अयोध्या में राम मंदिर: नेपाल के हिंदुओं ने कैसे मनाया इसका जश्न?
Prof Hari Bansh Jha

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी में राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी। मंदिर 235 फुट चौड़ा, 300 फुट लंबा और 161 फुट ऊंचा होगा, जिसमें पांच मंडप होंगे। मंदिर कुल 84,000 वर्ग फुट भूमि पर होगा, जिसमें प्रार्थना कक्ष, प्रवचन कक्ष, अतिथिगृह और संग्रहालय भी बनाया जाएगा। सबसे अद्भुत बात यह है कि मंदिर निर्माण में लोहे का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया जाएगा और मंदिर कम से कम 1000 वर्ष तक खड़ा रहेगा। मंदिर निर्माण के लिए भारत के विभिन्न भागों और विदेश से श्रद्धालुओं ने 2 लाख ईंट जमा कर दी हैं, जिन पर "श्री राम" लिखा है।

आरंभिक अनुमानों के अनुसार राम मंदिर निर्माण पर 300 करोड़ रुपये खर्च होंगे मगर इसकी लागत आगे चलकर बढ़ने की संभावना है। निर्माण का काम साढ़े तीन वर्ष में पूरा करने की जिम्मेदारी राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दी गई है।

भगवान राम की जन्मस्थली पर बने मंदिर को 1528-29 में मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने ध्वस्त कर दिया था। उसके बाद से ही इस भूभाग पर विवाद आरंभ हो गया। इस संबंध में पहला मुकदमा फैजाबाद दीवानी अदालत में 30 नवंबर, 1858 को दायर किया गया था, जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था। किंतु 6 दिसंबर, 1992 को कार सेवकों ने मस्जिद गिरा दी। उसके बाद जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई की तो बाबरी मस्जिद स्थल से हिंदू मंदिर होने के कई प्रमाण मिले। उन प्रमाणों तथा उनसे जुड़े ढेरों सबूतों के आधार पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 2019 में ऐतिहासिक निर्णय दिया और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं के हाथ सौंप दिया। अदालत ने मस्जिद निर्माण के लिए अलग स्थान पर अनुकूल जमीन तलाशने तथा मुस्लिम वर्ग को आवंटित करने का निर्देश भी राज्य प्रशासन को दिया।

पौराणिक महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या, जिसका अर्थ ऐसी भूमि से है, जिसे युद्ध में जीता नहीं जा सकता, अवध राज्य की राजधानी थी। भगवान राम ने अवध सम्राट दशरथ के पुत्र के रूप में अयोध्या में जन्म लिया था और लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व त्रेतायुग के सबसे आदर्श राजा के रूप में अवध पर राज किया था। “राम राज्य” के उनके विचार को शासन की सर्वोत्तम व्यवस्था माना गया। इस स्थान पर रहने वाले लोगों को किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक व्याधि, बाढ़, अकाल, भूकंप जैसी दैवीय प्राकृतिक आपदाओं या कीड़ों, जानवरों एवं वायरस के द्वारा भौतिक कष्ट नहीं हुए। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि राजा के रूप में उनके लिए अपने परिवार अथवा जीवन से अधिक महत्वपूर्ण उनकी प्रजा थी।

हिंदुओं के लिए राम सबकी रक्षा करने वाले भगवान विष्णु के परमावतार थे और उनकी पत्नी सीता मां लक्ष्मी की अवतार थीं। राम को उनके त्याग, आदर्श, प्रेम, वीरता, करुणा एवं सेवा के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों में सर्वोत्तम कहा गया। उनके आदर्श सभी के लिए प्रेरणास्रोत थे। भारतवासियों के व्यवहार पर ऐसा प्रभाव किसी का भी नहीं हुआ, जैसा भगवान राम और माता सीता का हुआ।

