वेनेज़ुएला- संपन्न देश की निर्धनता
Amb JK Tripathi

लातीनी अमेरिकी देश वेनेज़ुएला इन दिनों कई आपदाओं से जूझ रहा है। अभूतपूर्व मुद्रास्फीति, आर्थिक विपन्नता और अब कोरोना महामारी से ग्रस्त इस देश की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वेनेज़ुएला अभी भी दुनिया के सबसे बड़े अनुमानित खनिज तेल भण्डार का स्वामी है। ओपेक (O P E C) की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के पांच सर्वाधिक तेल भंडार रखने वाले देशों में वेनेज़ुएला 302 अरब बैरेल कच्चे तेल के प्रामाणिक भंडार के साथ सऊदी अरब (269 अरब बैरेल) को पीछे छोड़ चुका है। कुकिंग गैस के मामले में भी स्टैटिस्टिका के अनुसार वेनेज़ुएला विश्व में पांचवें स्थान पर है। क्षेत्रफल में राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के सम्मिलित भूभाग के बराबर इस देश की जनसंख्या तेलंगाना की जनसंख्या से भी कम है। तेल और गैस के अलावा वेनेज़ुएला में बॉक्साइट और कोल्टन के बड़े खनिज भंडार हैं। जहां बॉक्साइट अलुमुनियम का एक अयस्क है, कोल्टन (नीला सोना के नाम से भी प्रसिद्ध ) से टैंटलम नामक बहुमूल्य धातु निकलती है जिसका उपयोग मोबाइल फ़ोन के अतिरिक्त बहुत प्रमुख रूप से कैपेसिटर्स में होता है जो आधुनिक बड़े हथियार बनाने के लिए एक अनिवार्य धातु है।

2009 में वेनेज़ुएला के तत्कालीन राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ की एक घोषणा के अनुसार वेनेज़ुएला के पास लगभग 100 अरब डॉलर के मूल्य की कोल्टन की खनिज सम्पदा है जो विश्व में सबसे ज़्यादा है।ध्यान रहे कि टैंटलम हीरे से भी अधिक कीमती होता है। वेनेज़ुएला चावल,कॉफ़ी,जूट,मकई जैसी फसलों और फलों के लिए भी जाना जाता है। मनोरम समुद्र तटों और विश्व सुंदरियों के लिए प्रख्यात (वेनेज़ुएला ने अब तक कुल 23 अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीती हैं) इस देश में साक्षरता 97% से ऊपर और औसत जीवन अवधि 72 वर्ष है। यह बड़ा समीचीन प्रश्न है कि आखिर एक बहुत सफल और उन्नत देश के लिए अनिवार्य सभी अवयवों के बावजूद वेनेज़ुएला के लोग इतने ग़रीब क्यों हैं?

वेनेज़ुएला की इस त्रासदी के कई कारण हैं। सर्वप्रमुख कारण तो है काफी समय से सरकारों की नीतियों से फ़ैली कुव्यवस्था। 1970 के दशक में अरब- इजराइल युद्ध के कारण हाइड्रो-कार्बन उत्पादों में अभूतपूर्व तेजी आई और कच्चे पेट्रोल का दाम 1974 में 3.71 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ कर 1979 में 10.30 डॉलर और 1981 में कुछ समय के लिए 29 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा। इस उछाल से वेनेज़ुएला की आय तीन गुना बढ़ गयी। छप्पर फाड़ कर आई हुई इस लक्ष्मी का उपयोग कुछ तो इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए किया गया लेकिन उद्योग धंधों के समुचित विकास पर बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया गया। पेट्रोलियम सेक्टर को सरकारी क्षेत्र में लाने के बावजूद आर्थिक असमानता बढ़ती गयी। तेल से होने वाली इस आय का खुल कर दुरूपयोग किया गया। देशव्यापी भ्रष्टाचार ने वेनेज़ुएला की राष्ट्रीय सम्पदा को केवल भ्रष्ट नेताओं और कर्मचारियों की जेबों में डाल दिया, फलतः जब कच्चे तेल के दाम गिरने लगे तो तेल निर्यात पर आधारित यह अर्थव्यवस्था, जिसके कुल निर्यात का 80% और सकल आय का आधा हिस्सा तेल के ही कारण था, बुरी तरह चरमरा गई।

