अमेरिका और गठबंधन सेना 20 साल बाद अफगानिस्तान से वापस लौट रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इस निर्णय की घोषणा की गई थी और यह तय किया गया कि 11 सितंबर 2021 तक वापसी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। अमेरिका और इसके सहयोगियों द्वारा किए गए इस दखल में कई कारकों ने अपनी भूमिका निभाई और इनमें सेना सबसे महत्वपूर्ण कारक थी। सेना की व्यापक छत्रछाया के तहत रहते हुए विभिन्न सेवाओं ने भी अपनी भूमिकाएं निभाईं और सेना की जमीनी वापसी के बाद भी इनमें से कुछ सेवाएं अपनी भूमिकाएं निभाती रहेंगी। वायु शक्ति ने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिकी और नाटो/आईएसएएफ बल अपने उद्देश्य पूरे कर सकें और तालिबान एवं अल कायदा के विरुद्ध अफगान राष्ट्रीय बलों की क्षमताओं को बरकरार रखने के लिए यह अभी भी पसंदीदा विकल्प है। सेना की वापसी जैसे-जैसे रफ्तार पकड़ रही है, वैसे-वैसे तालिबान को आगे बढ़ने से रोककर और साथ ही साथ अफगान सरकार का प्रभाव बनाए रखने और प्रभाव बढ़ाने के लिए ताकत का संतुलन एएनएसडीएफ (अफगानिस्तान राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा बल) के पक्ष में बनाए रखने के लिए विभिन्न रणनीतिकार लगातार वायु शक्ति के महत्व पर राय व्यक्त कर रहे हैं। एएएफ (अफगानिस्तान वायु सेना) और एएनडीएसएफ दोनों की मिली-जुली ताकत से किए गए प्रदर्शन से सामने आने वाले रणनीतिक परिणाम भारत और उसके आस-पड़ोस को प्रभावित करेंगे।
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य कार्रवाई ने 12 सितंबर 2001 को गति पकड़ी और 07 अक्तूबर से सैन्य अभियान शुरू हुए। नाटो ने अफगानिस्तान में तालिबान एवं अल कायदा के ठिकानों पर हवाई किए और अमेरिका की इस सैन्य प्रतिक्रिया को आपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम नाम दिया गया था। दिसंबर 2001 तक अभियान के अधिकांश लक्ष्य हासिल कर लिए गए। अफगानिस्तान में अल-कायदा का बुनियादी ढांचा नष्ट कर दिया गया और 11 सितंबर के हमलों के बाद 102 दिनों में ही तालिबान का शासन खत्म हो गया।
अब लगभग 20 साल बाद सहयोगी ताकत के रूप में वायु शक्ति पर फिर से विचार किया जा रहा है परंतु इस बार वायु शक्ति की जरूरत तख्ता पलटने के लिए नहीं बल्कि तख्ता बचाने के लिए है। बड़ा अंतर यह है कि पहले इसे अमेरिकी और सहयोगी सेना के सहयोगी संसाधन के रूप में उपयोग किया जा रहा था। तालिबान और अल कायदा बलों से निपटने के लिए सेना को इधर-उधर ले जाने और मोर्चे पर पहुंचाने के लिए इसका उपयोग किया जाता था परंतु अब अमेरिकी और नाटो सेनाओं की वापसी या पीछे हटने के दौर में अफगानिस्तान वायु सेना तालिबान से लड़ने के लिए अफगानिस्तान राष्ट्रीय सेना का मुख्य सहारा होगी।
अफगानिस्तान वायु सेना
अफगानिस्तान वायु सेना (एएएफ) का मुख्यालय काबुल में है। यहां से 18 टुकड़ियों और तीन विंगों: काबुल एयर विंग; कंधार एयर विंग; और शिंदांद एयर विंग पर कमान और नियंत्रण रखा जाता है और इसमें 8000 कर्मचारी कार्यरत हैं। पिछले 2 वर्षों के साथ-साथ चालू वर्ष में इसका लगभग एक अरब डॉलर का वार्षिक बजट है। 2019 और 2020 के वर्षों में इस बजट का ज्यादातर व्यय देखरेख, प्रशिक्षण और उपकरण एवं वायुयान के लिए किया गया था। विस्तृत विवरण तालिका 1 में दिया गया है।
देखरेख और उपकरण व्यय लागत मुख्यतः ठेकेदारों द्वारा प्रदान की जाने वाली रखरखाव सेवाओं; छोटी-बड़ी मरम्मत और विमान उन्नयन; और तालिका 2 में दर्शाए अनुसार अफगान वायु सेना के सात प्लेटफार्मों पर आधारित स्थानीय जहाजी बेड़े के लिए पुर्जों, आपूर्तियों और प्रशिक्षण उपकरणों की खरीद से संबंधित हैं।
