गुरुवार को भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाकात के बाद पांच बिंदुओं का एक साझा बयान जारी किया गया है। यह बैठक काफी अहम थी, क्योंकि इसका मकसद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूर्वी लद्दाख में चरम पर पहुंचे तनाव को कम करना था। मॉस्को रवाना होने से पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक कार्यक्रम में कहा भी था कि भारत और चीन का सीमा-विवाद काफी तनावपूर्ण है, जिसे सुलझाने के लिए गंभीर राजनीतिक विमर्श की दरकार है। तो क्या इस बातचीत से तनाव घटाया जा सकेगा? इसका जवाब खोजने के लिए उन पांच बिंदुओं की चर्चा जरूरी है।
पहला बिंदु बताता है कि दोनों पक्षों को अपने मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिए, जिस पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अतीत में रजामंदी दिखाई थी। यह बात सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है, लेकिन सच यही है कि चीन के मुखर और आक्रामक व्यवहार के कारण ही मतभेद आज विवाद बन गए हैं। ऐसे में, इस बात की क्या गारंटी है कि चीन भविष्य में अपना व्यवहार बदल ही लेगा?
दूसरे बिंदु के मुताबिक, द्विपक्षीय बातचीत जारी रखी जाएगी, सीमा पर तनाव कम किया जाएगा, एक-दूसरे देशों के सैनिकों की उचित दूरी बनाई जाएगी आदि। मगर यह सब भी इतना आसान नहीं दिख रहा है। खासतौर से सैनिकों की उचित दूरी बनाने पर भले ही चीन ने सहमति जताई हो, लेकिन उसकी फौज इसका उल्लंघन करती रही है। साफ है, चीन को अपनी कथनी और करनी का फर्क मिटाना होगा, तभी इस सहमति का कोई अर्थ निकल सकेगा। तीसरा बिंदु है, पुराने प्रोटोकॉल और समझौतों का पालन सुनिश्चित करना। मगर नियम-कायदों का उल्लंघन तो चीन का पुराना शगल है। पिछले पांच वर्षों में ही न जाने कितनी बार उसने आपसी विश्वास तोड़े हैं। वह वास्तविक नियंत्रण रेखा को एकतरफा बदलना चाहता है।
चौथे बिंदु के अनुसार, दोनों देश ‘स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव मैकेनिज्म’ के जरिए बातचीत करेंगे। इसके अलावा, सीमा से जुड़े सवालों के हल के लिए कंसल्टेशन व को-ऑर्डिनेशन पर वर्किंग मैकेनिज्म के जरिए भी बातचीत की जाएगी। इस तरह की वार्ताएं पहले भी होती रही हैं। स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव मैकेनिज्म के तहत अपने यहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) और चीन के स्टेट काउंसलर की कई बैठकें हो चुकी हैं। अच्छी बात है कि इसे आगे भी जारी रखने पर दोनों पक्ष राजी हुए हैं। मगर इसमें भी एक पेच यह है कि जब तक दोनों पक्षों में सीमा-निर्धारण पर निर्णायक सहमति नहीं बन जाती, सीमा संबंधी सवालों पर इस तरह की व्यवस्था बहुत कारगर साबित नहीं होगी।
और आखिरी बिंदु, आपसी विश्वास बहाली के नए उपाय तलाशना। यह एक कठिन डगर है। पूर्व में विश्वास बहाली के तमाम रास्ते अपनाए गए, जिनका चीन उल्लंघन करता रहा है। विश्वास बहाली के नए उपायों से हम पर अधिक पाबंदी लगाई जा सकती है और रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण जिन पहाड़ियों पर हमने कब्जा किया है, उनको छोड़़ने का दबाव बनाया जा सकता है। यहां यह देखना भी लाजिमी है कि चीन की मंशा साझा सहमति पत्र जारी होने के बाद उसके द्वारा जारी बयान से जाहिर होती है। इस बयान में कहा गया है कि उसने भारत को साफ-साफ कहा है कि सीमा पर उकसावे वाली कार्रवाइयां उसे बंद कर देनी चाहिए।
ऐसे में, यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह सहमति लंबे समय तक प्रभावी रहेगी? अच्छी बात है कि मई में सीमा पर तनातनी बढ़ने के बाद से दोनों देशों ने पहली बार कोई साझा बयान जारी किया है। इससे पहले सैन्य व राजनीतिक स्तर पर हुई तमाम बैठकों में अलग-अलग बयान ही जारी किए गए थे और कमोबेश एक-दूसरे पर आरोप उछाले गए थे। इस बार आरोप-प्रत्यारोप नहीं, बल्कि एक-दूसरे को समझने की बात कही गई है। संभव है, कुछ दिनों तक इसका जमीनी असर दिखे। लेकिन यह शांति लंबे दिनों तक शायद ही बनी रहेगी।
दरअसल, कई ऐसे अहम सवाल हैं, जिनका जवाब यह साझा बयान नहीं देता। जैसे, फौज की उचित दूरी किस तरह कायम रखी जाएगी, क्योंकि जब पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब बढ़ी, तभी हमने भी मजबूरन अपने हिस्से की उन पहाड़ियों पर कब्जा किया, जो सामरिक नजरिए से महत्वपूर्ण हैं और पूर्व के समझौतों के तहत कोई देश उन पर अपने सैनिक तैनात नहीं कर सकता है। इसी तरह, अतिरिक्त फौज कब, कैसे और कितनी दूर वापस लौटेगी? इसका जिक्र भी साझा बयान में नहीं है। सवाल यह भी है कि जिन पहाड़ियों पर भारत ने फिर से कब्जा हासिल कर लिया है, क्या उन्हें छोड़ दिया जाएगा? साफ है, आगे की बातचीत में काफी माथापच्ची होने वाली है और साझा सहमति का बने रहना मुश्किल हो सकता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की जमीनी तस्वीर अब काफी बदल चुकी है। इसलिए हमें सीमांकन के लिए चीन पर दबाव बनाना चाहिए। उसके अड़ियल रुख के कारण ही अब तक दोनों देश भौगोलिक सीमा तय नहीं कर सके हैं। फौज सीमा विवाद का हल नहीं निकाल सकती। ‘स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव मैकेनिज्म’ के जरिए जो बातचीत होगी, उसमें हमारा इसी पर जोर रहना चाहिए।
जाहिर है, सीमा पर स्थिति और भी बिगड़ सकती है। हम चीन का भरोसा नहीं कर सकते। साझा बयान से भ्रमित होकर हमें यह सोचकर शांत नहीं हो जाना चाहिए कि समस्याओं का अब अंत हो गया है। चीन ने करीब चार डिवीजन के बराबर सैनिक सीमा पर भेज रखे हैं। वे बैरकों में जल्दी नहीं लौटने वाले। इसी तरह, भारत ने भी लगभग 40,000 सैनिकों को वहां तैनात किया है। ये सर्दियों में भी वहां रहने की तैयारी कर रहे हैं, जब तापमान माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। चीन की धोखेबाजी को देखते हुए हम अपनी फौज वापस बुला भी नहीं सकते। साफ है कि हमें लंबी लड़ाई के लिए खुद को तैयार करना होगा।
(This article appeared in Live Hindustan on 12ndSeptember, 2020)
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