ऐसे समय में जब भारत अदम्य नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है और उनका लापता होना एवं उनका निधन अभी भी रहस्य के आवरण में लिपटा हुआ है, तब यह बिल्कुल सही समय है कि अनुभवी पत्रकार हरिन शाह द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण किताब वर्डिक्ट फ्रॉम फोर्मोसा: गैलेंट एंड ऑफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Verdict from Formosa: Gallant End of Netaji Subhas Chandra Bose) पर फिर से चर्चा की जाए। गौरतलब है कि हरिन शाह ने 1946 में ताइवान की यात्रा की थी जिसे तब फोर्मोसा कहा जाता था; उस दुखद हवाई दुर्घटना जिसके बारे में माना जाता था कि उसमें नेताजी की मृत्यु हो गई थी, यह यात्रा उसके एक वर्ष बाद की गई थी। यह किताब 1956 में प्रकाशित हुई और यह लेख इसी किताब पर आधारित है। किताब के बारे में लेखक का दावा है कि "इसमें फॉर्मोसा में घटनास्थल हुए हादसे से लेकर श्मशान तक मौजूद रहे विभिन्न प्रत्यक्षदर्शी लोगों का विवरण एकत्र किया गया है।" शाह अपनी किताब में लिखते हैं कि वह "एकमात्र ऐसे भारतीय थे जिन्हें युद्ध की समाप्ति के बाद फॉर्मोसा जाने का सौभाग्य मिला" और "वह फोर्मोसा में प्रत्यक्षदर्शी गवाहों से एकत्र किए गए महत्वपूर्ण विवरणों के वाहक हैं जिनकी हवाई दुर्घटना में नेताजी के साथ घायल कर्नल हबीबुर रहमान द्वारा जांच की गई और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे नेताओं ने इसे सही ठहराया" और वह मानते हैं कि "नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ताइपे में वीरतापूर्ण शहादत को गले लगाया"।1
नेताजी के लापता होने और उनके निधन के रहस्य के बारे में हालांकि कई किताबें लिखी गई हैं और सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न जांच आयोगों ने भी अपनी रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं, फिर भी शाह की यह किताब निर्विवाद रूप से उन शुरुआती किताबों में से एक है जो घटना के जानकार और इससे अवगत लोगों के साक्षात्कार पर आधारित है। ताइवान को तब फॉर्मोसा कहा जाता था। किताब स्पष्ट रूप से बताती है कि किस तरह ताइवान के लोग नेताजी को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखते थे।
लेखक पाठकों को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और बाद के एशियाई पुनरुत्थान के ऐतिहासिक युग के सफर में ले जाता है। उस समय च्यांग काई-शेक, आंग सान और डॉ सुकर्णो जैसे नेताजी के साथी उभर रहे एशियाई आकाश पर छाए हुए थे। वह चीन में 'संयुक्त मोर्चा' रणनीतियों का भी संदर्भ देते हैं जब च्यांग काई-शेक के नेतृत्व वाली कुओ-मिन-तांग (केएमटी) पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने एक तरफ चीन को लड़ाकू सरदारों से मुक्त करने के लिए गठबंधन किया हुआ था और वहीं साथ ही साथ केएमटी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी दोनों ही चीन की सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थीं। यदि केएमटी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को चीन में सरकार बनाने से रोकने में सफल हो जाती तो आज विश्व का इतिहास पूरी तरह से अलग होता। अमेरिका द्वारा स्थिति संभालने में नासमझी और जमीनी हालात को सही तरीके से नहीं समझ पाने के कारण भी केएमटी चीन में सत्ता की दौड़ में पीछे रह गई।