*आईआईएसएस की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार विशेष मिशन विंग (एसएमडब्ल्यू) सहित अतिरिक्त 30, एमआई-17 हेलिकॉप्टर होने का अनुमान है।
**क्षेत्र में इन एमआई-17 (13+30) से जुड़े लगभग 120 पायलट हो सकते हैं। यह पेशेवर अनुभव के आधार पर त्वरित झलक और अनुमानित आंकड़ा है।
***आईआईएसएस ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में 05 एमआई-35 हेलिकॉप्टरों का अनुमान लगाया है।
****पायलटों का अनुमान 12 हो सकता है।
फिक्स्ड विंग और रोटरी विंग दोनों प्लेटफार्मों पर पायलट प्रशिक्षण के लिए काफी समय और धन खर्च करना पड़ता है और इसमें प्रशिक्षण मद के तहत अत्यधिक खर्च का एक बड़ा कारण यह है कि ये प्रशिक्षण अमेरिका या अन्य बाहरी देशों में किए जाते हैं। वर्तमान में सेनाओं की वापसी के संदर्भ में देखा जाए तो काफी बड़ी संख्या में पायलट अभी भी प्रशिक्षण ले रहे हैं या अनुभवहीन हैं। पायलटों की संख्या में कमी को फिलहाल अमेरिकी वायु सेना के प्रशिक्षण कर्मचारियों द्वारा पूरा किया जा रहा है। वापसी पूरी होने पर ये संख्या कम हो जाएगी।
अफगान वायु सेना का तीसरा दिलचस्प पहलू रखरखाव कर्मी हैं जो कि वायुयानों की देखरेख करते हैं और उन्हें उड़ने के लायक बनाए रखते हैं। अफगानिस्तान में सुरक्षा और स्थिरता बढ़ाने संबंधी अमेरिका के रक्षा विभाग की रिपोर्टों और अमेरिका के अग्रणी महानिरीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार देश में रखरखाव में प्रशिक्षित लोग जिनका अफगान वायु सेना द्वारा उपयोग किया जा सकता है, की उपलब्धता बेहद कम है। पिछले वर्ष 2020 में कोविड के कारण भी अफगान वायु सेना का रखरखाव प्रशिक्षण और देखरेख प्रभावित हुए थे। कोविड के परिणामस्वरूप जमीन पर संरक्षक ठेकेदारों की मौजूदगी में कमी आई थी। तालिका 2 के अनुसार वर्तमान में अधिकांश प्लेटफार्मों की देखरेख अफगान वायु सेना के आम कार्मिकों को प्रशिक्षित करने के लिए और देश में हवाई संचालन को बरकरार रखने के लिए अमेरिका और नाटो देशों द्वारा किराए पर रखे गए ठेकेदारों द्वारा की जाती है। रखरखाव के अपेक्षित स्तर काफी व्यापक हैं क्योंकि पश्चिमी वायु सेनाएं 3 स्तरीय प्रणाली का पालन करती है जिसमें तीसरे स्तर पर उड़ान बेड़ा सबसे कम होता है और यह पहले स्तर तक बढ़ता जाता है जो कि सबसे विस्तृत होता है। एमआई-17 के अलावा अफगान वायु सेना के पास किसी भी अन्य बेड़े में रखरखाव की पर्याप्त क्षमता नहीं है। एमआई-17 में भी बड़ी खराबी आने पर वायुयान को निश्चित समयावधि के बाद यूरोप भेजा जाता है। ऐसी बड़ी खराबी 3-4 वर्ष में एकाध बार आ जाती है।
औसत स्तर की दक्षता प्राप्त करने के लिए रखरखाव के शुरुआती स्तर का प्रशिक्षण हासिल करने के लिए औसतन 18 महीने लगते हैं जबकि उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के लिए साढ़े सात साल का समय लगता है। "जनवरी 2021 तक अफगान वायु सेना अपेक्षित विमान रखरखाव विशिष्टताओं और अपेक्षित प्रमाणन स्तरों में प्रशिक्षित एवं प्रमाणित कार्मिकों को नियुक्त करते हुए अपने रखरखाव संबंधी मात्र आधे पद ही भर पाई है।" इसमें शेष सहयोग टीएएसी (प्रशिक्षण, परामर्श तथा सहायक कमान)-वायु सेना के मार्गदर्शन में ठेकेदार द्वारा प्रदान किया जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट लॉजिस्टिक्स सहायता (सीएलएस) श्रृंखला देखरेख, प्रशिक्षण और पुर्जों की पूर्ति का सूत्र है। अमेरिका और नाटो द्वारा अपनी भीतरी क्षमता के बाहर एएएफ के अनुरक्षण के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
