आत्मनिर्भरता: भारत के पुनरुत्थान की मोदी की योजना
अरविंद गुप्ता, निदेशक, वीआईएफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई, 2020 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में 20 लाख करोड़ रुपये की योजना का ऐलान किया और सुधार की साहसिक योजना की घोषणा भी की, जिसका लक्ष्य 21वीं सदी में भारत का पुनर्निर्माण और पुनरुत्थान है।
मोदी के कल्पनाशीलता भरे भाषण की खासियत यह थी कि उसमें आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का खाका खींचा गया था, जिससे भारत दुनिया भर में स्पर्द्धा कर सकेगा।
अपने संबोधन में उन्होंने स्थानीय विनिर्माण को मजबूत करने, स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाएं तैयार करने और स्थानीय उत्पादों को वैश्विक ब्रांडों में बदलने की जरूरत पर खासा जोर दिया।
विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा के साथ ही मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए एक नया अभियान आत्मनिर्भर भारत अभियान भी आरंभ किया।
20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के ब्योरे की घोषणा वित्त मंत्री जल्द ही करेंगी। इसमें निम्नलिखित घटक होंगेः
आत्मनिर्भरता की व्याख्या करते हुए उन्होंने शास्त्रों से ‘सर्वम् आत्मवशम् सुखम्’ का उल्लेख किया, जिसका अर्थ है कि जो हमारे नियंत्रण में है वही सुख या प्रसन्नता है।
उनके संबोधन की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं।
21वीं सदी को भारत की सदी बनाना जिम्मेदारी है
“...ऐसा प्रतीत होता है कि 21वीं सदी भारत की सदी है। यह हमारा सपना नहीं है बल्कि हम सभी की जिम्मेदारी है।”
आत्मनिर्भरता ही भारत के लिए एकमात्र रास्ता है।
“विश्व की आज की स्थिति हमें बताती है कि आत्मनिर्भर भारत ही इकलौता रास्ता है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है - एषः पंथः यानी आत्मनिर्भर भारत।”
आत्मनिर्भरता वैश्वीकरण को मानव केंद्रित बनाएगी।
“आज की वैश्विक परिस्थितियों में आत्मनिर्भर शब्द का अर्थ बदल गया है। मानव केंद्रित वैश्वीकरण बनाम अर्थव्यवस्था केंद्रित वैश्वीकरण पर बहस जारी है। भारत का मूलभूत चिंतन दुनिया के लिए आशा की किरण बन रहा है। भारत की संस्कृति और परंपरा आत्मनिर्भरता की बात करती है और वसुधैव कुटुंबकम इसकी आत्मा है।”
आत्मनिर्भरता का अर्थ भारत को दुनिया से अलग करना नहीं है।
“भारत के लिए आत्मनिर्भरता का अर्थ आत्मकेंद्रित व्यवस्था नहीं है। भारत की आत्मनिर्भरता विश्व के सुख, सहयोग और विश्व शांति में निहित है।”
भारत विश्व के कल्याण में विश्वास करता है।
यह वह संस्कृति है, जो विश्व कल्याण में विश्वास करती है, सभी जीवित प्राणियों की बात करती है और पूरे विश्व को परिवार मानती है। ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्या’ इस संस्कृति आधार है अर्थात यह पृथ्वी को मां मानती है।
भारत की प्रगति दुनिया से जुड़ी है।
“और जब भारत भूमि आत्मनिर्भर हो जाएगी तो यह विश्व की समृद्धि भी सुनिश्चित करेगी। भारत की प्रगति हमेशा दुनिया की प्रगति से जुड़ी रही है।”
आत्म निर्भर भारत सर्वोत्तम उत्पाद तैयार करेगा।
“हम सर्वश्रेष्ठ उत्पाद बनाएंगे, अपनी गुणवत्ता में और भी सुधार करेंगे, आपूर्ति श्रृंखला को और भी आधुनिक बनाएंगे, हम ऐसा कर सकते हैं और निश्चित रूप से ऐसा करेंगे।”