कंगाली में आटा तब गीला हुआ जब वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ में वेनेज़ुएला की क्यूबा परस्त कम्यूनिस्ट सरकार को अमेरिकी प्रशासन ने आर्थिक प्रतिबन्धों में जकड़ दिया। देश में तेल पर एकाधिकार वाली कंपनी पे दे वे सा (पेट्रोलेओ दे वेनेज़ुएला एस ए) में जहाँ ऐय्याशी का यह आलम था कि बड़े अधिकारी मौज़ में आ कर सिर्फ डिनर के लिए पेरिस उड़ जाते थे और कर्मचारी फ्लोरिडा में सप्ताहांत की खरीदारी करते थे वह भी दर्ज़न के भाव जिसके कारण वे फ्लोरिडा में " दा मे दोसे" ( मुझे एक दर्ज़न दे दो) के उपनाम से प्रसिद्ध थे, उसी के एक तिहाई से अधिक कर्मचारियों को राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ ने कलम के एक झटके से बेरोज़गार कर दिया । मार्क्स के शब्दों में कहें तो यह पूंजीवाद के खिलाफ एक प्रतिक्रिया थी जो दुर्भाग्यवश देश के लिए बड़ी घातक सिद्ध हुई। तेल का निर्यात लगभग ठप हो जाने से विदेशी मुद्रा का तीव्र क्षरण हुआ, फलतः मुद्रा स्फीति बढ़ी जिसने भयानक बेरोज़गारी को जन्म दिया।

जैसे जैसे अमेरिकी शिकंजा मज़बूत हुआ, वेनेज़ुएला की सरकार का अधिनायकवादी रवैया तेज़ होता गया। 2018 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भारी धांधली के बीच निकोलस मादुरो पुनः राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किए गए जिसे अमान्य करते हुए विपक्ष ने संविधान के अनुसार नेशनल असेंबली के स्पीकर जुआन गाइदो को विजेता बताया। प्रमुख पश्चिमी देशों सहित पचास से भी अधिक देशों ने गाइदो को मान्यता दे दी। लेकिन मादुरो की सरकार फिर बनी और गाइदो को स्पीकर के पद से भी हटा दिया गया। इस संवैधानिक संदेह,अस्थिरता और नीतिगत खामियों के चलते वेनेज़ुएला अभूतपूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहा है। रॉयटर द्वारा इस वर्ष 9 मई को प्रकाशित एक खबर में वेनेज़ुएला के केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया है कि पिछले चार वर्षों में वेनेज़ुएला में मुद्रा स्फीति की दर 5 करोड़ प्रतिशत से भी अधिक रही और देश ने तीन बार स्थानीय मुद्रा में भारी अवमूल्यन किया। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्द्य कार्यक्रम (UNWFP) की इसी वर्ष फरवरी की रिपोर्ट के मुताबिक वेनेज़ुएला के लगभग 59% घर सामान्य खाद्द्य सामग्री खरीदने में असमर्थ हैं जबकि 65% किसी भी प्रकार की स्वास्थ्यकर सामग्री जैसे साबुन,सैनिटाइज़र,नैपकिन आदि नहीं खरीद सकते।

एक अनुमान के अनुसार जहां काम करने लायक आबादी का तक़रीबन आधा भाग बेरोज़गार है,30% से अधिक आबादी कोरोना से बचने और जीवन यापन की तलाश में देश छोड़ कर पड़ोसी मुल्कों में जा चुकी है और उनकी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा रही है। स्थिति इतनी भयावह है कि ख़बरों के मुताबिक एक समय के भोजन के लिए औरतें और छोटे बच्चे अपना यौन शोषण करवाने पर मज़बूर हैं। देश में व्यप्त खद्यान्नों और आवश्यक वस्तुओं का अभाव, बिजली पानी की आपूर्ति में भारी कटौती, आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता और बढ़ती बेरोज़गारी के चलते लोग बीमारी और भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। कोरोना से लड़ाई के नाम पर वेनेज़ुएला की सरकार का बैंक ऑफ़ इंग्लॅण्ड में जमा एक अरब पौंड के सोने को निकलने का प्रयास भी इसी जुलाई में ब्रिटश न्यायलय ने यह कह कर खारिज कर दिया कि उस पर वेनेज़ुएला की मान्यताप्राप्त सरकार का ही हक़ है और मादुरो की सरकार को यूनाइटेड किंगडम की मान्यता नहीं है।