1946 की शुरुआत में हरिन शाह नानकिंग में थे। वह चीन में केएमटी सरकार के मुख्यालय में सदानंद द्वारा शुरू की गई भारत समाचार सेवा मुक्त प्रेस का कामकाज देख रहे थे। वहां से उन्होंने विभिन्न विदेशी संवाददाताओं के साथ शंघाई के रास्ते से ताइपे के लिए उड़ान भरी और 30 अगस्त 1946 को वह ताइपे पहुंचे। इन लोगों का ताइपे पहुंचने का मुख्य उद्देश्य यह था कि नेताजी के लापता होने का रहस्य उजागर किया जाए। फोर्मोसा में पहुंचते ही उन्होंने इस बारे में विभिन्न लोगों से बात की। जब उन लोगों ने उनसे पहला प्रश्न "चांद ला बोस" के बारे पूछा तो उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ। इससे भी बढ़कर महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन लोगों ने स्वयं उन्हें बताया कि उनकी मृत्यु ताइपे में हुई थी।2 उन्होंने ताइपे में विभिन्न बुद्धिजीवियों से बात की जो नेताजी के बारे में जानते थे। वह नेताजी के वीरतापूर्ण कार्यों और उनके परम बलिदान पर भारतीय लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में वहां के लोगों द्वारा की गई पूछताछ के बारे में लिखते हैं। फॉर्मोसन की धरती पर अपना पैर रखते ही वह फॉर्मोसन अखबारों से अभिभूत रह गए। फॉर्मोसन अखबारों के उनके कुछ मित्रों ने ताइपे विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु के बारे में उपलब्ध साक्ष्यों को व्यवस्थित में जब उनका सहयोग किया तो वह उनके प्रति आभारी थे। उन्होंने ताइवान रेलवे होटल का दौरा किया जहां नेताजी ठहरे थे। उन्होंने फॉर्मोसा की प्रांतीय असेंबली के अध्यक्ष हुआंग चाओ-चिन से भी मुलाकात की जिन्होंने मामले की कड़ियों तक पहुंचने में उन्हें बेहद उपयोगी मार्गदर्शन दिया।33
शाह ने ताइवान में रहते हुए इस मामले पर अधिकाधिक लोगों के साथ चर्चा की। फॉर्मोसा में वह जिस महत्वपूर्ण व्यक्तित्व से मिले और जिन्होंने फॉर्मोसा में नेताजी के जीवन और समय पर प्रकाश डाला, वह थे ताइपे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो. के.एस. वेई। प्रो. वेई से मिलने के बाद अपनी डायरी में लिखे नोट्स का उद्धरण देते हुए शाह अपनी किताब में उनके हवाले से लिखते हैं, "... फॉर्मोसा के अखवारों में खबरें छपीं ..... कि अगस्त 1945 में उनकी मृत्यु हो गई ... ... लेकिन कोई फोटो नहीं छपी ... वह एक बमवर्षक विमान पर आए थे। वमबर्षक विमान उड़ान भर रहा था। इसकी ईंधन की टंकी लीक हो गई। जापान के किसी अस्पताल में उनका निधन हो गया...वह बेहद बहादुर थे। उनकी मृत्यु के समय मैं ताइहोकू में नहीं था। एयरपोर्ट पर जब भी कोई दुर्घटना होती तो जापानी उसकी घेराबंदी कर देते थे। ऐसे में जापानी सैन्य अधिकारियों के अलावा इसका कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं है ... मैं अपने मित्रों से और अधिक छानबीन का अनुरोध करूंगा ..."44
प्रोफेसर वेई ने अपना वादा निभाया और श्री शाह के कमरे की होटल परिचारिका सुश्री नोलिको के माध्यम से उन्हें जापानी में लिखी एक किताब भेजी। किताब की विषय-वस्तु के पिछले खाली पन्ने पर हाथ से लिखे गए प्रोफेसर के कवरिंग पत्र में कहा गया है, "... कृपया इस किताब का पृष्ठ 107 खोजें। इस पर उनकी मृत्यु का उल्लेख है। इससे आपको कुछ जानकारी मिलेगी। कल मैंने ताइपे विश्वविद्यालय के एक जापानी प्रोफेसर से मुलाकात की जो तब जापानी सैन्य मुख्यालय में दुभाषिया के रूप में कार्यरत थे, जब उन्हें बोस की मृत्यु के बारे में पता चला। इस घटना का सटीक समय 19 अगस्त 1945 को दोपहर 1.30 बजे था।" जापानी किताब का नाम 20 इयर्स ऑफ पेसिकिक हुरिकेन (20 years of Pacific Hurricane) था। इसमें ताइपे में हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु का उल्लेख था।55
