यूरोपीयन यूनियन कांउसिल ने 14 अगस्त को एक वक्तव्य जारी कर ‘ग्रीस और साइप्रस के साथ अपनी पूरी एकजुटता’ को दोहराया है।1 इस वक्तव्य में जोर देते हुए कहा गया है कि ‘यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों के सम्प्रभु अधिकारों का अवश्य ही आदर किया जाए।’ 2 साथ ही, वक्तव्य में इस बात पर बल दिया गया है कि ‘तुर्की को तत्काल जंग रोक देनी चाहिए।’3 ईयू का वक्तव्य तुर्की के लिए अपघात की तरह है, जो भूमध्यसागर में अपने पांव फैलाना चाहता था। इसमें लीबिया में समय से पहले हस्तक्षेप किया जाना भी शामिल है। इसके बाद उस क्षेत्र में तेल निकालने वाले अपने जहाज को एक नौसैनिक पोत के साथ भेज दिया, जो सिप्रीएट (साइप्रस) के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईए) के अधीन आता है।
तुर्की को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बाइडेन से फटकार मिली है। उन्होंने एर्दोगन की इस कारगुजारी के लिए एक ‘‘स्वेच्छाचारी शासक’’ कहा है।4 बाइडेन ने तो यहां तक कहा है कि अमेरिका को चाहिए कि वह वहां के ‘विपक्षी नेतृत्व का समर्थन करे।’5 उन्होंने कहा कि वाशिंगटन को तुर्की के विपक्षी नेताओं का हौसलअफजाई करना चाहिए ताकि ‘वह मुकाबले के काबिल हो सकें और एर्दोगन को पछाड़ सकें। तख्तापलट के जरिये नहीं बल्कि चुनावी प्रक्रिया के जरिये।’6 तुर्की ने बाइडेन की इस टिप्पणी की र्भत्सना की है। तुर्की राष्ट्रपति के एक प्रवक्ता ने बाइडेन को ‘पूरा अज्ञानी, अहंकारी और पाखंडी’ करार दिया है।’7
यूरोपीय यूनियन कौंसिल के शुक्रवार को एक वक्तव्य जारी किया, जो ग्रीक के एक उस अनुरोध की प्रतिक्रिया में था, जिसमें इस संकट पर विचार के लिए ईयू विदेश मंत्रियों की एक आपात बैठक बुलाने की बात कही गई थी। इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने भी ट्वीट कर कहा कि ‘‘पूर्वी भूमध्यसागर में स्थिति भयानक बनी हुई है। तुर्की का तेल निकालने के एकतरफा फैसले ने तनाव को लहका दिया है।’ इसके पहले, फ्रांस ने पूर्वी भूमध्यसागर में एक युद्धपोत भेजने और दो राफेल जेट को तैनात करने का फैसला किया था। इस पर तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा था, ‘भूमध्यसागर में तनाव में इजाफा करने के लिए तुर्की नहीं बल्कि ग्रीक का मिजाज जिम्मेदार है, जो तुर्की और नार्दन साइप्रस तुर्की रिपब्लिक को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहा है।’’8
तुर्की और फ्रांस के रिश्ते उस वक्त से तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं, जब तुर्की ने अपने सलाहकारों और भाड़े के सीरियाई लड़ाकुओं को लीबिया भेजने का फैसला किया था। राष्ट्रपति मैक्रोन ने लीबिया में गृह-युद्ध भड़काने के लिए तुर्की की ‘‘आपराधिक जवाबदेही’’ करार दिया था।9 लीविया में तुर्की की मौजूदगी में समुद्र-आधारित वायु रक्षा पण्राली भी शामिल है। वहीं दूसरी ओर, ईयू ने युद्धरत पक्ष लीबिया में हथियारों की आपूर्ति रोकने के संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को लागू करने के लिए नौसैनिक अभियान आइरीन शुरू किया है। जून में तो तुर्की की नौसेना का सामना फ्रांस के युद्धपोत से हो गया था, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा हथियार आपूर्ति पर रोक को लागू करने के लिए वहां तैनात है।’’10 यह स्थिति तब है, जब तुर्की ने लीबिया सरकार के साथ अपने विशिष्ट आर्थिक जोन्स (ईईजेड) की मान्यता देते हुए एक द्विपक्षीय समझौते पर दस्तखत किया था। ऐसे में दूसरी क्षेत्रीय ताकतों पर ताजा-ताजा दावे ने इस गड़प कर लिया है। इससे पूर्वी भूमध्यसागर के बेसिन से गैस का दोहन कर पाइपलाइन के जरिये यूरोपीय यूनियन के देशों में ले जाने की परियोजना भी ठप पड़ सकती है। इसने उसे मिस्र और इस्राइल के विरुद्ध कर दिया है। लीबिया में तुर्की की मौजदूगी ने उसे मिस्र के साथ झगड़े की झड़ जमा दी है। मिस्र की संसद ने पहले ही एक फैसला ले रखा है कि अगर तुर्की ने लीबिया जीएनए (गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकोर्ड) सेना का पीछा करती हुई सित्रे से आगे बढ़ी तो मिस्र सैन्य हस्तक्षेप करेगा। मिस्र ने उत्तर में सित्रे में तेल के मेहराब से लेकर दक्षिण में अल जुफरा तक एक रेड-लाइन खींच दी है।
