मालाबार में सालाना होने वाले नौ सैन्य अभ्यास में 13 साल के अंतराल के बाद ऑस्ट्रेलिया को शामिल होने का न्योता देने का भारत का निर्णय एक अर्थवान रणनीतिक उपक्रम है, जिसका इस क्षेत्र की रणनीतिक लैंडस्केप पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसका यह मतलब है कि चतुष्टय (क्वाड) में शामिल जापान, अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र के सुरक्षा मामलों में एक पेज पर रहेंगे। इस समूह के सदस्य देशों के जो आलोचक चतुष्टय को कोरी गप्पबाजी का अड्डा मानते रहे थे, वह धारणा अब समाप्त हो जाएगी।
इस क्षेत्र में चीन का लड़ने-भिड़ने वाले मिजाज के बढ़ने के साथ-साथ पूर्वी लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, एलएसी) पर बने सैन्य गतिरोध को देखते हुए मालाबार में ऑस्ट्रेलिया को बुलाने को लेकर भारत की हिचक खत्म हो गई है। चीन की आक्रामक भाव-भंगिमा और क्षेत्र के आंतरिक मामलों जैसे दक्षिणी चीन सागर, ताइवान और हांगकांग तथा भारत के साथ सीमा संबंधी विवादों में उसकी गतिविधियों को देखते हुए उसे नियंत्रित करने की जरूरत महसूस की जा रही थी।
चीन का यह दीर्घावधि का लक्ष्य है, दुनिया की अकेली सिरमौर ताकत होना और अपने हिसाब से दुनिया को चलाने के लिए नियम-कायदा बनाना। यही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का प्राथमिक लक्ष्य प्रतीत होता है. इसके अलावा, आर्थिक प्रभुत्व स्थापित करने की उसकी रणनीति भी है। यह काम वह बहु-प्रचारित अपनी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के जरिए करता है और निर्धन देशों में भारी मात्रा में निवेश करता है। फिर वह उन देशों को अपने कर्ज जाल में उलझा देता है। इस तरह से चीन एक ऐसे देश के रूप में उभर कर सामने आया है, जिसकी मंशा संदिग्ध है। इसी वजह से, चीन के सदाबहार मित्र उत्तरी कोरिया और पाकिस्तान को छोड़कर कोई भी देश आज उसका वास्तविक मित्र नहीं है। वह पिछले दशकों में दबंगई से कमाई पूंजी और अपनी सैन्य ताकत का बेजा इस्तेमाल के बिना पर सदस्य देशों को डरा-धमका कर उनमें खौफ पैदा कर बेशुमार दौलत कमाना चाहता है।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के मुहाने पर मालाबार में नवंबर महीने में निर्धारित नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के शामिल होने से चतुष्टय देशों भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया संयुक्त रूप से चीन के लिए एक मजबूत प्रतिरोधक दीवार बनेंगे। नौसैनिक अभ्यास 2018 में फिलीपीन सागर के गुआम तट पर हुआ था और 2019 में जापान के तट पर। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने चतुष्टय समूह का मजाक उड़ाते हुए अलंकारिक शब्दावली में उसे समुद्री झाग कहा था। अब वांग यी को अपने शब्द चबाने पड़ रहे होंगे क्योंकि समुद्री झाग ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया है।
भारत में पिछले 5 दशकों से यह गंभीर बहस चलती रही है कि भारत लगातार चीन को समझने में गलती कर रहा है और इसकी कीमत उसे 1962 की लड़ाई में चुकानी पड़ी थी। विगत में चीन को लेकर भारत की नीतियों को दोषपूर्ण बताया जाता रहा है और उसकी आलोचनाएं की जाती रही है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार उस ऐतिहासिक गलती को सुधार रही है। वहीं, भारत चीन को ध्यान में रखते हुए इस तरह से अपनी नीतियां बनाता रहा है कि चीन उसके हितों का ख्याल रखेगा, उसका आदर करेगा, लेकिन यह रवैया भी चीन की दखलकारी और आक्रामक भाव-भंगिमा को नहीं बदल पाया, तभी तो भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को इसे “गंभीर सुरक्षा चुनौती” कहना पड़ा। शी जिनपिंग की लड़ाकू प्रवृत्ति चीन की उस पदानुक्रम पद्धति से प्रार्दुभूत है,जहां सत्ता और सामर्थ्य राष्ट्र की पहचान की अभिव्यक्ति है, जिसमें कमजोर देश या प्यादा है या फिर अत्यंत गरीब।
