पाकिस्तान के विरोधी दलों ने पाकिस्तान लोकतांत्रिक आंदोलन (पीडीएम) के बैनर तले इमरान खान सरकार और उसके सैन्य समर्थकों पर सीधा हमला बोल दिया है। गुजरांवाला और कराची में पीडीएम के तत्वावधान में हुई दो बड़ी रैलियों के बाद तो पाकिस्तान की हाइब्रिड सत्ता लोकतंत्र समर्थक प्रतिरोधों का ताप महसूस करने लगा है। अभी हाल ही में सिंध के आईजीपी
मुश्ताक अहमद महार को सिंध रेंजर्स के हाथों अपमानित होना, इस बात का संकेत है कि इमरान खान सरकार किस दुस्साहस के साथ अपने देश में संस्थाओं को कमतर कर रही है। सिंध रेंजर्स एक संघीय संस्था है, जो गृह मंत्रालय के प्रति जवाबदेह है। ठीक इसी समय पाकिस्तान में तीन बार प्रधानमंत्री रहे और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएलएन) के सर्वोच्च नेता नवाज शरीफ ने भी यह दावा किया कि पाकिस्तान की सेना ‘देश के भीतर एक देश का सृजन कर दिया है।’1
जैसा कि रिपोर्ट है, “रेंजर्स ने सिंध के आईजीपी मुश्ताक अहमद महार को अपहृत कर लिया और उन्हें क्षेत्र के कमांडर के ऑफिस में ले गए। वहां उनसे कैप्टन (रि.) मोहम्मद सफदर की गिरफ्तारी वारंट पर बलात दस्तखत करने पर मजबूर किया”।2 इसके पश्चात, सिंध पुलिस कराची के उस होटल में जबरदस्ती घुस गई, जहां कैप्टन सफदर अपनी बेगम मरियम नवाज के साथ ठहरे हुए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी इस गिरफ्तारी से साबित हुआ कि पाकिस्तान में कानून की हुकूमत में किस कदर गिरावट आयी है। अवकाश प्राप्त कैप्टन सफदर पीएमएलएन के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दामाद और पार्टी के उपाध्यक्ष मरियम नवाज के पति हैं।
कैप्टन सफदर, मरियम नवाज और उनके समर्थकों की गिरफ्तारी के लिए दर्ज एफआईआर में उन पर “कायदे आजम संग्रहालय की पाकिजगी को बदरंग करने और सरकारी परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की वजह” बताई गई है।3 आईजीपी सिंध को पाकिस्तान के रेंजर द्वारा बंधक बनाए जाने की अपमानजनक घटना के विरोध में पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े राज्य सिंध के पुलिस बल ने सामूहिक अवकाश पर जाने का ऐलान कर दिया। बाद में कराची के पुलिस अधिकारियों ने अपनी छुट्टी रद्द कर दी, लेकिन सिंध प्रांत में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच हुई यह कुरूप घटना पाकिस्तान के एक खतरनाक स्थिति की तरफ बढ़ने का संकेत करती है।4
वर्तमान में, पीडीएम के बैनर तले विपक्षी दलों की कायम एकता देश में जम्हूरियत के हिसाब से एक नायाब कामयाबी है। वैसे तो पिछले दो सालों में पाकिस्तान में सरकार विरोधी प्रदर्शन होते ही रहे हैं। लेकिन दोनों प्रदर्शनों में अंतर है। पहले के प्रदर्शनों में देश की पीटीआई सरकार को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकजुट नहीं हुए थे। मौजूदा परिस्थिति में विपक्षी दलों का पीडीएम गठबंधन देश में लोकतंत्र लाने के हिसाब से काबिले तारीफ कोशिश कहीं जाएगी। किसी भी कार्यकारी लोकतंत्र में एक तंदुरुस्त विपक्ष होना लाजमी है और शायद पीडीएम के बैनर तले हासिल की गई एकता पाकिस्तान में अलोकतांत्रिक ताकतों को एक कड़ी चेतावनी भी है। पीडीएम नेताओं ने यह आरोप लगाया है कि कराची में रिटायर्ड कैप्टन सफदर की गिरफ्तारी इमरान खान सरकार द्वारा पीडीएम गठबंधन को बांटने की साजिश है।5
इस पूरे वाकयात में प्रधानमंत्री इमरान खान की चुप्पी सबसे ज्यादा खली है। खासकर इसलिए कि कैप्टन सफदर की गिरफ्तारी में संघीय संस्था सिंध रेंजर्स शामिल है, जो सीधे पाकिस्तान के गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करता है। यह तो गनीमत रही कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी ने सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा से इस मसले पर गौर करने की अपील की। इसके बाद बाजवा ने इसकी जांच कर यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि क्या संघीय कानून लागू करने वाली एजेंसियों ने सिंध में अपने संस्थानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया?