इसीलिए भगवान राम और मां सीता की कथा हजारों वर्षों से हमारी संस्कृति एवं धार्मिक स्मृति में अक्षुण्ण रही है। भारतीय उपमहाद्वीप में संस्कृत, अवधी, हिंदी, मैथिली, नेपाली, तेलुगु, मलयालम समेत विभिन्न भाषाओं में और विदेश में लाओस, कंबोडिया, इंडोनेशिया तथा थाईलैंड आदि में कई अन्य भाषाओं में रामायण के अनेक रूप लिखे गए। इन सभी समाजों में एक समान बात है - रामलीला और राम कथा।

हमारी संस्कृति में राम का पारंपरिक प्रभाव इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रत्येक हिंदू चाहता है कि उसका पुत्र राम की तरह और पुत्री सीता की तरह हो। स्कूल के पहले दिन बच्चे ये बुलवाया और लिखवाया जाता है “राम गति, देह सुमति”। जब कोई अनाज तोलना शुरू करता है तो वह रामही राम कहकर गिनती शुरू करता है और उसके बाद राम ही दो और आगे गिनता है। जब किसी के गलत काम की निंदा करनी होती है तो सबसे पहले “राम राम” कहा जाता है। नमस्कार करते समय लोग अक्सर “राम राम”, जय राम जी की या जय सिया राम कहते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर अपनी पवित्र नगरी वाराणसी में मरने वाले व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति दिलाने के लिए अंत समय में रामतारक मंत्र (श्री राम जय राम जय जय राम) देते हैं। शव यात्रा के दौरान भी अक्सर लोग “राम नाम सत्य है” बोलते हैं।

राम भावनात्मक रूप से नेपाल के लोगों के हृदय के भी उतने ही करीब हैं। ऐसा इसीलिए है क्योंकि नेपाल की पुत्री सीता का विवाह राम से हुआ था। इसीलिए नेपाल में लोगों ने 5 अगस्त को राम जन्मभूमि पूजा समारोह के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए सीता-राम के मंदिरों तथा अन्य स्थानों पर दिये जलाए। काठमांडू में अत्यंत पवित्र और विश्व प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में भी श्रद्धालुओं ने दिये जलाए। नेपालगंज, राउताहाट और दूसरे शहरों तथा देश के ग्रामीण इलाकों में भी लोगों ने श्रद्धा और आनंद के वशीभूत दिये जलाए।

सीता की जन्मस्थली जनकपुर में एक भावुक श्रद्धालु ने इस मौके पर आनंद के साथ कहा, “अब अयोध्या में सीता का भी महल बन जाएगा।” जनकपुर स्थित राम मंदिर में श्रद्धालुओं ने मिट्टी के दिये जलाए। इसी तरह कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के कारण शहर में निषेधाज्ञा लागू होने के बाद भी लोगों ने प्रख्यात जानकी मंदिर के परिसर में दिये जलाए। जानकी मंदिर के महंत राम तपेश्वर दास तो भूमि पूजन समारोह में हिस्सा लेने अयोध्या की ओर कूच भी कर गए। वह मंदिर निर्माण में इस्तेमाल के लिए अपने साथ चांदी की पांच ईंट भी लाए।

अयोध्या में हुए कार्यक्रम को नेपाल में भी इतनी श्रद्धा से मनाया जाना बताता है कि सीता-राम के कारण नेपाल और भारत के बीच अनूठा संबंध है। यह संबंध अल्फ्रेड लॉर्ड टेनीसन की कविता “द ब्रुक” में उल्लिखित ब्रुक के जल की तरह है। कवि कहता है, “लोग आएंगे और लोग जाएंगे मगर मैं हमेशा रहूंगा।”

अयोध्या में राम जन्मभूमि पूजन समारोह असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। इस स्थान पर मंदिर के निर्माण से भारत की जनता के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर प्रभाव पड़ने की संभावा है। आस्थावान लोगों के लिए इस घटना के कारण इस देश में एक प्रकार से राम राज लौट सकता है, जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार होने की ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अधिक शांति तथा सौहार्द सुनिश्चित होने की भी अपेक्षा है क्योंकि राम के आदर्श किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि समूची मानवता के लिए हैं।

Translated by Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: https://images.livemint.com/img/2020/08/05/600x338/4e645542-d643-11ea-b961-ad37760ffd4d_1596592534885_1596592634174.jpg

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