संयुक्त अरब अमीरात के इस्राइल के साथ राजनयिक संबंध कायम करने के उसके हालिया फैसले के बाद तुर्की ने एक बयान जारी कर यूएई के इस फैसले को ‘‘पाखंडी रवैया’’ करार दिया और धमकी दी कि वह उसके साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लेगा। तुर्की का ईराक के साथ भी रिश्ता खराब रहा है। ईराक ने 11 अगस्त को तुर्की ड्रोन के हमले में अपने दो सीमा कमांडरों के मारे जाने के विरोध में तुर्की रक्षा मंत्री के अपने यहां दौरे को रद्द कर दिया था।11 ईराक कुर्दीस क्षेत्र में तुर्की की सैन्य मौजूदगी को अपनी सम्प्रभुता का उल्लंघन मानता है।12
सवाल है कि तुर्की ने यह असाधारण सक्रियता क्यों दिखाई है, जिसने उसे अपने अरब पड़ोसियों और ईयू दोनों से अलग-थलग कर दिया है। एर्दोगन ने अपने देश में कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष विरासत में भी फेर-बदल कर दिया है। यह उनकी विदेश नीति को बदलने की कोशिश नहीं हो रही है। अतातुर्क ने देश के अंदर विकास पर ध्यान लगाने तथा उसे अत्याधुनिक स्वरूप देना तय किया था। हालांकि एर्दोगन को ऑटोमन के गौरव को पुनरुज्जीवित करने की उनकी महत्त्वाकांक्षा को श्रेय दिया जाता है। इस कोशिश ने अरब जगत में तुर्की दखल की यादें ताजा करने का जोखिम मोल लिया है। ऑटोमन साम्राज्य का शिया ईरान के साथ सदियों से बुरा रिश्ता रहा है।
हाल के वर्षो में, एर्दोगन की कमान में तुर्की को अरब देशों के बीच मतभेदों ने जहां कहीं मौका दिया है, वहां उसने अपनी टांग अड़ाने की कोशिश की है। तुर्की ने सऊदी और कतर के बीच उत्पन् गतिरोध में दखल दिया था। अब वह लीबिया के साथ भिड़ा हुआ है। इसका एक सैद्धांतिक आयाम भी है। तुर्की मुस्लिम भाईचारे का समर्थन करता है, जो अरब के ज्यादतर देशों और खाड़ी साम्राज्यों में अभिशप्त रहा था। अगर विचारधारा दूसरे के क्षेत्रों में कार्रवाइयों का एकमात्र औचित्य नहीं हो तो ऐसा प्रतीत होता है कि तुर्की की नीति बैकफायर कर जाती।
एर्दोगन की साहसिकता ने उस समय जोर पकड़ा है, जब तुर्की लिरा गोते लगा रही है। वॉल स्ट्रीट जनरल के मुताबिक डॉलर के मुकाबले तुर्की की मुद्रा लिरा की दर में 19 फीसद और यूरो के बनिस्बत 20 फीसद की गिरावट आई है।13 ईयू के लिए तुर्की छठा सबसे बड़ा आयातक देश है। लिहाजा, अखबार का यह अनुमान है कि तुर्की अर्थव्यवस्था की कमजोरी यूरो की विकास दर पर भी बट्टा लगा सकती है। तुर्की के सेंट्रल बैंक ने डॉलर बेच कर अपनी मुद्रा में जान डालने की कोशिश की है। लेकिन विदेशी मुद्रा के घटते भंडार इसके विकल्प को सीमित कर देते हैं। 24 जुलाई से उसकी मुद्रा में डॉलर के मुकाबले 6.6 फीसद की कमी आई है।14 आर्थिक खुफिया ईकाई (ईआइयू) की रिपोर्ट के मुताबिक जून के अंत तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भंडार रह गया था। कतर के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट के चलते मई के बाद से उसके भंडार में मामूली बढ़त हुई थी।15 ईआइयू को यह उम्मीद है कि 2020 तक उसकी अर्थव्यवस्था 5.2 फीसद तक सिकुड़ जाएगी। तुर्की का पर्यटन क्षेत्र, जिसने पिछले साल 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई की थी, वह कोविड-19 महामारी से बुरी तरह हिल गया है। मई महीने में साल दर साल लगभग 93% फीसद पर्यटक आते रहे हैं।16
एर्दोगन की एकेपी संसद में अपना बहुमत गंवा चुकी है। पिछले वर्ष वह इस्ताम्बुल में मेयर का चुनाव हार गई, जिसकी अहमियत की एर्दोगन ने शेखी बघारी थी। यह गौरतलब है कि मध्यपूर्व तुर्की एक सर्वाधिक औद्योगिक देश है। इसने अपने नेता कमाल पाशा के नेतृत्व में सफलतापूर्वक अपना कायाकल्प किया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिम का सहयोगी बन कर काफी लाभान्वित हुआ था। इसमें उसे नाटो की सदस्यता मिली और ईयू के सदस्य देशों तक व्यापार करने में वरीयता दी गई। हालांकि ईयू की सदस्यता तो तुर्की नहीं पा सका लेकिन उसका महत्त्वपूर्ण व्यापार-साझीदार अवश्य़ बना रहा। अपने अरब पड़ोसी देशों के साथ गड़बड़ करने का फायदा उठाते हुए उसने तुर्की को कतर और लीबिया से भिड़ा दिया है,जिसके साथ तुर्की की सीमा भी नहीं लगती। उसने ईयू के खिलाफ सीरियाई विस्थापितों का भी कार्ड खेला है। अमेरिका के लिए तुर्की एक दिक्कत पैदा करने वाला सहयोगी रहा है। वह सीरिया और लीबिया के सवाल पर रूस से भी जा भिड़ा है। अब तो भूमध्यसागर में सीधी लड़ाई में उतर कर उसने यूरोपीयन यूनियन से भी तकरार मोल ली है।
Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://thearabweekly.com/sites/default/files/inline-images/62-270-map-turkey-Greece.jpg
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