सवाल यह है कि इस त्रासदी का, इस विडंबना का समाधान क्या है? पूंजीवादी अमेरिका और साम्यवादी वेनेज़ुएला के हुक्मरान अपनी अपनी तलवारें ताने खड़े हैं और बेबस जनता इस तनातनी में पिस रही है। अमेरिका नहीं चाहता कि क्यूबा के बाद उसके पृष्ठभाग में एक और कम्यूनिस्ट सरकार स्थापित रहे और वेनेज़ुएला के शासक क्यूबा, चीन और रूस के समर्थन के कारण अमेरिका का विरोध करना अपना धर्म समझते हैं। जब तक दोनों शासक अपनी हठधर्मिता छोड़ कर निरीह वेनेज़ुएला की जनता के हित में एक दुसरे को कुछ छूट देनेको नहीं तैयार होंगे, इस समस्या का तार्किक समाधान असंभव है। विडंबना यह भी है कि वेनेज़ुएला की सरकार जहां एक ओर अपनी तंग अर्थव्यवस्था और अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण अपने कच्चे तेल भण्डार का समुचित दोहन नहीं कर पा रही है ( नूयार्क टाइम्स की 8 फरवरी 2020 की खबर के अनुसार,जनवरी में वेनेज़ुएला का दैनिक तेल उत्पादन सिर्फ 8,45,000 बैरेल था जो कि उसकी क्षमता के एक तिहाई से भी कम है),वहीँ दूसरी ओर वेनेज़ुएला में तेल दोहन में सबसे बड़ी कंपनी शेवरॉन टेक्साको एक अमेरिकी कंपनी है। हाँ,एक आशा की धुंधली सी किरण जो नज़र आ रही है वह है वेनेज़ुएला की सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से विदेशी कंपनियों को तेल के क्षेत्र में निवेश की मंज़ूरी देना।

यह कदम शायद देश को आर्थिक दिवालियापन से उबारने के लिए मज़बूरी में उठाया गया है। जो भी हो, इससे तेल उत्पादन में वृद्धि की सम्भावना तो है ही क्योंकि नए निवेशकों मे से ज़्यादातर अमेरिकी ही हैं। इस तनाव शैथिल्य की शुरुआत अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में थोड़ी ढील और वेनेज़ुएला द्वारा मानवीय आधारों पर भेजी गई अमेरिकी सहायता को स्वीकार करने से हो सकती है। यह कदम परस्पर विश्वास बढ़ने वाला कारक सिद्ध हो सकता है। आज पहले जैसा शीत युद्ध का युग नहीं है। अब दुनिया में सिर्फ कुछ गिने चुने देशों में जो साम्यवादी सरकारें रह भी गई हैं, वे भी अपनी अर्थव्यवस्थाओं का उदारीकरण कर रही हैं, ऐसे में किसी सिद्धांत के नाम पर जनता को जकड़े रहना न तो उचित है और न ही दीर्घकाल तक संभव। वैश्वीकरण के इस दौर में संयुक्त राज्य अमेरिका भी पड़ोस की समस्याओं से अछूता नहीं रह सकता ख़ास तौर पर तब जब कि भू-रणनीतिक समीकरण तेज़ी से बदल रहे हों। यह लग रहा है कि शायद दोनों देशों के संबंधों में आई तल्खी कुछ कम हो जाए, लेकिन ये सम्बन्ध कहाँ तक सुधरेंगे और इससे वेनेज़ुएला के लोगो की आर्थिक स्थिति में कितना परिवर्तन होगा, इस पर अभी कुछ भविष्यवाणी करना समयपूर्व होगा I

रही भारत की बात, तो भारत के साथ वेनेज़ुएला के सम्बन्ध शुरू से ही काफी अच्छे रहे हैं। वेनेज़ुएला के लिए भारत कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। 2004 में भारत की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ ने भारतीय तेल कंपनियों को वेनजुएला के तेल क्षेत्रों में निवेश करने की मंज़ूरी दे दी थी। परिणामस्वरूप 2005 में ओवीएल ने सान क्रिस्टोबाल क्षेत्र में काम शुरू किया। 2010 में एक स्पेनिश कंपनी के साथ ओवीएल, इंडियन आयल कारपोरेशन और आयल इंडिया लिमिटेड ने 48% साझेदारी के साथ एक संघ बना कर काराबोबो -I तेल क्षेत्र में काम प्रारम्भ किया। वेनेज़ुएला ने कई मुद्दों पर क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलकों पर भारत का साथ दिया है।

(The paper is the author’s individual scholastic articulation. The author certifies that the article/paper is original in content, unpublished and it has not been submitted for publication/web upload elsewhere, and that the facts and figures quoted are duly referenced, as needed, and are believed to be correct). (The paper does not necessarily represent the organisational stance... More >>


Image Source: https://venezuelanalysis.com/files/images/%5Bsite-date-yyyy%5D/%5Bsite-date-mm%5D/55078aec71139ea00f8b4588.jpg

Post new comment

The content of this field is kept private and will not be shown publicly.
8 + 3 =
Solve this simple math problem and enter the result. E.g. for 1+3, enter 4.
Contact Us