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें चतुष्टय और मालाबार के नौसैनिक अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया का शामिल होना ताकत के जारी मौजूदा खेल में एक महत्वपूर्ण समीकरण बन कर उभरा है। यह मालाबार नौसैनिक अभ्यास क्या है? पहले तो यह अमेरिका और भारत का द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास था। 2005 में जापान के इसमें स्थाई रूप से जुड़ने की वजह से इसका स्वरूप त्रिपक्षीय हो गया। इसमें अस्थाई सदस्यों के रूप में ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ने भी 2007 में सैन्य अभ्यास किया था। वह भी केवल एक बार। मालाबार में भारत और अमेरिका के बीच वार्षिक सैन्य अभ्यास की विधिवत श्रृंखला की शुरुआत 1992 में हुई थी। इस सैन्य अभ्यास में तरह-तरह की गतिविधियां शामिल की जाती हैं- मसलन विमानवाहक पोतों के जरिए युद्ध प्रतिरोधक अभियानों से लेकर मेरी टाइम इंटर्डिक्शन ऑपरेशंस एक्सरसाइजेज तक इसमें शामिल होते हैं।
क्षेत्र में बदलती भू राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए भारत ने अनुभव किया कि तीनों सैन्य सुरक्षा क्षेत्र में अन्य देशों के साथ व्यापक सहयोग की मांग करना और ऑस्ट्रेलिया के साथ बढ़ते रक्षा सहयोग को देखते हुए उसका मालाबार के सैन्य अभ्यास में शामिल होना युक्तिसंगत है। चतुष्टय देशों के विदेश मंत्रियों की जापान में हुई मुलाकात के दौरान क्षेत्रीय सुरक्षा मसलों पर उनमें व्यापक साझा सहमति बनी थी,जिसके बाद मालाबार में नौ सैन्य अभ्यास की घोषणा की गई। चीन वैश्विक नियम कायदों का उल्लंघन करते हुए दूसरे देशों को डराते धमकाते रहा है। ऐसे में चतुष्टय के सदस्य देशों के लिए यह लाज़मी हो गया था कि वह इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए परस्पर सहयोग करें।
भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार,यह सैन्य अभ्यास “नॉन-कॉन्टैक्ट एट सी” होगा और “यह भागीदार देशों की नौसेनाओं के बीच सहयोगों को मजबूती प्रदान करेगा।” विज्ञप्ति में आगे स्पष्ट किया गया कि चार सदस्यों की संलग्नता समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा और संरक्षा को बढ़ावा देगी। यह भी कहा गया कि ये चारों देश सामूहिक रूप से मुक्त, खुला और समावेशी हिंद-प्रशांत महासागर का समर्थन करते हैं और नियम-कायदों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं। यह अलग बात है कि इस घटनाक्रम पर चीन की त्योरियां चढ़ गईं, जो चतुष्टय देशों को एक साथ आने को बिला वजह संदेह की नजर से देखता है।
