पाकिस्तान में कोरोनावायरस का पहला मामला 26 फरवरी 2020 को कराची में आया। उसके बाद यह चारों प्रांतों, राष्ट्रीय राजधानी तथा कथित आजाद जम्मू-कश्मीर एवं गिलगिट बाल्टिस्तान तक पसर गया।
शुरुआती संक्रमण ईरान से लौटे श्रद्धालुओं और रायविंद में तबलीगी जमात के समारोह से लौटे लोगों के कारण फैला। लेकिन 31 मार्च तक सरकार ने यह मान लिया कि कोरोनावायरस के 27 प्रतिशत मामले स्थानीय संक्रमण के नतीजे हैं।1 स्थानीय संक्रमण का आंकड़ा अप्रैल के मध्य तक बढ़कर 58 प्रतिशत हो गया।2
हालांकि ऐसी आफत से निपटने के लिए कोई भी देश पहले से तैयार नहीं था, लेकिन पाकिस्तान में संकट इसीलिए कई गुना बढ़ गया क्योंकि वहां स्वास्थ्य व्यवस्था एकदम खस्ता है और बढ़ती आबादी की बुनियादी जरूरतें ही मुश्किल से पूरी कर पाती है, इस विकट चुनौती से क्या निपटती। योजना मंत्री और नेशनल कमांड एंड ऑपरेशन थिएटर (एनसीओसी) के मुखिया असद उमर ने 5 अप्रैल को आगाह किया कि वायरस के कम प्रसार के बाद भी अगले कुछ हफ्तों में कोरोनावायरस के मामले स्वास्थ्य व्यवस्था के बूते से बाहर हो सकते हैं।3 इमरान खान ने भी चेतावनी दी है कि अप्रैल के अंत तक हालात और भी बदतर हो सकते हैं और उससे अस्पतालों पर दबाव बढ़ जाएगा।4 यह हालत इसलिए हुई है कि पिछले कई दशकों में आई सरकारों ने स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत कम निवेश किया।
कोरोनावायरस का संक्रमण बहुत तेजी से बढ़ रहा है और 21 अप्रैल को संक्रमण के 9500 से अधिक मामले हो चुके थे तथा 200 से अधिक लोग इससे जान गंवा चुके थे। लेकिन ऐसे मामलों में आंकड़े छपते-छपते पुराने हो जाते हैं। संक्रमण का पता लगाने और उसकी जांच करने की क्षमता बहुत कम होने के कारण ये आंकड़े वास्तविक आंकड़ों की तुलना में बहुत कम भी हो सकते हैं क्योंकि हजारों लोग जांच होने से पहले ही अपने समुदायों में लौट चुके हैं। इसीलिए जांच की दर बहुत कम होने पर भी मामलों की संख्या बढ़ना इस बात का संकेत है कि आगे जाकर संक्रमण के पुष्ट मामले तथा मौतें बहुत बढ़ जाएंगी, जो स्वास्थ्य व्यवस्था और पाकिस्तान के बूते से बाहर हो जाएंगी।
अभी तक सामने आए ये रुझान काफी परेशान करने वाले हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने 4 अप्रैल को पेश रिपोर्ट में कहा कि पाकिस्तान में कोरोनावायरस संक्रमण के मामले 25 अप्रैल तक बढ़कर 50,000 हो सकते हैं। यह संभावना अन्य देशों में महामारी के रुझानों पर आधारित थी। इनमें से करीब 2,392 मामले बेहद गंभीर हो सकते हैं, 7,024 गंभीर हो सकते हैं और 41,482 मामलों में संक्रमण के हल्के लक्षण दिख सकते हैं।5 लकिन अप्रैल का तीसरा हफ्ता आते-आते अनुमान कम कर दिए गए और अप्रैल के अंत तक केवल 15,000 मामले ही सामने आए। लेकिन मई के मध्य तक आंकड़ा 50,000 हो जाने की संभावना जताई गई।6
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रधानमंत्री के विशेष सहयोगी डॉ. जफर मिर्जा ने 1 अप्रैल को बताया कि देश में कोरोनावायरस के संदिग्ध मामले 12 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि संदिग्ध मामलों की संख्या बढ़कर 17,331 हो गई और पिछले 24 घंटे में संदिग्ध संक्रमण के 1,436 नए मामले दर्ज किए गए।7