आत्मनिर्भरता के पांच स्तंभ हैं।
“पहला स्तंभ अर्थव्यवस्था है, अर्थव्यवस्था जिसमें इन्क्रीमेंटल चेंज (लगातार बदलाव) के बजाय क्वांटम जंप (एकाएक बड़ा बदलाव) हो।
दूसरा स्तंभ बुनियादी ढांचा है, ऐसा बुनियादी ढांचा जो आधुनिक भारत की पहचान बन गया है।
तीसरा स्तंभ हमारी व्यवस्था है, ऐसी व्यवस्था, जो 21वीं सदी के सपने पूरे करने वाली तकनीक से चलती हो; जो पिछली सदी की नीतियों पर आधारित नहीं हो।
चौथा स्तंभ हमारी डेमोग्राफी (जनांकिकी) है, विश्व की सबसे बड़े लोकतंत्र में हमारी जीवंत डेमोग्राफी ही हमारी ताकत है, आत्मनिर्भर भारत के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
पांचवां स्तंभ मांग है, हमारी अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति का चक्र वह ताकत है, जिसे पूरी क्षमता तक पहुंचाने की जरूरत है। देश में मांग बढ़ाने के लिए और इस मांग को पूरा करने के लिए हमारी आपूर्ति श्रृंखला के हरेक पक्ष को सशक्त बनाने की जरूरत है। हम अपनी मिट्टी की खुशबू और अपने मजदूरों के पसीने से बनी अपनी आपूर्ति श्रृंखला और आपूर्ति व्यवस्था को मजबूत बनाएंगे।”
विशेष आर्थिक पैकेज भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा।
लोकल के लिए वोकल; स्थानीय विनिर्माण की अहमियत
विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री उन लोगों से बहुत आगे निकल गए, जो अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहन पैकेज भर की मांग कर रहे थे। उन्होंने नए भारत का खाका बताया है, जो लोकल भी होगा और ग्लोबल भी होगा। आत्मनिर्भर भारत का निर्माण ही नया मंत्र होगा। श्री मोदी ने कहा आत्मनिर्भरता सुख लाएगी, संतुष्टि लाएगी और सशक्त बनाएगी।
आत्मनिर्भरता शब्द पिछले कुछ दशकों में भारत के शब्दकोष से गायब ही हो गया था। श्री मोदी ने इसे सम्मान दिया है और एक बार फिर हमारे चिंतन में इसे स्थान दिया है।
कोरोनावायरस ने वैश्वीकरण को करारा झटका दिया है, उसकी कमियां उजागर कर दी हैं और स्पष्ट कर दिया है कि यदि भारत दुनिया में विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहता है तो उसे अपनी आंतरिक शक्ति का निर्माण करना ही होगा। यह आत्मनिर्भरता से ही हो सकता है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वदेशी सबको एकजुट करता था। उसने भारतीयों को औपनिवेशिक मालिकों के साथ लड़ाई के लिए एकजुट किया। राजनीति के बगैर अपने नए अवतार में आत्मनिर्भरता 21वीं सदी में भारत के निर्माण में मदद कर सकती है। हमें आत्मनिर्भरता के गांधीवादी मॉडल के मूल बिंदुओं पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। इसमें टिकाऊ विकास, स्थानीय कौशल एवं संसाधनों के इस्तेमाल से स्थानीय उत्पादन शामिल है। इन विचारों पर आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नए सिरे से विचार करना चाहिए।
कोरोनावायरस संकट ने मजबूत, विश्वास भरे और मिलकर काम करने वाले भारत के पुनर्निर्माण का जो मौका दिया है, उसे हम गंवा नहीं सकते। यह भारत अपने कल्याण के लिए ही नहीं बल्कि समूचे विश्व के कल्याण के लिए काम करता है। वसुधैव कुटुंबकम हमारी विदेश नीति और दुनिया के साथ जुड़ाव का स्तंभ बने, यह हमारी ही जिम्मेदारी है।
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