इसके बाद श्री शाह ताइपे से प्रकाशित चीनी भाषा के समाचार पत्र शिन शेंग जिरपाओ के संपादक डॉ. ली वान-चू से मिलकर एक अन्य निष्कर्ष पर पहुंचे। डॉ ली वान-चू फॉर्मोसा की प्रांतीय असेंबली के उपाध्यक्ष भी थे। डॉ ली ने ताइपे से प्रकाशित जापानी समाचार पत्र ताइवान निचिनिची शिंबुन (Taiwan NichiNichi Shimbun) जो कि अब बंद हो चुका था, के अपने कार्यालय में फाइलों को व्यक्तिगत रूप से देखा था और उन्हें तब के समाचार पत्र के 22 अगस्त, 1945 के अंक में ताइपे में विमान दुर्घटना के दौरान नेताजी की मृत्यु पर आधिकारिक प्रेस नोट मिला। डॉ ली ने उस समाचार वाले मूल जापानी समाचार पत्र की एक प्रति उपलब्ध करवाई। इसने कहा गया था, “22 तारीख (अगस्त 1945) को दोपहर 2 बजे जापानी गैरिसेन सेना कमांडर के खुफिया ब्यूरो द्वारा प्रेस नोट जारी किया गया जिसमें यह कहा गया कि स्वतंत्र भारत की अंतरिम सरकार के नेता चंद्र बोस 16 अगस्त को विमान द्वारा सिंगापुर से टोक्यो के लिए निकले। वह राजशाही सरकार के साथ चर्चा करने के लिए टोक्यो जा रहा थे। 18 तारीख को 1400 बजे, यह विमान ताइहोकू हवाई क्षेत्र के आसपास दुर्घटना का शिकार हो गया और चंद्र बोस गंभीर रूप से घायल हो गए।66
समाचार में आगे कहा गया, "हालांकि उनका टुंटी (चीनी शब्द जिसका अर्थ है 'साउथ गेट' सैन्य अस्पताल) में इलाज किया गया था परंतु इसका कोई फायदा नहीं हुआ और 19 अगस्त को मध्यरात्रि उनका निधन हो गया।" श्री शाह ने दक्षिण गेट सैन्य अस्पताल का दौरा भी किया जो हवाई दुर्घटना के समय जापान के नियंत्रण में था। अस्पताल के चीनी मुखिया कर्नल वू कुओ हिंग के सहयोग से उनकी मुलाकात नर्स त्सान पी शा से हुई जो जापान पर इसके नियंत्रण के समय से ही इस सैन्य अस्पताल में काम कर रही थी। जैसा कि लेखक ने वर्णित किया है कि जब उसने कहा, "उनकी (नेताजी) मृत्यु यहां हुई। मैं उनके साथ थी।''7 तो उसने मानो उन पर कोई बम गिरा दिया हो। उसने शाह को आगे बताया कि नेताजी को जलने से चोटें आई हैं। वह अस्पताल लाए जाने से कुछ देर पहले ताओकू हवाई अड्डे पर हुए हवाई हादसे में जल गए थे। जब उन्हें अस्पताल लाया गया तब 18 अगस्त, 1945 को दोपहर का समय था। वह बहुत बुरी तरह झुलस गए थे। उन्होंने कहा कि उसी रात 11 बजे उनकी मृत्यु हो गई। शाह ने जापानी लोगों से भी मुलाकात की और महत्वपूर्ण तथ्यों का पता लगाया। ताइपे में विश्वविद्यालय अस्पताल में सर्जरी के तत्कालीन प्रोफेसर डॉ. कुनियो कवैशी ऐसी ही व्यक्ति थे जिनका शाह ने साक्षात्कार किया था। जब नेताजी फॉर्मोसा की अपनी अंतिम यात्रा पर पहुंचे तो डॉ. कुनियो विश्वविद्यालय अस्पताल के निदेशक थे। डॉ. कुनियो का मानना था कि नेताजी की मृत्यु शायद हवाई अड्डे पर ही हो चुकी थी; क्योंकि जलने से लगीं चोटें बेहद गंभीर थी।8
किताब में इतने चौंकाने वाले खुलासे हैं कि इनकी पुष्टि या खंडन मात्र किसी प्रामाणिक और निष्पक्ष जांच से ही किए जा सकते है या कोई यह नहीं जानता कि नेताजी की मृत्यु कहीं बेहद व्यवस्थित तरीके से छिपाया गया रहस्य तो नहीं है।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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