सिंध सरकार के प्रवक्ता मुर्तजा वहाब ने 7 अप्रैल को कहाः “पाकिस्तान में कोविड-19 का पहला मरीज 26 फरवरी को मिला। 29 दिन में हमें 1,000वां, अगले 7 दिनों में 2,000वां, 5 दिन में 3,000वां और शायद 3 दिन में 4,000वां मरीज मिल चुक था। हालात इतने नाजुक हैं।”8 मार्च के तीसरे हफ्ते में आए एक अन्य आकलन के मुताबिक काबू नहीं किया गया तो संक्रमित लोगों की संख्या हर छह दिन में दोगुनी हो जाएगी। “मान लीजिए कि आज (21 मार्च को) 400 लोग संक्रमित हैं तो 6 मई को संक्रमित लोगों की संख्या 1,02,400 हारे जाएगी, जिनमें 15,360 को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ेगा और 5,120 को वेंटिलेटरों पर रखना होगा।” 9
ये आंकड़े बताते हैं कि देश तेज वृद्धि के चरण में प्रवेश कर रहा है या कर चुका है। आंकड़े इसीलिए अधिक खतरनाक हैं क्योंकि 7 अप्रैल तक देश में केवल 39,183 लोगों की जांच की गई थी और इस समय 24 घंटे में अधिकतम 3,088 लोगों की जा सकती है। जिन लोगों की जांच की गई है, उनमें से 10 प्रतिशत संक्रमित पाए गए हैं।10 डॉ. जफर मिर्जा के मुताबिक जांच क्षमता अप्रैल के अंत तक बढ़ा ली जाएगी। उन्होंने कहाः “पहले रोजाना 800 के करीब लोगों की जांच ही की जा रही थी, लेकिन पिछले कुछ दिन से हम दिन में 2,500 से 3,000 लोगों की जांच कर रहे हैं। इस महीने के अंत तक हम रोजाना 25,000 जांच कर रहे होंगे।”11 22 करोड़ की कुल आबादी में फरवरी से अप्रैल के मध्य तक केवल 55,000 लोगों की जांच की गई थी।12
इस बीच अधिकारियों से जांच तेज करने का अनुरोध करते हुए शिनच्यांग उइगर स्वायत्तशासी क्षेत्र के चिकित्सा उपकरण प्रशासन की उप महानिदेशक तथा पाकिस्तान आने वाले चीनी चिकित्सा दल की प्रमुख डॉ. मा मिनगुई ने मीडिया से कहा, “पाकिस्तान में कोविड-19 की जांच कराने वाले हर 10 लोगों में से एक को संक्रमित पाया गया है। शिनच्यांग की तुलना में यह बहुत बड़ा आंकड़ा है क्योंकि वहां जांच के दौरान 100 में से केवल 1 व्यक्ति वायरस से संक्रमित निकल रहा था।” साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान में संक्रमण अब तक पुष्ट हुए आंकड़े की तुलना में बहुत अधिक हो सकता है। उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से पाकिस्तानी अधिकारी अभी तक बिना जानकारी के ही इस वायरस से लड़ रहे हैं। परीक्षण किट की कमी और जांच से नागरिकों के इनकार के कारण असली आंकड़ा सामने आ ही नहीं रहा है। और आप कोविड-19 पर तब तक काबू नहीं पा सकते, जब तक आपके सामने तस्वीर साफ नहीं हो।”13
एक अजीब बात यह भी है कि कराची के विभिन्न अस्पतालों/कब्रिस्तानों में लाए जा रहे मृतकों या मरण शैया पर पहुंच गए लोगों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। एक खबर के मुताबिक 20 फरवरी से 9 अप्रैल के बीच (49 दिन में) कराची के 30 कब्रिस्तानों में कुल 3,365 शव लाए गए। इससे डर पैदा हो गया है कि कोविड-19 से मरने वालों की तादाद बताई गई संख्या से बहुत अधिक हो सकती है। लेकिन अभी तक न तो इसकी आधिकारिक पुष्टि हुई है और न ही किसी अस्पताल द्वारा इस बात की जांच किए जाने की खबर है कि मौतों का कारण कोविड-19 ही था या नहीं।14