एएएफ स्वतंत्र रूप से कई प्रकार के मिशन पूरे करती है जैसे रसद पहुंचाना, पुन: आपूर्ति, मानवीय राहत प्रयास, मानव अवशेषों की वापसी, चिकित्सकीय सहायता के लिए परिवहन (एमईडीईवीएसी), हताहत लोगों को निकालना (सीएएसईवीएसी), गैर-पारंपरिक आईएसआर, हवाई प्रतिरोध, दुश्मन के ठिकानों पर नजदीकी हवाई हमले, सहायता कवर देना और हवाई सहायता मिशन। अमेरिकी सेना की वापसी के परिणामस्वरूप तालिबान के हमले पहले से अधिक भयावह हो गए हैं और इसके साथ ही अफगान वायु सेना की कार्रवाइयां भी बढ़ गई हैं जिससे रखरखाव गतिविधियों की जरूरत भी बढ़ गई है।
सेनाओं की वापसी पर अमेरिकी-तालिबान समझौते में कहा गया है कि सेनाओं के साथ-साथ सभी सेवा प्रदाता ठेकेदारों को भी वापस जाना होगा। इससे पायलटों और रखरखाव दोनों के लिए प्रशिक्षित जन शक्ति की उपलब्धता के साथ-साथ इस बात पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है कि एएएफ बेड़ा तालिबान के विरुद्ध केंद्रित अपने रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में जमीनी सैनिकों का सहयोग करने के लिए कार्रवाई योग्य होने में कितनी देर में सक्षम हो पाएगा। ये सभी घटनाएं इस संघर्ष से जुड़े पक्षों के बारे में क्या बताती हैं या उन्हें किस तरह प्रभावित करती हैं?
अंतदृष्टियां
सबसे महत्वपूर्ण सबक या निष्कर्ष यह है कि अनुकूल परिणाम पाने के लिए सक्रिय लड़ाइयों में वायु शक्ति में निरंतर निवेश की जरूरत होती है। अमेरिका और नाटो ने स्थानीय क्षमताओं पर आधारित एएएफ के लिए 2015 के आसपास प्रक्रिया शुरू की परंतु पायलटों की दक्षता का स्तर बनाने और रखरखाव कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने में समय लगता है। यदि अफगान वायु सेना का ही मामला देखा जाए तो शुरूआत में पायलटों ने उड़ान शुरू करने से लेकर सैन्य कार्रवाइयों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है परंतु ज्यादातर लोगों द्वारा यह काम छोड़ने के कारण अफगान वायु सेना ज्यादा लंबे समय तक प्रभावी नहीं रह सकती। इस तरह प्रभावी वायु सेना बरकरार रखने के लिए धन, समय और परामर्श का निवेश महत्वपूर्ण है।
अफगान वायु सेना बिल्कुल पेशेवर सेना है। अमेरिका के साथ-साथ नाटो देशों ने भी यह बात स्वीकार की है परंतु संसाधनों की चुनौतियां इसकी कार्य क्षमता को प्रभावित करती रहेंगी। इससे तालिबान को अपनी कार्रवाइयों की गति बढ़ाने की क्षमता बनाने का अवसर मिल सकता है। इसका विकल्प यह है कि अमेरिकी सेना अरब सागर में स्थित अपने जंगी बेड़ों से मूलभूत वायु शक्ति उपलब्ध करवाए या मध्य पूर्व या इसके आसपास के देशों से बाहरी वायु सहायता उपलब्ध करवाए। जंगी बेड़े या मध्य पूर्व स्थित किसी बेस से हवाई सहायता देने में मिशन से जुड़ी लागत और समय काफी ज्यादा होंगे और जहां कम समय में हमले की जरूरत हो, वहां ऐसा करना प्रभावी नहीं होगा (हमला करने से पहले कम से कम 7 घंटे की पूर्व तैयारी अपेक्षित है)।
भारतीय परिप्रेक्ष्य से अगली चिंता यह है कि अमेरिका कुछ हवाई संपत्तियों को गुप्त रूप से या खुले तौर पर पड़ोसी देशों में, विशेष रूप से पाकिस्तान में स्थापित कर रहा है। इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। पाकिस्तान की मौजूदा घरेलू स्थिति और अमेरिकी ड्रोन बलों के पिछले इतिहास के कारण और अफगानिस्तान में जमीनी स्थिति बदलने के लिए भारी बलों की जरूरत के कारण हालांकि ऐसी संभावना दूर की कौड़ी लगती है परंतु छिटपुट खुफिया जानकारी इकट्ठी करने की क्षमताओं के लिए गुप्त रूप से ऐसा किया जा सकता है। सेनाओं की वापसी के दौरान जमीन पर घटने वाली इन घटनाओं पर दृष्टि रखते हुए भारत के लिए यह अपेक्षित है कि यह घटनाओं की व्याख्या के आधार पर सहयोग या हस्तक्षेप या शमन की रणनीतियों के लिए योजना बनाए।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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