निसंदेह, इस मामले में आर्मी चीफ की दखल भविष्य में इस तरह की होने वाली घटनाओं से उत्पन्न होने वाले टकराव को टालने की एक मुहिम है। इसी तरह, यह देश के अनिश्चित हालात की तरफ भी संकेत करता है, जब विपक्ष के किसी नेता को सिंध रेंजर्स जैसे संघीय अर्धसैनिक बलों को राजनीतिक मकसद हासिल करने में बेजा इस्तेमाल से बिगड़े हालात को संभालने के लिए दखल देने की अपील करनी पड़ रही है। आश्चर्यजनक रूप से विपक्षी दलों ने कराची की घटना की सीनेट कमेटी से जांच कराने के लिए सीनेट में इस आशय का एक प्रस्ताव रखा है।6
पाकिस्तान में जारी लोकतांत्रिक आंदोलन सियासत में सेना की सर्वोच्चता को चुनौती देने के राष्ट्रीय विमर्श को आहिस्ता-आहिस्ता ही सही एक आकार देने लगा है। यद्यपि पाकिस्तान ने सेना के कई सारे हुक्मरानों और लोकतांत्रिक ताकतों के साथ बहुधा मुठभेड़ किया है, लेकिन इस ताजा मुहिम में एक बात जो सबसे खास है, वह यह कि सार्वजनिक क्षेत्र में सेना की भूमिका पर विमर्श बनाने की कवायद। आज पाकिस्तान कई मसलों पर जूझ रहा है, जैसे बढ़ता आर्थिक संकट, बढ़ती बेरोजगारी और असमानता, इनफोर्स डिसएपीयरेंस, नागरिक स्वतंत्रता का सिकुड़ता दायरा इत्यादि। इनमें से किसी भी मुद्दे पर कोई भी वाद-विवाद और संवाद आर्मी की एकाधिकार वाली हैसियत और इसके सर्वोच्च पदानुक्रम से टकराव मोल लिए बिना मुमकिन नहीं है। इसके पहले हाशिए पर पड़े जातीय समूहों, मसलन; बलूच और पख्तूनी के नेता पाकिस्तानी सेना की प्रधानता और अपने ही नागरिकों के मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ आवाज उठाते रहे थे।
इस अर्थ में, गुजरांवाला रैली में मुख्यधारा के राजनीतिक नेता नवाज शरीफ द्वारा दिया गया धमाकेदार भाषण पंजाब प्रांत के किसी नेता का पहला भाषण था जो पाकिस्तान में अनुदार लोकतंत्र के स्वभाव की मूल वजह पर प्रहार किया था। अपने भाषण में नवाज शरीफ ने विभिन्न मसलों में सेना की विवादास्पद भूमिका को चुनौती देते हुए लोकतांत्रिक संवादों और विमर्श में एक नया वातायन खोला था। उदाहरण के लिए नवाज ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान को 1960 के दशक में देशद्रोह के मामले में फंसाने पर अफसोस जताया था। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बेलाग शब्दों में कहा कि मुजीब उर रहमान पर देशद्रोह के लगाए गए आरोप ने उन्हें सख्त अलगाववाद के लिए प्रेरित किया और जिसका नतीजा बांग्लादेश के गठन के रूप में सामने आया। इस कड़ी में कहें तो पीडीएम की रैलियां देश में पहले से चले आ रहे विमर्शो को निरंतर चुनौती दे रही हैं। अन्य विपक्षी नेताओं ने भी सेना और सियासत में उसकी दखल की आलोचना की है, लेकिन उस तरह से नहीं जैसी की नवाज शरीफ ने की है। यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि अन्य विपक्षी नेताओं ने नवाज शरीफ की तरह सेना के साथ अपनी हेम-खेम को अभी पूरी तरह से खत्म नहीं किया है।
अभी तक इमरान खान सरकार ने नवाज शरीफ पर दोषारोपण करने और उनके समूचे अभियान को लांछित करने के लिए उनके खिलाफ ‘देश-विरोधी’ और ‘भारतीय शह’ के आरोप लगाते रहे हैं। किसी भी स्थिति में पीटीआई सरकार के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं रह गया है, जिससे कि वह समूचे देश में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को नजरअंदाज कर सके। जैसा कि एक विश्लेषक का आकलन है, “खान सरकार वास्तव में फेनोमेनल है। यह लगभग सभी मोर्चों पर बुरी तरह विफल हो गई है। इसने विपक्ष को उनके खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए एक माकूल हालात दे दिए हैं।”7 यहां यह उल्लेख करना मुनासिब होगा कि पीडीएम की छतरी के बाहर पहले से ही इस्लामाबाद, बलूचिस्तान और सिंध में श्रृंखलाबद्ध विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। खस्ता हो रही आर्थिक दशा और बढ़ती बेरोजगारी ने इन प्रदर्शनों को इंधन दे दिया है। अब ऐसे में पाकिस्तान की सेना इमरान खान की निकम्मी सरकार को अपना समर्थन देना जारी रखती है जबकि सभी प्रमुख राजनीतिक ताकतें उनके खिलाफ है, तब ऐसी परिस्थिति में देश को बड़ी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता की तरफ धकेलना होगा। लेकिन तब शायद इस्लामाबाद में सत्ता पर पाकिस्तानी सेना के फिर से काबिज होने के लिए मुनासिब हालात पैदा होगा, जिस पर रावलपिंडी के जनरल्स निशाना लगाए हैं।
Translated by Dr Vijay Kumar Sharma (Original Article in English)
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