इसके अतिरिक्त, भारतीय नौसेना पारस्परिकता में सुधार के लिए चतुष्टय के सदस्य देशों से द्विपक्षीय स्तर पर भी सैन्य अभ्यास करती रही है। उदाहरण के लिए भारतीय नौसेना ने उत्तर अरब सागर में 26 सितंबर 2020 से लेकर 28 सितंबर 2020 तक 3 दिनों का सैन्य अभ्यास जापान के साथ किया था। यह भारत जापान के द्विपक्षीय अभ्यास जीमेक्स का चौथा संस्करण था, जो प्रत्येक 2 वर्ष पर किया जाता है। इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया की नौसेना और भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर के पूर्वी क्षेत्र में 23 और 24 सितंबर को पैसेज एक्सरसाइज (PASSEX) किया था। इस अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया की तरफ से एचएमएएस होबार्ट शामिल हुआ था तो भारत के पोत सहयाद्रि और कार्मुक ने भाग लिया था। इसके अलावा, भारतीय नौसेना के निगरानी करने वाले विमान और दोनों देशों के हेलीकॉप्टर्स अभ्यासों में समन्वय स्थापित करने के लिए उड़ान भरते रहे थे। इसके पहले भारतीय नौसेना की टुकड़ी ने अमेरिकी निमित्ज कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की एक टुकड़ी के साथ मिलकर 20 जुलाई को पूरे हिंद महासागर में पैसेज एक्सरसाइज (PASSEX) किया था।
ऑस्ट्रेलिया ने भी मालाबार सैन्य अभ्यास में शामिल होने के लिए भारत की तरफ से दिए गए न्योते का स्वागत किया। ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री मारिसे पायने ने कहा कि उनकी भागीदारी “भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की क्षमताओं को बढ़ाएगी, जिससे हम अपने क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए मिलजुल कर काम करेंगे।’’पायने से मिलती- जुलती प्रतिक्रिया में ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री लिंडा रेनॉल्ड का आकलन है कि “ मालाबार जैसे उच्च प्रौद्योगिकी वाले सैन्य अभ्यास ऑस्ट्रेलिया की नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाने, नजदीकी भागीदारों के साथ पारस्परिकता का निर्माण करने और हिंद- प्रशांत महासागर में मुक्त आवाजाही सुनिश्चित करने और उसे समृद्ध बनाने के लिए सामूहिक सहयोग-समर्थन का प्रदर्शन है। यह प्रतिक्रिया चतुष्टय के चारों सदस्यों के साझा सुरक्षा हितों पर मिलकर काम करने के ‘गहरे विश्वास’ और ‘इच्छा-शक्ति’ को दर्शाती है।
विगत वर्षों में, मालाबार सैन्य अभ्यास हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में विकसित होती भू राजनीतिक चुनौतियां के साथ समानुपातिक रूप में अपने क्षेत्र का विस्तार कर उसे मजबूती देने का प्रयास किया है। इस मामले में भारत काफी सक्रिय रहा है और उसने अमेरिका के साथ मिलकर 4 बुनियादी समझौतों में से 3 पर दस्तखत भी किए हैं तथा रक्षा-खरीद में बढ़ोतरी कर अपनी अंतरसक्रियता को ही बढ़ाने का काम किया है। जापान और अमेरिका मालाबार सैन्य अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल कराने के मुद्दे पर राजी थे किंतु उसे लेकर चीन की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत को थोड़ी हिचक थी। लेकिन लद्दाख में बने गतिरोध के बाद भारत की वह बची-खुची हिचक भी जाती रही। इस समुद्री क्षेत्र में चतुष्टय के चारों देश की साझा सहक्रियता को होस्ट ऑफ एग्रीमेंट में देखा जा सकता है, जिसमें सभी देशों का एक दूसरे से परस्पर तालमेल है। सितम्बर में अपने पद छो़ड़ने और योशिहिदे सुगा को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा के पहले जापान के प्रधानमंत्री आबे ने विदेश नीति से संबंधित अपने कार्यकाल का अंतिम महत्वपूर्ण निर्णय लिया। आबे ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वर्चुअल शिखर सम्मेलन में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सैन्य रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत ने इसी तरह का नौसेना से संबंधित सूचनाओं को साझा करने मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस (एमडीए) करार ऑस्ट्रेलिया के साथ ही किया हुआ है। इसी तरह के एक करार के लिए अमेरिका के साथ भी बातचीत चल रही है।