एक अन्य खबर के मुताबिक कराची में दो हफ्ते में लगभग 200 लोगों की मौत सामान्य बात है। लेकिन संख्या पिछले कुछ दिनों में बढ़ गई है। हाल ही में टीवी पर एक साक्षात्कार में कराची के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जिन्ना पोस्ट-ग्रेजुएट मेडिकल सेंटर (जेपीएमसी) के निदेशक डॉ. सीमी जमाली ने कहा कि पिछले 15 दिन में ऐसे लोगों की संख्या पिछले वर्ष के मुकाबले 21 प्रतिशत बढ़ गई है, जो या तो मौत होने के बाद लाए गए या लाए जाने के कुछ घंटों में ही जिनकी मौत हो गई। इनमें से ज्यादातर मरीजों में ‘निमोनिया जैसे लक्षण’ थे। उनकी बात को एधी फाउंडेशन ने भी यह कहते हुए सही ठहराया कि 1 अप्रैल से 13 अप्रैल के बीच उनके मुर्दाघरों में 388 शव लाए गए थे, जबकि पिछले वर्ष समान अवधि में केवल 230 शव आए थे। इससे पता चलता है कि उस अवधि में 158 अधिक मौत हुईं। लेकिन जेपीएमसी में मरने के बाद लाए गए या लाने के कुछ घंटों के भीतर ही दम तोड़ने वाले लोगों की मौत का कारण आधिकारिक रूप से अज्ञात रहा क्योंकि पोस्टमॉर्टम ही नहीं कराया गया।
अलबत्ता निजी अस्पताल इंडस हॉस्पिटल में ऐसी कुछ मौतों - यानी आने से पहले ही हो चुकी मौत और आने के कुछ घंटों बाद हुई मौत - ने सबको सतर्क कर दिया है। अस्पताल के मुख्य कार्य अधिकारी के मुताबिक पिछले दो दिनों में चार ऐसे लोग अस्पताल लाए गए, जिनकी या तो मौत हो चुकी थी या मौत के कगार पर थे और सभी में कोरोनावायरस का संक्रमण मिला। इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता कि शहर या पूरे देश के अन्य अस्पतालों में भी इस तरह की मौतें हुई होंगी। देश में कोरोनावायरस से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 21 अप्रैल को 200 के ऊपर था, लेकिन अज्ञात कारणों से होने वाली मौतों का आंकड़ा आधिकारिक संख्या की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े कर रहा है। समस्या से तभी निपटा जा सकता है, जब देश भर के अस्पताल मरने के बाद लाए गए या लाने के कुछ घंटों में गुजर गए मरीजों का कोरोनावायरस परीक्षण करें ताकि महामारी से होने वाली मौतों का सही आंकड़ा निश्चित किया जा सके।15
कराची में यह हालत देखकर सिंध के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह को कहना पड़ा कि उन्हें डर है कि प्रांत में मौत के असली आंकड़ा बताए गए आंकड़े से बहुत अधिक है। उन्हें शक था कि “निमोनिया जैसे लक्षणों” वाले कई मामलों का पता ही नहीं चल रहा है।16
इसकी दो वजहें हो सकती हैं। पहली, मार्च 2020 में हुए पहले गैलप इंटरनेशनल सर्वे में पता लगा कि 43 प्रतिशत पाकिस्तानियों ने कोरोनावायरस से बने के लिए किसी तरह के एहतियाती कदम नहीं उठाए थे। बताया गया कि इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 28 देशों के नागरिकों में पाकिस्तान में सबसे अधिक प्रतिशत आबादी ने हिस्सा लिया था।17 आगा खां यूनिवर्सिटी द्वारा कराए गए एक अन्य सर्वेक्षण में 10 में से एक से भी कम ग्रामीण नागरिक यह बता पाया था कि भीड़भाड़ में रहने पर संक्रमित होने का डर रहता है। 74 प्रतिशत ग्रामीण नागरिक इस गलतफहमी के शिकार थे कि यह वैश्विक महामारी मच्छर के काटने से हुई है।18
