटकलें लगाई जा रही थीं कि इस उद्योग पर सूखे का अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि सेमीकंडक्टर निर्माताओं को चिप उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। हालांकि सरकार द्वारा जब पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए गए तो इनका उत्पादन प्रभावित नहीं हुआ और टीएसएमसी कंपनी के अनुसार, 'सूखे से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और कंपनी पानी के उपभोग को कम करना और कुछ फाउंड्रीज के लिए टैंकर ट्रकों से आपूर्ति खरीदना जारी रखेगी’।14 सरकार द्वारा यह भी घोषणा की गई थी कि अगर 1 जून तक द्वीप में बारिश नहीं हुई तो पानी का उपयोग रोकने के लिए कंपनियों पर और अधिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे।15 इसके अलावा, ताइपे को ऊर्जा चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। हालात यह हैं कि मई की शुरुआत में एक सप्ताह की अवधि में ही पूरे द्वीप को दो बड़े ब्लैकआउट्स का सामना करना पड़ा।16 वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक लेख में उल्लेख किया गया था कि बिजली आपूर्तिकर्ता ने चेतावनी दी थी कि 'सूखे और गर्मी की लहर से ऊर्जा की कमी हो रही है’, जिससे मौजूदा ऊर्जा आपूर्ति पर दबाव पड़ रहा है।17
हालांकि मई के अंत में द्वीप में बेहद जरूरी बारिश हुई जिस कारण स्थानीय अधिकारियों ने पानी उपयोग प्रतिबंधों को स्थगित कर दिया। जल प्रतिबंधों के कारण माइक्रोचिप्स का उत्पादन बेशक बाधित नहीं हुआ परंतु देश में वर्षा नहीं होने की स्थिति में ऐसा हो सकता था। फिर इस बात पर चर्चाएं हुई कि ताइवान का सूखा किस तरह माइक्रोचिप्स की वैश्विक आपूर्ति को खतरे में डाल सकता था। बीबीसी न्यूज में प्रकाशित लेख के अनुसार, 'ताइवान का सूखा सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए बड़ा संकट बन सकता था क्योंकि लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकतर उत्पाद सेमीकंडक्टर्स द्वारा संचालित होते हैं। ये सेमीकंडक्टर्स ताइवानी कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं और लगभग 90% सबसे उन्नत माइक्रोचिप्स ताइवान में बनते हैं'।18 लेख में यह भी उल्लेख था कि ताइवान सहित विदेशों में बनाए जा रहे माइक्रोचिप्स पर अपनी अत्यधिक निर्भरता के कारण अमेरिका चिंतित हो गया था।19 हालांकि स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं हुई क्योंकि द्वीप में काफी बारिश हुई है। फिर भी इसका अर्थ यह नहीं है कि अब उत्सव मनाने का समय आ गया है। देश के अर्थव्यवस्था मंत्री वांग मेई-हुआ के अनुसार, सूखा अभी खत्म नहीं हुआ है और सरकार इस पर विचार करेगी कि पानी की कमी को दूर करने के लिए आगे क्या किया जाए।20
केप टाउन, चेन्नई और अब ताइवान के जल संकट जैसी घटनाएं क्या दर्शाती हैं? अत्यधिक सूखे की घटनाएं एक तरफ बार-बार हो रही हैं और दूसरी तरफ लगातार गंभीर भी होती जा रही हैं। तीनों मामलों में आखिरकार बारिश होने से अंततः तबाही टल गई परंतु सूखे की लंबी अवधि ने राज्य और समाज पर अत्यधिक दबाव डाला। एकेडेमिका सिनिका के शोध के अनुसार, सदी के मध्य तक ताइवान में पतझड़ के मौसम में होने वाली बारिश 13.2% तक कम हो जाएगी।21 इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान बढ़ने से ताइवान में आने वाले तूफानों की संख्या घट रही है और सदी के अंत तक ताइवान तक पहुंचने वाले तुफानों की संख्या आधी ही रह सकती है।22 ज्यादातर जब भी ऐसी स्थिति पैदा होती है तो किसी भी सरकार की फौरी प्रतिक्रिया यह होती है कि पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए जाएं। यह एक अल्पकालिक समाधान है। पानी की कमी के इतने सारे मामलों के कारण दुनिया में संकट जैसी स्थिति देखी जा रही है। यह लीक से हटकर सोचने का समय है। जल संसाधनों में विविधता लाने जैसा दीर्घकालिक समाधान अब जरूरत बन गया है। जल का उपयोग बुद्धिमानी से करने के लिए लोगों को शिक्षित करना और वर्षा जल संचयन जैसे जल संरक्षण के तरीकों पर बल देना समय की मांग है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित रखा जाए और पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान को बढ़ने से रोका जाए। ऐसा लगता है कि दुनिया इस दिशा में आगे बढ़ रही है फिर भी महत्व इस बात का है कि इस दिशा में हम किस गति से बढ़ रहे हैं। हमारी वर्तमान गति से ऐसा लगता है कि दुनिया का और अधिक गर्म होना अपरिहार्य है जिससे भयंकर सूखा कभी-कभार होने वाली दुर्लभ घटना के बजाय आम चीज बन जाएगा।
Translated by Shiwanand Dwivedi(Original Article in English)
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