भारत और अमेरिका, 26-27 अक्टूबर को नई दिल्ली में 2 प्लस 2 मंत्री स्तरीय मुलाकात के पहले बेसिक एक्सचेंज एंड कॉर्पोरेशन एग्रीमेंट (बीईसीए) को अंतिम रूप देने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इस मुलाकात में भारत और अमेरिका के रक्षा एवं विदेश मंत्री के बीच बातचीत होगी। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और साझा हितों के वैश्विक मामलों पर यह तीसरी बातचीत होगी। इसके पहले मंत्री स्तरीय संवाद वाशिंगटन में सितंबर 2018 और 2019 में हुए थे।
अगर बीईसीए समझौते पर दस्तखत हो जाता है तो भारत को अमेरिका के भूस्थानिक खुफिया सूचनाओं के उपयोग की इजाजत होगी। साथ ही, मिसाइल और ड्रोन जैसे स्वचालित प्रणाली और हथियारों की अचूक क्षमता में वृद्धि हो जाएगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी में हुई परस्पर बातचीत में इस तरह के समझौतों के हो जाने का आह्वान किया था। भू-स्थानिक चीजों को, COMCASA and LEMOA and BECA के इन तीन समझौतों के तहत रखा गया है, वह भारत की मिसाइलों की मारक क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगी तथा सशस्त्र ड्रोन के बारे में योजना की अहम कुंजी होगी, जिसके फलस्वरूप चतुष्टय के चारों सदस्यों को बड़ी सैन्य मदद मिल रही है।
सितंबर 2018 में, अमेरिका के साथ दो जोड़ दो संवाद के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अमेरिकी समकक्षों क्रमश: माइकल आर पॉम्पियो और जेम्स मैटिस से मिली थीं और कम्युनिकेशन कंपैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) पर दस्तखत किया था। इस समझौते ने अमेरिका से संचार सुरक्षा उपकरणों के हस्तांतरण का मार्ग प्रशस्त किया था,जिससे उनकी सेनाओं के बीच पारस्परिकता सुलभ हुई थी और इस तरह वे उन अन्य सेनाओं के समकक्ष आ गई थी, जो अपने डेटा लिंक को सुरक्षित रखने के लिए अमेरिका निर्मित प्रणाली का उपयोग करती है। अगस्त 2016 में भारत और अमेरिका ने लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), पर दस्तखत किया था, जो हर एक दूसरे देश की सेना को उसके अड्डे से लैस होने की इजाजत देती है।
ऐसे संस्थानिक समर्थनों और चतुष्टय के चारों देशों में परस्पर द्विपक्षीय समझौते के साथ मालाबार परस्पर गहरे विश्वास का एक शो-केस होगा, जिसे चारों सदस्य देश साझा सुरक्षा हितों पर मिलकर काम करने तथा क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा, खासकर समुद्री क्षेत्र में, प्रत्येक की सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने का निर्णय चतुष्टय समूह की क्षमता का विकास है क्योंकि एक भागीदार के रूप में ऑस्ट्रेलिया नियम आधारित, मुक्त और सहयोग के जरिए खुले अंतर्राष्ट्रीय कायदों वाले साझा दृष्टिकोण का हिमायत करता है।
चीन के लिए यही सबसे अच्छी सलाह है, वह अपना अहंकार और आक्रामकता छोड़े, नियम-कायदों पर आधारित वैश्विक व्यवस्था आदर करे तथा साझा हितों की पारस्परिकता की मांग करे ताकि विश्व के देशों में बने मौजूदा सद्भाव अनावश्यक रूप से न बिगड़े। इसके बजाय, चीन चतुष्टय के चारों सदस्य देशों को “खास गिरोह का जमावड़ा” और “तीसरे पक्ष को निशाना बनाना या उसे कमतर करना” बताते हुए उल्टा धमकाने का काम करता है और “खुले, समावेशी तथा पारदर्शी” सहयोग का आह्वान करता है, जो “क्षेत्रीय देशों के बीच द्विपक्षीय समझदारी और भरोसा कायम करने में मददगार” हो। वांग यी ने एक गठजोड़ बनाने की पोम्पियो की योजना को नॉनसेंस कह कर खारिज कर दिया है।