दूसरी वजह यह थी कि क्वारंटीन में कई खामियां हुई हैं। उदाहरण के लिए ईरान से 29 फरवरी को आए 252 श्रद्धालुओं के जत्थे को 14 दिनों का आवश्यक क्वारंटीन पूरा किए बगैर ही तफ्तान कोरोना क्वारंटीन सेंटर से जाने दिया गया।19 उसके बाद ईरान से तफ्तान होते हुए 20 मार्च को मुल्तान पहुंचे जिन श्रद्धालुओं में सक्रमण की पुष्टि नहीं हुइ थी, उनमें से 1,000 से अधिक को कोरोना संक्रमण हो चुका है क्योंकि मुल्तान में क्वारंटीन के दौरान उन्हें बेहद खराब स्थितियों में रखा गया। कोढ़ में खाज इसलिए हुआ है क्योंकि क्वारंटीन केंद्र में उन्हें संक्रमित लोगों के साथ मिलने-जुलने की पूरी आजादी दे दी गई और बाद में उनके घर भेज दिया गया।20
दो और बातों ने समस्या कई गुना बढ़ा दी। पहली बात है डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के लिए सुरक्षा उपकरणों की भारी किल्लत।21 इसके बाद भीएन-95 मास्क पहनकर एक बैठक में हिस्सा लेते पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ आरिफ अल्वी की तस्वीरों और फुटेज की स्वास्थ्य क्षेत्र में तीखी आलोचना हुई क्योंकि क्वेटा में सुरक्षा उपकरणों और पोशाक की मांग कर रहे डॉक्टरों को पुलिस ने पीटा था और गिरफ्तार किया था।22
दूसरा मामला मस्जिदों में रोजाना सामूहिक नमाज पढ़े जाने का है। सरकार की शुरुआती नीति में नमाज आदि के लिए 5 से अधिक लोगों को जमा नहीं होने देने का निर्देश था। सिंध की सरकार ने और भी सख्ती बरती। उसने जुमे पर यानी शुक्रवार को दोपहर 12 से 3 बजे तक कर्फ्यू की घोषणा कर दी ताकि भारी भीड़ जमा नहीं हो सके। इसके बाद भी पूरे देश में नियमों का जमकर उल्लंघन किया गया। सबसे बड़ा उल्लंघन तो इस्लामाबाद में लाल मस्जिद के विवादित मौलवी मौलाना अब्दुल अजीज ने किया। उसने लगभग हर नमाज पर भारी भीड़कर जुटाकर सरकार को चुनौती दी और बेशर्मी से यह भी कहा कि वह इसी तरह से नमाज कराता रहेगा। लॉकडाउन के दौरान इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के भीतर नमाज के दौरान खचाखच भीड़ की तस्वीरें हैरान करने वाली थीं मगर सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है।
इसके अलावा 14 अप्रैल को प्रमुख उलेमा ने सरकार के प्रतिबंधों को खारिज कर दिया और कहा कि जुमे की नमाज समेत रोजाना की सामूहिक नमाजें मस्जिदों में ही अता की जाएंगी। एक उलेमा ने तो यह तक कह डाला कि वायरस से निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मस्जिदों में पहुंचें।23