चीन से निपटने के दो रास्ते हैं क्योंकि उसके रवैये में कोई बदलाव नहीं दिखाई देता है। ऐसे में चतुष्टय के प्रत्येक चार देश चीन से निबटने के लिए अपनी स्वतंत्र नीति अख्तियार कर सकते हैं या फिर एक साझा नीतियों के जरिए भिड़ सकते हैं, क्योंकि वे सामूहिक रूप से समान लक्ष्य के साथ काम करते हैं और एक दूसरे की मकसद और रणनीतियों को बेहतर समझते हैं। किंतु संस्थानिक सहयोग रणनीति को नख- दंत प्रदान करता है और चतुष्टय के सदस्य राष्ट्रों को क्षेत्रीय शांति और स्थिरता जैसे वृहत्तर लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अवसरों की व्यापकता प्रदान करता है। वह प्रतिबद्धता मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत महासागर को सुनिश्चित करने की है और चतुष्टय उस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मशीनरी है।
मालाबार सैन्य अभ्यास को लेकर चीन के संशय से चतुष्टय सदस्यों को घबराना नहीं चाहिए,क्योंकि उनका वृहत्तर लक्ष्य क्षेत्रीय हितों को संरक्षित करना और उसे सुनिश्चित करना है, जबकि चीन की मंशा स्वयं के हितों का पोषण-संवर्धन करना है, इसकी चिंता किए बगैर कि उसके कदमों या कार्यों से किसी देश के हितों को किस तरह नुकसान पहुंचता है। बीजिंग की अवधारणा है कि मालाबार में होने वाला सालाना सैन्य अभ्यास का मतलब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके प्रभाव को कम करना है। अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक सुरक्षित वास्तु योजना बनाना चाहता है ताकि वह इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलअंदाजी को रोक सके। अब यह देखना है कि चतुष्टय का यह नया आयाम ऐसी आकांक्षाओं को मूर्त रूप दे सकता है या नहीं। उस लिहाज से मालाबार में चतुष्टय के सभी देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
चतुष्टय के गठन में हाल ही में उसका संभावित विस्तार तथा मझोली क्षमता वाले राष्ट्रों के सहयोग का एक नया आयाम जुड़ा है, जो चतुष्टय के सदस्य राष्ट्रों के साथ समान दृष्टिकोण रखते हैं। दक्षिण कोरिया और वियतनाम से इस संभावना को लेकर बातचीत की जा रही है। लेकिन मौजूदा स्वरूप में चतुष्टय एक अर्थ में आंतरिक और बाह्य रूप से एक अपरिभाषित इकाई है, जैसा कि अमेरिकी विदेश मंत्री स्टीव बेगुन ने हाल ही में नई दिल्ली में अमेरिकी-भारतीय फोरम की एक बैठक में कहा है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया की चतुष्टय साझा हितों से परिचालित होने वाली भागीदारी है, इसमें किसी तरह का बंधन नहीं है और इसकी मंशा खास देशों का समूह व गिरोह बनाने की नहीं है। लिहाजा, कोई भी देश जो मुक्त और खुले हिंद -प्रशांत महासागर की मांग करता है और इसे सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने पर राजी है, उसका चतुष्टय में स्वागत है। इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि चतुष्टय की भूमिका वर्तमान के चार सदस्य देशों तक ही सीमित रहने वाली नहीं है, बल्कि आने वाले महीनों और वर्षों में समान द्दृष्टिकोण वाले अन्य देशों को मिलाकर, उसे वृहत्तर आयाम दिया जाना संभव है। चीन खबरदार।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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