स्थिति इसीलिए ज्यादा खौफनाक है क्योंकि रमजान का महीना आने वाला है और सहरी तथा इफ्तार के लिए लोग जुटेंगे तथा तरावी और ऐतेकाफ की विशेष नमाज भी पढ़ी जाएंगी। टकराव रोकने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. अल्वी ने प्रमुख उलेमा से बात की ओर 20 बिंदुओं वाला समझौता तैयार किया। इस समझौते के तहत रमजान के महीने में मस्जिदों में रोजाना सामूहिक नमाज पढ़े जाने तथा तरावी की नमाज अता किए जाने की उलेमा की सभी मांगें मान ली गईं। उनमें एहतियात बरतने और सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार रखने की कुछ शर्तें जरूर जोड़ी गईं। दिलचस्प है कि मौलवियों ने एहतियात के ये उपाय लागू करने की जिम्मेदारी उठाने से साफ इनकार कर दिया।24
सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों ने मस्जिदों में सामूहिक नमाज पर रोक लगाने का जो अधिक सुरक्षित तरीका अपनाया था, उसे नजरअंदाज कर वास्तव में पाकिस्तान ने बड़ा खतरा मोल लिया है। देश भर में हजारों की तादाद में मस्जिदें हैं, इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना और उसकी निगरानी करना असंभव काम होगा। ऐसी सूरत में पूरे महीने तक रोजाना सामूहिक नमाज की इजाजत देने से कोरोनावायरस की महामारी को पूरे देश में फैलने का मौका मिल सकता है और संक्रमण तथा मौतों में भारी इजाफा हो सकता है।
स्पष्ट है कि सरकार उलेमा के दबाव में आ गई है और इमरान खान संकट के समय मजबूत नेतृत्व देने में नाकाम रहे हैं।25 मार्च में रायविंद में तबलीगी जमात के सम्मेलन के बाद कोविड-19 के मामलों में एकाएक बढ़ोतरी हो गई, जिससे साफ पता चला कि धार्मिक समारोहों के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के कायदे नहीं माने गए तो क्या होगा। यह देखने के बाद भी सरकार ने रमजान के दौरान सामूहिक नमाज को मंजूरी दे दी, जिसकी भारी कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़ सकती है।
पाकिस्तान शायद बहुत खतरनाक दौर में कदम रख रहा है। एक डॉक्टर ने यह बात सबसे अच्छे ढंग से बताई, जब उन्होंने मीडिया से कहाः “अब हम कुछ भी कर लें, हमारे यहां महामारी बहुत तेजी से फैलने वाली है। और संक्रमण के मामलों की उस भारी तादाद से निपटने की कुव्वत भी हमारे भीतर नहीं होगी। कई स्तरों पर सब कुछ ठप हो जाएगा। सीमा पर बेहतर नियंत्रण और क्वारंटीन के उपाय बहुत पहले शुरू कर दिए जाने चाहिए थे मगर मुझे लगता है कि अब बहुत देर हो चुकी है।”26
विभिन्न देशों के अनुभवों से पता चल रहा है कि शुरुआत में यह मानना बिल्कुल गलत था कि कुछ हफ्तों तक लॉकडाउन लागू करने से वायरस को हरा दिया जाएगा। कुछ वक्त तक माहौल और कामकाज पहले जैसा नहीं होगा। दूसरे देशों की तरह पाकिस्तान को भी समुचित लॉकडाउन सुनिश्चित करना होगा और लंबी दिक्कतों के लिए तैयार रहना होगा। अभी तो नहीं लगता कि वह ऐसा करने के लिए तैयार है या ऐसा करना चाहता है।
तिलक देवाशेर ने पाकिस्तान पर तीन प्रसिद्ध पुस्तकें ‘पाकिस्तानः कोर्टिंग द अबिस’, ‘पाकिस्तानः एट द हेम’ और ‘पाकिस्तानः द बलूचिस्तान कनन्ड्रम’ लिखी हैं। वह भारत सरकार के कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव रह चुके हैं। संप्रति वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य और विवेकानंद इंटरनेशन फाउंडेशन में कंसल्टेंट हैं।
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